विक्रम बत्रा जीवनी: Captain विक्रम बत्रा जिन्हें कारगिल विजय का नायक माना जाता है। आज देश का बच्चा-बच्चा विक्रम बत्रा की वीरता और शौर्य गाथा को जानता है। देश के हर एक नागरिक के दिल में कैप्टेन विक्रम बत्रा के लिए बहुत आदर और सम्मान है। जब 1999 में पाकिस्तान घुसपैठ कर भारत की सीमा में घुस गया था तो पाकिस्तान को सीमा से खदेड़ने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध (Kargil War) लड़ा गया। आपको बता दें की हमारे भारतीय जवानों ने कारगिल की बर्फीली पहाड़ियों में जहाँ का तापमान माइनस 10 डिग्री से भी नीचे पहुँच जाता है पाकिस्तान के साथ इस युद्ध को लड़ा था। कारगिल यह लड़ाई लगभग 40 से 60 दिनों तक चली थी।
दोस्तों कारगिल के इस युद्ध में कैप्टेन विक्रम बत्रा ने पाकिस्तान द्वारा क़ब्ज़ाये गए सबसे कठिन पॉइंट 5140 चोटी और 4875 की चोटी को अपनी डेल्टा कंपनी की मदद से छुड़ाया। आपको हम बता दें की कारगिल युद्ध में विक्रम बत्रा बहादुरी के साथ दुश्मन से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
दोस्तों आज हम आपको इन्हीं भारतीय सेना में कैप्टेन रहे विक्रम बत्रा (Vikram Batra) के जीवन के बारे में बताने जा रहे हैं। विक्रम बत्रा की कहानी देश के हर एक नागरिक को जाननी चाहिए। चलिए आर्टिकल में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं वीर बहादुर कैप्टेन विक्रम बत्रा के बारे में।
कैप्टेन विक्रम बत्रा का जीवन परिचय
पूरा नाम (Full Name) | कप्तान विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) |
उपनाम (Nick Name) | शेरशाह |
जन्मतिथि (Date of birth) | 9 सितम्बर 1974 |
जन्म स्थान (Birth Place) | पालमपुर, हिमाचल प्रदेश, भारत |
वीरगति के समय उम्र(Age) | 25 वर्ष |
शहीद तिथि (Martyr date) | 7 जुलाई 1999 |
शहीदी स्थल (Place of Martyrdom) | पॉइंट 4875 कॉम्प्लेक्स, कारगिल युद्ध (J&K) भारत |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
धर्म (Religion) | हिन्दू (Hindu) |
स्कुल (School) | डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल, पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) |
कॉलेज (College) | डी.ए.वी. कॉलेज, चंड़ीगढ़ पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ |
शिक्षा (Education) | बी.एस.सी. मेडीकल साइंस से स्नातक एम.ए. (इग्लिंश) एक साल तक ही पढ़ाई की |
पेशा (Occupation) | सैन्य अधिकारी (Army Officer) |
सेवा (Service) | भारतीय सेना (Indian Army) (वर्ष 1997 से लेकर वर्ष 1999 तक) |
यूनिट (Unit) | 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स (13 JAK RIF) |
सैन्य सम्मान (Military honors) | परमवीर चक्र |
सर्विस नंबर (Service Number) | IC-57556 |
Captain विक्रम बत्रा का प्रारंभिक जीवन
- कैप्टेन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितम्बर 1974 को जी. एल. बत्रा और कमल कांता बत्रा के घर पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) में हुआ था।
- बत्रा परिवार में दो बेटियों के बाद दो जुड़वा भाइयों का जन्म हुआ था जिनका बचपन का नाम लव और कुश रखा गया। आगे चलकर लव को विक्रम और कुश को विशाल नाम प्रदान किया गया। दोनों ही भाई जुड़वा थे।
- चंडीगढ़ में रहकर विक्रम ने अपनी स्कूली शिक्षा और कॉलेज की पढ़ाई पूरी की थी। डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ से विक्रम से विज्ञान में स्नातक किया था।
- कॉलेज में ही विक्रम एक NCC कैडेट के रूप में चुने गए थे उन्होंने कॉलेज में भारतीय सेना में जाने का मन बना लिया था इसलिए विक्रम ने भारतीय सेना CDS (संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा) की तैयारी शुरू कर दी।
कप्तान विक्रम बत्रा का परिवार (Family)
पिता जी का नाम | जी. एल. बत्रा (गिरधर लाल बत्रा) |
माता जी का नाम | कमल कांता बत्रा |
बड़े भाई | विशाल बत्रा |
बहन | नूतन बत्रा और सीमा बत्रा सेठी |
मंगेतर | डिम्पल चीमा |
Captain Vikram Batra का सैन्य जीवन:
- CDS परीक्षा पास करने के बाद विक्रम बत्रा का चयन भारतीय सेना में हो गया। इसके बाद जुलाई 1996 में देहरादून स्थित IMA (भारतीय सैन्य अकादमी) में एडमिशन लिया।
- जहाँ विक्रम बत्रा का सैन्य प्रशिक्षण पुरे एक साल तक चला और दिसम्बर 1997 में अपनी ट्रेनिंग समाप्त होने के बाद विक्रम को अपनी पहली पोस्टिंग जम्मू कश्मीर के सोपोर नाम की जगह पर मिली। जहाँ उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जॉइनिंग करनी थी।
- इसके बाद विक्रम बत्रा को 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति दी गई। इसी के साथ 1999 में विक्रम बत्रा ने कमांडों की ट्रेनिंग भी ली थी।
- जम्मू और कश्मीर में हम्प और राकी नाम की जगह को जीतने के बाद सेना के द्वारा विक्रम बत्रा को सैन्य टुकड़ी डेल्टा कम्पनी का कैप्टेन बना दिया गया।
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पॉइंट 5140 पर जीत की कहानी:
- भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों की सेनाओं के बीच जंग शुरू हो चुकी थी और दुश्मन देश पाकिस्तान ने हमारी सीमा में घुसकर कई सारे क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था। जिनमें पॉइंट 5140 भी एक था। इस पॉइंट 5140 को पाकिस्तान से छुड़ाने की जिम्मेदारी सैन्य अधिकारियों के द्वारा कैप्टेन विक्रम बत्रा की डेल्टा कम्पनी को सौंपी गई। विक्रम बत्रा अपनी सैन्य टुकड़ी के कैप्टेन थे।
- आदेश मिलने के बाद कैप्टेन विक्रम बत्रा अपनी डेल्टा कम्पनी के साथ पूर्व दिशा से होते हुए चोटी की तरफ आगे बढ़े। विक्रम बत्रा बिना दुश्मन को भनक लगे बिना आगे बढ़ रहे थे। धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए विक्रम बत्रा की कंपनी दुश्मन सेना की मारक दूरी के क्षेत्र में पहुँच गई।
- पहुँचने के बाद कैप्टेन विक्रम बत्रा ने अपनी सैन्य टुकड़ी को संगठित होकर अलर्ट रहने को कहा हमें सीधे दुश्मन की सेना पर आक्रमण (Attack) करना है।
- इसी के साथ विक्रम बत्रा ने अपनी सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए निडरता के साथ दुश्मन की सेना और ठिकानों पर धावा बोल दिया। इसके बाद भारतीय सेना के जवानों और पाकिस्तान सेना के जवानों के भीषण लड़ाई चली। इस लड़ाई में पकिस्तान सेना के चार-पांच सैनिक मारे गए।
- रात भर की लड़ाई के बाद कैप्टेन विक्रम बत्रा ने 20 जून 1999 को सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर पॉइंट 5140 को अपने कब्ज़े में ले लिया। चोटी को कब्ज़े में लेने के बाद विक्रम बत्रा ने अपने अधिकारियों को रेडियो पर अपने Victory कोड “ये दिल मांगे मोर” के साथ सन्देश दिया की हमने पॉइंट 5140 को अपने कब्ज़े में ले लिया है।
- यह सन्देश सुनते ही विक्रम बत्रा का नाम भारत की तीनों सेनाओं में एक वीर सैनिक के रूप में छा गया। सेना ने इस विजय के बाद विक्रम बत्रा को शेरशाह और “कारगिल का शेर” नाम की उपाधि प्रदान की।
- इसके अगले दिन भारतीय सेना ने पॉइंट 5140 पर अपना तिरंगा झंडा लहरा दिया।
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कैप्टेन विक्रम बत्रा की शहीदी वीरता की गाथा
- पॉइंट 5140 मिशन की सफलता के बाद कैप्टेन विक्रम बत्रा को एक और मिशन प्रदान किया गया जिसमें उन्हें पॉइंट 4875 को दुश्मन सेना से छुड़ाना था।
- मिशन का आदेश मिलने के साथ ही विक्रम बत्रा अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ पॉइंट 4875 के लिए निकल पड़े। परन्तु इस पॉइंट में काफी खड़ी ढलान मौजूद थी और इस पहाड़ी के रास्ते में शत्रु सेना के कई सारे जवान तैनात थे।
- अपने मिशन को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए कैप्टेन विक्रम बत्रा ने अपनी सेना के साथ पहाड़ी की संकीर्ण चोटी और पठारों से जाने का निर्णय लिया। सेना का नेतृत्व करते हुए विक्रम बत्रा बड़ी ही निडरता से आगे बढ़ रहे थे। शुरुआत में उन्होंने दुश्मन सेना के पांच सैनिकों को मार गिराया। परन्तु इस कार्यवाही को करते हुए विक्रम गंभीर रूप से घायल हो गए।
- लेकिन विक्रम बत्रा ने हार नहीं मानी वह रेंगते हुए शत्रु सेना की तरफ आगे बढ़ते रहे और हेंडग्रेंनेड से हमला करते रहे दुश्मन की तरफ से भारी गोलाबारी होने के बावजूद वह अपनी सेना की रक्षा और उन्हें प्रेरित करते रहे। इस लड़ाई में कैप्टेन विक्रम बत्रा ने कई सारे पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया लेकिन शरीर पर चोट लगने के कारण हुए ज़ख़्मों से विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हो गए। इस लड़ाई में विक्रम के साथ लेफ्टिनेंट अनुज नायर भी मौजूद थे।
- जिन्होंने बाद में विक्रम की सेना का नेतृत्व कर पॉइंट 4875 पर कब्ज़ा कर लिया।
विक्रम बत्रा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य:
- कैप्टेन विक्रम बत्रा के परिवार ने आज भी पॉइंट 5140 की मिट्टी अपने घर पर संभाल कर रखी है।
- भारतीय सेना ज्वाइन करते ही कैप्टेन विक्रम बत्रा की पहली पोस्टिंग जम्मू कश्मीर राज्य के बारामुला जिले में हुई थी।
- आपको बता दें की वर्ष 1998 में विक्रम बत्रा ने अपनी आर्मी ऑफिसर (Army Officer) की ट्रेनिंग मध्य प्रदेश के इन्फैंट्री स्कूल से पूरी की थी।
Captain Vikram Batra famous quote:
या तो बर्फीली चोटी पर तिरंगा लहराकर आऊंगा नहीं तो उसी तिरंगे में लिपटकर आऊंगा पर आऊंगा जरुर – परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा (13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स )
:कैप्टेन विक्रम बत्रा
Captain Vikram Batra से संबंधित प्रश्न एवं उत्तर (FAQs)
आपको बता दें की ‘टाइगर ऑफ द्रास’ के नाम से प्रसिद्ध कैप्टन विक्रम बत्रा को कारगिल युद्ध का नायक माना जाता है।
डिम्पल चीमा शहीद कैप्टेन विक्रम बत्रा की मंगेतर हैं। जो की एक स्कूल में शिक्षिका हैं। विक्रम बत्रा के शहीद होने के बाद डिम्पल ने कभी शादी नहीं की।
आंकड़ों के मुताबिक़ कारगिल युद्ध में हमारे भारतीय सेना के लगभग 527 जवान वीरगति को प्राप्त हुए।
जम्मू कश्मीर राज्य में तोलोलिंग काम्प्लेक्स में मौजूद 5140 सबसे ऊंची चोटी थी जहाँ दुश्मन देश की चौकी बनी हुई थी। पाकिस्तान के सैनिकों ने घुसपैठ कर यहाँ कब्ज़ा कर रखा था।
पॉइंट 5140 को गन हिल के नाम से जाना जाता है। भारतीय सेना द्वारा चोटी को दुश्मन देश से छुड़ाने के बाद यह नाम दिया गया था।
हर साल 26 जुलाई को हमारे देश में कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।
कैप्टेन विक्रम बत्रा को सेना में अपने अदम्य साहस, शौर्य और वीरता का प्रदर्शन करने के लिए मरणोपरांत 15 अगस्त 1999 को भारत सरकार के द्वारा परमवीर चक्र प्रदान किया गया।
भारतीय सैन्य अधिकारी कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाई. के. जोशी ने कैप्टेन विक्रम बत्रा को शेरशाह नाम की उपाधी प्रदान की थी।
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