नालापत बालमणि अम्मा जीवनी – Biography Of Balamani Amma in Hindi

नालापत बालमणि अम्मा भारत की मलयालम भाषा की प्रतिभावान और महान कवियित्रियों में से एक थी। बालमणि अम्मा को छायावादी युग में मौजूद रहीं महादेवी वर्मा के समकालीन माना जाता है। आपको बता दें की अपने पुरे जीवन में बालमणि अम्मा ने 500 से अधिक कविताएं लिखीं। बालमणि अम्मा के जीवन पर आपको गांधी जी के विचारों का प्रभाव देखने को मिलता है।

नालापत बालमणि अम्मा की गिनती 20वीं शताब्दी के चर्चित व प्रतिष्ठित कवित्रियों में से एक माना जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें की बालमणि अम्मा जी को आधुनिक मलयालम की सशक्त कवित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी के नाम से भी जाना जाता है।

नालापत बालमणि अम्मा का जीवन परिचय
नालापत बालमणि अम्मा का जीवन परिचय

आज हम आपको इन्हीं मलयालम कवियित्री के जीवन परिचय और रचनाओं के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं। यदि आप भी बालमणि अम्मा के हिंदी साहित्य में दिए गए योगदान के बारे में जानना चाहते हैं तो आपको हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरूर पढ़ना चाहिए।

नालापत बालमणि अम्मा का जीवन परिचय (Biography):

पूरा नाम (Full Name)नालापत बालमणि अम्मा
जन्मतिथि (Date of birth)19 जुलाई 1909
जन्मस्थान (Birth Place) पुन्नायुर्कुलम, मालाबार जिला, मद्रास प्रैज़िडन्सी, ब्रिटिश राज भारत
उम्र (Age)95 वर्ष
मृत्यु की तारीख (Death date)29 सितम्बर 2004
मृत्यु का कारण (Death of Reason)अल्जाइमर रोग
मृत्यु का स्थान (Death place)कोच्चि, केरल , भारत
धर्म (Religion)हिन्दू (Hindu)
नागरिकता (Nationality)भारतीय (Indian)
वैवाहिक स्थिति (Marital status)विवाहित (सन 1928)
पेशा (Occupation)कवियित्री
आँखों का रंग (Eye Color)काला
बालों का रंग (Hair Color)काला एवं सफ़ेद

नालापत बालमणि अम्मा का परिवार (Family):

पिता जी नाम (Father’s Name)चित्तंजूर कुंज्जण्णि राजा
माता जी का नाम (Mother’s Name)नालापत कूचुकुट्टी
पति (Spouse)वी॰ एम॰ नायर
संतानें (Childrens)कमला दास सुरय्या, सुलोचना, मोहनदास, श्याम सुंदर

नालापत बालमणि अम्मा का प्रारम्भिक जीवन (Early life):

जैसा की हम आपको ऊपर पहले ही बता चुके हैं की नालापत बालमणि अम्मा का जन्म 19 जुलाई 1909 को दक्षिण भारत के केरल राज्य के मालाबार जिले के पुन्नायुर्कुलम के नालापत गांव में हुआ था। बालमणि अम्मा जी के पिता जी का नाम चित्तंजूर कुंज्जण्णि राजा और माता जी का नाम नालापत कूचुकुट्टी अम्मा था।

बालमणि अम्मा का परिवार एक रूढ़िवादी परिवार की सोच वाला परिवार था यह भारत में ब्रिटिश अंग्रेजी हुकूमत के समय की बात है जहाँ लड़कियों को शिक्षा हेतु स्कूल भेजना अनुचित माना जाता था। यह देखते हुए बालमणि अम्मा के पिता जी ने अम्मा की शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही करवा दी। घर पर अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त करते हुए अम्मा ने संस्कृत और मलयालम भाषा सीखी।

आपको बताते चलें की नालापत हाउस में अम्मा के घर की अलमारियां किताबों से भरी-पड़ी रहती थीं। इन किताबों में कागजों में छपी पुस्तक और ताड़पत्रों में लिखी गई हस्तलिपि मौजूद थी।

हम आपको बता दें की बालमणि अम्मा के मामा जी नारायण मेनन एक कवि और दार्शनिक थे। जिनके घर पर कवियों और विद्वानों का आना जाना लगा रहता था। मामा के घर पर इस तरह के वातावरण ने नालापत बालमणि अम्मा को एक कवियित्री बनने को प्रेरित किया।

नालापत बालमणि अम्मा का वैवाहिक जीवन (Married life):

आपको बता दें की नालापत बालमणि अम्मा का विवाह वर्ष 1928 में 19 वर्ष की आयु में वी॰ एम॰ नायर से हुआ था। शादी के बाद बालमणि अम्मा अपने पति के साथ कोलकाता रहने चली गई। जहाँ उनके पति “वेलफोर्ट ट्रांसपोर्ट कम्पनी” में एक वरिष्ठ अधिकारी थे।

ट्रांसपोर्ट की यह ऑटोमोबाइल कंपनी “रोल्स रॉयस मोटर कार्स” में एक वरिष्ठ अधिकारी थे जो “बेंटले” के उपकरणों को बेचती थी। कुछ समय तक कंपनी में अपनी सेवाएं देने के बाद वी॰ एम॰ नायर जी ने त्यागपत्र देकर कंपनी छोड़ दी। इसके बाद नायर जी मलयालम भाषा के दैनिक समाचार पत्र “मातृभूमि” के प्रबंध सम्पादक और प्रबंध निदेशक बनें।

कुछ समय समाचार पत्र में नायर जी ने अपनी सेवाएं दी और उसके बाद कुछ कारणों की वजह ने अम्मा और नायर जी को कोलकाता छोड़ना पड़ा। जिसके बाद अम्मा जी केरल वापस आ गई। लगभग 50 वर्ष के दाम्पत्य जीवन का सुख भोगने के बाद 1977 में अम्मा जी के पति की मृत्यु हो गई।

बालमणि अम्मा की रचनाओं (जैसे: अमृत गमया, स्वपन पराजय आदि) में मुखर दाम्पत्य जीवन की झलक देखने को मिलती है।

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नालापत बालमणि अम्मा के द्वारा माँ पर लिखी कविता:

दोस्तों बालमणी अम्मा के द्वारा भारतीय ज्ञानपीठ की छप्पन कविताओं में प्रकाशित मां के ऊपर लिखित यह कविता सम्मानित और सुप्रसिद्ध है।

“बतलाओ माँ, मुझे बतलाओ,
कहाँ से, आ पहुँची यह छोटी सी बच्ची ?”
अपनी अनुजाता को परसते-सहलाते हुए
मेरा पुत्र पूछ रहा था मुझसे;
यह पुराना सवाल, जिसे हजारों लोगों ने
पहले भी बार-बार पूछा है।
प्रश्न जब उन पल्लव-अधरों से फूट पड़ा
तो उस से नवीन मकरन्द की कणिकाएँ चू पड़ीं;
आह, जिज्ञासा जब पहली बार आत्मा से फूटती है
तब कितनी आस्वाद्य बन जाती है
तेरी मधुरिमा ! कहाँ से ? कहाँ से ?
मेरा अन्तःकरण भी रटने लगा यह आदिम मन्त्र।
समस्त वस्तुओं में मैं उसी की प्रतिध्वनि सुनने लगी
अपने अन्तरंग के कानों से; हे प्रत्युत्तरहीण महाप्रश्न !
बुद्धिवादी मनुष्य की उद्धत आत्मा में
जिसने तुझे उत्कीर्ण कर दिया है
उस दिव्य कल्पना की जय हो !
अथवा तुम्हीं हो वह स्वर्णिम कीर्ति-पताका
जो जता रही है सृष्टि में मानव की महत्ता।
ध्वनित हो रहे हो तुम
समस्त चराचरों के भीतर शायद, आत्मशोध की प्रेरणा देने वाले
तुम्हारे आमन्त्रण को सुनकर
गायें देख रही हैं अपनी परछाईं को झुककर।
फैली हुई फुनगियों में अपनी चोंचों से
अपने आप को टटोल रही हैं, चिड़ियाँ।
खोज रहा है अश्वत्थ अपनी दीर्घ जटाओं को फैलाकर
मिट्टी में छिपे मूल बीज को; और, सदियों से
अपने ही शरीर का विश्लेषण कर रहा है पहाड़।
ओ मेरी कल्पने, व्यर्थ ही तू प्रयत्न कर रही है
ऊँचे अलौकिक तत्वों को छूने के लिये।
कहाँ तक ऊँची उड़ सकेगी यह पतंग
मेरे मस्तिष्क की पकड़ में ?
झुक जाओ मेरे सिर, मुन्ने के जिज्ञासा भरे प्रश्न के सामने !
गिर जाओ, हे ग्रंथ-विज्ञान
मेरे सिर पर के निरर्थक भार-से
तुम इस मिट्टी पर।
तुम्हारे पास स्तन्य को एक कणिका भी नहीं
बच्चे की बढ़ी हुई सत्य-तृष्णा को –
बुझाने के लिये।
इस नन्हीं सी बुद्धि को थामने-संभालने के लिये
कोई शक्तिशाली आधार भी तुम्हारे पास नहीं !
हो सकता है, मानव की चिन्ता पृथ्वी से टकराये
और सिद्धान्त की चिनगारियाँ बिखेर दे।
पर, अंधकार में है उस विराट सत्य की सार-सत्ता
आज भी यथावत।
घड़ियाँ भागी जा रही थीं सौ-सौ चिन्ताओं को कुचलकर;
विस्मयकारी वेग के साथ उड़-उड़ कर छिप रही थीं
खारे समुद्र की बदलती हुई भावनाएँ
अव्यक्त आकार के साथ, अन्तरिक्ष के पथ पर।
मेरे बेटे ने प्रश्न दुहराया, माता के मौन पर अधीर होकर।
“मेरे लाल, मेरी बुद्धि की आशंका अभी तक ठिठक रही है
इस विराट प्रश्न में डुबकी लगाने के लिये और जिस को
तल-स्पर्शी आँखों ने भी नहीं देखा है, उस वस्तु को टटोलने के लिए।
हम सब कहाँ से आये ?
मैं कुछ भी नहीं जानती !
तुम्हारे इन नन्हें हाथों से ही नापा जा सकता है
तुम्हारी माँ का तत्त्व-बोध।”
अपने छोटे से प्रश्न का जब कोई सीधा प्रत्युत्तर नहीं मिल सका
तो मुन्ना मुसकराता हुआ बोल उठा
“माँ भी कुछ नहीं जानती।”

:नालापत बालमणि अम्मा

नालापत बालमणि अम्मा का साहित्यिक जीवन:

  • बाल साहित्य:
    • मज़्हुवींट कथा – प्रकाशित वर्ष (1966)
  • गद्य साहित्य:
    • जीविताट्टीलुट (आत्मकथात्मक निबंधों का संकलन) – प्रकाशित वर्ष (1969)
    • सरस्वती की चेतना (हिंदी में आत्मकथा टिप्पणियां)
  • अनुवाद साहित्य:
    • छप्पन कविताएं-बालमणि अम्मा (मलयालम भाषा से हिन्दी में अनुवाद – प्रकाशित वर्ष (1971)
    • थर्टी पोएम्स-बालमणि अम्मा (मलयालम भाषा से अँग्रेजी में अनुवाद- प्रकाशित वर्ष (1979)
    • निवेदया (मलयालम भाषा से हिंदी में अनुवाद) – प्रकाशित वर्ष (2003)
    • Chakravalam (Horizon) – हिन्दी अनुवाद: क्षितिज -(मलयालम भाषा से अँग्रेजी में अनुवाद – प्रकाशित वर्ष (1940)
    • Mother – (हिंदी अनुवाद – माँ), (मलयालम भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद) – प्रकाशित वर्ष (1950)
  • मृत्योपरांत प्रकाशित कृति:
    • वाला – प्रकाशित वर्ष (2010)
  • साहित्य समग्र ग्रन्थ :
    • बालमणि अम्मायूडे कविथाकाल (सम्पूर्ण सम्हाराम)

नालापत बालमणि अम्मा का कविता संग्रह:

क्रम संख्या कविता संग्रह का नाम प्रकाशित वर्ष
1 कुप्पुकई 1930
2अम्मा 1934
3धर्ममर्गथिल 1938
4कुटुम्बनी 1936
5प्रभंकुरम 1942
6भवनईल 1942
7ऊंजलींमेल 1946
8कालिकोट्टा 1949
9अवार पेदुन्नु 1952
10प्रणामम 1954
11लोकांठरांगलील 1955
12सोपनाम 1958
13मुथास्सी 1962
14अंबलथीलेक्कू1967
15नगरथिल 1968
16वाईलारुंम्पोल1971
17संध्या 1982
18अमृथंगमया 1978
19निवेघम 1987
20म मथृहृदयम1988
21स्त्री हृदयम 1939
22भावनाईल1951

नालापत बालमणि अम्मा के सम्मान और पुरस्कार:

साहित्य पुरुस्कार प्रकाशित वर्ष
मुथास्सी (काव्य संग्रह)केरल साहित्य अकादमी पुरूस्कार 1963
मुथास्सी (काव्य संग्रह)साहित्य अकादमी पुरुस्कार 1965
आसन पुरूस्कार 1989
वल्ल्भथोल पुरूस्कार 1993
लालिथम्बिका अंथर्जनम पुरस्कार1993
निवेद्यम (काव्य संग्रह)सरस्वती सम्मान 1995
एज्हुथाचन पुरस्कार 1995
एन वी. कृष्ण वारियर अवार्ड1997
पदम् भूषण सम्मान 1987

नालापत बालमणि अम्मा जी का निधन (Death):

दोस्तों आपको बताते चलें की जीवन के अंत समय में बालमणि अम्मा जी अल्जाइमर रोग से ग्रसित थीं। आपकी जानकारी के लिए बता दें लगभग पांच वर्षों तक अल्जाइमर रोग से जूझने के कारण 29 सितम्बर 2004 को 95 वर्ष की उम्र में केरल के कोच्चि में अम्मा का देहावसान हो गया। मृत्यु के बाद अम्मा जी का अंतिम संस्कार कोच्चि के रविपुरम शव दाह गृह में किया गया।

नालापत बालमणि अम्मा से संबंधित प्रश्न एवं उत्तर (FAQs):

नालापत बालमणि अम्मा को किसके कवियित्री के समकालीन मान जाता है ?

नालापत बालमणि अम्मा को छायावादी युग की प्रसिद्ध कवियित्री महादेवी वर्मा के समकालीन माना जाता है।

नालापत बालमणि अम्मा जी की कितनी संतानें हैं ?

नालापत बालमणि अम्मा जी की चार संतानें हैं –
दो बेटियां – कमला दास सुरय्या और सुलोचना।
दो बेटे – मोहनदास और श्याम सुंदर।

My Mother at sixty six किसकी प्रसिद्ध रचना है ?

आपको बता दें की बालमणि अम्मा जी की बेटी कमला दास सुरय्या ने अपनी मां बढ़ती उम्र , मृत्यु और अलगाव के विषय को लेकर लिखी प्रसिद्ध कविता है जो CBSE के बारहवीं कक्षा के अंग्रेजी विषय के पाठ्यक्रम में शामिल की गई है।

बालमणि अम्मा अपने जीवन में किस से अधिक प्रभावित रहीं ?

बालमणि अम्मा जी अपने साहित्यिक जीवन में महान कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर, विक्टर ह्यूगो, एन॰ नारायण मेनन और वी॰ नारायण मेनन से बहुत अधिक प्रभावित थीं।

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