भारत में आपातकाल, प्रकार, प्रक्रिया एवं 1975 आपातकाल की मुख्य बातें | Emergency in India in Hindi

हमारे देश इंडिया में शासन हेतु संविधान ही सर्वोपरि है। देश को चलाने या बेहतर शासन व्यवस्था को बनाये रखने के लिए देश में संविधान बनाया गया था। जिसमें लगभग हर संभव परिस्थितियों के बारे में विचार कर कुछ नियम कानून निर्धारित किये गए। जिसके आधार पर देश में किसी भी परिस्थितयों में संविधान के ... Read more

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Reported by Dhruv Gotra

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हमारे देश इंडिया में शासन हेतु संविधान ही सर्वोपरि है। देश को चलाने या बेहतर शासन व्यवस्था को बनाये रखने के लिए देश में संविधान बनाया गया था। जिसमें लगभग हर संभव परिस्थितियों के बारे में विचार कर कुछ नियम कानून निर्धारित किये गए। जिसके आधार पर देश में किसी भी परिस्थितयों में संविधान के अनुसार बताये गए तरीके का अनुसरण किया जा सके। इसी प्रकार कुछ ऐसी परिस्थितियां होती हैं जो सामान्य से अलग होती हैं। ऐसी परिस्थितियों में संविधान के अनुसार आपातकाल (भारत में आपातकाल) लगाए जाने का प्रावधान है। जिसमें तत्कालीन परिस्थियों के अनुसार निर्णय लिया जाता है, जिससे स्थिति सामान्य हो सके।

आज इस लेख में हम आप को भारत में आपातकाल के बारे में बताएंगे। साथ ही इस से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पक्षों का भी वर्णन करेंगे। इस लेख में आप आगे जानेंगे देश में आपातकाल क्या है? अभी तक भारत में आपातकाल कितनी बार लगा है? आपातकाल कितने प्रकार के होते हैं? आपातकाल से जुड़े अनुच्छेद 352 356 360 क्या है? और इसकी प्रक्रिया आदि के बारे में सभी जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। इसके लिए आप पूरे लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

भारत में आपातकाल / Emergency in India

हमारे देश के संविधान में बहुत सी विशेषताएं हैं और बहुत से प्रावधान हैं। जिनमे से कुछ प्रावधान हमने दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों से भी लिए हैं। ऐसे ही Emergency अथवा आपातकाल के प्रावधान को जर्मनी देश के संविधान ‘Weimer’ से लिया गया है। जैसे की आप को जानकारी होगी कि देश में Quasi – Federal टाइप की सरकार है। जिसमें केंद्र और राज्य के मध्य विभिन्न शक्तियां विभाजित की गयी हैं। लेकिन आपातकाल के दौरान ये शक्तियां केंद्र को मिल जाती है। सभी प्रकार के मसलों पर निर्णय लेने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास होता है । हमारे भारतीय संविधान के भाग-18 में भारत में आपातकाल (Emergency in India) के बारे में प्रावधान किया गया है। जिसमें अनुच्छेद 252 से लेकर अनुच्छेद 360 तक असामान्य स्थिति में लगने वाले आपातकाल के बारे में बताया गया है।

इसमें देश में लगने वाले 3 तीन प्रकार के आपातकाल का वर्णन किया गया है। जिनमे – राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency), राजकीय आपातकाल (State Emergency) और वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) शामिल हैं। भारत में आपातकाल सिर्फ राष्ट्रपति द्वारा ही लगाई जा सकती है। राष्ट्रपति इमरजेंसी की घोषणा प्रधानमंत्री की सलाह पर ही कर सकते हैं और साथ ही इसमें कैबिनेट का अनुमोदन भी आवश्यक होता है। जिसके बाद किसी भी असामान्य परिस्थिति अथवा आपात स्थितियों में इमरजेंसी (Emergency in India) लगाई जा सकती है।

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भारत में आपातकाल, प्रकार, प्रक्रिया एवं 1975 आपातकाल की मुख्य बातें | Emergency in India in Hindi
भारत में आपातकाल, प्रकार, प्रक्रिया एवं 1975 आपातकाल की मुख्य बातें

Emergency in India in Hindi

भारतीय संविधान में असाधारण स्थिति में लगाए जाने वाले आपातकाल से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को आप यहाँ दी गयी सारणी के माध्यम से देख सकते हैं।

आर्टिकल का नाम भारत में आपातकाल, प्रकार, प्रक्रिया
आपातकाल के प्रकारतीन प्रकार – राष्ट्रीय आपातकाल, राजकीय आपातकाल, वित्तीय आपातकाल
आपातकाल लगाने का अधिकारराष्ट्रपति के पास (प्रधानमंत्री और कैबिनेट के अनुमोदन पर)
संविधान के किस भाग में वर्णनभारतीय संविधान के भाग 8 में
देश में पहली इमरजेंसी26 अक्टूबर 1962 (भारत – चीन युद्ध )
दूसरी इमरजेंसी03 दिसम्बर 1971 (भारत – पकिस्तान युद्ध )
तीसरी इमरजेंसी25 जून 1975 ( सरकार द्वारा बताये गए आंतरिक अशांति के कारण )

देश में आपातकाल का मतलब क्या है ?

भारतीय संविधान / Indian Constitution के अनुसार देश में आपात स्थिति उत्पन्न होने पर देश की अखंडता, सम्प्रभुता, न्यायव्यवस्था और सुरक्षा को बनाये रखने के लिए आपातकाल लगाए जाने का प्रावधान किया गया है। जैसे कि आपातकाल के नाम से ही समझ सकते हैं कि आपातकालीन स्थिति होने पर ही इसे लगाया जा सकता है। ऐसी परिस्थिति जो सामान्य परिस्थितियों से अलग हो और जहाँ देश की सुरक्षा को किसी भी प्रकार का खतरा हो।

आपातकाल का प्रावधान (Emergency in India Provision) संविधान में उन परिस्थितियों के लिए किया गया है जब देश में आतंरिक अशांति (Internal Aggression) , बाह्य आक्रमण (External Threat) अथवा आर्थिक खतरा (economic instability) होने की संभावना हो। ऐसे में भारत में आपातकाल लगाया जा सकता है। आपातकाल लागू होने पर सम्पूर्ण देश की शासन व्यवस्था केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाती है। ऐसे समय में केंद्र सरकार के पास असीमित शक्तियां आ जाती हैं

और इन शक्तियों का प्रयोग वो देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए करती है। ऐसे समय पर बिना किसी बिल या प्रस्ताव को संसद में पारित कराये बगैर भी सरकार बिना की रोकटोक के कम समय में जरुरी कदम उठा सकती है। उदाहरण के तौर पर समझ सकते हैं।

जैसे कि यदि कोई देश हम पर आक्रमण कर दे तो भारत में आपातकाल (Emergency in India) लगने पर हमे संसद में कोई भी बिल पास कराने की आवश्यकता नहीं होगी। जबकि सामान्य परिस्थितियों में यदि किसी देश से युद्ध जैसी स्थिति बनती है तो ऐसे में संसद में इस संबंध में बिल पास कराना आवश्यक होता है। जबकि भारत में आपातकाल लगाने (Emergency Proclamation) पर ऐसा करने की जरुरत नहीं होगी।

भारत में आपातकाल के प्रकार

हमारे देश के संविधान (Indian Constitution) में तीन प्रकार के आपातकाल का प्रावधान किया गया है। जिन्हे अलग अलग वजहों और परिस्थितियों के चलते लगाया जाता है। आगे इस लेख में आप को इन सभी के बारे में विस्तृत जानकारी मिल जाएगी। आपातकाल के तीन प्रकार हैं –

  1. राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency )
  2. राजकीय आपातकाल / राष्ट्रपति शासन (President’s Rule)
  3. वित्तीय आपातकाल (Financial emergency)

आइये अब इन तीनों इमरजेंसी से सम्बंधित विस्तृत जानकारी पढ़ते हैं –

राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) अनुच्छेद 352

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देश में नेशनल इमरजेंसी के बारे में भारतीय संविधान के भाग 8 के अनुच्छेद 352 में बताया गया है। जैसे की आप जानते ही हैं कि भारत में आपातकाल को तब लागू किया जाता है जब देश की अखण्डता और सुरक्षा को कोई खतरा हो। राष्ट्रीय आपातकाल को लागू करने का अधिकार देश के राष्ट्रपति के पास होता है। जिसका प्रयोग वो कैबिनेट (प्रधानमंत्री और कॉउंसिल ऑफ़ मिनिस्टर) के अनुमोदन के पश्चात ही कर पाएंगे। इसी प्रकार राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) को निम्न कारणों से लगाया जाता है –

जैसे की,

  1. देश में या देश के किसी भाग में युद्ध होने या युद्ध की परिस्थितियां बन जाए।
  2. बाहरी आक्रमण की स्थिति में (एक्सटर्नल अग्रेशन) – यदि कोई देश हम पर बिना किसी घोषणा / सूचना के आक्रमण कर दे तो ऐसी स्थिति को एक्सटर्नल अग्रेशन माना जाता है और ऐसे में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जाता है।
  3. इंटरनल डिस्टर्बेंस (armed rebellion) : यदि देश के अंदर ही हथियारों से लैस समूह भारत सरकार के खिलाफ ही विद्रोह कर दे। सन 1978 में इसे armed rebellion का नाम दिया गया है। ऐसी स्थितियों में नेशनल इमरजेंसी लागू की जाएगी।

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राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभाव

राष्ट्रीय आपातकाल लगने पर होने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं –

  • भारत के नागरिकों के मूलभूत अधिकार (Fundamental Rights) को सस्पेंड (स्थगित) कर दिया जाता है। सिवाय अनुच्छेद 21 के , जिसके अंतरगत जीवन या उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति और कैबिनेट द्वारा राज्य सूची के विभिन्न विषयों (66 ) पर भी लॉ बनाया जा सकता है।
  • सभी मनी बिल / धन विधेयक को अप्रूव करने के लिए राष्ट्रपति को रिफर किया जाता है।
  • राष्ट्रीय इमरजेंसी के दौरान लोक सभा की अवधि जोकि 5 वर्षों की होती है, उसे एक वर्ष के लिए और बढ़ाया जा सकता है।

राजकीय आपातकाल (State Emergency) अनुच्छेद 356

राजकीय आपातकाल को ही राष्ट्रपति शासन के नाम से भी जाना जाता है। Indian Constitution में इसे भाग 8 के अनुच्छेद 356 में वर्णित किया गया है। इस प्रकार के आपातकाल को 2 माह के अंदर ही पार्लियामेंट से अप्रूव कराना होता है। किसी भी राज्य में राजकीय आपातकाल (State Emergency) को निम्नलिखित दो कारणों से लगाया जा सकता है।

  • यदि राष्ट्रपति को किसी राज्य के गवर्नर के द्वारा अथवा किसी भी अन्य किसी स्रोत से इस बात का पता चलता है कि उस राज्य में शासन व्यवस्था भारतीय संविधान के प्रावधान के अनुरूप नहीं चल रही है तो ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है।
  • इसके अलावा भी किसी राज्य पर राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 365 के आधार पर भी किसी राज्य में President’s Rule लगाया जा सकता है। इस अनुच्छेद के अनुसार यदि कोई भी राज्य सरकार केंद्र सरकार के आवश्यक निर्देशों का पालन नहीं करती है तो इन परिस्थितियों में भी राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।

वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) अनुच्छेद 360

भारत के संविधान (Indian Constitution ) के भाग 8 के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) के बारे में बताया गया है। जिस के अनुसार यदि देश में आर्थिक संकट आता है या आर्थिक स्थिति खतरे में आती तो राष्ट्रपति आर्थिक इमरजेंसी लगा सकते हैं। आप को जानकारी दे दें की अभी तक भारत में एक बार भी आर्थिक आपातकाल नहीं लगा है। यदि कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें देश की अर्थव्यवस्था खत्म होने की कगार पर हो या सरकार दिवालिया होने की कगार पर पहुंच जाए तो ऐसे में अनुच्छेद 360 के अंतरगत आर्थिक आपातकाल लगाया जा सकता है। आर्थिक आपातकाल लगने की स्थिति में देश के सभी नागरिकों की धन -संपत्ति पर देश का अधिकार होता है। ये आपातकाल तब तक जारी रहेगा जबतक President Of India / राष्ट्रपति इसे वापस नहीं लेते।

आर्थिक आपातकाल लगाने के लिए संसद (Parliament) से सिंपल मेजॉरिटी के साथ अप्रूव करना जरुरी होता है। आपातकाल लगने के बाद बहुत से कदम उठाये जा सकते हैं जैसे की – सभी सरकारी कर्मचारियों की सैलरी को कम करना , जिसमें Supreme court और High court के Judges तक भी शामिल होंगे। सभी प्रदेशों के मनी बिल आदि भी राष्ट्रपति को भेजे जाएंगे अप्रूवल के लिए आदि।

अभी तक भारत में लगे आपातकाल

भारत में अभी तक कुल 3 राष्ट्रीय आपातकाल लगाए गए हैं। जिनके बारे में आगे विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई गयी है। आप इन तीनों ही भारत में आपातकाल अवधियों से जुडी जानकारियां आगे विस्तारपूर्वक पढ़ सकते हैं –

पहली इमरजेंसी : वर्ष 1962 में

पहला आपातकाल 26 अक्टूबर 1962 को लगाया गया था जब चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया था। राष्ट्रपति द्वारा नेशनल इमरजेंसी की घोषणा अनुच्छेद 352 के अनुसार external aggression के आधार पर की और देश में राष्ट्रीय इमरजेंसी लागू कर दी गयी। इस दौरान राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 359 का इस्तेमाल करते हुए नागरिकों के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया था। साथ ही उन्हें इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में जाने की भी अनुमति नहीं थी।

चीन के साथ युद्ध समाप्ति के बाद भी भारत में आपातकाल ख़त्म नहीं किया गया। ये इमरजेंसी जारी रही और इसी बीच वर्ष 1965 के अपील में भारत और पकिस्तान के बीच सशस्त्र द्वंद्व (Arm Conflict) हो गया। जो कि आगे चलकर सितम्बर में एक युद्ध में परिवर्तित हो गयी। इसके बाद अगले साल यानी कि वर्ष 1966 में भारत पकिस्तान के बीच सीजफायर हुआ और फिर एक संधि हुई, जिस को ताशकेंत एग्रीमेंट के नाम से जाना जाता है। दोनों देशों के बेच हुई इस संधि के बाद स्थिति सामान्य होने लगी थी लेकिन बावजूद इसके देश में इमरजेंसी जारी रही।

कुछ समय के बाद इससे परेशान होकर देश में नागरिकों ने विभिन्न कैम्पेन करने शुरू कर दिए और सरकार से ये मांग की जाने लगी कि इमरजेंसी को जल्द से जल्द हटाया जाए। इस के साथ ही अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर भी इस मुद्दे पर ध्यान खींचने लगा जिसके चलते सरकार ने जनवरी 1968 में आखिरकार पहली इमरजेंसी को खत्म कर दिया।

भारत में दूसरा आपातकाल

देश में दूसरी नेशनल इमरजेंसी वर्ष 1971 में 3 दिसम्बर को लगाई गयी थी। इसके पीछे भी वजह एक बार फिर पकिस्तान के साथ हो रहे सशस्त्र द्वंद्व (Arm Conflict) ही रहा। जैसे ही सरकार ने इमरजेंसी लागू की वैसे ही साथ में सरकार द्वारा MISA Act, COFE POSA Act और Govt of India Rule को भी लागू कर दिया गया। बता दें कि ये तीनों ही एक्ट Preventive Detention यानी कि निवारक निरोध के लिए बनाये गए थे। उस दौरान सरकार के पास इन तीनों ही एक्ट को लागू करने से ही काफी शक्तियां मिल गयी थी जिसका बाद में काफी दुरूपयोग किया गया। हालाँकि भारत पाकिस्तान का युद्ध तो समाप्त हो गया लेकिन भारत में आपातकाल जारी ही रहा।

इससे पहले कि दूसरा आपातकाल खत्म होता , तत्कालीन प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा देश में तीसरे आपातकाल को लागू कर दिया गया। जिसकी सूचना अगले दिन रेडियो के माध्यम से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा दी गयी।

भारत में तीसरा आपातकाल (1975)

भारत में तीसरा आपातकाल वर्ष 1975 में 25 जून की रात से लागू कर दिया गया था। जिसकी सूचना रेडियो पर तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी ने अगली सुबह दी। इस आपातकाल को लगाने के पीछे वजह आंतरिक अशांति यानी Internal Disturbance को बताया गया, और अनुच्छेद 352 के आधार पर देश की तीसरी इमर्जेंसी लागू कर दी गयी। बताते चलें कि जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा था। कुछ ही समय इमरजेंसी के पूर्व जून में अलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक चुनाव याचिका में के अंतर्गत हाल ही में हुए चुनाव के दौरान इंदिरा गाँधी को चुनाव जीतने के लिए भ्रष्टाचार का दोषी पाया और इसके लिए इंदिरा गाँधी को उनके पद से हटने और साथ ही अगले 6 वर्षों तक ऐसे किसी भी चुनाव में भाग लेने के लिए भी बैन कर दिया था।

इस फैसले के खिलाफ इंदिरा गाँधी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। जिसके बाद उन्हें सिर्फ हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सिर्फ सशर्त स्टे मिला। जिसके बाद विपक्ष से लेकर देश भर में उनके त्यागपत्र के लिए मांग उठने लगी। इसके बाद 25 जून को प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति को एमर्जेन्सी लागू करने के लिए पत्र भेज दिया और अगले दिन इस बारे में रेडियो के माध्यम से इस बारे में सूचना दे दी गयी। इस दौरान संविधान में अपने अनुसार कुछ बदलाव किये गए, मूलभूत अधिकार सस्पेंड कर दिए गए, सभी विरोधियों को जेल में दाल दिया गया, असंवेदनशील प्रोग्राम को लागू करके उनका क्रियान्वयन होने लगा, प्रेस की आजादी भी छीन ली गयी। और इसी तरह बहुत ही बदतर हालातों का सामना उस समय देशवासियों ने किया।

ये तीसरा आपातकाल 23 मार्च 1977 तक चला। इसके कुछ समय के बाद 44 वें संशोधन में ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए संविधान में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किये गए, जिससे फिर से ऐसे बिना किसी जायज कारण के स्वार्थवश इमरजेंसी लगाना संभव न हो।

1975 आपातकाल की मुख्य बातें

वर्ष 1975 में लगा आपातकाल देश के इतिहास में काली अवधि के रूप में दर्ज हो चुका है। भारत में आपातकाल को लगाने के पीछे सरकार द्वारा Internal Disturbance यानी आंतरिक अशांति को वजह बताया गया था। हालाँकि ये अलग बात है कि इसके पीछे असल वजह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के निजस्वार्थ को ही माना जाता है। ये तीसरा आपातकाल वर्ष 1977 तक चला था। इस दौरान लोकतांत्रिक देश ने भी सरकार की तानाशाही का वीभत्स रूप देखा था। आइये अब आगे जानते हैं की आपातकाल की असली वजह किसे माना जाता है :-

यहाँ समझिये क्या था असली मुद्दा

बात करें 1975 में लगे Internal Disturbance यानी आंतरिक अशांति के नाम पर लगे भारत में आपातकाल की तो, यहाँ बात आती है कि असली मुद्दा क्या था? दरअसल बताया जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी ने वर्ष 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में अच्छी खासी बढ़त के साथ जीत दर्ज की थी। इंदिरा गाँधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा था। उनके विरुद्ध संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राज नारायण थे। जिन्होंने चुनावी नतीजे आने के कुछ समय बाद ही उन्होंने इंदिरा गाँधी के खिलाफ इलाहबाद हाई कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। उन्होंने अपनी याचिका में इंदिरा गाँधी पर चुनाव जीतने के लिए भ्रष्टाचार व सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरूपयोग करने का आरोप लगाया।

अदालत ने इंदिरा गाँधी को चुनावी प्रचार हेतु सरकारी कर्मचारियों और सरकारी मशीनरी और संसाधनों आदि का इस्तेमाल करने का दोषी पाया और उनकी सांसदी को खारिज कर दिया साथ ही उन्हें अगले 6 साल के लिए ऐसे किसी भी चुनाव में हिस्सा लेने से बैन कर दिया। जन प्रतिनिधित्व कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाना अवैध करार दिया। हालाँकि कोर्ट ने कांग्रेस पार्टी को थोड़ी राहत देते हुए उन्हें 3 हफ़्तों का वक्त दिया जिससे वो नयी व्यवस्था बना सकें।

इंदिरा गाँधी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिससे उन्हें सिर्फ पीएम पद पर बने रहने की ही रहत मिली और बाकी के फैसले जस के तस रखे गए। इसके बाद देश में जगह जगह विपक्ष का विरोध शुरू हो गया। साथ ही जयप्रकाश नारायण इंदिरा सरकार के खिलाफ बड़े स्तर पर रैलियां कर रहे थे, जिससे इंदिरा गाँधी पर बहुत दबाव बन चूका था। खासकर तब जब जेपी ने 25 जून, 1975 को सत्याग्रह और रैली का ऐलान किया। यही नहीं देश के अलग अलग हिस्सों में विपक्ष की तरफ से इस्तीफे की मांग भी बढ़ गयी। इन सबके चलते और सत्ता में बने रहने के लिए 25 जून 1975 की रात भारत में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया गया।

क्या हुआ था तीसरे (1975) आपातकाल के दौरान

  1. इमरजेंसी लागू होते ही सभी नागरिकों के मूलभूत अधिकार (Fundamental Rights) को खारिज कर दिया गया और उनकी स्वतंत्रता छीन ली गयी। इसके साथ ही अपने अधिकारों के लिए उन्हें कोर्ट जाने का अधिकार भी नहीं दिया गया।
  2. सभी तरह के लोकतांत्रिक चुनाव रद्द कर दिए गए।
  3. कांग्रेस और इंदिरा गाँधी के सभी विरोधियों को जेल में डाल दिया गया। जिसमें उस वक्त के सभी बड़े नेताओं के नाम शामिल हैं। साथ ही जो भी तत्कालीन सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करता उन्हें भी जेल में डाला जाने लगा था।
  4. आंकड़े बताते है की लगभग 1 लाख 10 हजार से भी अधिक की संख्या में लोगों को जेल में डाला गया था।
  5. देश में मीडिया और प्रेस को भी सेंसर कर दिया गया था। ये वो दौर था जब मीडिया अपने सबसे कमजोर स्थिति में थी। जहाँ उसकी स्वतंत्रता भी छीन ली गयी थी।
  6. देश में इस दौरान इंदिरा गाँधी के बेटे संजय गाँधी ने देश भर में जबरन परिवार नियोजन के नाम पर नसबंदी अभियान चलाया।
  7. कृषि और औद्योगिक विकास हेतु और गरीबी व अशिक्षा को खत्म करने के लिए सरकार ने  ’20- पॉइंट’ इकनोमिक प्रोग्राम के जरिये बहुत ही क्रूर व असहनीय अनुशासन चलाया। इस प्रकार की देश के विकास के नाम पर जबरदस्ती व असहनीय प्रोग्रामों के चलते इसे ‘डिसिप्लिन ऑफ़ द ग्रेवयार्ड’ कहा गया।
  8. इन 20 पॉइंट्स के अलावा भी संजय गाँधी द्वारा 5 अन्य पॉइंट्स की बात की गई थी , जिसे बाद में कुल 25 कर दिया गया था और ‘ट्वेंटी फाइव’ पॉइंट प्रोग्राम तैयार किया गया। इन 5 पॉइंट्स में शिक्षा, परिवार नियोजन योजना, वृक्षारोपण, जातिवाद की समाप्ति और दहेज़ प्रथा को खत्म करना आदि शामिल था।
  9. इसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे कार्य हुए जो हमेशा के लिए देश के इतिहास में बदनुमा दाग बनके रह गए। जैसे कि –
    • विभिन्न पुस्तकों और चलचित्रों पर बैन लगाया गया।
    • वो हर लेख या समाचार पत्र पर भी बैन लगाया गया जिसमें आपातकाल से संबंधित कुछ भी ऐसा छापता था जोकि सरकार के खिलाफ जा सकती थी।
    • अंतराष्ट्रीय मीडिया से जुड़े संवाददाताओं को निर्वासित कर दिया गया था। इसके अतिरिक्त अपने देश में भी मीडिया पर लगा कड़ा प्रतिबन्ध लगा दिया गया था और मीडियाकर्मियों की भी आपातकाल के संबंध में कुछ छापने पर उन्हें जेल में डाल दिया जाता था।
    • गरीबी हटाने के नाम पर झोपड़पट्टियों को जबरन हटाया गया।
    • पुलिस द्वारा सामान्य नागरिकों की भी बेवजह जाँच पड़ताल की जाती थी। आदि ऐसे कई मुद्दे थे जो लोगों को नागवार गुजरे।

यहाँ जानिये आपातकाल कैसे लगता है ?

भारत में आपातकाल लगाने के लिए एक खास प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। बताते चलें की 1978 में हुए 44 वे संविधान संशोधन में कुछ बदलाव किये गए थे। जिसके बाद अब एमरजेंसी लगाने के लिए संबंधित प्रक्रिया को पूरा करना आवश्यक है। आप इसे नीचे दिए गए पॉइंट के आधार पर समझ सकते हैं –

  • किसी भी आपातकाल को लगाने के लिए अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के पास होता है। लेकिन इसके लिए उन्हें कैबिनेट तरफ से मिले अनुमोदन की भी आवश्यकता होती है।
  • सबसे पहले अप्रूवल के लिए जरुरी है कि इसे कैबिनेट द्वारा पास किया जाए। कैबिनेट में प्रधानमंत्री और कौंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स शामिल हैं।
  • यदि कैबिनेट संविधान में दिए गए अनुच्छेद 352 के आधार पर आपातकालीन स्थिति होने की पुष्टि करती है और उन्हें लगता है की अब भारत में आपातकाल लगना चाहिए तो वो इसके लिए लिखित रूप से सुझाव राष्ट्रपति को भेजते हैं।
  • यदि राष्ट्रपति इस लिखित सुझाव को सही समझते हैं या संतुष्ट होते हैं तो वो इमरजेंसी लागू कर सकते हैं।
  • भारत में आपातकाल लागू होने के बाद इसकी अवधी निर्धारित करने के लिए इस प्रस्ताव को पार्लियामेंट यानी संसद के पास भेजा जाता है।
  • यदि संसद – यानी लोक सभा और राज्य सभा , स्पेशल मेजोरिटी के साथ इसे अप्रूव कर देंगे तब अगले 6 माह के लिए भारत में आपातकाल जारी रह सकती है।
  • ध्यान दें कि एक बार में सिर्फ 6 माह के लिए ही इमरजेंसी लागू की जा सकती है।
  • इसके बाद परिस्थिति के अनुसार 6 माह के बाद बात का निर्णय किया जाएगा कि भारत में आपातकाल को आगे बढ़ाना है या नहीं। उस समय फिर से पार्लियामेंट के अप्रूवल की आवश्यकता होगी।

इमरजेंसी हटाने की प्रक्रिया (Revocation of Emergency)

यदि देश में लगे आपातकाल (भारत में आपातकाल) को हटाना है तो इसे दो तरीके से हटाया जा सकता है –

  • सबसे पहला तरीका है कि यदि राष्ट्रपति को लगता है कि जिन परिस्थितियों के चलते भारत में आपातकाल लागू किया गया था वो स्थितियां अब बदल चुकी हैं तो ऐसे में राष्ट्रपति बिना किसी की सलाह के भी इमरजेंसी खतम (Emergency Revoke) कर सकते हैं।
  • यदि लोकसभा द्वारा इस इमरजेंसी को खतम (Disapprove) करने का निर्णय लिया जाता है। और उन्हें लगता है कि अब इसे खत्म करना चाहिए तो उसी समय भारत में आपातकाल को खत्म किया जा सकता है।

आपातकाल (Emergency in India) के प्रभाव

  1. राज्य और केंद्रीय संबंधों पर : इमरजेंसी के दौरान राज्य की शक्तियां केंद्र को ट्रांसफर हो जाती है। अनुच्छेद 353 के अनुसार राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान केंद्र सरकार राज्य सरकार को उसके शासन व अन्य संबंधित मुद्दों पर निर्देश दे सकती है। यही नहीं केंद्र सरकार राज्य के बदले राज्य सूची के अंतर्गत कानून भी बना सकती है। (अनुच्छेद 353-B)
  2. नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर : अनुच्छेद 358 और 359 के अंतर्गत ये कहा गया है कि जैसे ही राष्ट्रीय आपातकाल लागू होता है वैसे ही अनुच्छेद 19 के तहत आने वाले फंडामेंटल राइट्स / मौलिक अधिकार निलंबित यानी सस्पेंड हो जाते हैं (आर्टिकल 358 ). लेकिन ध्यान 44 वे संविधान संशोधन में ये बताया गया कि ऐसा सिर्फ युद्ध और बाहरी आक्रमण की स्थिति में ही होगा। जबकि सशस्त्र विद्रोह के कारण लगने वाले आपातकाल में ये मौलिक अधिकार बने रहेंगे।
  3. अनुच्छेद 359 के अनुसार राष्ट्रपति के पास इतनी शक्तियां होती हैं कि वो एक घोषणा जारी करके आपातकाल के समय बाकी के मौलिक अधिकारों (12 से 35 तक ) को भी निलंबित कर सकते हैं सिवाय अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 के।

अभी तक के आपातकाल से जुड़े संशोधन

हमारे देश में अलग अलग समय पर भारत में आपातकाल से जुड़े महत्वपूर्ण संशोधन किये गए हैं। अभी तक 4 संशोधन हुए हैं। जिनमे 38वां, 39वां, 42वां, 44वां संशोधन शामिल हैं। आइए इसे विस्तार से जानते हैं –

  1. 38वां संशोधन : – 38वें संशोधन में अनुच्छेद 352 के अंतर्गत बदलाव किया गया। इसमें ये कहा गया की राष्ट्रपति जिन कारणों की वजह से इमर्जेंसी लगा रहे हैं उन्हें न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के अंतरगत नहीं लाया जा सकता। जबकि इससे पहले इमरजेंसी न्यायिक समीक्षा के तहत रखी जाती थी। लेकिन इस संशोधन के बाद राष्ट्रपति के फैसले को ही अंतिम और मान्य माना जाएगा और उस पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। जानकारी के लिए बता दें कि 44 वें संशोधन में इसे फिर से पहले जैसा कर दिया गया।
  2. 39वां संशोधन : इस संशोधन को उस वक्त लाया गया जब कोर्ट में इंदिरा गाँधी और राजनारायण का चुनाव केस चल रहा था। इस संशोधन में मुख्य रूप से मकसद से लाया गया जिससे कोर्ट में चल रहा चुनाव संबंधी विवाद को निपटाया जा सके। इस संशोधन के बाद – राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और स्पीकर के पदों पर हुए चुनाव को लेकर कोर्ट में किसी प्रकार का सवाल या याचिका नहीं की जा सकती थी।
  3. 42वां संशोधन : ये देश के इतिहास में सबसे ज्यादा विवादित संशोधन रहा है। इस संशोधन के माध्यम से इतने नियमों में संशोधन किये गए कि इसे खुद एक Mini Constitution कहा जाता है। इसे इमरजेंसी के समय पर लाया गया था, जब अधिकतर बड़े नेता जेल में बंद थे। इसका मकसद न्यायपालिका की शक्तियों को कम करना था। इसके अंतर्गत किये गए बदलाव (आपातकाल से समबन्धित )-
    • संसद जो भी संशोधन लाएगी उस पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता और उसका न्यायिक समीक्षा नहीं होगी।
    • संशोधन के जरिये राज्य सरकार की शक्तियों को केंद्र सरकार के पास ट्रांसफर किया जाने लगा।
    • Socialist , Secular और Integrity – इन तीनो शब्दों को जोड़ा गया।
    • अनुच्छेद 31-D को जोड़ा गया। जिसमें राष्ट्र-विरोधी गतिविधि के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है। और इस अनुच्छेद के अनुसार ऐसी गतिविधियों को रोकने के लिए वो जो भी नियम कानून बनाएंगे , उसके संबंध में कोई भी प्रश्न नहीं उठा सकता।
  4. 44वां संशोधन : इसके माध्यम से 42वें संशोधन में बदलावों को खत्म किया गया। साथ ही इसका उद्देश्य था की नागरिकों के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) पर संसद का नियंत्रण कम कर सके। और दूसरा इमरजेंसी लागू करने की जो आसान प्रक्रिया थी उसे कम कर सके। इस संशोधन के अंतर्गत हुए ये बदलाव –
    1. आंतरिक अशांति : जिस वजह से सरकार ने तीसरा आपातकाल लगाया था, वो टर्म ( शब्द की परिभाषा ) बहुत ही अस्पष्ट थी। इसलिए इस संशोधन के माध्यम से आंतरिक अशांति (Internal Disturbance) शब्द को बदलकर सशस्त्र विद्रोह / Armed Rebellion का नाम दिया गया। जिस से ऐसी स्थिति में ही आपातकाल लगाया जा सकेगा।
    2. पहले संसद में साधारण बहुमत (Simple Majority) सिंपल मेजॉरिटी से ही इमर्जेंसी लगाई जा सकती थी। लेकिन अब संसद में दोनों सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) में स्पेशल मेजोरिटी / विशेष बहुमत (Special Majority) से इमरजेंसी को अप्रूव करना होगा। इसके बाद ही अगले 6 माह के लिए इमर्जेंसी लगाई जा सकती है।आगे बढ़ाने के लिए फिर से इसी प्रोसेस को फॉलो करना होगा। एक बार में सिर्फ अगले 6 माह के लिए इमर्जेंसी बढाई जा सकती है।
    3. जैसे की पहले इमरजेंसी के समय सारे फंडामेंटल राइट्स सस्पेंड रहते थे जिससे कोर्ट Habeas Corpus writ जारी नही कर सकते थे। लेकिन 44वें संशोधन के बाद आर्टिकल 20 और आर्टिकल 21 को इमर्जेंसी के दौरान किसी भी स्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता है। ये अधिकार हर नागरिक के पास रहेंगे।
    4. न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) : 38 वें संशोधन के जरिये इमरजेंसी लगाने के कारणों पर न्यायिक समीक्षा का अधिकार खत्म कर दिया गया था। जिसे फिर से 44वें संशोधन में लागू कर दिया गया। इसके बाद से ही राष्ट्रपति द्वारा जिन भी कारणों के चलते इमरजेंसी लगाई जाएगी उन पर न्यायिक समीक्षा की जा सकेगी।

यहाँ समझिये विशेष बहुमत / Special Majority क्या होती है ?

किसी भी बिल पर पार्लियामेंट में Special Majority से पास होने या अप्रूवल के लिए जरुरी होता है कि –

  • जब संसद के दोनों सदनों के मेंबर्स की टोटल संख्या के 50 प्रतिशत से अधिक की संख्या को अप्रूव करे।
  • या दोनों ही सदनों के दो तिहाई (2/3) उपस्थित मेंबर्स वोट कर रहे हों और बहुमत से पास कर दें।

भारत में आपातकाल से संबंधित प्रश्न उत्तर

देश में आपातकाल क्या है?

भारत में आपातकाल तब लगता है जब देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था को किसी प्रकार का कोई खतरा हो। ऐसी आपात स्थियों में प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा देश में आपातकाल यानी इमरजेंसी लगाई जाती है। आपातकाल लगने पर केंद्र सरकार के पास पूरे देश का नियंत्रण आ जाता है। साथ ही असीमित शक्तियां भी केंद्र के पास आ जाती हैं जिनका उपयोग देश की सुरक्षा को बनाये रखने के लिए किया जाता है।

आपातकाल कितने प्रकार के होते हैं?

आपतकाल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं – राष्ट्रीय / नेशनल इमरजेंसी (National Emergency) अनुच्छेद 352 , राजकीय आपातकाल (State Emergency) अनुच्छेद 356 , वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) अनुच्छेद 360

1975 में देश में राष्ट्रीय आपातकाल क्यों लगाया गया?

देश में वर्ष 1975 में लगे आपातकाल के पीछे सरकार ने आंतरिक अशांति को कारण बताया था। हालाँकि ये साफ़ था की इसमें तत्कालीन सरकार का निजी स्वार्थ था।

आपातकाल का सिद्धांत कहाँ से लिया गया है?

आपातकाल का सिद्धांत जर्मनी के संविधान Weiber से लिया गया है।

राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कौन करता है?

राष्ट्रीय आपातकाल यानी नेशनल इमरजेंसी की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा कैबिनेट (प्रधानमंत्री और कौंसिल ऑफ़ मिनिस्टर) की सलाह पर की जाती है। इसके लिए ये आवश्यक है की संसद इमरजेंसी के प्रस्ताव के लिए अनुमोदन कर दें।

भारत में अभी तक आपातकाल कितनी बार लगाया गया है ?

देश में अभी तक कुल तीन बार आपातकाल लगाया गया है।

इस लेख के माध्यम से आज हमने आप को भारत में आपातकाल के विषय में जानकारी दी है। उम्मीद है की आप को ये जानकारी उपयोगी लगी होगी। यदि आप ऐसे ही अन्य उपयोगी लेखों को पढ़ना चाहते हैं तो आप हमारी वेबसाइट से जुड़ सकते हैं।

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