लोकोक्तियाँ का अर्थ होता है, पूरी तरह स्पष्ट होना। इसे कहावतें भी कहते हैं। लोकोक्तियाँ वाक्य के अर्थ को पूर्ण रूप से स्पष्ट करती है। कहावतें कही हुई बातों के समर्थन में होती है। यह संस्कृत भाषा का शब्द है। जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में प्रचंड किया जाता है, तो उसे लोकोक्ति कहते हैं। तो आइये जानते है हिंदी की 100 से अधिक प्रमुख लोकोक्तियाँ कौन-कौन सी है। संक्षेप में जानने के लिए हमारे आर्टिकल को विस्तारपूर्वक अंत तक पढ़े।
हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से 100 से अधिक लोकोक्तियाँ बताई है, लेकिन क्या आप जानते हो लोकोक्तियाँ किसे कहते है एवं लोकोक्तियाँ और मुहावरे में क्या अंतर होता है ?
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हिंदी की प्रमुख लोकोक्तियाँ
क्र.सं | प्रमुख लोकोक्तियाँ | अर्थ |
1 | आप भला तो जग भला | अच्छे आदमी के लिए सारी दुनिया अच्छी |
2 | अक्ल बड़ी या भैंस | बल से बुद्धि बड़ी होती है |
3 | अंधेर नगरी, चौपट राजा | चारों तरफ अन्याय एवं अव्यवस्था |
4 | आँख का अंधा, गांठ का पूरा | मूर्ख लेकिन धनवान् |
5 | अपने दही को कौन खट्टा कहता है ? | अपनी चीज सबको अच्छी लगती है |
6 | अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता | अकेला आदमी कठिन कार्य नहीं कर सकता |
7 | अधजल गगरी छलकत जाए | ओछे व्यक्ति में अकड़पन होता है |
8 | आटे के साथ घुन भी पिसता है | दोषी के साथ निर्दोष भी दंडित होता है |
9 | आम के आम, गुठली के दाम | दोहरा फायदा उठाना |
10 | आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास | बड़े काम को छोड़कर छोटे काम में लग जाना |
11 | ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका | एक संकट के बाद दूसरा संकट |
12 | ओस चाटे प्यास नहीं बुझती | जरूरत से कम होने पर काम नहीं चलता |
13 | उलटे चोर कोतवाल को डाँटे | दोषी ही दोष बतलानेवाले पर बिगड़े |
14 | ऊँट के मुँह में जीरा | आवश्यकता अधिक लेकिन मिलना बहुत कम |
15 | एक म्यान में दो तलवार | सबल प्रतिद्वंद्वी एक साथ |
16 | एक पंथ दो काज | एक साथ दो काम या एक ही साथ दो-दो काम सधना |
17 | हाथी चले बजार, कुत्ता भुंके हजार | काम करनेवाले या आगे बढ़नेवाले विरोध की परवाह नहीं करते |
18 | ऊँची दुकान, फीका पकवान | सिर्फ बाहरी चमक दमक, भीतर खोखलापन |
19 | एक अनार, सौ बीमार | वस्तु कम, लेकिन माँग बहुत अधिक |
20 | एक तो चोरी, दूसरे सीनाजोरी | गलती करना साथ ही रोब भी गाठना |
21 | ऊखल में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना | कठिन कार्य में हाथ लगाकर विघ्न-बाधा की परवाह न करना |
22 | कहाँ राजा भोज, कहाँ भोजवा (गंगू) तेली | बहुत छोटे की तुलना बड़ों से नहीं होती है |
23 | काठ की हाँड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती | छल-कपट सदा नहीं चलता है |
24 | खोदा पहाड़, निकली चुहिया | प्रयत्न बड़ा, लेकिन लाभ छोटा |
25 | एक हाथ से ताली नहीं बजती | कोई लड़ाई एकतरफा नहीं होती है |
26 | खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा | गलती करे कोई, और फल भुगते कोई |
27 | काला अक्षर भैंस बराबर | निरक्षर, अनपढ़ |
28 | लिखे ईसा पढ़े मूसा | गंदी लिखावट |
29 | अन्त भले तो सब भला | जो भले काम करता है, अन्त में उसे सुख मिलता है |
30 | अपनी पगड़ी अपने हाथ | आपकी इज्ज़त आपके हाथों में है |
31 | होनहार बिरवान के होत चिकने पात | महानता के लक्षण बचपन से दिखाई पड़ना |
32 | रस्सी जल गयी, पर ऐंठन न गयी | नाश हो जाने बाद भी व्यक्ति की अकड़ न जाना |
33 | कौआ चला हंस की चाल | छोटों या क्षुद्र व्यक्ति द्वारा बड़ों की नकल करना |
34 | मियाँ की दौड़ मस्जिद तक | साधारण व्यक्ति का सीमित क्षेत्र में काम करना |
35 | न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी | काम टालने के लिए साधन का बहाना) |
36 | खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे | असफलता या लज्जा के कारण किसी दूसरी चीज पर क्रोध प्रकट करना |
37 | पढ़े फारसी बेचे तेल | भाग्य क्या न करा दे |
38 | दीवार के भी कान होते हैं | कोई भेद या रहस्य न खुले, अतः सावधान |
39 | तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर | अपनी शक्ति या सामर्थ्य के मुताबिक काम या व्यापार |
40 | भागते भूत की लैंगोटी सही या भली | न से, जो मिल जाए वही काफी |
41 | टेढ़ी अँगुली से ही घी निकलता है | सीधापन से काम नहीं चलता है |
42 | छछूदर के सिर पर चमेली का तेल | नीच को सुंदर वस्तु की प्राप्ति |
43 | तू डाल-डाल, मैं पात-पात | नहले पर दहला, चालाकी का जवाब चालाकी |
44 | अपनी करनी, पार उतरनी | जैसा करोगे वैसा पाओगे |
45 | झूठ के पांव नहीं होते | झूठ बोलने में कुछ खर्च नहीं होता |
46 | धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का | निकम्मा व्यक्ति, कहीं का न रहना |
47 | चौबे गये छब्बे बनने, दूबे होके आये | लाभ के बदले हानि उठाना |
48 | बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ ते होय | बुरे काम का परिणाम बुरा ही होता है |
49 | दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंककर पीता है | धोखा खाने के बाद आदमी सँभल जाता है |
50 | टंटा विष की बेल है | झगड़ा करने से बहुत हानि होती है |
51 | छोटे मियौँ तो छोटे मियौं बड़े मियाँ सुभान-अल्लाह | बड़ों में छोटों की अपेक्षा अधिक बुराई या कमी |
52 | घर का भेदिया लंकादाह | आपसी फूट से सर्वनाश हो जाना |
53 | गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध | दूर के ढोल सुहावन या घर की मुरगी दाल बराबर |
54 | घी का लड्डू टेढ़ा भी भला | गुणवान् वस्तु या व्यक्ति का रूप रंग नहीं देखा जाता |
55 | अपने मुंह मियां मिळू | अपने मुंह से अपनी बड़ाई करने वाला व्यक्ति |
56 | आंसू एक नहीं और कलेजा टूक-टूक | दिखावटी रोना |
57 | गोद में लड़का, नगर (शहर) में ढिंढोरा | पास की वस्तु की खोज दूसरी जगह |
58 | अभी दिल्ली दूर है | अभी काम पूरा होने में देर है |
59 | अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे | मूर्खों को सदुपदेश देना या उनके लिए शुभ कार्य करना व्यर्थ है |
60 | चोर-चोर मौसेरे भाई | एक ही क्षेत्र के लोग अपनो का ही साथ देते है |
61 | सूम के धन शैतान खाए | फ्री में मिला हुआ धन या संपत्ति व्यर्थ ही जाता है |
62 | कौवा चला हंस की चाल अपनी भी भूल गया | दूसरों की नकल करने के प्रयास में अपनी विशेषता भी गवा देना |
63 | आंखों के आगे पलकों की बुराई | किसी के भाई बन्धुओं या इष्ट-मित्रों के सामने उसकी बुराई करना |
64 | भूखे पेट भजन नही होय | विना मुनाफा के कोई कार्य नही होता |
65 | खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचय | गुस्साया हुआ व्यक्ति किसी को भी डाटे |
66 | एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा | एक दोष तो था ही दूसरा और लग गया |
67 | कोयले की दलाली में मुंह काला | रे के साथ रहने से बुराई बुराई ही मिलती है |
68 | बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा | पीड़ा को सहकर ही समझा जा सकता है |
69 | जैसी राजा वैसी प्रजा | जैसे मालिक वैसे ही बाकी सब लोग |
70 | झूठ के पांव नहीं होते | झूठा आदमी बहस में नहीं ठहरता, उसे हार माननी होती है |
71 | झट मँगनी पट ब्याह | किसी काम के जल्दी से हो जाने पर उक्ति |
72 | जैसा घर वैसा आगन | जैसा काम वैसा परिणाम |
73 | जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है, वही गड्ढ़ा में गिरता है | जो दूसरे लोगों को हानि पहुँचाता है उसकी हानि अपने आप हो जाती है |
74 | जो गुड़ खाय वही कान छिदावे | जो आनंद लेता हो वही परिश्रम भी करे और कष्ट भी उठावे |
75 | ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय | जितना ही अधिक ऋण लिया जाएगा उतना ही बोझ बढ़ता जाएगा |
76 | सहजय गुड़ पक्कय ता सबै लपक्कय | अगर कोई काम सरल होता, तो सब ही कर लेते |
77 | जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है | कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है |
78 | न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी | न कारण होगा, न कार्य होगा |
79 | एक अंडा वह भी गंदा | एक ही पुत्र, वही भी निकम्मा |
80 | एक ही थैले के चट्टे-बट्टे | एक ही प्रकार के लोग |
81 | श्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया | भगवान की माया विचित्र है। संसार में कोई सुखी है तो कोई दुःखी, कोई धनी है तो कोई निर्धन |
82 | जी कहो जी कहलाओ | यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग तुम्हारा भी आदर करेंगे |
83 | गिलोय और नीम चढ़ी | दुर्गुणों में और वृद्धि हो जाना, दो-दो दुर्गुण |
84 | जान है तो जहान है | यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए |
85 | अपने मुंह मियां मिळू | अपने मुंह से अपनी बड़ाई करने वाला व्यक्ति |
86 | अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है | अपने घर या मोहल्ले आदि में सब लोग बहादुर बनते हैं |
87 | एक और एक ग्यारह होते हैं | मेल में बड़ी शक्ति होती है |
88 | आ बैल मुझे मार | जान- बूझकर विपत्ति में पड़ना |
89 | कर नहीं तो डर नहीं | बुरा ना किया तो किसी से डरना कैसा |
90 | काठ के उल्लू | निकम्मा आदमी, किसी काम का नहीं |
91 | हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के कुछ और | अति कंजूस होना |
92 | उल्टा चोर कोतवाल को डांटे | अनुचित काम करके भी न दबना |
93 | ईश्वर देता है तो छप्पर फाड़ के | अकस्मात अत्यधिक लाभ हो जाना |
94 | आधा तेल आधा पानी | ऐसी मिलावट जो अनुपयोगी हो। |
95 | अपना हाथ जगन्नाथ | अपने हाथ से काम करने में ईश्वरीय शक्ति है |
96 | अंधा पीसे कुत्ता खाए | नासमझ के कामों का लाल चतुर्थ आते हैं |
97 | एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है | एक के दुष्कर्म से सहकर्मी बदनाम होते हैं |
98 | जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे | जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राता है |
99 | आम के आम गुठलियों के दाम | किसी वस्तु से दोहरा लाभ होना |
100 | जिसके राम धनी, उसे कौन कमी | जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती |
101 | जैसा देश वैसा वेश | जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए |
102 | इधर कुआं उधर खाई | दोनों तरफ से हानि की संभावना |
103 | डूबते को तिनके का सहारा | विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों को थोड़ा सहारा भी काफी होता है |
104 | अपनी करनी पार उतरनी | अपने ही परिश्रम से सफलता मिलती है |
105 | ऊंट के गले में बित्ली | अनुचित, अनुपयुक्त या बेमेल संबंध विवाह |
106 | अंधा क्या चाहे दो आंखें | मनचाही वस्तु देने वाले से और कुछ नहीं चाहिए |
107 | डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई | थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना |
108 | अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग | सब लोगों का अपनी-अपनी धुन में मस्त रहना |
109 | बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा | पीड़ा को सहकर ही समझा जा सकता है |
110 | बाप न मारे मेढकी, बेटा तीरंदाज़ | छोटे का बड़े से बढ़ जाना |
Lokoktiyan In Hindi FAQs –
लोकोक्तियाँ किसे कहते हैं ?
शब्दों का वह रूप जो किसी वाक्य के अर्थ को पूर्ण रूप से स्पष्ट करता है, उसे लोकोक्तियाँ कहते है। हमारे महापुरुषों, कवियोंएवं संतों के द्वारा कहे हुए कुछ ऐसे कथन, जो स्वतंत्र और आम बोलचाल की भाषा में बोले जाते है, इस कथनों के पीछे कोई-न-कोई घटना व कहानी होती है।
‘जैसा मुँह वैसा तमाचा का’ इस लोकोक्ति का हिंदी अर्थ क्या हैं ?
इस शब्द का अर्थ है, जैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
‘जिसकी लाठी उसकी भैंस‘ इस लोकोक्ति का हिंदी अर्थ क्या हैं ?
इस शब्द का हिंदी अर्थ है, शक्ति सम्पन्न आदमी अपना काम बना लेता है
‘बिल्ली के सपने में चूहा’ शब्द का लोकोक्ति अर्थ क्या होगा ?
इस शब्द का अर्थ है, जरूरतमंद को सपने में भी जरूरत की ही वस्तु दिखाई देती है।