नरसी गुजराती साहित्य के कृष्ण भक्ति के प्रसिद्ध कवि थे, इनका वास्तविक नाम नरसी मेहता था। साहित्य इतिहास ग्रन्थ में नरसिंह मीरा युग नाम से स्वतंत्र काव्य समय कर निर्धारण इनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व के प्रभाव को बताया गया है, इसके गुण भावप्रवण कृष्ण की भक्ति के अनुप्रेरित पदों में बताया हुआ है। हिंदी के महा कवि सूरदास की तरह ही गुजराती साहित्य में यह एक प्रसिद्ध कवि थे। इन्होंने कृष्ण भक्ति की और कई कृतियों की रचना की है। आज हम इस लेख में नरसी मेहता जीवनी (Biography of Narsinh Mehta in Hindi Jivani) के बारे में बताने जा रहे हैं। यदि आप जीवनी की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे इस आर्टिकल के लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
नरसी मेहता जीवनी
नरसी मेहता का जन्म गुजरात राज्य के भावनगर जिले के तलाजा गांव में वर्ष 1414 ईस्वी में हुआ था। इनके पिता का नाम कृष्णदास था जो कि एक शाही दरबार में प्रशासनिक पद कर कार्य करते थे तथा माता का नाम दयाकौर था। आपको बता दे आठ साल तक ये बिलकुल शांत थे और चुप रहते थे लेकिन जब ये एक दिन एक पवित्र व्यक्ति से मिले और ये उनसे बातचीत करके अत्यधिक प्रभावित हुए उसी समय से इन्होंने बोलना भी शुरू कर दिया था, इस व्यक्ति ने इन्हें राधे-श्याम वाक्य का उच्चारण करना सिखाया। इनका एक बड़ा भाई भी था इसका नाम बंसीधर था, बंसीधर इनसे 17 वर्ष बड़े थे। नरसी ने बचपन में ही माता-पिता को खो दिया था उस समय ये केवल पांच साल के ही थे। इनकी देख रेख इनके बड़े भाई और इनकी भाभी ने की थी।
यह भी देखें- तुलसीदास जी का जीवन परिचय | Biography of Tulsidas in Hindi
Biography of Narsinh Mehta in Hindi Jivani
नाम | नरसी मेहता |
जन्म | 1414 ईस्वी |
जन्म स्थान | तलाजा ग्राम, जूनागढ़, गुजरात |
अन्य नाम | नरसिंह मेहता |
मृत्यु | 1488 ईस्वी |
मृत्यु स्थान | – |
प्रसिद्धि | कृष्ण भक्ति कवि |
नागरिकता | भारतीय |
रचनाएं | सुदामा चरित, कृष्ण जन्मना पदो, श्रृंगार माला, गोविन्द गमन, सुरत संग्राम, वसंतनपदो आदि। |
आयु | 79 वर्ष (मृत्यु के समय) |
माता का नाम | दयाकौर |
पिता का नाम | कृष्णदास |
भाई | बंसीधर |
पत्नी | मानकेबाई |
पुत्र | शामलदास |
पुत्री | कुंवरबाई |
विवाह
नरसिंह की शादी मानेकबाई नामक कन्या से हुई थी। कुछ साल बाद मानेकबाई ने दो बच्चों को जन्म दिया। एक पुत्र जिसका नाम शामलदास था तथा एक पुत्री जिसका नाम कुवरबाई था।
यह भी देखें- स्वामी दयानन्द सरस्वती जीवनी
नरसिंह के पिता की आस्था
नरसिंह के पिता का अंतिम संस्कार था इसके लिए उसने दो अथवा तीन ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाया, लेकिन कुछ लोगों ने इस बात को और बढ़ाकर कहा कि नरसिंह ने अपने पिता के अंतिम संस्कार के अवसर पर शहर के सभी पंडितों को आमंत्रित किया है। और इस कारण शहर के सभी ब्राह्मणों के खाने-पीने का इंतजाम अब नरसिंह को करना था लेकिन उसके पास ना ही इतना अनाज था और ना ही इतने पैसे थे जिससे वह सभी पंडितों को भोजन करा सके, लेकिन भगवान ने कृपा करके नरसिंह की यह परेशानी भी ख़त्म कर दी यह कोई चमत्कार से कम ना था।
कृष्ण भक्ति
नरसिंह अपनी कृष्ण भक्ति में लीन रहते थे और कोई भी काम नहीं करते थे। इस कारण इनकी भाभी इनको ताने सुनाती रहती थी। एक दिन इनकी भाभी ने इन्हें बहुत कटाक्ष सुनाया इससे दुखी होकर ये गोपेश्वर के शिव मंदिर में जाकर तपस्या करने लगे। लगातार सात दिन तक शिव की भक्ति करने के बाद शिव इनके सामने प्रकट हुए, शिवजी ने कहा तुम्हें मैं क्या वरदान दूँ यह सुनकर नरसिंह ने उत्तर दिया कि वे हमेशा कृष्ण की भक्ति करें एवं रासलीला के दर्शन कर सके। इन्होंने रासलीला के दर्शन द्वारका जाकर प्राप्त किए। शिव के दर्शन पाकर नरसिंह का जीवन सम्पूर्ण रूप से बदल गया।
यह भी देखें- महान संत तुकाराम महाराज का जीवन परिचय
मन परिवर्तन होने के कारण ये अपने भाई का घर छोड़कर जूनागढ़ चले गए और वहां रहने लगे। यहां आकर वे अपनी कृष्ण भक्ति में लीन हो गए और दिन-रात इनके भजन व कीर्तन किया करते थे। कृष्ण भजन सुनाने के लिए ये इधर-उधर भी जाते थे। यह बहुत ही दयालु प्रवृति के व्यक्ति थे और सभी जाति के व्यक्तियों को एक समान मानते थे अक्सर ये भजन कीर्तन करने के लिए हरिजन वर्ग के लोगों के यहां भी जाते थे। यह सब देखकर इनकी बिरादरी के लोगों ने इन्हें बाहर निकाल दिया लेकिन ये अपने विचारों से पीछे नहीं हटे।
कृष्ण की कृपा की कथा
नरसी मेहता के पिता की जब मृत्यु हुई तो उसके कुछ समय पश्चात इनकी जाति के लोगों ने इन्हें सलाह दी कि अब तुम्हें अपने पिता का श्राद्ध करना चाहिए और सब को भोजन कराना चाहिए। यह सब बात मानकर नरसिंह श्राद्ध और सभी के लिए भोजन की व्यवस्था करने लगे। इस श्राद्ध में सबसे पहले पंडितों को भोजन परोसा गया लेकिन घी खत्म हो गया और बाकी पंडितों को नहीं मिला। नरसी की पत्नी चिंता में पड़ गई यह देखकर उन्होंने कहा तुम चिंता ना करो मैं अभी बर्तन लेकर बाजार जाता हूँ और वहां से घी ले आता हूँ।
रास्ते में जाते हुए नरसिंह को संतों की एक बड़ी मंडली दिखाई दी जो कि भगवान के कीर्तन भजन कर रही थी यह देखकर वे भी इस मंडली में शामिल होकर और कीर्तन करने में इतने लीन हो गए कि इन्हें समय का कोई पता ही नहीं चला और अपना काम भूल गए कि इन्हें ब्राह्मणों के लिए घी ले जाना है।
इनकी पत्नी की नज़र इन पर ही लगी थी कि ये कब आएंगे। यह सब देखकर साक्षात कृष्ण भगवान ने नरसी का वेश धारण किया और बाजार से घी लेकर घर जाने की ओर निकल पड़े। घर पहुंचकर इन्होंने सम्पूर्ण रूप से ब्राह्मणों को भोजन करवा कर अपना कार्य संपन्न किया।
दूसरी ओर कीर्तन समाप्त हुए और तब जाकर नरसिंह को होश आया और देखा तो घोर रात्रि हो गई है और मैं यहां कीर्तन में इतना लीन हो गया कि घर घी नहीं ले गया अब तो पत्नी से डांट पड़ेगी और मुझे माफ़ी मांगनी पड़ेगी। बाजार से घी खरीद कर नरसिंह अपने घर लौट आए, घर पर पहुँचते ही सबसे पहले ये अपनी पत्नी के पास गए और कहा मुझे माफ़ कर दो मैंने इतना विलम्ब कर दिया और ना ही ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भोजन ग्रहण कराया, यह सुनकर इनकी पत्नी मानेकबाई ने बड़े प्रेम से उत्तर दिया कि स्वामी आप किस बात की माफ़ी मांग रहे हैं, आप तो समय पर बाजार से घी लेकर आ गए थे और सभी ब्राह्मणों को आपने अच्छे से भोजन भी कराया है।
यह सुनकर नरसिंह जी को ज्ञात हो गया और कहा कि वह व्यक्ति मैं नहीं था क्योंकि मैं तो कीर्तन मंडली में भजन करने में लीन हो गया था और अभी तुम्हारे पास आ रहा हूँ अर्थात तुमने भगवान कृष्ण के दर्शन किए है तुम धन्य हो जो भगवान कृष्ण ने तुम्हें दर्शन दिए हैं यह सुनकर इनकी पत्नी अचंभित हो गई और कृष्ण भगवान के गुण गाने लगी।
रचनाएं
नरसिंह मेहता द्वारा कई रचनाएं रची हुई, आपको बता दे वैष्णव जन तो तेणे कहिये भजन भी इनकी रचना ही है जो कि गाँधी जी का प्रिय भजन था। इनकी द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध रचनाएं नीचे निम्न प्रकार से दी हुई है।
- चतुरियो
- दानलीला
- सुदामा चरित
- कृष्ण जन्मना पदो
- गोविन्द गमन
- सुरत संग्राम
- श्रृंगार माला
- वसंतनपादो
- राससहस्त्र पदी
मृत्यु
इनकी मृत्यु कब हुई और कहाँ हुई इसकी जानकारी को लेकर अभी भी इतिहासकारों के कई मत दिए हुए हैं। लेकिन लोककथाओं में इनकी जानकारी को बताया हुआ है इनकी मृत्यु वर्ष 1488 में काठियावाड़ के मांगरोल नामक गांव में हुई थी। मृत्यु के समय इनकी आयु 79 साल बताई गई है।
नरसी मेहता जीवनी से सम्बंधित सवाल/जवाब
नरसी मेहता का जन्म कब हुआ?
इनका जन्म 1414 ईस्वी में तलाजा ग्राम, जूनागढ़ (गुजरात) में हुआ था।
Narsinh Mehta को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
इनको इनके असली नाम के अतिरिक्त नरसिंह मेहता के नाम से भी जाना जाता है।
नरसी मेहता के पिता का क्या नाम था?
इनके पिता का नाम कृष्णदास था।
Narsinh Mehta कौन थे?
यह एक कवि थे अथवा इन्हें कृष्ण भक्ति कवि भी कहा जाता है, यह कृष्ण की भक्ति करते थे तथा उन पर कविताएं लिखते थे।
Narsinh Mehta की रचनाएं क्या है?
इनकी निम्नलिखित रचनाएं हैं- कृष्ण जन्मना पदो, वसन्तपदो, सुरत संग्राम, सुदामा चरित, गोविन्द गमन तथा श्रृंगार माला आदि।
नरसी मेहता का निधन कब हुआ?
इनका निधन 1488 ईस्वी में हुआ था।
Narsinh Mehta की पत्नी का क्या नाम था?
इनकी पत्नी का नाम मानकेबाई था।
Narsinh Mehta की क्या नागरिकता थी?
इनकी नागरिकता भारतीय थी।
श्रृंगार माला किसकी रचना है?
श्रृंगार माला Narsinh Mehta की रचना है।
Biography of Narsinh Mehta in Hindi Jivani की प्रत्येक डिटेल्स को हमने इस लेख में उपलब्ध कर दिया है, यदि आप लेख से सम्बंधित अन्य जानकारी या कोई सवाल पूछना चाहते हैं तो आप नीचे दिए हुए कमेंट बॉक्स में अपना सवाल लिख सकते हैं, जल्द ही हमारी टीम द्वारा आपके सवालों का जवाब दिया जाएगा। इसी तरह के लेखों की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी साइट hindi.nvshq.org से जुड़े रहें। आशा करते हैं कि आपको हमारे इस लेख से जानकारी जानने में सहायता हुई होगी और यह लेख पसंद आया होगा धन्यवाद।