द्रोणाचार्य जीवनी: Biography of Dron Acharya in Hindi Jivani

आपने महाभारत के बारे में तो जरूर सुना होगा और आपने इसकी कहानी टीवी पर भी अवश्य देखी होगी क्योंकि यह इतिहास है सबसे भयंकर युद्ध था। महाभारत में कई ऐसे पात्र थे जिनके नाम बहुत प्रसिद्ध है हम ऐसी ही एक पात्र की बात करने जा रहे उनका नाम द्रोणाचार्य है। संसार के सबसे ... Read more

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Reported by Saloni Uniyal

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आपने महाभारत के बारे में तो जरूर सुना होगा और आपने इसकी कहानी टीवी पर भी अवश्य देखी होगी क्योंकि यह इतिहास है सबसे भयंकर युद्ध था। महाभारत में कई ऐसे पात्र थे जिनके नाम बहुत प्रसिद्ध है हम ऐसी ही एक पात्र की बात करने जा रहे उनका नाम द्रोणाचार्य है। संसार के सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में इन्हें जाना है। इन्होंने ही कौरव तथा पांडवों को अर्थशास्त्र का शिक्षा दी थी। इन्हें वेद पुराणों का ज्ञाता कहा जाता है। आज हम इस लेख में द्रोणाचार्य जीवनी (Biography of Dron Acharya in Hindi Jivani) द्रोणाचार्य कौन थे? ये किसके गुरु थे? इनका इतिहास क्या है? आदि की जानकारी देने जा रहे है, सम्पूर्ण जानकारी जानने के लिए आपको इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ना होगा।

द्रोणाचार्य का जीवन परिचय

द्रोणाचार्य के जन्म की बात करे तो इनका जन्म एक विचित्र तरीके से हुआ है। आपको बता दे इनको किसी स्त्री ने जन्म दिया है बल्कि एक मामूली बर्तन जिसे द्रोण कहा जाता है उसमे हुआ था। इनके जन्म की एक विचित्र घटना है जो आपको हम नीचे विस्तार से बताने जा रहे है।

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एक दिन की बात है द्रोणाचार्य के पिता महर्षि भारद्वाज नदी में स्न्नान करने गए और स्नान करने लग गए वहीँ दूसरी और उन्होंने एक अप्सरा को नहाते हुए देख लिया इस अप्सरा का नाम घृतार्ची था। और जब वह जल से बाहर निकली तो वे इसकी सुंदरता पर मोहित हो गए और उनके शिश्न से वीर्य गिरने लगा और उन्होंने उस वीर्य को एक द्रोण बर्तन में रख लिया इससे ही द्रोणाचार्य का जन्म होता है और तभी से उनका नाम द्रोणाचार्य कहा जाने लगा।

द्रोणाचार्य जीवनी - Biography of Dron Acharya in Hindi Jivani
द्रोणाचार्य जीवनी

Biography of Dronacharya in Hindi Jivani

नामद्रोणाचार्य
जन्म स्थानपटियाली कासगंज
पेशाआचार्य
अन्य नामद्रोण
मुख्य शास्त्रधनुष बाण
माताघृतार्ची अप्सरा
पितामहर्षि भारद्वाज
सन्दर्भ ग्रन्थमहाभारत
पत्नीकृपि
संतानअश्वत्थामा

विवाह

Dronacharya के विवाह की बात करें तो उनका विवाह कृपि से हुआ था जो कि कृपाचार्य की बहिन थी। कृपि ने एक पुत्र जो जन्म दिया जिसका नाम अश्वत्थामा रखा गया। उस समय इनकी आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी। जब अश्वत्थामा ने माँ से दूध कृपि ने एक गिलास पानी में आता घोल दिया और दूध बोलकर दे दिया। यह बात जानकार द्रोणाचार्य को बहुत दुख हुआ।

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गुरु द्रोणा के गुरु

जैसा कि आप सबको पता है गुरु द्रोण के पिता महर्षि भाद्वाज थे और वे भी शिक्षा का ज्ञान प्रदान करते थे उनके बहुत सारे शिष्य थे उनमे से ही एक उनका परम शिष्य था उसका नाम अग्निवेश था। उनकी के द्वारा Dron Acharya को शिक्षा प्रदान की गई थी। अग्निवेश ने उनको अस्त्र शस्त्र चलाने में माहिर कर दिया था और वे एक कुशल अस्त्र-शास्त्रों की शिक्षा में ज्ञानी बन गए थे।

एक बार जब Dron अग्निवेश से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो उनको गुरु ने बताया कि परशुराम अपना समस्त धन-वैभव पंडितो को दान कर रहे है क्योंकि भगवान परशुराम ध्यान में मग्न होने के लिए महिंन्द्राचल पर्वत पर तपस्या करने जा रहे थे। और यह सब सुनकर वे भी परशुराम के पास चले गए और अपना नाम बता कर वे उनसे धन मांगने की बात करते है यह सुनकर परशुराम ने कहा कि तुमने बहुत देर कर दी है मैंने इससे पहले अपनी समस्त जायदाद पंडितों को दान कर दी है। परशुराम के पास केवल अस्त्र-शस्त्र ही बचे हुए थे उन्होंने कहा वत्स मेरे पास केवल यही है चाहो हो तुम ये ही दान के रूप में ले सकते हो।

गुरु Dron को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने दान के रूप में अस्त्र-शस्त्र ग्रहण कर लिए और परशुराम से कहा कि गुरु आप मुझे अर्थशास्त्र का प्रयोग कैसे करना है इसके नियम कानूनों को सिखा सकते है, उन्होंने यह प्रार्थना की। परशुराम ने उनकी बात को स्वीकार कर लिया और उन्हें अपना शिष्य बना कर अस्त्र-शस्त्र विद्याओं का सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान कर दिया।

गुरुदक्षिणा

एक बार अर्जुन रात्रि को किसी बात को ध्यान के रखकर रात्रि में धनुर्विद्या कर रहे थे और यह सब गुरु Dron देख रहे थे उनकी रात्रि में भी अभ्यास करने लालसा को देखकर गुरु अत्यंत पसंद हुए और इस वजह से उन्होंने एकलव्य को अपना शिष्य नहीं बनाया और अर्जुन को अपना प्रिय शिष्य घोषित किया। क्योंकि वे अर्जुन को संसार में धनुर्विद्या से सम्पूर्ण बनाना चाहते थे। और अब बारी थी सभी शिष्यों की गुरु दक्षिणा देनी की तो गुरु ने कहा कि तुम मुझे इस रूप में द्रुपद को बंदी बना कर यहाँ लाना है उन्होंने यह कहा। और यह सुनकर अर्जुन ने आज्ञा स्वीकार की यदि आप उसके विरुद्ध खड़े है तो मैं युद्ध करने के लिए तैयार हूँ।

अर्जुन को गुरु द्रोणचार्य ने धनुर्धर होने का वरदान दिया

जैसा कि अभी आप सबने पढ़ा कि गुरु Dronacharya के प्रिय शिष्य अर्जुन थे और वह उन्हें सबसे प्रतिभाशाली धनुर्धर बनाना चाहते थे और उनको उत्तम धनुर्धर बनने का वरदान प्रदान किया इसके पीछे की वजह क्या थी हम आपको बताते है।

एक दिन Dronacharya नदी ने नहा रहे थे और तभी उनके नदी में उनके पैरो को एक मगरमच्छ ने जकड़ लिया परन्तु गुरु ने कुछ भी नहीं किया क्योंकि वे अपने शिष्यों की परीक्षा ले रहे थे। उसी समय कौरव तथा पांडव भी उन्हीं के सामने उपस्थित थे। सभी शिष्य मगरमच्छ को देखते ही डर गए और पीछे हो गए तभी गुरु की पीड़ा देखकर अर्जुन से उस मगरमच्छ को मार दिया। यह सब देखकर गुरु को बहुत ख़ुशी हुई और उसी समय उन्होंने अर्जुन को धनुर्धर होने का वरदान दिया।

अस्त्र-शास्त्रों का ज्ञान

कौरव तथा पांडवों को अस्त्र-शास्त्रों का ज्ञान Dronacharya द्वारा ही दिया जाता था अर्थात इनके गुरु यही थे। इन्होने सम्पूर्ण शिक्षा का अभ्यास अपने ही आश्रम में दिया था। अस्त्र चलाने में सबसे अच्छा प्रदर्शन अर्जुन का ही रहता था जिस कारण वे Dronacharya के पसंदीदा शिष्य बन गए थे। एक बार जब इनका अपमान किया गया था तो अर्जुन ने द्रुपद से इनके अपमान का बदला लिया था।

मृत्यु

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दोर्णाचार्य की मृत्यु के पीछे एक विचित्र बात है। जब युद्ध का पन्द्रहवाँ दिन चल रहा था और लगातार पांडव सेना युद्ध में हार रही थी और इस हार का कारण द्रोण ही था तो श्री कृष्ण जी ने एक चाल चली और झूठ का सहारा लिया ताकि वे द्रोण को हरा सके। उन्होंने युधिष्ठिर को कहा कि तुम युद्ध में यह बात फैला दो कि अश्वत्थामा की युद्ध में मृत्यु हो गई है। परन्तु युधिष्ठिर ने ऐसा करने से मना कर दिया कि वे ऐसा नहीं कहेंगे। उसी समय भीम ने एक हाथी को मार दिया जिसका नाम अश्वत्थामा था और यह हाथी अवंतिराज का था। जबकि युद्ध क्षेत्र में यह बात फैली की युद्ध में अश्वत्थामा को मार दिया गया है। जैसे ही इस बात की खबर द्रोण को पता चली वह इस बात का पता करने के लिए युधिष्ठिर के पास चले गए और पूछा कि सत्य में अश्वत्थामा मारा गया है उसके पश्चात युधिष्ठिर ने अश्वत्थामा हाथी की मृत्यु के बारे में सोच कर हाँ कर दिया। इस बात को जानकार द्रोण को बहुत बड़ा झटका लगा और शोक मनाने के लिए उसने अपने शस्त्र जमीन पर फेंक दिए और धरती पर गिर गए। इसी समय का फायदा उठा कर द्रोपदी के भाई धृष्ट्द्युम्न जो कि पांडव सेना के एक वीर सेनापति थे उन्होंने द्रोण को तलवार से मार डाला।

द्रोणाचार्य का जीवन परिचय से सम्बंधित प्रश्न/उत्तर

Dronacharya की माता का क्या नाम है?

घृतार्ची Dronacharya की माता का नाम था।

Dronacharya की पत्नी का क्या नाम था?

Dronacharya की पत्नी का कृपि था।

अश्वत्थामा के पिता का क्या नाम था?

द्रोणाचार्य अश्वत्थामा के पिता का नाम था।

Dronacharya का जन्म कहाँ हुआ था?

पटियाली कासगंज में Dronacharya का जन्म हुआ था।

Dronacharya के पुत्र का नाम क्या था?

Dronacharya के पुत्र का नाम अश्वत्थामा था।

महाभारत में Dronacharya के गुरु कौन थे?

महाभारत में परशुराम Dronacharya के गुरु थे।

गुरु द्रोण का जन्म कैसे हुआ?

महर्षि भरद्वाज द्वारा द्रोण नामक बर्तन में अपने वीर्य को इकट्ठा करने के पश्चात गुरु द्रोण का जन्म हुआ था।

गुरु द्रोणा किसके पुत्र थे?

गुरु द्रोणा महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे।

जैसा कि आपको हमने इस लेख में Biography of Dron Acharya in Hindi Jivani से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कर दी है इसके अतिरिक्त यदि आपको अन्य जानकारी या कोई प्रश्न पूछना है तो आप नीचे दिए हुए कमेंट सेक्शन में अपना प्रश्न लिख सकते है हमारी टीम द्वारा जल्द ही आपके प्रश्रों का उत्तर दिया जाएगा। आशा करते है कि आपको हमारा लेख पसंद आया हो और इससे जानकारी प्राप्त हुई हो। इस तरह की अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी साइट से ऐसे ही जुड़े रहे।

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