दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं कि हिन्दी व्याकरण में प्रत्यय (Pratyay in Hindi Grammar) का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। और यह हिन्दी व्याकरण के मूल तत्वों में से है। आज हम आपको इस लेख में प्रत्यय से सम्बन्धित सभी जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं। जैसे कि प्रत्यय किसे कहते हैं, प्रत्यय की परिभाषा क्या है, प्रत्यय के कितने भेद और प्रकार होते हैं आदि। हिन्दी व्याकरण में आने वाले प्रत्ययों के विषय में अपना ज्ञान बढाने के लिये इस लेख को अन्त तक अवश्य पढें। इसके साथ साथ हमें व्याकरण में कई अन्य चीजों का ज्ञान भी दिया जाता है जैसे की – समास, वाक्य, आदि जैसी कई अन्य चीजें
प्रत्यय किसे कहते हैं?
सामान्य भाषा में प्रत्यय की परिभाषा– किसी शब्द के अन्त में प्रयुक्त होने वाले कारक हैं जिनसे कि शब्द का अर्थ और विशेषण अधिकांश रूप में बदल जाता है। दूसरे शब्दों में प्रत्यय वे शब्द होते हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ‘साथ में, पर बाद में‘ और अय का अर्थ होता है ‘चलने वाला‘, अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला।
प्रत्यय की परिभाषा
हिन्दी भाषा के व्याकरण में प्रत्यय एक महत्वपूर्ण और आवश्यक तत्व है। प्रत्यय की परिभाषा इस प्रकार है- प्रति’ और ‘अय’ दो शब्दों के मेल से ‘प्रत्यय’ शब्द का निर्माण हुआ है। ‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में, पर बाद में होता है । ‘अय’ का अर्थ होता है, ‘चलनेवाला’। इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ हुआ-शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश। अत: जो शब्दांश के अंत में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे- ‘बड़ा’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय जोड़ कर ‘बड़ाई’ शब्द बनता है। वे शब्द जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्ययकहते हैं। जैसे- गाड़ी + वान = गाड़ीवान, अपना + पन = अपनापन
यह भी देखें : जातिवाचक संज्ञा: परिभाषा और उदाहरण
प्रत्यय के भेद
हम जानते हैं कि हिन्दी की लिपि देवनागरी है जो कि संस्कृत भाषा की भी लिपि है। इसलिये संस्कृत भाषा में प्रयुक्त होने वाले अधिकांश प्रत्यय हिन्दी भाषा में भी प्रयोग किये जाते हैं। प्रत्यय के मुख्य रूप से दो भेद होते हैं –
- कृत प्रत्यय
- तद्धित प्रत्यय
कृत-प्रत्यय
कृत-प्रत्यय की परिभाषा -क्रिया अथवा धातु के बाद जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें कृत्-प्रत्यय कहते हैं । कृत्-प्रत्यय के मेल से बने शब्दों को कृदंत कहते हैं।
- अक = लेखक, नायक, गायक, पाठक
- अक्कड = भुलक्कड, घुमक्कड़, पियक्कड़
- आक = तैराक, लडाक
- तद्धित प्रत्यय
- संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगने वाले प्रत्यय को ‘तद्धित’ कहा जाता है। तद्धित प्रत्यय के मेल से बने शब्द को तद्धितांत कहते हैं।
तद्धित प्रत्यय के उदाहरण:
- लघु + त = लघुता
- बड़ा + आई = बड़ाई
- सुंदर + त = सुंदरता
- बुढ़ा + प = बुढ़ापा
- कृत प्रत्यय के प्रकार
- विकारी कृत्-प्रत्यय
- ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे शुद्ध संज्ञा या विशेषण बनते हैं।
अविकारी या अव्यय कृत-प्रत्यय
ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे क्रियामूलक विशेषण या अव्यय बनते है।
- विकारी कृत-प्रत्यय के भेद
- क्रियार्थक संज्ञा,
- कतृवाचक संज्ञा,
- वर्तमानकालिक कृदंत
- भूतकालिक कृदंत
कृदंत शब्द
- कर्तृवाचक- कर्तृवाचक कृत्-प्रत्यय उन्हें कहते हैं, जिनके संयोग से बने शब्दों से क्रिया करनेवाले का ज्ञान होता है।
जैसे-वाला, द्वारा, सार, इत्यादि। कर्तृवाचक कृदंत निम्न तरीके से बनाये जाते हैं-- क्रिया के सामान्य रूप के अंतिम अक्षर ‘ ना’ को ‘ने’ करके उसके बाद ‘वाला” प्रत्यय जोड़कर। जैसे-चढ़ना-चढ़नेवाला, गढ़ना-गढ़नेवाला, पढ़ना-पढ़नेवाला, इत्यादि
- ‘ ना’ को ‘न’ करके उसके बाद ‘हार’ या ‘सार’ प्रत्यय जोड़कर। जैसे-मिलना-मिलनसार, होना-होनहार, आदि।
- धातु के बाद अक्कड़, आऊ, आक, आका, आड़ी, आलू, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐत, ऐया, ओड़ा, कवैया इत्यादि प्रत्यय जोड़कर। जैसे-पी-पियकूड, बढ़-बढ़िया, घट-घटिया, इत्यादि
- गुणवाचक– गुणवाचक कृदंत शब्दों से किसी विशेष गुण या विशिष्टता का बोध होता है। ये कृदंत, आऊ, आवना, इया, वाँ इत्यादि प्रत्यय जोड़कर बनाये जाते हैं। जैसे-बिकना-बिकाऊ।
- कर्मवाचक– जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से कर्म का बोध हो, उन्हें कर्मवाचक कृदंत कहते हैं। ये धातु के अंत में औना, ना और नती प्रत्ययों के योग से बनते हैं। जैसे-खिलौना, बिछौना, ओढ़नी, सुंघनी, इत्यादि।
- करणवाचक– जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से क्रिया के साधन का बोध होता है, उन्हें करणवाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को करणवाचक कृदंत कहते हैं। अंत में नी, अन, ना, अ, आनी, औटी, औना इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर बनाये जाते हैं। जैसे- चलनी, करनी, झाड़न, बेलन, ओढना, ढकना, झाडू. चालू, ढक्कन, इत्यादि।
- भाववाचक – जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से भाव या क्रिया के व्यापार का बोध हो, उन्हें भाववाचक कृत्-प्रत्यय कहते हैं. क्रिया के अंत में आप, अंत, वट, हट, ई, आई, आव, आन इत्यादि जोड़कर भाववाचक कृदंत संज्ञा-पद बनाये जाते हैं।जैसे-मिलाप, लड़ाई, कमाई, भुलावा,
- क्रियाद्योतक– जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से क्रियामूलक विशेषण, संज्ञा, अव्यय या विशेषता रखनेवाली क्रिया का निर्माण होता है, उन्हें क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को क्रियाद्योतक कृदंत कहते हैं।
कृत-प्रत्यय
हिन्दी व्याकरण में कृत प्रत्यय की संख्या बहुत अधिक है। कृत-प्रत्ययों के योग से छह प्रकार के कृदंत बनाये जाते हैं। उदाहरण के लिये कुछ कृत प्रत्यय नीचे दिये जा रहे हैं।
कर्तृवाचक कृदंत
कर्तृवाचक कृदंत- क्रिया के अंत में आक, वाला, वैया, तृ, उक, अन, अंकू, आऊ, आना, आड़ी, आलू, इया, इयल, एरा, ऐत, ओड़, ओड़ा, आकू, अक्कड़, वन, वैया, सार, हार, हारा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से कर्तृवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं।
प्रत्यय | धातु | कृदंत रूप |
आक | तैरना | तैराक |
आका | लड़ना | लड़ाका |
आड़ी | खेलना | ख़िलाड़ी |
वाला | गाना | गानेवाला |
आलू | झगड़ना | झगड़ालू |
इया | बढ़ | बढ़िया |
इयल | सड़ना | सड़ियल |
ओड़ | हँसना | हँसोड़ |
ओड़ा | भागना | भगोड़ा |
अक्कड़ | पीना | पियक्कड़ |
सार | मिलना | मिलनसार |
क | पूजा | पूजक |
हुआ | पकना | पका हुआ |
गुणवाचक कृदन्त
क्रिया के अंत में आऊ, आलू, इया, इयल, एरा, वन, वैया, सार, इत्यादि प्रत्यय जोड़ने से गुणवाचक कृदन्त बनते हैं
प्रत्यय | क्रिया | कृदंत-रूप |
आऊ | टिकना | टिकाऊ |
वन | सुहाना | सुहावन |
हरा | सोना | सुन |
ला | आगे, पीछे | अगला, पिछला |
इया | घटना | घटिया |
एरा | बहुत | बहुतेरा |
वाहा | चराना | चरवाहा |
कर्मवाचक कृदंत
क्रिया के अंत में औना, हुआ, नी, हुई इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ने से बनते हैं ।
प्रत्यय | क्रिया | कृदंत-रूप |
नी | चाटना | चटनी |
औना | खेलना | खिलौना |
हुआ | पढना, लिखना | पढ़ा हुआ, लिखा हुआ |
हुई | सुनना, जागना | सुनी हुई जगी हुई |
करणवाचक कृदंत
क्रिया के अंत में आ, आनी, ई, ऊ, ने, नी इत्यादि प्रत्ययों के योग से करणवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं तथा इनसे कर्ता के कार्य करने के साधन का बोध होता है।
प्रत्यय | क्रिया | कृदंत-रूप |
आ | झुलना | झुला |
ई | रेतना | रेती |
ऊ | झाड़ना | झाड़ू |
न | झाड़ना | झाड़न |
नी | कतरना | कतरनी |
आनी | मथना | मथानी |
अन | ढकना | ढक्कन |
भाववाचक कृदंत
क्रिया के अंत में अ, आ, आई, आप, आया, आव, वट, हट, आहट, ई, औता, औती, त, ता, ती इत्यादि प्रत्ययों के योग से भाववाचक कृदंत बनाये जाते हैं तथा इनसे क्रिया के व्यापार का बोध होता है ।
प्रत्यय – क्रिया -कृदंत-रूप
अ – दौड़ना -दौड़
आ – घेरना – घेरा
आई – लड़ना- लड़ाई
आप- मिलना- मिलाप
वट – मिलना -मिलावट
हट – झल्लाना – झल्लाहट
ती – बोलना -बोलती
त – बचना -बचत
आस -पीना -प्यास
आहट – घबराना – घबराहट
ई – हँसना- हँसी
एरा – बसना – बसेरा
औता – समझाना – समझौता
औती मनाना मनौती
न – चलना – चलन
नी – करना – करनी
क्रियाद्योदक कृदंत
क्रिया के अंत में ता, आ, वा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से क्रियाद्योदक विशेषण बनते हैं. यद्यपि इनसे क्रिया का बोध होता है परन्तु ये हमेशा संज्ञा के विशेषण के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं-
प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
ता – बहना- बहता
ता – भरना – भरता
ता – गाना – गाता
ता – हँसना – हँसता
आ – रोना – रोया
ता हुआ – दौड़ना – दौड़ता हुआ
ता हुआ – जाना – जाता हुआ
तद्धित प्रत्यय
हिन्दी व्याकरण में तद्धित प्रत्यय के आठ भेद हैं, तद्धित प्रत्यय के आठों प्रकार की जानकारी उदाहरण सहित नीचे दी जा रही है।
- कर्तृवाचक
- भाववाचक
- ऊनवाचक
- संबंधवाचक
- अपत्यवाचक
- गुणवाचक
- स्थानवाचक
- अव्ययवाचक
कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय
संज्ञा के अंत में आर, आरी, इया, एरा, वाला, हारा, हार, दार, इत्यादि प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं । उदाहरण के तौर पर-
प्रत्यय | शब्द | तद्धितांत |
आर | सोना | सुनार |
आरी | जूआ | जुआरी |
इया | मजाक | मजाकिया |
वाला | सब्जी | सब्जीवाला |
हार | पालन | पालनहार |
दार | समझ | समझदार |
भाववाचक तद्धित प्रत्यय
संज्ञा या विशेषण में आई, त्व, पन, वट, हट, त, आस पा इत्यादि प्रत्यय लगाकर भाववाचक तद्धितांत संज्ञा-पद बनते हैं । इनसे भाव, गुण, धर्म इत्यादि का बोध होता है ।
प्रत्यय | शब्द | तद्धितांत |
त्व | देवता | देवत्व |
पन | बच्चा | बचपन |
वट | सज्जा | सजावट |
हट | चिकना | चिकनाहट |
त | रंग | रंगत |
आस | मीठा | मिठास |
ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय
संज्ञा-पदों के अंत में आ, क, री, ओला, इया, ई, की, टा, टी, डा, डी, ली, वा इत्यादि प्रत्यय लगाकर ऊनवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं। इनसे किसी वस्तु या प्राणी की लघुता, ओछापन, हीनता इत्यादि का भाव व्यक्त होता है।
प्रत्यय | शब्द | तद्धितांत रूप |
क | ढोल | ढोलक |
री | छाता | छतरी |
इया | बूढी | बुढ़िया |
ई | टोप | टोपी |
की | छोटा | छोटकी |
टा | चोरी | चोट्टा |
ड़ा | दु:ख | दुखडा |
ड़ी | पाग | पगडी |
ली | खाट | खटोली |
वा | बच्चा | बचवा |
सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय
संज्ञा के अंत में हाल, एल, औती, आल, ई, एरा, जा, वाल, इया, इत्यादि प्रत्यय को जोड़ कर सम्बन्धवाचक तद्धितांत संज्ञा बनाई जाती है
प्रत्यय | शब्द | तद्धितांत रूप |
हाल | नाना | ननिहाल |
एल | नाक | नकेल |
आल | ससुर | ससुराल |
औती | बाप | बपौती |
ई | लखनऊ | लखनवी |
एरा | फूफा | फुफेरा |
जा | भाई | भतीजा |
इया | पटना | पटनिया |
अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय
व्यक्तिवाचक संज्ञा-पदों के अंत में अ, आयन, एय, य इत्यादि प्रत्यय लगाकर अपत्यवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनायी जाती हैं । इनसे वंश, संतान या संप्रदाय आदि का बोध होता हे ।
प्रत्यय | शब्द | तद्धितांत रूप |
आ | वसुदेव | वासुदेव |
अ | मनु | मानव |
उ | कुरु | कौरव |
आयन | नर | नारायण |
एय | राधा | राधेय |
य | दिति | दैत्य |
गुणवाचक तद्धित प्रत्यय
संज्ञा-पदों के अंत में अ, आ, इक, ई, ऊ, हा, हर, हरा, एडी, इत, इम, इय, इष्ठ, एय, म, मान्, र, ल, वान्, वी, श, इमा, इल, इन, लु, वाँ प्रत्यय जोड़कर गुणवाचक तद्धितांत शब्द बनते हैं। इनसे संज्ञा का गुण प्रकट होता है-
प्रत्यय | शब्द | तद्धितांत रूप |
आ | भूख | भूखा |
अ | निशा | नैश |
इक | शरीर | शारीरिक |
ई | पक्ष | पक्षी |
ऊ | बुद्ध | बुद्द्धू |
हा | छूत | छुतहर |
एड़ी | गांजा | गंजेड़ी |
इत | शाप | शापित |
इमा | लाल | लालिमा |
इष्ठ | वर | वरिष्ठ |
ईन | कुल | कुलीन |
र | मधु | मधुर |
ल | वत्स | वत्सल |
वी | माया | मायावी |
श | कर्क | कर्कश |
स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय
संज्ञा-पदों के अंत में ई, इया, आना, इस्तान, गाह, आड़ी, वाल, त्र इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर स्थानवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं. इनमे स्थान या स्थान सूचक विशेषणका बोध होता है-
प्रत्यय | शब्द | तद्धितांत रूप |
ई | गुजरात | गुजरती |
इया | पटना | पटनिया |
गाह | चारा | चारागाह |
आड़ी | आगा | अगाड़ी |
त्र | सर्व | सर्वत्र |
त्र | यद् | यत्र |
त्र | तद | तत्र |
अव्ययवाचक तद्धित प्रत्यय
संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण पदों के अंत में आँ, अ, ओं, तना, भर, यों, त्र, दा, स इत्यादि प्रत्ययों को जोड़कर अव्ययवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं तथा इनका प्रयोग प्राय: क्रियाविशेषण की तरह ही होता है ।
प्रत्यय | शब्द | तद्धितांत रूप |
दा | सर्व | सर्वदा |
त्र | एक | एकत्र |
ओं | कोस | कोसों |
स | आप | आपस |
आँ | यह | यहां |
भर | दिन | दिनभर |
ए | धीर | धीरे |
ए | तडका | तडके |
ए | पीछा | पीछे |
यह भी देखें
संधि की परिभाषा और भेद
विशेषण किसे कहते हैं
सर्वनाम किसे कहते हैं
विराम चिन्ह : भेद (12), प्रयोग और नियम
व्यक्ति वाचक संज्ञा
तत्पुरुष समास: परिभाषा, भेद और उदाहरण
संज्ञा (Sangya) – परिभाषा, भेद और उदाहरण
जातिवाचक संज्ञा: परिभाषा और उदाहरण
प्रत्यय – परिभाषा, भेद और उदाहरण
लिंग की परिभाषा: भेद, उदाहरण और नियम
वचन की परिभाषा, भेद और प्रयोग के नियम
विशेषण – परिभाषा, भेद और उदाहरण
सर्वनाम – सर्वनाम के भेद, परिभाषा, उदाहरण
भाववाचक संज्ञा: परिभाषा और उदाहरण
वाक्य की परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण
संयुक्त वाक्य की परिभाषा एवं उदाहरण
अव्ययीभाव समास: परिभाषा, भेद और उदाहरण