इंसान एक जिज्ञासु जीव है जिसे हर समय कुछ न कुछ जानने और समझने को चाहिए। इसी जिज्ञासा के कारण मनुष्य पुरातन काल से ही आविष्कार, खोज, रहस्यों को सुलझाना अदि सब करता आया है। लेकिन दोस्तों आज हम रहस्यों से भरें अपने देश भारत के बारे में बात करने जा रहे हैं जैसा की आप जानते हैं कि हमारा देश भारत को रहस्यों और Mystery का देश कहा जाता है।
जो की एकदम सही बात है। आज भी कहीं न कहीं देश में किसी न किसी रहस्य के बारे में पढ़ने, सुनने और देखने को मिल ही जाता है। लेकिन दोस्तों आज हम आपसे जिस रहस्य के बारे में बात करने जा रहे हैं वह रहस्य एक मंदिर से जुड़ा हुआ है। हम यहां जिस मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं वह भारत के उड़ीशा राज्य के पूरी जिले में स्थित कई सौ वर्षों पुराना प्राचीन कोणार्क सूर्य मंदिर है।
मंदिर के बारे में यह रहस्य प्रचलित है की प्रसिद्ध सूर्य कोणार्क मंदिर Konark Surya Temple के ऊपरी सिरे के शिखर में एक 52 मीट्रिक टन का चुम्बक स्थित है जिससे मंदिर के किनारे पर मौजूद समुद्र से गुजरने वाले पानी के जहाज अपना रास्ता भटक जाते हैं।
आपको बताते चलें की अपने रहस्य और पुरातन स्थापत्य कला के कारण यह मंदिर विदेशी सैलानियों के बीच काफी प्रसिद्ध है। मंदिर की भव्यता और शिल्पकला को देखकर कुछ लोग मंदिर को भारत का आठवां अजूबा भी कहते हैं। यहां आपकी जानकारी के लिए बता दें।
कि सन 1954 में UNESCO (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization) के द्वारा उड़ीशा के प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर को World Heritage Site की सूची में शामिल किया गया। दोस्तों आगे आर्टिकल में आप जानेंगे की कोणार्क सूर्य मंदिर के रहस्य, आर्टिटेक्टर, इतिहास आदि के बारे में। जानने के लिए आर्टिकल में हमारे साथ बने रहें।
Konark Surya Mandir का इतिहास एवं पौराणिक महत्व:
जैसा की आप जानते हैं प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर भगवान सूर्य देवता को समर्पित मंदिर है। यहां हम आपको मंदिर का कोणार्क नाम दो शब्दों के मिलकर बना है जिसमें कोण का अर्थ होता है कोना और अर्क का अर्थ होता है सूर्य अर्थात इसका मतलब हुआ सूर्य देव का कोना।
इतिहासकार और विद्वान मानते हैं की मन्दिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में 1236 ईस्वी से 1264 ईस्वी के मध्यकाल के बीच गंगवंश के प्रथम राजा नरसिंह देव के द्वारा करवाया गया था। आपको बता दें की मंदिर के निर्माण में मुख्यतः बलुआ, कीमती धातु और ग्रेनाइट पत्थरों का उपयोग किया गया है। इतिहासकार मानते हैं की मंदिर के निर्माण में 1200 से अधिक मजदूरों ने दिन-रात मेहनत कर 12 वर्षों तक काम किया था।
मंदिर की ऊंचाई 229 फ़ीट है और मंदिर में पत्थर से बनी हुई भगवान सूर्य की तीन मूर्तियां विराजमान की गयी हैं। इन मूर्तियों का स्वरुप पर्यटकों और सैलानियों को बहुत आकर्षित करता है। यदि हम मंदिर की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो मंदिर उड़ीशा राज्य के पूरी जिले में चंद्रभागा नदी से लगभग 37 किलोमीटर दूर नदी के तट पर स्थित है।
मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा है की जब महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को कोढ़ रोग हो गया था। अपने इस रोग से मुक्ति पाने के लिए साम्ब ने मित्रवन के चंद्रभागा नदी के समुद्र संगम के तट पर 12 वर्षों तक भगवान सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। जिसके बाद भगवान सूर्य ने साम्ब को दर्शन दिए उसके रोगों को ठीक किया।
इस बात से खुश होकर साम्ब ने देवशिल्पकार भगवान श्री विश्वकर्मा से सूर्य देव की एक मूर्ति और भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। फिर मंदिर में सूर्य भगवान की मूर्ति स्थापित की। दोस्तों आपको बता दें की हिंदी साहित्य के महान कवि एवं नाटककार “रविंद्र नाथ टैगोर” ने सूर्य मंदिर के बारे में लिखा है कि-
“कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है।“
:रविंद्र नाथ टैगोर
सूर्य कोणार्क मंदिर की प्राचीन स्थापत्य कला:
दोस्तों आपको बताते चलें की मंदिर में भगवान सूर्य के कोणार्क मंदिर की स्थापत्य कला 13वीं शताब्दी की याद दिलाती है। मंदिर में भगवान सूर्य की अलग-अलग अवस्थाओं को दर्शाती हुई तीन मूर्तियां हैं जिनका विवरण इस प्रकार से है –
- उदित सूर्य बाल्यावस्था ऊंचाई: 8 फ़ीट
- मध्यान्ह सूर्य युवावस्था ऊंचाई: 9.5 फ़ीट
- अपराह्न सूर्य – प्रौढ़ावस्था ऊंचाई: 3.5 फ़ीट
आपको बता दें की उपरोक्त तीनों मूर्तियां ग्रेनाइट पत्थर की बनी हुई हैं। तीनों मूर्तियों का वजन लगभग 28 टन है। इसी प्रकार मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुंदरूपी सुसज्जित घोड़े बने हुए हैं। यह घोड़े लम्बाई में 10 फ़ीट और ऊंचाई में 7 फ़ीट हैं। यह घोड़े भगवान सूर्य की भव्य यात्रा को निरूपित करते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें की कोणार्क मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक नट मंदिर बना हुआ है जिसमें नृत्य करते हुए नर्तकियों की मूर्तियां बनी हुई हैं। इसके साथ ही मंदिर की दीवारों पर फूल बेल, ज्यामितीय आकृतियों की नक्काशी की गयी है। कोणार्क सूर्य मंदिर में आपको मानव, गंधर्व, देव, किन्नर आदि की बनी हुई मूर्तियां दिख जाएंगी। सूर्य मंदिर में आपको बहुत बड़े भव्य रथ का पहिया बना हुआ मिल जाएगा।
इस रथ में 12 जोड़ी पहिये बने हुए हैं और रथ को सूर्य के 7 घोड़े खींच रहे हैं। विद्वानों का कहना है की मंदिर के दीवार पर बने रथ के 12 पहिये साल के 12 महीनों को प्रदर्शित करते हैं। और प्रत्येक चक्र 8 अरों से मिलकर बना है जो एक दिन के आठों पहर को प्रदर्शित करते हैं। इसी प्रकार सूर्य के सात घोड़े हफ्ते के सातों दिन को प्रदर्शित करते हैं।
ऐसा माना जाता है की रथ के पहियों के पर बने चक्र सूर्य की रोशनी की पड़ने पर बनने वाली छाया से लोग प्राचीन समय में समय का सही अनुमान लगा पाते थे। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर बना हुआ है। इसी तरह मंदिर के शिखर पर भगवान सूर्य को उदय एवं अस्त होते देखा जा सकता है। सर्यास्त के समय जब सूरज की रोशनी मंदिर पर पड़ती है तब मानों ऐसा लगता है की सूरज ने अपनी पूरी लालिमा पुरे मंदिर के प्रांगण में बिखेर दी हो।
कोणार्क सूर्य मंदिर का चुंबकीय रहस्य
अभी तक आपने इस लेख में मंदिर के आर्टिटेक्टर, स्थापत्य कला और इतिहास के बारे में जाना। लेकिन जो मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण वह है इस मंदिर रहस्य (Mystery) दोस्तों आपको बताते चलें की कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में यह रहस्य प्रचलित है की मंदिर के शिखर पर 52 मीट्रिक टन का एक चुबंक लगा है
जो पास के समुद्र से गुजरने वाले पानी के जहाजों के दिशासूचक यंत्रों को खराब कर देता है जिससे मंदिर के पास से गुजरने वाले जहाज अपना रास्ता भटक जाते हैं। पर एक मान्यता यह है की मंदिर को इस प्रकार से बनाया गया है की जैसे कोई सैंडविच हो और मंदिर के बीच में लोहे की प्लेटें लगी हुई हैं जिस पर यह मंदिर टिका हुआ है।
पर अब माना जाता है की मंदिर के चुम्बक को उस समय के लोगों ने निकाल दिया होगा। जिस कारण अब ऐसी कोई घटना सुनने को नहीं मिलती की कोई जहाज मंदिर के कारण अपना रास्ता भटक गया है। पुरातन काल में होने वाली कुछ घटनाओं की वजह से लोगों ने ऐसी रहस्मयी कथाओं पर विश्वास करना शुरू कर दिया।
कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य
मंदिर के रहस्य के साथ कुछ रोचक तथ्य हैं जिनके बारे में हमने आपको नीचे बताया है –
- मंदिर का काफी भाग विदेशी मुस्लिमों आक्रांताओं के कारण तोड़ा जा चुका है। विद्वान इसका मुख्य कारण वास्तु दोष को मानते हैं।
- मंदिर के आग्नेय क्षेत्र में एक विशाल कुंआ स्थित है।
- कोणार्क सूर्य मंदिर के दक्षिण और पूर्व में विशाल द्वार बने हुए हैं। परन्तु समय के साथ सही देख रेख ना होने के कारण मंदिर का काफी ढांचा क्षीण हो चुका है।
- उड़ीशा कोणार्क सूर्य मंदिर को “Black Pagoda” के नाम से भी जाना जाता है।
- मंदिर स्थित में सूर्य भगवान की मूर्ति ऐसे स्थापित किया गया है। सूर्य की पहली किरण सूर्य उगने के साथ ही मंदिर में प्रवेश करती है और किरण सीधे सूर्य मूर्ति के पैरों को छूती है।
- मंदिर के दक्षिण में बने दो विशाल घोड़ों की मूर्तियों को उड़ीशा राज्य सरकार ने अपने राज्य चिन्ह में शामिल किया है।
- विद्वान सूर्य मंदिर को पुरातन उड़िया स्थापत्य कला का एक बेहतरीन उदाहरण मानते हैं।
- सूर्य मंदिर में आपको कामसूत्र के चित्रों पर आधारित बनी कामुक मूर्तियां देखने को मिल जाएंगी।
- सूर्य मंदिर का पूरा परिसर भारतीय आर्कियोलॉजी के अनुसार लगभग 26 एकड़ भूमि में फैला हुआ है।
- मंदिर में बने रथ के पहियों की चौड़ाई लगभग 10 फुट चौड़ी है। प्राचीन समय में रथ में 7 घोड़े बने हुए थे पर अब वर्तमान में एक ही घोड़ा बचा हुआ है।
- सूर्य मंदिर के तीन प्रमुख हिस्से हैं – देउल गर्भगृह, नाटमंडप और जगमोहन मंडप। जिसमें से नाटमंडप और जगमोहन मंडप दोनों एक ही दिशा में बने हुए हैं। नाटमंडप वह स्थान है जहाँ से मंदिर में प्रवेश की किया जाता है। आपको यहां हम यह भी बता दें की जगमोहन और गर्भगृह दोनों एक ही जगह पर स्थित हैं।
Konark Sun Temple से संबंधित प्रश्न
कोणार्क सूर्य मंदिर को सन 1954 में यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया।
सूर्य कोणार्क मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में गंगवंश के राजा नरसिंह देव के द्वारा करवाया गया था।
कोणार्क सूर्य मंदिर की कुल ऊंचाई लगभग 69.7992 मीटर (229 फ़ीट) है।
कोणार्क मंदिर को और ब्लैक पैगोडा के नाम से जाना जाता है।
उड़ीशा राज्य के तीन प्रमुख और प्रसिद्ध मंदिर इस प्रकार निम्नलिखित हैं –
1: जग्गनाथ मंदिर
2: लिंगराज मंदिर
3: कोणार्क सूर्य देव मंदिर
उड़ीशा राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक जी हैं। जो बीजू जनता दल से हैं वह वर्ष 2000 से उड़ीशा के मुख्यमंत्री पद को संभाल रहे हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर चंद्रभागा नदी के किनारे पर स्थित है।
कोणार्क दो शब्दों से मिलकर बना है कोण और अर्क जिसमें कोण का अर्थ होता है कोना और अर्क का अर्थ होता है सूर्य इसलिए कोणार्क जिसका मतलब हुआ सूर्य का कोना।
वैज्ञानिकों के अनुसार मंदिर का अध्ययन करने पर हमने पाया की कोर्णाक सूर्य मंदिर को बनाने में ग्रेनाइट पत्थरों, कीमती धातुओं और लोहे का इस्तेमाल किया गया है।