गाँधी जयंती पर निबंध- “अहिंसा के पुजारी” और “राष्ट्रपिता” कहलाने वाले महात्मा गांधी जी को बापू नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। महात्मा गाँधी जी का जन्म शुक्रवार 2 अक्तूबर 1869 को एक साधारण परिवार में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी है। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी व इनकी माता का नाम पुतली बाई था। इनकी माता एक धार्मिक महिला थी नियमित तौर पर उपवास रखती थी। गाँधी जी का पालन-पोषण वैष्णव मत में विश्वास रखने वाले परिवार में हुआ था। जैन धर्म का महात्मा गाँधी जी पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा जिस वजह से अहिंसा, सत्य जैसे व्यवहार स्वाभाविक रूप से गाँधी जी में बचपन से ही पनपने लगे थे। वह अपने माता-पिता के सबसे छोटी संतान थे, उनके 2 भाई और 1 बहन थी।
गाँधी जी के पिता हिन्दू तथा मोढ़ बनिया जाति के थे। लोग गाँधीजी को प्यार से बापू कहते थे। गुजरती इनकी मातृ भाषा थी। साधारण जीवन उच्च विचार वाले बापू जी ने अंग्रेजी हुकूमत से अंतिम साँस तक अहिंसा की राह में चलते हुए संघर्ष किया। भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन में हर तबके के लोगों को अपने साथ जोड़कर भारत को आज़ादी दिलाने में गाँधी जी ने अहम योगदान दिया है।
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"मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है ,अहिंसा उसे पाने का साधन" - महात्मा गाँधी
महात्मा गाँधी जी का जन्म एक साधारण हिन्दू परिवार में हुआ था। इनके पिता करमचंद गाँधी जी दीवान थे। गाँधी जी वैसे तो हर धर्म को सामान मानते थे किन्तु उनपर जैन धर्म का विशेष प्रभाव पड़ा। जैन धर्म में अहिंसा को सर्वोपरि रखा गया है इसी अवधारणा के परिणामस्वरूप गाँधी जी ने अपने सत्याग्रह में अहिंसा को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। गाँधी जी भगवदगीता को हमेशा साथ रखते थे और इसका अपने जीवन में अनुसरण करते थे। भगवान को सत्य का स्वरूप मानते थे और अहिंसा को उस सत्य स्वरूप भगवान को पाने का मार्ग। गाँधी जी को कवि नरसी मेहता की यह रचना अति प्रिय थी-
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।
सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।
गाँधी जी विद्यार्थी के रूप में – गाँधी जी एक साधारण व्यक्तित्व के थे। औसत विद्यार्थी के रूप में इनकी शिक्षा अल्फ्रेड हाई स्कूल से हुई थी। विद्यार्थी जीवन में इन्होंने यदा कदा पुरस्कार भी जीते। पढाई में तेज नहीं थे किन्तु वे घरेलू काम और माता-पिता की सेवा में ही मन लगाया करते थे। गाँधी जी सच्चाई के प्रतीक राजा हरिश्चंद को अपना आदर्श मानते थे। मात्र 13 वर्ष की उम्र में इनका विवाह पोरबंदर के एक व्यापारी की बालिका से करा दिया गया। 1887 में गाँधी जी ने मुंबई यूनिवर्सिटी से मैट्रिक परीक्षा को पास किया और गुजरात के भावनगर के समलदास कॉलेज में दाखिला लिया था। गाँधी जी का सपना डॉक्टर बनने का था किन्तु परिवार वैष्णव धर्म का अनुयायी था जहाँ चीर-फाड़ की अनुमति नहीं थी। परिवार गाँधी जी को बैरिस्टर बनाना चाहता था।
गाँधी जी मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद वकालत की पढाई के लिए इंग्लैंड गए थे सन 1888 में गाँधी जी ने अपने कदम लन्दन में रखे वहां उन्होंने कानून विद्यालय “इनर टेम्पल” में अपना दाखिला कराया। वकालत की पढाई लन्दन से की थी। सन 1890 में अपनी वकालत की पढ़ाई को पूरा करने के बाद भारत लौट आए। वकालत पूरी करने के बाद जब गाँधी जी भारत आये तो उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा हो रहे अत्याचारों से आम जनता की समस्याओं को दूर करने के लिए अपना योगदान दिया।
दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधी के योगदान – दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों और भारतीयों के साथ हो रहे नस्लीय भेदभाव के खिलाफ और अपमानजनक नीतियों के परिणामस्वरूप गाँधी जी ने भेदभाव से लड़ने का निश्चय किया। उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और अश्वेतों को वोट देने के अधिकार से वंचित रखा जाता था उन्हें फुटपाथ में चलने जैसे कही अधिकारों से वंचित रखा गया था। साल 1906 में दक्षिण अफ्रीका की “टांसवाल सरकार” द्वारा भारतीय जनता के पंजीकरण के लिए एक अध्यादेश जारी किया गया था जो की भारतीयों के लिए अपमानजनक अध्यादेश था। वर्ष 1893 में दादा अब्दुल्ला जो की दक्षिण अफ्रीका का एक व्यापारी था उनके द्वारा गाँधी जी को साऊथ अफ्रीका में मुकदमा लड़ने के लिए आमंत्रित किया गया था।
गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीका पहुंचने के बाद उनके द्वारा साल 1894 में “नटाल इंडियन कांग्रेस” नाम से एक संगठन को स्थापित किया गया भारतीयों ने महात्मा गाँधी जी नेतृत्व में विरोध जनसभा का आयोजन किया तथा इसके परिणाम स्वरूप मिलने वाले दंड को भोगने की शपथ ली गयी। गाँधी जी द्वार सत्याग्रह की शुरुआत यही से की गयी। दक्षिण अफ्रीका में लगभग 7 वर्षों से ज्यादा समय तक संघर्ष चलता रहा। हजारों भारतीयों द्वारा इस अपमानजनक अध्यादेश के खिलाफ संघर्ष को जारी रखा गया। दक्षिण अफ्रीका में लगभग 21 वर्षों तक रहने के बाद महात्मा गाँधी अपने देश भारत लौट आये।
गाँधी जी का भारत आगमन – दक्षिण अफ्रीका में लगभग 21 वर्षों तक रहने के बाद गाँधी जी भारत में हो रहे अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ स्वतंत्रता दिलाने हेतु भारतीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोपाल कृष्ण गोखले के आमंत्रण पर वर्ष 1915 में महात्मा गाँधी जी अपने देश भारत आये। भारतवासियों द्वारा उनका बढ़-चढ़ कर स्वागत किया गया। जनता द्वारा उन्हें महात्मा से सम्बोधित किया जाने लगा। स्वतन्त्रता संग्राम की रूप रेखा तैयार करने के लिए गाँधी जी द्वारा देश के गांव-गांव का दौरा किया जाने लगा।
गाँधी जी का सत्याग्रह – महात्मा गाँधी जी अहिंसा के पुजारी थे। सत्य की राह में चलते हुए अहिंसात्मक रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उनके द्वारा किये गए कार्य पद्धतियों को उन्होंने सत्याग्रह नाम दिया था। उनके द्वारा सत्याग्रह का अर्थ अन्याय, शोषण, भेदभाव, अत्याचार के खिलाफ शांत तरीकों से बिना किसी हिंसा के अपने हक़ के लिए लड़ना था। गाँधी जी द्वारा चम्पारण और बारदोली सत्याग्रह किये गए जिसका उद्देश्य अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार और अन्यायपूर्ण रवैये के खिलाफ लड़ना था। कई बार इन सत्याग्रह के दौरान महात्मा गाँधी जी को जेल जाना पड़ा था। अपने सत्याग्रह में गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन का समय-समय पर प्रयोग किया।
किसानो के लिए गाँधी जी का योगदान
चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह -1917-1918 -वर्ष 1917 में अंग्रेजी सरकार के द्वारा चम्पारण (बिहार) के किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर किया जाने लगा था और इस नील की खेती का मूल्य अंग्रेजी सरकार के द्वारा तय किया गया जिसमें किसानों को बहुत हानि होने लगी थी। नील खेती के विरोध में सरकार के विरुद्ध किसानों का नेतृत्व गाँधी जी द्वारा किया गया। इस आंदोलन को अहिंसात्मक रूप से संपन्न किया गया। किसानों के इस सत्याग्रह से अंग्रेजी सरकार विवश हो गयी थी तथा अंग्रेजी सरकार को उनकी मांगो को मानना पड़ा। इस आंदोलन को चम्पारण आंदोलन नाम से जाना जाने लगा। चम्पारण आंदोलन में सफलता के बाद किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा और वर्ष 1918 में गुजरात के खेड़ा नामक स्थान में भी किसान आंदोलन हुआ। वर्ष 1918 में खेड़ा में आये भीषण बाढ़ का सामना किसानों को करना पड़ा।
बाढ़ के कारण क्षेत्र वासियों को भयावह अकाल का सामना करना पड़ा इस अकाल की स्थिति में ब्रिटिश सरकार द्वारा वसूल किये जाने वाले करों में किसानों को किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी गयी। किसानों की समस्या को गाँधी जी ने महसूस करते हुए अहिंसात्मक रूप से ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन को शुरू किया। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजी सरकार को मजबूरन किसानों के हक में की गयी मांगो को मानना पड़ा। सरकार को कर में छूट देनी पड़ी। इस आंदोलन को खेड़ा नामक स्थान पर किया गया जिससे इसका नाम खेड़ा आंदोलन पड़ा।
असहयोग आंदोलन -1920 – अंग्रेजी सरकार के द्वारा आए दिन नए-नए कानून बनाये जाते थे। सरकार की अस्पष्ट नीतियों तथा बेलगाम कर, आर्थिक संकट, महामारी के दौरान अंग्रेजी सरकार ने इन सभी परिस्थितियों में वर्ष 1919 में रोलेट एक्ट जो की अंग्रेजी सरकार द्वारा कानून पास किया गया था जिसे कला कानून भी कहा गया था 1919 के इस रोलेट एक्ट के विरुद्ध जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किये जाने लगे एक्ट के देश में हड़तालें हुई। एक्ट के विरोध के जालियाँवाला बाग़ में एक सभा आयोजित की गयी थी। जनरल डायर ने सभा को रोकने के लिए अंधाधुंध गोलियों का शिकार सभा में उपस्थित लोगों को बनाना।
बड़ी संख्या में इस सभा में बच्चे से लेकर बूढ़े लोग उपस्थित थे जिनको जनरल डायर की गोलियों का शिकार बनाया गया। इस घटना का से पूरा देश आग बगुला हो गया। गाँधी जी इस घटना से काफी विचलित हुए। सितम्बर 1920 गाँधी जी द्वारा असहयोग का प्रस्ताव कोलकाता के कांग्रेस अधिवेशन में रखा गया। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद से पूरे देश में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई।
भारत को स्वतंत्र कराने में कई क्रांतिकारियों की अहम भूमिका रही है। गाँधी जी ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके द्वारा किये गए जन आंदोलनों में 1920 का असहयोग आंदोलन, 1930 का सविनय अवज्ञा आंदोलन और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन शामिल थे।
अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह, दांडी यात्रा 1930 -ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर लगने वाले भरी कर के परिणामस्वरूप गाँधी जी द्वारा इसके विरोध में नमक सत्याग्रह को चलाया गया था। दांडी यात्रा को 12 मार्च 1930 में गाँधी जी तथा उनके 79 कार्यकर्ताओं द्वारा 200 मील की इस यात्रा शुरू किया गया जो की 26 दिन बाद 6 अप्रैल 1930 को गुजरात के गाँव दांडी तक संपन्न की गयी थी जहाँ नमक बनाकर इस कानून को भंग किया गया। इस आंदोलन को ब्रिटिश सरकार के द्वारा नमक के ऊपर लगने वाले कर के विरोध में था। दांडी पहुंचकर सरकार के नमक कानून की अवहेलना करके स्वयं नमक बनाने और अपने द्वारा बनाये गए नमक को बेचना शुरू किया गया यह भी प्रकार का गाँधी जी द्वारा अहिंसात्मक आंदोलन था जिसका परिणाम जनता के हित में रहा।
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement)
भारत छोड़ो आंदोलन 1942– अंग्रेजी हुकूमत को भारत से निकाल फेंकने के लिए 8 अगस्त 1942 को महात्मा गाँधी जी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया गया। 1942 भारत के इतिहास में आजादी के लिए किये गए आंदोलनों में से महत्वपूर्ण आंदोलन रहा है। ब्रिटिश सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए गाँधी जी द्वारा चलाया गया आंदोलन है जिसमें जनता द्वारा बढ़-चढ़ कर भाग लिया गया।
इन सभी सत्याग्रहों और आम जनता के योगदान से 15 अगस्त 1947 में भारत को स्वतंत्र करने में अपनी अहम भूमिका निभाई। गाँधी जी को उनके ही शिष्य नाथूराम गोडसे द्वारा 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर हत्या की गयी थी जिसके बाद इस महान व्यक्तित्व के जीवन का अंत हो गया किन्तु गाँधी जी आज भी उनके विचारों के साथ हमारे बीच जिन्दा है। गाँधी जी की मृत्यु हो जाने के बाद से उनकी याद में प्रत्येक वर्ष 30 जनवरी को शहीद दिवस मनाया जाता है।
गाँधी जी के तीन सिद्धांत –
न बुरा बोलो ,न बुरा सुनो ,न बुरा देखो
उपसंहार
महात्मा गाँधी जी ने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए पूरी कोशिश की और उन्हें इसमें सफलता ही हासिल हुई। समाज में फैले कुरीतियों को दूर करने भेदभाव को समाप्त करने, छुआछूत को दूर करने, अहिंसा और सत्य की राह में समाज को चलना सिखाया। उनके अनेक महान कार्यों के लिए उन्हें राष्ट्रपिता से सम्बोधित किया जाता है। अनेक अत्याचारों के खिलाफ अहिंसा के मार्ग में चलते हुए उन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने में अपनी भूमिका निभाई। स्वतंत्र भारत का जन्म हुआ ही था की 30 जनवरी 1948 को गाँधी जी के शिष्य नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। लेकिन आज भी गाँधी जी के विचार से हम सभी का मार्गदर्शन हो रहा है।
गाँधी जयंती निबंध :-
हमारे देश में हर साल 2 अक्तूबर को गाँधी जयंती मनायी जाती है। आज का दिन भारतवर्ष में बहुत महत्व रखता है क्योंकि आज ही के दिन हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का जन्म हुआ था। जिन्होंने आगे चलकर पूरे भारत वर्ष को अंग्रेज़ों की 200 सालों की लम्बी गुलामी के बाद आज़ादी दिलाई थी। हमारे देश में गाँधी जयंती के दिन राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित किया गया है।
गाँधी जयंती सिर्फ भारत देश में ही नहीं बल्कि कई देशों में भी मनाई जाती है। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2 अक्तूबर के दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में घोषित किया गया। आज देश विदेश में इस दिन को अंतराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाते हैं। जैसे की हम जानते हैं की उनके अहिंसा के सिद्धांतों को पूरे दुनिया ने सराहा और उसे मान्यता दी। महात्मा गाँधी के इन उच्च विचारों ने न सिर्फ हमारे देश का मार्गदर्शन किया बल्कि पूरे विश्व को भी अहिंसा की राह दिखाई। जिस प्रकार उन्होंने अपने देश को अहिंसा के साथ आज़ादी दिलाई वो अपने आप में एक मिसाल है। इसीलिए कहा गया है –
दे दी हमे आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।
कहते हैं गाँधी जी एक साधारण से दिखने वाले असाधारण व्यक्ति थे। जिन्होंने अपने अहिंसावादी सोच और सिद्धांतों से पूरे देश की सत्ता बदल दी थी। जिनके कहने पर पूरा का पूरा देश उसका अनुसरण करता था। ऐसे ही महात्मा की आज यानी की 2 अक्तूबर को गाँधी जयंती मनाई जाती है। गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। लोग उन्हें बापू के नाम से भी जानते हैं साथ ही उन्हें महात्मा और राष्ट्रपिता का दर्जा भी प्राप्त है। महात्मा गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वो माता पुतलीबाई और पिता करमचंद गाँधी की सबसे छोटी संतान थे।
महात्मा गाँधी का विवाह 13 साल की उम्र में उनसे एक साल बड़ी कस्तूरबा गाँधी से हो गया था। और इस के कुछ समय बाद उन्हें वकालत की पढाई के लिए 1888 में इंग्लैंड भेज दिया गया। 4 साल बाद वो पढ़ाई पूरी कर बैरिस्टर बन के भारत लौटे। उन्होंने यहाँ बॉम्बे और राजकोट में प्रैक्टिस भी की। लेकिन उस वक्त उन्हें अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल रही थी। जिसके चलते वो 1893 में वो दादा अब्दुल्लाह नाम के एक व्यापारी के साउथ अफ्रीका बुलाने पर वहां के लिए रवाना हो गए।
उस वक्त भारत की तरह ही साउथ अफ्रीका में भी अंग्रेज़ों की हुकूमत थी। वहां महात्मा गाँधी को बार बार भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार तो सही टिकट होने के बाद भी उन्हें ट्रेन के फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट से सिर्फ इसलिए निकल दिया गया क्योंकि वो अलग रंग और अलग नस्ल के थे। इतना सब होने के बाद भी वो वहां 21 साल तक रहे और इन कुरीतियों और अत्याचार के खिलाफ लड़ते रहे। गाँधी जी द्वारा दिए गए एक भाषण में कहा गया था की ‘I was born in India but was made in South Africa” अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की उनका साउथ अफ्रीका में बिताया गया समय उनके जीवन में कितना महत्वपूर्ण था। यहीं से नींव पड़ती है उनके सत्याग्रह और अहिंसा की।
इसके बाद गोपाल कृष्ण गोखले के निवेदन में भारत में अंग्रेज़ों की हुकूमत को ख़त्म करने के लिए गांधीजी 1915 में भारत वापस लौटे। यहाँ आने के बाद उन्होंने 1917 में पहला आंदोलन चलाया बिहार के चम्पारण जिले में। ये किसानों को अंग्रेज़ों द्वारा जबरदस्ती नील की खेती कराये जाने को लेकर थी। उन्होंने इस आंदोलन के माध्यम से किसानों को इस से मुक्ति दिलाई। इसके बाद इसी वर्ष में उन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले में आंदोलन किया जिसमें उन्होंने जिले में बाढ़ और अकाल की स्थिति होने के बाद भी सरकार द्वारा लगान वसूले जाने को लेकर अहिंसक विरोध किया।
इस विरोध के चलते फिर अंग्रेजी हुकूमत को समझौता करने के लिए हामी भरनी पड़ी। इन्ही आन्दोलनों की सफलता के बाद उनकी कीर्ति देश भर में फैली और उन्हें गुरु रबिन्द्र नाथ टैगोर द्वारा “महात्मा” और सुभाषचंद्र बोस द्वारा “राष्ट्रपिता” की उपमा दी गयी। इसके अतिरिक्त देशभर में उनके सम्मान में उन्हें सब महात्मा और बापू कह कर पुकारने लगे।
Gandhi Jayanti Essay in Hindi | महात्मा गांधी पर निबंध
जैसा की सभी जानते हैं की राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी सभी धर्मों में कोई अंतर नहीं करते थे। उन्हें सामाजिक समानता में यकीन था। इसीलिए उन्होंने देश में चल रहे मुसलमान भाइयों के खिलाफत मूवमेंट को अभी अपना सहयोग दिया। इस से न सिर्फ उन्होंने हिन्दू मुस्लिम में भेद ख़त्म किया बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर समाज में भी हो रहे हिन्दू मुस्लिम दंगे भी कुछ वर्षों के लिए बंद हो गए। महात्मा गाँधी के आंदोलन यहीं नहीं रुके। वर्ष 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा लाए गए रॉलेट एक्ट के खिलाफ भी उन्होंने असहयोग आंदोलन चलाया और देशवासियों को अहिंसक और शांतिपूर्ण विरोध करने को कहा।
दरअसल रौलेट एक्ट को देश में चल रहे विभिन्न आन्दोलनों को कुचलने के मकसद से लाया गया था। इस एक्ट के अनुसार किसी भी भारतीय को बिना अदालत में मुकदमा चलाये भी जेल में डाला जा सकता था। इसी के विरोध में असहयोग आंदोलन के तहत देशभर में लोगों ने अंग्रेजी कपड़ों और वस्तुओं को जलाना शुरू कर दिया।
इसी एक्ट के विरोध प्रदर्शन में जब जलियांवाला बाग़ में लोग प्रदर्शन कर रहे थे तब जनरल डायर ने सैकड़ों लोगों पर गोलियां चला दी। बावजूद इसके गांधीजी अपने शांतिपूर्ण विरोध पर डटे रहे और साथ ही दिन प्रतिदिन पूरा देश आंदोलन का हिस्सा बनता गया। हालाँकि ये आंदोलन पूरा सफल नहीं हो पाया क्योंकि इसे गांधीजी ने 5 फ़रवरी 1922 में हुए चौरा-चौरी काण्ड से क्षुब्ध होकर वापस ले लिया था। इसके बाद वो कुछ वर्षों तक जेल में रहे। लेकिन वो यहीं नहीं रुके।
मार्च 1930 में गांधीजी ने अंग्रेज़ों द्वारा नमक पर भी टैक्स लगाने के विरोध करते हुए अहमदाबाद से दांडी तक यात्रा की। ये यात्रा लगभग 400 किलोमीटर की थी जिसे उन्होंने नियम तोड़ते हुए नमक बनाकर पूरा किया। इस आंदोलन को काफी सफलता मिली और विभिन्न देशों की मीडिया ने इसे काफी महत्व दिया। इस के बाद 1942 में गांधीजी के नेतृत्व में एक शक्तिशाली भारत छोडो आंदोलन हुआ। इसमें बहुत से लोगों की जान गयी हज़ारों घायल हुए और कितनों को जेल में डाला गया। इसी दौरान गांधीजी ने सभी देशवासियों को एकजुट करते हुए अंतिम स्वतंत्रता के लिए अहिंसावादी संघर्ष को जारी रखते हुए करो या मरो का नारा दिया। जिस वजह से उन्हें 2 सालों के लिए जेल में डाल दिया गया। लेकिन फिर भी इस ने सभी देशवासियों को एकजुट कर दिया और अंत में हमारा भारत देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हो गया।
आज हम आज़ाद भारत में रह रहे हैं। तो इस देश के नागरिक होने से हमारी ये जिम्मेदारी बनती है की हम बापू और अन्य स्वतंत्र सेनानियों को उनके सपनों का भारत बनाकर दें। सामाजिक एकता बनाये रखें और जाति- धर्म पर बाँटने की बजाए एकजुट होकर रहे। सिर्फ देश में प्रेम और सौहार्द बना रहेगा बल्कि देश का विकास भी होगा।