आज हम आपको महाराष्ट्र के 17वी शताब्दी के महान संत तुकाराम जी के बारे में बताने जा रहे है, यह एक संत तो थे ही इसके अतिरिक्त एक दार्शनिक एवं प्रसिद्ध कवि भी थे। ये अपनी भक्ति एवं अभंग कविताओं के लिए जाने जाते है एवं ये व्यक्तिगत वरकारी धार्मिक समुदाय के सदस्य भी थे। ये समुदाय में भक्ति से सम्बंधित कविताएं गाते थे। इन्होंने एक शूद्र परिवार में जन्म लिया था। दोस्तों आपको बता दें महाराष्ट्र राज्य को संतों की जन्म भूमि कहा जाता है, और इनके समय में भी कई महान संत थे उन सब में से यह एक थे, किसी भी दुख को ये हंसकर ख़त्म कर देते थे। यहां इस आर्टिकल में हम तुकाराम जीवनी (Biography of Tukaram in Hindi Jivani) से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी बताने जा रहे है, इच्छुक नागरिक जानकारी प्राप्त करने के लिए इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य देखें।
संत तुकाराम का जीवन परिचय
इनका जन्म वर्ष 1608 ईसा पूर्व में पुणे में इंद्रायणी नदी के तट के किनारे बसा हुआ देहु गांव में हुआ था, यह एक शुद्रवंशी परिवार के बेटे थे। इनके पिता का नाम बोल्होबा मोरे तथा माता का नाम कनकाई था। इन्होंने दो विवाह किए थे पहली पत्नी का नाम रखुबाई था, दुर्भाग्य वश कुछ समय पश्चात दमे की बीमारी से इनकी मृत्यु हो गई इसके पश्चात इनका दूसरा विवाह जीजाई से हुआ, जीजाई ने तीन पुत्रों एवं तीन पुत्रियों को जन्म दिया था। इनके सबसे बड़े पुत्र का नाम नारायण था जो एक सन्यासी थे।
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Biography of Tukaram in Hindi Jivani
नाम | तुकाराम |
जन्म | 1608 ईसा पूर्व |
जन्म स्थान | देहु गांव, पुणे |
उपनाम | संत तुकाराम जी |
पेशा | कवि, दार्शनिक एवं संत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
मृत्यु | 19 मार्च 1650 (पंढरपुर) |
गुरु | बाबाजी चैतन्य |
माता का नाम | कनकाई |
पिता का नाम | बोल्होबा मोरे |
पत्नी का नाम | रखुबाई |
संतान | बेटे महादेव, नारायण एवं बेटी विठोबा |
वंश | शूद्रवंशी |
Tukaram की मूल शिक्षाएं
संत जी का कहना था कि इस दुनिया में सभी व्यक्ति परम पिता ईश्वर की संतान है, इस कारण समाज में सभी एक सामान रूप से हैं। संत जी ने ही महाराष्ट्र धर्म का प्रचार-प्रसार भक्ति आंदोलन से किया था।
Tukaram जी के चमत्कार
तुकाराम जी ईश्वर के भजन करते है और कीर्तन सभाओं का सम्मेलन करते है, इसके अतिरिक्त वे एक कवि भी थे, इनके द्वारा कई मराठी में कई अभंगों की रचना की गई थी। और वे एक शूद्र वंश के व्यक्ति थी जिस कारण ब्राह्मण उनकी अवहेलना एवं निंदा करते थे कि एक निम्न जाति के होने के बावजूद वे ये अभंग नहीं लिख सकते है उनको इसका कोई भी हक प्राप्त नहीं है। उन्हीं स्वर्ण ब्राह्मणों में से एक रामेश्वर भट्ट ब्राह्मण थे उन्होंने उनकी सारी पोथियां इंद्रायणी नदी में बहाने के लिए आदेश दिया और उनकी अभंग पोथियों को नदी में बहा दिया। यह देखकर वे दुखी हुए और विट्ठल भगवान के मंदिर में गए और वहां बैठकर अपना दुख बताने लग गए और दुख की पीड़ा से रो पड़े। वे तेरह दिनों तक वहीं पर बैठे थे ना कुछ खाया और ना ही कुछ पिया बस अपने दुख के आंसू बहाते गए। उनके इस दुख को देखकर विट्ठल भगवान ने अपने दर्शन दिए और कहने लगे तुम्हारी पोथियां नदी से बाहर आ गई है उन्हें संभालो, संत ने देखा तो ये सच में एक चमत्कार था।
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Tukaram के हिंदी पद, साखियाँ एवं रचनाएं
Tukaram जी एक कवि थे एवं इनके द्वारा हिंदी पद, सखियाँ तथा कई रचनाएं की गई थी जिसकी जानकारी हमने नीचे निम्न प्रकार से दी है –
हिंदी पद–
- काहे रोवे अगले मरा।
- राम कहे त्याके पगहूं लागूं।
- राम कहा जीवना फल सो ही।
- बार-बार काहे मरत अभागी।
- आप तरे त्याकी कोण बराई।
- मेरे राम को नाम जो लेवे बारों-बार।
- जग चले उस घाट कौन जाय
- खेलो आपने रामहि सात।
- काहे भुला सम्पति घोरे।
- तीनसों हम करवों सलाम।
साखियाँ–
- संत पन्हयां लेव खड़ा।
- तुका बस्तर बिचारा क्या करे रे।
- चित्त मिले तो सब तो मिले।
- लोभी के चित्त धन बैठे।
- तुका सांगत तिन्हसे कहिए।
रचनाएं-
- मैं भुली घरजानी बाट। गोरस बेचन आएं हाट।।
- कान्हा रे मनमोहन लाल। सब ही बिसरूं देखें गोपाल।।
- काहां पग डारुं देख अनेरा। देखें तों सब वोहिन घेरा।।
- हुं तों थकित भैर तुका। भागा रे सब मनका धोका।।
- हरिबिन रहियाँ न जाये जिहिरा। कबकी थाडी देखें राहा।।
- क्या मेरे लाल कवन चुकी भई। क्या मोहिपासिती बेर लगाई।।
- कोई सखी हरी जावे बुलावन। बार हि डारुं उसपर तन ।।
- तुका प्रभु कब देखें पाऊं। पासीं आऊं फेर न जाऊं।।
अभंग-
तम भाज्याय ते बुरा जिकीर ते करे।
सीर काटे ऊर कुटे ताहां सब डरे।।
ताहां एक तु हु ताहां एक तु ही।
ताहां एक तु ही रे बाबा हमें तुझें नहीं।।
दिदार देखो भूले नहीं किशे पछाने कोये।
सचा नहीं पकडुं सके झुटा झुटे रोये।।
किसे कहे मेरा किन्हे सात लिया नास।।
सुनो भाई कैसा तो ही। होय तैसा होय।
बाट खाना अल्ला कहना एकबारां तो ही।।
भला लिया भेक मुंढे। आपना नफा देख।
कहे तुका सो ही संका। हक अल्ला एक।।
महाराजकृत अभंग-
अकारवन्त मूर्ति।
जेव्हां देखेन मी दृष्टि।।
मग मी राहेन निवांत।
ठेवूनियां तेर्थे थित्त।।
श्रुति वाखाणिती।
तेसा येसील प्रचिती।।
म्हणे तुकयाचा सेवक।
उभा देखेन सन्मुख।।
शिला मंदिर की स्थापना
पुणे जिले के मंदिर शहर देहू में संत तुकाराम शिला मंदिर की स्थापना देश के प्रधानमंत्री द्वारा की गई थी। इस मंदिर का जो निर्माण है एवं शिला में इस मंदिर का समर्पण है, आपको बता दे इस शिला पर करीबन 13 दिवस तक संत जी ध्यान ने किया था, इस शिला की बात करें तो आज यह देहु संस्थान मंदिर में स्थित की हुई है।
संत तुकाराम से मिले महाराज शिवाजी
एक समय के बात है, तुकाराम जी कीर्तन सभा में बैठे हुए थे और अपने कीर्तन भजन कर रहे थे और वहां पर महाराज शिवाजी तुकाराम जी के दर्शन करने पहुँच गए। उस ही कीर्तन सभा में सैनिक बादशाह की आदेश से कुछ मुसलमान सैनिक भी आए थे ताकि वे संत जी को पकड़कर ले जाएं। संत जी ने एक चमत्कार किया और उस सभा में बैठे शिवाजी का रूप सब को दिखा दिया यह देख कर सभी लोग एवं सैनिक चकित हो गए। सैनिक यह चमत्कारिक शक्ति देख कर वहां से भाग गए। एक बार वर्ष 1630 में गांव में भुखमरी, अकाल व महामारी फ़ैल गई जिससे लोगों को बहुत दुखों का सामना करना पड़ा इस वक्त भी संत जी ने उनकी रक्षा की थी और उन्हें इस अकाल से बचाया था।
सामाजिक व्यवस्था
इनके द्वारा बनाए गए महाराष्ट्र धर्म ने सामाजिक व्यवस्था में बदलाव किया था और इसका समाज में बहुत गहरा असर हुआ था। इससे समाज में समानता की वर्ण व्यवस्था को लागू किया गया ताकि सब को समानता का अधिकार व सामान नज़रों से देखा जाए। और इसी व्यवस्था का उपयोग भी छत्रपति शिवाजी ने किया था और सभी वर्ग के लोगों को आपस में बांधने का प्रयास किया था। संत जी जाति विहीन समाज के विषय में शिक्षा एवं सन्देश देते थे इसके परिणामस्वरूप सामाजिक आंदोलन को किया गया अर्थात सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया।
उन्होंने जितने भी अभ्यंग लिखे थे वे समाज के ब्राह्मण वादी प्रभुत्व के विरोध में मजबूत हथियार बन कर सामने आए।
मृत्यु
इनकी मृत्यु की बात करें तो अभी भी इतिहासकारों को इनकी मृत्यु को लेकर मतभेद है वैसे तो इनका निधन वर्ष 1650 में बताया गया है, परन्तु कई इतिहासकारों ने इनकी मृत्यु को 1639 में बताया था इसके अतिरिक्त वर्ष 1650 ई. में भी इनकी मृत्यु को बताया गया था।
इसके अलावा कई लोग कहते है कि ये समाधि कर रहे थे और वहीं से अचानक गायब हो गए तो कई कहते है कि इनकी मृत्यु नहीं बल्कि हत्या की गई थी।
तुकाराम जीवनी से सम्बंधित सवाल/जवाब
तुकाराम का जन्म कब हुआ था?
इनका जन्म 1608 ईसा पूर्व में पुणे के देहु गांव में हुआ था।
तुकाराम को किस उपनाम से बुलाया जाता था?
तुकाराम को संत तुकाराम जी उपनाम से बुलाया जाता था।
तुकाराम के कितने बेटे थे?
इनके दो बेटे थे, जिनका नाम महादेव एवं नारायण था।
Tukaram के पिता का क्या नाम था?
इनके पिता जी का नाम बोल्होबा मोरे था
संत तुकाराम जी के गुरु कौन थे?
बाबाजी चैतन्य संत तुकाराम जी के गुरु थे।
संत तुकाराम जी का निधन कब हुआ?
इनका निधन 19 मार्च, 1650 में पंढरपुर में हुआ था।
Tukaram की माता का क्या नाम था?
इनकी माता का नाम कनकाई था।
संत तुकाराम जी क्या शिक्षा देते थे?
संत तुकाराम जी का कहना था कि कभी भी बुरे लोगों के साथ ना रहें, हमेशा आपको संतों की संगति में रहना चाहिए। बुराइयों का अंत कर दो एवं समाज में बीमार, असहाय लोगों की सहायता करें।
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