दोस्तों बैशाखी का त्यौहार बैशाख के महीने में मनाया जाने वाला एक भारतीय त्यौहार है, जिसे भारत में सब लोग धूम-धाम से मानते हैं ये त्यौहार बड़ी जोरो शोरो से मनाया जाता हैं जैसा की आपको पता है की भारत में अलग-अलग त्यौहार मनाये जाते हैं हर महीने कोई न कोई त्यौहार आते रहते हैं, इसी प्रकार भारत में बैशाखी का त्यौहार मनाया जाता हैं। यह त्यौहार अप्रैल के महीने में मनाया जाता हैं अप्रैल को ही हिंदी में बैशाख कहा जाता हैं। आगे जानते हैं बैसाखी कब है? और इस से जुडी सभी बातों के बारे में।
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बैशाखी त्यौहार सिख धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार हैं आपको पता हैं की हमारा देश विभिन भाषाओं वाला देश हैं जहाँ अलग-अलग प्रकार के लोग रहते हैं। परन्तु इतनी विभिन्नता होने के बाउजूद भी भारत में इस त्यौहार को सभी धर्म के लोग ख़ुशी से मानते हैं। यह त्यौहार हरियाणा तथा पंजाब में मुख्य रूप से बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। हमारा देश कृषि- प्रधान देश हैं, और यह त्यौहार भी कृषि (फसलों) से सम्बंधित त्यौहार हैं। आईये जानते हैं, बैसाखी कब है 2023, बैसाखी त्यौहार का इतिहास (Baisakhi or Vaisakhi Festival History in Hindi) और महत्त्व इस पोस्ट में।
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बैसाखी कब है? (when is Baisakhi)-
जैसा की आपने अभी तक पढ़ा की बैशाखी त्यौहार अप्रैल के महीने में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं। जो हर साल 14 अप्रैल को मनाया जाता हैं, और इस साल भी बैशाखी त्यौहार 14 अप्रैल को ही मनाया जायेगा। इस त्यौहार को हर राज्य अलग-अलग नाम से बुलाया जाता हैं दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोतांडु नाम तथा उत्तर भारत में इसे बैशाखी नाम से पुकारा जाता हैं। प्रत्येक वर्ष इस त्यौहार को पंजाब में खुशी से भागड़ा तथा गिद्दा नृत्य करके बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता हैं।
भारत में बैशाखी का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं ?
भारत में बैशाखी का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं ? आपके मन में बहुत सवाल होंगे! आईये जानते हैं। सबसे पहले आपको ये बताये की भारत में यह त्यौहार किस लिए मनाया जाता हैं दोस्तों आपको बताये की बैशाखी त्यौहार एक सिखो का त्यौहार हैं, परन्तु भारत में इसे सभी धर्मो के लोग मनाते हैं यह जो त्यौहार हैं ये त्यौहार किसानो और कृषि से सम्बन्धित त्यौहार हैं जिसे किसान लोग बड़े हर्षोउल्लास से मानते हैं। इस त्यौहार का नाम बैशाकी इस लिए पड़ा क्योंकि यह बैशाख के महीने में मनाया जाता हैं।
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बैसाखी त्यौहार का इतिहास (history of Baisakhi Festival)
दोस्तों जैसे ही हम इतिहास का नाम सुनते हैं, हमारे मन में बहुत तरह-तरह की बातें और सवाल मन आने लगते हैं, की इतिहास तो बीता हुआ कल हैं लोग इतिहास के नाम पर डर जाते हैं परन्तु आपको बैशाख का इतिहास बहुत ही खास इतिहास लगेगा। ये कहानी बहुत दिल्चस्प कहानी का इतिहास है आईये पढ़ते हैं।
सबसे पहले बता दे कि यह एक सिखो का त्यौहार हैं जिसे भारत में सब ही धर्म के लोग मनाते हैं। अब करे इतिहस की बात तो दोस्तों यह बात तब की हैं जब सिखों के आखरी गुरु, गुरुगोविंद जी ने 1699 में सभी सिखों को आमंत्रित किया था। तो उनके कहने पर सभी सिख उनकी आज्ञा का पालन करते हुए वहां एक मैदान में इकठ्ठा हो गए थे।
गुरु गोविन्द जी का शिष्यों को इकठ्ठा करने के पीछे का एक कारण था गुरुदेव जी अपने शिष्यों की परीक्षा लेने चाहते थे उन्होंने अचानक से अपनी तलवार निकली और कहा कि- मुझे सर चाहिए ; ये देख कर सभी शिष्य घबरा गए य सब इतना जल्दी हुआ कि उनको सोचने का मौका भी नहीं मिला की ये हो क्या रहा हैं। तभी भीड़ से एक व्यक्ति निकले और गुरूजी के चरणों में सर रखा लिया वे लाहौर के रहने वाले थे जिनका नाम दयाराम था। दयाराम गुरूजी के साथ अंदर गया ही जैसे तो अंदर से लहू (खून) की धार आने लगी और बाहर खड़े सभी शिष्य जान गए की दयाराम का सर कलम हो चुका हैं अब वह नहीं रहा।
गुरूजी जल्दी से तलवार लेकर बाहर आये और कहने लगे की मुझे सर चाहिए! यह कह कर फिर भीड़ से एक आदमी बाहर निकला जिसका नाम धर्मदास था और वह सहारनपुर का रहने वाला था उसने अपना सर गुरु जी के चरणों में रख लिया और गुरूजी उसको अपने साथ अंदर ले गए अंदर जा कर ही वह फिर से खून निकलता हुआ दिखाई दिया। अपना सर अर्पित करने के लिए भीड़ से तीन और लोग बहार निकले वो थे साहिब चंद, हिम्मत राय और मोहक चंद ये तीनो गुरूजी के साथ अंदर चले गए और फिर से बाहर खून निकलते हुए बाहर निकलते हुए दिखाई दिया। मैदान में खड़े लोगो को लगा की अंदर 5 लोगो की बलि चढ़ चुकी हैं, उनका सर कलम हो चूका हैं।
बाहर खड़े सभी लोग घबरा कर सोच में पड़ गए। बाहर आकर गुरूजी ने उनको बताया की मैंने किसी भी व्यक्ति की बलि नहीं दी बल्कि जिनकी मैंने बलि दी हैं वो पशु थे। उन्होंने कहा की जो भी मैंने अभी तक आपकी आँखों के सामने जो भी किया वो सिर्फ एक नाटक था और मैं आप सब की परीक्षा ले रहा था जिसमे ये 5 लोग (शिष्य) सफल हो गए हैं। गुरु गोविन्द ने इन पांचों को अमृत रस का पान दिया और उनको पांच प्यादों के रूप में परिचित किया। उनको गुरु गोविन्द जी ने बताया की वे आज से ही वे दाढ़ी मूछ और बाल रखने होंगे और तुमको आज से सब सिहं कह कर बुलाएँगे तथा उनको पंच ककार का पालन करना होगा। इस घटना की कहानी से ही गुरु गोविन्द जी के नाम गुरु गोविन्द सिहं पड गया। इसी दिन से ही उनके नाम के पीछे सिहं लग गया और अब सब सिखों के नाम के पीछे सिहं लगाया जायेगा। इस घटना की वजह से बैशाखी का त्यौहार मनाया जाता हैं और यह सिखों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार होता हैं।
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बैशाखी किस महत्व से मनाई जाती हैं? (what is the significance of Baisakhi)-
जैसा की आपको पता हैं कि भारत कृषि प्रधान देश हैं और यह जो त्यौहार हैं, वो भी कृषि से समन्धित त्यौहार हैं, जिसे किसान लोग बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। और अपनी अच्छी फसल होने की आशा करते हैं। बैशाख के महीने में ही किसान फसल का कटाव करते हैं।
भारत में बैशाखी त्यौहार कैसे मनाया जाता हैं-
भारत में बैशाखी त्यौहार निम्न-निम्न तरह मनाया जाता हैं-
- भारत में बैशाखी त्यौहार बड़ी खुशी से मनाये जाना वाला त्यौहार हैं जो हर साल मनाया जाता हैं। बैशाखी त्यौहार वैसे तो पूरे देश में सभी धर्म के लोग मानते हैं परन्तु खास तोर पर यह त्यौहार हरियाणा, पंजाब तथा उत्तराखंड में (उत्तर भारत) में यह त्यौहार बड़े ख़ुशी से मनाया जाता हैं।
- बैशाखी के त्यौहार के दिन सिख लोगो का बहुत बड़ा दल निकलता हैं और इस दिन मेले का आयोजन भी किया जाता हैं जिसे बैशाखी का मेला बोलते हैं। यह बहुत बड़ा मेला लगता हैं। बैशाखी मेला देखने के लिए बाहर देश-विदेश के लोग आते हैं यह दुनिया में एक परषिद मेला हैं जो विदेशो में भी फेमस हैं।
- भारत में बैशाखी आने से पहले ही इसकी तैयारियाँ शुरू होने लगती हैं सार्वजनिक स्थानो- जैसे मंदिर, गुरुद्वारों को बहुत ही सुन्दर तरीके से मानाया जाता हैं।
- इस दिन तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं तथा भगवान् को भोग लगाया जाता हैं।और मिठाइयां खायी जाती हैं और एक दूसरे को बैशाखी शुभकामनाये दी जाती हैं।
- त्यौहार के दिन सुबह उठकर नदियों में लोग नहाने जाते हैं नदी में नहाना पवित्र माना जाता हैं। जो नदियों में नहीं नहाते वो घर पर ही नहाते हैं। नहाने के पस्श्चात लोग अच्छे नए कपड़े पहन कर तैयार हो जाते हैं।
- सिख लोग अपनी पारम्परिक पहनावा पहन कर तथा हाथों में तलवार लेकर अपनी वीरता को दर्शाते हैं तथा अपने साहस को और बढ़ाते हैं तथा आपसी भाईचारे को मजबूत बनाते हैं। तथा इस दिन गानो के साथ नृत्य भी किया जाता हैं।
बैशाखी त्यौहार से सम्बंधित प्रश्न /उत्तर
भारत में 14 अप्रैल को बैशाखी का त्यौहार मनाया जायेगा।
बैशाखी त्यौहार अप्रैल में मनाये जाने वाला एक हिन्दू त्यौहार हैं। हम अप्रैल को हिंदी में बैशाखी कहते हैं। तथा बैशाख महीने में आने वाला त्यौहार बैशाखी कहलाता हैं।
वैसे तो यह त्यौहार हर राज्य में मनाया जाता हैं, परन्तु खास तोर पर यह त्यौहार पंजाब, हरियाणा तथा उत्तराखंड उत्तर भारत में मनाया जाता हैं।
इस दिन तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं तथा भगवान् को भोग लगाया जाता हैं।और मिठाइयां खायी जाती हैं और एक दूसरे को बैशाखी शुभकामनाये दी जाती हैं।
बैशाखी त्यौहार गुरु गोविन्द जी की याद में।