बिरसा मुंडा जीवनी – Biography of Birsa Munda in Hindi

आजादी की बात की जाए तो हजारों भारतीय स्वतंत्रता संग्रामियों के नाम सुनने को मिलते है इन्हीं व्यक्तियों में से हम बिरसा मुंडा के बारे में बता रहे है, यह एक स्वतंत्रता सेनानी थे एवं एक आदिवासी नेता भी थे। इन्होंने भारत से ब्रिटिश शासन से छुटकारा दिलाने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई की। ... Read more

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Reported by Saloni Uniyal

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आजादी की बात की जाए तो हजारों भारतीय स्वतंत्रता संग्रामियों के नाम सुनने को मिलते है इन्हीं व्यक्तियों में से हम बिरसा मुंडा के बारे में बता रहे है, यह एक स्वतंत्रता सेनानी थे एवं एक आदिवासी नेता भी थे। इन्होंने भारत से ब्रिटिश शासन से छुटकारा दिलाने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई की। समाज में आदिवासी नागरिकों के सभी अधिकारों को प्राप्त कराने के लिए इन्होंने बहुत प्रयास किया। इन्हें आज भी आदिवासी नागरिक भगवान की तरह मानते है और पूजा करते है। आज हम आपको इस आर्टिकल में बिरसा मुंडा जीवनी (Biography of Birsa Munda in Hindi Jivani) से सम्बंधित जानकारी बता रहे है, इच्छुक नागरिक सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए इस आर्टिकल के लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

बिरसा मुंडा जीवनी Biography of Birsa Munda in Hindi Jivani
बिरसा मुंडा जीवनी

बिरसा मुंडा का जीवन परिचय

बिरसा मुंडा एक आदिवासी नेता था इसका जन्म झारखण्ड के रांची के गांव उलिहातू में 15 नवम्बर 1885 को हुआ था। इनके पिता का नाम सुगना मुंडा तथा माता का नाम कर्मी हातू मुंडा था। उस वक्त सम्पूर्ण भारत में अंग्रेजों ने अपना शासन किया हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई को साल्गा गांव में ही पूर्ण किया उसके पश्चात ये चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढ़ाई करने के लिए गए। समाज में जब ब्रिटिश शासक लोगों पर क्रूरता करते थे तो इन्हें बहुत बुरा लगता था। देश को अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाने के लिए मुंडा नागरिकों को एकत्रित किया। इन्हें बचपन में लोग दाऊद मुंडा कहकर पुकारते थे।

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Biography of Birsa Munda in Hindi Jivani

नामबिरसा मुंडा
जन्म15 नवंबर 1857
जन्म स्थानउलिहातू, रांची (झारखण्ड)
माता का नामकर्मी हातू मुंडा
पिता का नामसुगना मुंडा
उपनामबिरसा भगवान, धरती आबा, विश्व पिता का अवतार
बचपन का नामदाऊद मुंडा
धर्महिन्दू
मृत्यु9 जून 1900
मृत्यु स्थानरांची सेंटर जेल, रांची
राष्ट्रीयताभारतीय
जातिआदिवासी

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पहली जंग

बचपन से ही बिरसा को खूब पढ़ाई का शौक था और वे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। और इनके पिता उन्हें जर्मन स्कूल में पढ़ाना चाहते थे। परन्तु उस समय ईसाई धर्म अपनाना आवश्यक था तब जाकर ईसाई स्कूल में दाखिला हो सकता था, इसलिए उनका नाम बदलकर बिरसा डेविड कर दिया गया।

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प्रवेश होने के पश्चात उन्होंने कुछ समय तक ही जर्मन स्कूल में पढ़ाई की और फिर उसे छोड़ दिया। आपको बता दे पढ़ाई में तो बिरसा का मन था परन्तु वे एक देशभक्त भी थे और ब्रिटिश के अत्याचारों से भारत देश को मुक्त करना चाहते थे इसलिए वे इसका प्रबल विरोध करते थे। और उन्होंने लड़ाई करनी शुरू कर दी।

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अन्य जंग

एक आदिवासी नेता होने पर अब मुंडा अंग्रेजों से लगान की माफ़ी करने के लिए 1 अक्तूबर 1894 को आंदोलन करने लगे इसके लिए उन्होंने और सभी आदिवासी नागरिकों को इकट्ठा किया। परन्तु यह आंदोलन ज्यादा समय तक नहीं चला पाया और सभी आंदोलनकारियों को वर्ष 1895 में गिरफ्तार कर दिया तथा दो वर्ष के लिए हजारी बाग केंद्रीय कारागार में सब को बंद कर दिया। परन्तु बिरसा और उसके साथी अकाल से पीड़ित लोगों की मदद करना चाहते थे और उन्होंने निश्चय किया कि हम ऐसा कर के ही रहेंगे। इस वीरता के कारण उनको महापुरुष का दर्जा भी प्रदान किया गया। उन्हें लोग धरती बाबा के नाम से बुलाया करते थे और उनकी पूजा करते थे।

आदिवासी नागरिकों के धरती पिता

वर्ष 1894 में छोटा नागपुर में लगातार बारिश होने के कारण अकाल की स्थिति पैदा हो गई और चारों तरफ महामारी ही फेल गयी। इस समय बिरसा ने लोगों की सेवा करने में कोई कसर ना छोड़ी। वह सभी लोगों को बीमारी के इलाज को लेकर जागरूकता फैलाने लगे तथा अंधविश्वास जैसी बातों को लोगों के मन से हटा दिया। अत्यधिक सेवा से प्रभावित होकर आदिवासी उन्हें धरती पिता अथवा धरती आबा कहते थे।

अब वर्ष 1892 में अंग्रेजों ने आदिवासियों को उनके जंगल के अधिकार से हटाने के लिए इंडियन फारेस्ट एक्ट को लागू किया गया। इसके पश्चात जितने भी गांव, खेत जहां पर खेती की जाती थी जमींदारों ने उन्हें बांट दिया और राजस्व की एक नई व्यवस्था को जारी कर दिया। और धीरे-धीरे कर अंग्रेज आदिवासियों को परेशान करने लगे। यह सब देखकर बिरसा के मन में विद्रोह की आग फैली और अब वह आजादी दिलाना चाहता था इसलिए उन्होंने उलगुलान की अलख जगाई ताकि जल जंगल जमीन पर दावेदारी की जा सके।

बिरसा मुंडा का संघर्ष

Birsa Munda और उसका परिवार चाईबासा में वर्ष 1886 से 1890 तक रहे थे, और उसी समय ये सरदार विरोधी गतिविधियाँ भी हो रही थी और सब भी इनको देखकर प्रभावित हुए और उन आंदोलनों में शामिल हो कर सहयोग करने लगे। और उनके सम्पूर्ण परिवार ने वर्ष 1890 में अपनी जर्मन मिशन की सदस्यता को छोड़ दिया ताकि वे सरदार आंदोलनों की गतिविधियों में शामिल हो सके और उनका समर्थन करें।

उसके पश्चात जंगल के आदिवासी नागरिकों पर अंग्रेजों ने जो उनके अधिकार छीने थे उनके विरोध में आंदोलन करने लगे। वर्ष 1890 में ब्रिटिश शासन का अंत करने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने का कार्य करने लगे कि यह सरकार हमारा भला करने के लिए नहीं है बल्कि यह हम आम नागरिकों का शोषण कर रही है।

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Birsa Munda सभी मुंडाओं के नेता बन गए तथा संस्कृति बदलाव की दोहरी चुनौती के खिलाफ राज विद्रोह करने गए, अंग्रेजों के विरोध में प्रदर्शन किए जा रहे थे और कई आंदोलन शुरू हो गए। वे अपनी भूमि के असली हकदार है और अंग्रेजों का यहां कुछ भी नहीं है वे इस भूमि को छोड़कर भाग जाए।

मृत्यु

ब्रिटिश सैनिकों ने 3 फरवरी 1900 में बिरसा मुंडा की सिंहभूम में गिरफ्तार कर लिया था। और उसे जेल में बंद कर दिया गया। जेल में अन्य लोगों को हैजा बीमारी हुई थी जो मुंडा को भी हो गई और वह बीमार हो गए। स्वास्थ्य का सही ढंग से ध्यान ना होने के कारण 9 जून 1900 में उनकी मृत्यु हो गई। कई लोगों ने यह भी कहा कि मुंडा की मृत्यु हैजा बीमारी से नहीं अपितु जहर दे कर हुई थी।

लेकिन एक उल्लेखनीय बात है जब तक बिरसा जीवित रहे उन्होंने सरकार को औपनिवेशिक कानूनों को लागू करने के लिए विवश कर दिया जिसमें कई सरकार ने कई बाते मानी भी और कई नहीं। वह आदिवासी समुदाय की एक शक्ति के रूप में उभरे थे और ब्रिटिश शासन का सम्पूर्ण विरोध किया।

Birsa एक प्रबल देशभक्त थे जिन्होंने आजादी के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन बलिदान कर दिया मरते-मरते तक वे अंग्रेजों के खिलाफ लड़े ही। और हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार किया। सामाजिक सेवा करने में भी उन्होंने कोई भी कमी नहीं की। इन्हें आजादी का दूत कहा जाता है।

स्मारक

इस महान क्रांतिकारी व्यक्ति को सम्मान देने के लिए सरकार द्वारा इनके नाम पर कालेजों एवं संस्थानों को स्थापित किया गया है, इसके अतिरिक्त इंस्टीट्यूट टेक्नालॉजी, एयरपोर्ट, कृषि विश्वविद्यालय तथा एथलेटिक्स स्टेडियम के नाम पर बनाए गए है।

बिरसा मुंडा जीवनी से सम्बंधित सवाल/जवाब

Birsa Munda का जन्म कब हुआ था?

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1857 को झारखण्ड राज्य की राजधानी के उलिहातू में हुआ था।

Birsa Munda क्या विवाहित था?

नहीं, उन्होंने विवाह नहीं किया था वे अविवाहित थे।

Birsa Munda की मृत्यु कब और किस कारण हुई?

इनकी मृत्यु हैजा की बीमारी से 9 जून 1900 में रांची सेंटर जेल (रांची) में हुई थी।

बिरसा मुंडा का बचपन का नाम क्या था?

इनके बचपन का नाम दाऊद मुंडा था।

बिरसा मुंडा की माता का क्या नाम था?

इनकी माता का नाम कर्मी हातू मुंडा था।

बिरसा मुंडा की जाति क्या थी?

यह आदिवासी जाति के व्यक्ति थे।

Birsa Munda को भगवान क्यों कहा गया?

Birsa ने लोगो को ईसाई धर्म छोड़ने के लिए प्रचार-प्रसार किया और कहा कि इस विश्व में एक ही भगवान है, वे स्वयं को एक मसीहा बताते थे और कहते थे कि वे राज्य के लोगों को न्याय दिलाने के लिए आए है।

Birsa Munda की जनजाति क्या थी?

Birsa Munda की मुंडा जनजाति थी।

आदिवासियों का देवता किसे कहा जाता था?

आदिवासियों का देवता Birsa Munda को कहा जाता था।

जैसा कि इस लेख में हमने Biography of Birsa Munda in Hindi Jivani से जुड़ी सभी डिटेल्स को साझा कर दिया है। यदि आप इस लेख से जुड़ी अन्य जानकारी या प्रश्न पूछना चाहते है तो आप नीचे दिए हुए कमेंट सेक्शन में पूछ सकते है। इसी तरह जीवनी लेखों की जानकारी के लिए हमारी साइट से ऐसे ही जुड़े रहे आशा करते है कि आपको हमारा यह लेख अवश्य पसंद आया हो।

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