गुरु पूर्णिमा 2023: हिन्दू धर्म में गुरु पूर्णिमा अपने गुरुओं को समर्पित एक महत्वपूर्ण त्योहार है। हम सबके जीवन में हमारे सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। उसके बाद जब हम पढ़ाई हेतु किसी स्कूल या यूनिवर्सिटी जाते हैं तो वहां पर पढ़ाने वाले शिक्षक (Teacher) हमारे गुरु की भूमिका निभाते हैं। जो ना पुस्तक ज्ञान ही नहीं अपितु जीवन मार्गदर्शन का ज्ञान भी देते हैं।
आज के हमारे आर्टिकल का विषय गुरु महिमा को बताने और मनाये जाना वाला त्योहार गुरु पूर्णिमा पर आधारित है। आप इस आर्टिकल से गुरु पूर्णिमा की विभिन्न तरह की जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं ?
- देश भर में अपने गुरु को सम्मान देने के लिए गुरु पूर्णिमा के पर्व को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता है की इस दिन महाभारत काल में महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था।
- इस दिन गुरु जनों की सेवा सत्कार को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे धर्म ग्रथों में बताया गया है की ईश्वर के श्राप से आपको सिर्फ आपका सच्चा गुरु ही बचा सकता है।
- यदि गुरु रुष्ट हो जाये तो हमारे जीवन को सही मार्गदर्शन और सही दिशा देने वाला कोई नहीं रह जाता है।
- हमारे जीवन में गुरु पूर्णिमा गुरु से प्राप्त आशीर्वाद से अपने जीवन को कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने की कामना है।
गुरु पूर्णिमा 2023 का शुभ मुहूर्त एवं तारीख (Date):
गुरु पूर्णिमा हर साल वर्षा ऋतू के आगमन के समय जब हिंदी पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह चल रहा होता है और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जुलाई माह लग चूका होता है। यह समय ना तो ज्यादा बारिश, ना तो ज्यादा गर्मी और ना तो ज्यादा सर्दी वाला होता है।
गुरु पूर्णिमा 2023 की तिथि, माह एवं दिन | 3 जुलाई 2023, सोमवार |
पूर्णिमा के प्रारम्भ होने का शुभ मुहूर्त | 2 जुलाई 2023 की रात 8 बजकर 21 मिनट से शुरू |
पूर्णिमा के समाप्त होने का शुभ मुहूर्त | 3 जुलाई 2023 की रात 5 बजकर 8 मिनट तक समाप्त |
गुरु पूर्णिमा पूजन विधि:
- हिन्दू धर्म मान्यता के अनुसार जातकों को सुबह जल्दी उठकर अपने नित्यकर्मों को निपटाकर, स्नान आदि करके नए और साफ़ कपड़े पहनने चाहिए।
- इसके बाद महर्षि वेदव्यास या आपके जो भी गुरु हैं उनके चित्र के ऊपर सुगन्धित फूलों की माला चढ़ाएं और अपने गुरु का ध्यान करें।
- यदि आपका सामर्थ्य है तो गरीब और जरूरतमंद लोगों को धन, वस्त्र और अन्न आदि का दान करें। इससे लोग आपको दुआ एवं आशीर्वाद देंगे।
- इसके बाद प्रसाद रूप में हलवा पूरी बनाकर भूखे लोगों को भोजन कराएं।
हिन्दू धर्म में गुरु पूर्णिमा का धार्मिक महत्त्व:
हिन्दू धर्म में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा बताया गया हमारे वेदों और उपनिषदों में गुरु की महिमा के बारे में श्लोकों में बताया गया है। गुरु की महिमा के बारे में संस्कृत का प्रसिद्ध श्लोक इस प्रकार से है –
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
श्लोक का अर्थ:- गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।
- हमारे पौराणिक ग्रंथों में यह बात दर्ज है की ऋषि मुनियों से अपने कठिन परिश्रम और तपस्या से वेदों में छुपे रहस्यों का ज्ञान प्राप्त किया और संसार को अपनी रचनाओं के माध्यम से इसके बारे में बताया।
- महर्षि वेदव्यास जी ने, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे पौराणिक साहित्यों की रचना की थी।
- भारत के साथ गुरु पूर्णिमा का पर्व नेपाल, भूटान, मलेशिया आदि जैसे देशों में मनाया जाता है। यह ऐसा ही है जैसे पूरी दुनिया टीचर्स डे मनाती है।
- गुरु पूर्णिमा के दिन एक और महान ऋषि और संस्कृत के प्रकांड विद्वान कृष्ण द्वैपायन का जन्म भी आता है। कृष्ण द्वैपायन एक आध्यात्मिक और आदिगुरु थे।
- हिन्दू धर्म के अलावा बौद्ध और जैन धर्म में भी गुरु पूर्णिमा का बड़ा महत्व है। बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग इस दिन महात्मा बुद्ध के जन्म से लेकर जोड़ते हैं। उनका मानना है की इसी दिन 564 ईसा पूर्व में नेपाल के लुम्बिनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था।
- इसी तरह से जैन धर्म को मानने वाले लोग मानते हैं की उनके 24वें तीर्थकंर गुरु वर्धमान महावीर का जन्म गुरु पूर्णिमा वाले दिन हुआ था।
गुरु पूर्णिमा से जुड़े प्रश्न एवं उत्तर (FAQs):
साल 2023 में गुरु पूर्णिमा जुलाई माह में 3 तारीख को देशभर में मनाई जायेगी।
अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः
श्लोक का अर्थ है की गुरु के बिना ईश्वर का साक्षात्कार सम्भव नहीं है। अपने जीवन में अज्ञानता के अंधकार को मिटाने के लिए गुरु की कृपा परम आवश्यक है।
महाभारत काल के अनुसार महर्षि वेदव्यास का जन्म एक मछुवारे के श्राप दिए जाने के कारण ऋषि पराशर और सत्यवती के बेटे के रूप में हुआ था। वेदव्यास जन्म से ही अंधे थे।
महाभारत काल के समय द्रोणाचार्य नाम के महर्षि कौरव और पांडवों को अपने आश्रम में शिक्षा दिया करते थे।
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