दोस्तों हम जानते हैं कि हमारे देश भारत को आजादी दिलाने में हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बहुत बडी भूमिका रही है। देश को स्वाधीनता दिलाने में भारत के राष्ट्रीय आंदोलनों का अभूतपूर्व योगदान रहा है। भारत की आजादी के आंदोलनों का आरम्भ 1857 की क्रांति के साथ हुआ था औ अंत में महात्मा गांधी के भारत छोडो आंदोलन तक लगभग एक शताब्दी तक लगातार आंदोलनों का क्रम जारी रहा। इस लेख में हम आपको महत्वपूर्ण भारत छोड़ो आन्दोलन के बारे में बता रहे हैं। यह साल 1942 में शुरू हुआ था और महात्मा गांधी इस आंदोलन के केंद्र बिंदु थे। भारत छोडो आंदोलन को अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। भारत छोडो आंदोलन के बारे में पूरी जानकारी के लिये इस लेख को अन्त तक अवश्य पढें।
भारत छोड़ो आन्दोलन
भारत छोड़ो आन्दोलन स्वाधीनता की लडाई के आखिरी दिनों में शुरू किया गया आंदोलन था। साल 1942 में द्वितीय विश्व युद्व चल रहा था। द्वितीय विश्व युद्व में भारतीय फौजें भी ब्रिटिशर्स की ओर से जंग में उतर चुकी थीं। इसी दौरान 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के द्वारा अंग्रेजों को भारत से पूरी तरह से चले जाने और सम्पूर्ण स्वाधीनता की मांग को लेकर आंदोलन की शुरूआत की गयी थी। इसीलिये भारत छोडो आंदोलन को अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। उस समय में कांग्र्रेस के द्वारा प्रतिवर्ष कांग्रेस समीति की बैठक आमंत्रित की जाती थी जिसमें कि देशव्यापी मुद्दों पर चर्चा की जाती थी।
साल 1942 का अखिल भारतीय कांग्रेस समीति का अधिवेशन तत्कालीन बॉम्बे में होना था। महात्मा गांधी के द्वारा इसी अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरूआत की थी। गांधीजी के आवाहन पर यह आंदोलन पूरे देश में एक साथ शुरू किया गया। जैसा कि हम जानते हैं कि महात्मा गांधी अहिंसा में विश्वास रखते थे। तो यह आंदोलन भी एक प्रकार से सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में चलाया गया।
भारत छोड़ो आन्दोलन की पृष्ठभूमि
यह महात्मा गांधी के नेतृत्व में होने वाला स्वाधीनता का तीसरा बडा आंदोलन था। क्योकिं ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारत की स्वाधीनता के लिये प्रस्तावित क्रिस्प मिशन को भारतीय नेताओं के द्वारा नकार दिया गया था। क्योंकि द्वितीय विश्व युद्व चल रहा था और ब्रिटेन को भारत के समर्थन और भारतीय फौजों की आवश्यकता थी। इसलिये ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारत के आगे सैन्य समर्थन के बदले डोमिनियन स्टेट देने का प्रस्ताव रखा जिसे भारत ने नकार दिया। इसी बुनियाद पर महात्मा गांधी को यह समय अनुकूल मालूम हुआ और उन्होंने पूर्ण स्वतन्त्रता के इस आंदोलन को छेड दिया। इस आंदोलन का एक सिरा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से भी जुडता है।
आंदोलन का कारण
इंग्लैण्ड उस वक्त द्वितीय विश्व युद्व में उलझा हुआ था। यह देखकर नेताजी ने आजाद हिन्द फौज को दिल्ली चलो का मशहूर नारा दिया था। एक ओर से आजाद हिन्द फौज को दिल्ली आने के आदेश की सूचना पाकर महात्मा गांधी के द्वारा भी 8 अगस्त 1942 की शाम को ही देशवासियों के लिये करो या मरो का आदेश जारी किया और इस आंदोलन को भारत छोडो आंदोलन का नाम दिया गया।
आन्दोलन के तात्कालिक कारणों में से एक लाल बहादुर शास्त्री का गिरफ्तार होना भी रहा। 9 अगस्त 1942 को लाल बहादुर शास्त्री को गिरफ्तार कर लिया गया। जिससे कि कार्यकर्ताओं में विद्रोह की लहर और तेज हो गयी। इसके साथ ही हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ के द्वारा किये गये काकोरी कांड की स्मृृति में काकोरी काण्ड स्मृति दिवस भी 9 अगस्त को ही मनाया जाता था। इस स्मृति दिवस को मनाने की शुरूआत सरदार भगत सिंह के द्वारा की गयी थी। 9 अगस्त 1942 को बहुत बडी संख्या में नौजवान काकोरी काण्ड स्मृति दिवस को मनाने के लिये एकत्रित होते थे। इस कारण से भी गांधी जी ने 9 अगस्त का दिन ही भारत छोडो आंदोलन के लिये चुना था।
भारत छोडो आंदोलन में गिरफ्तारी और मौतें
गांधी जी के भारत छोडो आंदोलन की घोषणा करने के बाद ही अगली सुबह कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया था। और कांग्रेस के इरादों को भांपते हुये इसे ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा गैर कानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। और कांग्रेस पर कई तरह की पाबंदियां लागू कर दी गयी। भारतीय स्वाधीनता के समर्थक सभी बडे नेताओं को या तो गिरफ्तार कर लिया गया या नजरबंद कर दिया गया।
कांग्र्रेस वर्किंग कमेटी के डा राजेन्द्र प्रसाद को पटना जेल में नजरबन्द कर दिया गया और कमेटी के अन्य सभी सदस्यों को गुजरात के अहमदनगर के किले में नजरबन्द कर दिया गया। आधिकारिक आंकडों के अनुसार भारत छोडो आंदोलन में 940 लोग शहीद हुये। 1630 व्यक्ति घायल हुये। करीबन 18000 लोग नजरबन्द किये गये और 60229 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। यह आंकडे तत्काली ब्रिटिश सरकार की दिल्ली सेंट्रल असेम्बली में सरकार के द्वारा पेश किये गये थे।
आंदोलन का प्रभाव
भारत छोडो आंदोलन को एक जन आंदोलन के रूप में देखा जाता है। और सही मायनों मेें यह एक जन आंदोलन था भी। इस आंदोलन में लाखों आम हिन्दुस्तानी शामिल थे। भारतीय युवाओं ने भी इस आंदोलन में बढ चढकर हिस्सा लिया था। कई छात्रों ने अपनी कॉलेज की पढाई जारी रखने के बजाय भारत छोडो आंदोलन में शामिल होकर जेल जाने का रास्ता चुना और वे कई दिनों तक जेल में रहे भी। कहा जाता है कि जहां एक ओर इस आंदोलन के द्वारा अंग्रेजों का भारत छोडने का रास्ता साफ हुआ वहीं दूसरी ओर भारत के विभाजन की नींव भी इसी आंदोलन के दौरान पडने लगी थी। हुआ यूं कि गांधीजी के भारत छोडो आंदोलन के आवाहन के फौरन बाद ही गांधीजी समेत कांग्रेस के तमाम बडे और प्रभुत्व रखने वाले नेताओं को ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा नजरबन्द कर दिया गया था।
मुस्लिम लीग और विभाजन
इस दौरान मुस्लिम लीग को अपने पांव पसारने का मौका मिला और मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने अपना प्रभाव हर क्षेत्र में फैलाने का कार्य किया। खासकर पंजाब और सिंध प्रान्त में जहां तब तक मुस्लिम लीग का कोई खास वजूद नहीं था। कांग्रेस नेताओं के जेल में रहने के दौरान यह खाई और बढती चली गयी। साल 1944 में जब द्वितीय विश्व युद्व अपनी समाप्ति की ओर था तो ब्रिटिश हुकूमत ने कांग्रेस नेताओं को रिहा करना शुरू किया। इनमें गांधी भी शामिल थे।
रिहा होने के बाद गांधी ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच पैदा हुये इस फासले को पाटने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रहे। क्योंकि मुस्लिम लीग चाहता था कि कैबिनेट में मुस्लिमों के लिये आरक्षण की व्यवस्था की जाय और आम चुनावों में भी मुस्लिम लीग को कुछ सीटें दे दी जायें। वहीं कांग्रेस और अन्य नेता इसके पक्ष में नहीं थे। धीरे धीरे मुस्लिम लीग ने धार्मिक तौर पर अलग होने के विषय में विचार करना प्रारम्भ कर दिया और अंतत भारत दो मुल्कों के रूप में आजाद हुआ।
भारत छोड़ो आन्दोलन में जनता की भूमिका
भारत छोडो आंदोलन एक जन आंदोलन बन चुका था। और इसके परिणाम में अंग्रेज सरकार भारत की पूर्ण स्वराज की मांग को भी मान चुकी थी। उस वक्त में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार का होना भी एक कारण रहा क्योंकि लेबर पार्टी भारती की स्वतंत्रता की समर्थक मानी जाती थी। साल 1946 में भारत में विधान मंडल की सदस्यता के लिये नये सिरे से प्रांतीय विधान मंडल चुनाव कराये गये। इस चुनाव में जहां कांग्रेस पार्टी को भारी सफलता मिली वहीं मुस्लिम लीग को अपेक्षकृत सफलता हाथ नहीं लगी। हालांकि मुसलमानों के लिये आरक्षित सीटों के अतिरिक्त भी मुस्लिम लीग के द्वारा अपने प्रत्याशियों को अन्य सीटों से भी चुनाव में उतारा गया था।
जनता ने कांग्रेस का बढ चढकर समर्थन किया। जनता के इस चुनाव ने मुस्लिम लीग के अन्दर धार्मिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण को आधार दिया। इसी साल 1946 में कैबिनेट मिशन भारत आया। कैबिनेट मिशन ने कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के साथ मिलकर ऐसी संघीय व्यवस्था पर राजी करने का प्रयास किया जिसमें कि केन्द्र के अतिरिक्त राज्यों को भी सीमित स्वायत्ता का अधिकार दिया जाना था। मुस्लिम लीग की मांगों के कारण यह वार्ता विफल रही। इसके बाद मुस्लिम लीग के जिन्ना के द्वारा एक अलग मुस्लिम देश की स्थापना की मांग की गयी। अपनी मांग के समर्थन में जिन्ना ने प्रत्यक्ष आंदोलन की चेतावनी भी दी।
जिन्ना की इस कार्यवाही से लगभग पूरे देश में दंगे भडक गये। यह संघर्ष कलकत्ता से शुरू होकर दक्षिण बंगाल, बिहार, तत्कालीन संयुक्त प्रांत और पंजाब तक फैल गयी। कई जगह यह कार्यवाही खूनी संघर्ष में बदल गयी। इस हिंसा ने धार्मिक उन्माद का रूप ले लिया और कहीं हिन्दुओं को तो कहीं मुसलमानों को निशाना बनाया जाने लगा।
विभाजन की नींव
मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना की साम्प्रदायिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण के कारण भारत से अलग एक मुस्लिम देश की मांग की जा चुकी थी। साल 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय बनाकर भारत भेजा गया। माउंटबेटन ने यह विभाजन रोकने के लिये एक अंतिम प्रयास किया। और कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के साथ वार्ताओं का दौर शुरू हुआ। लेकिन माउंटबेटन की यह कोशिश भी विफल रही। इसी के साथ यह तय हो गया कि भारत को स्वतंत्रता तो दे दी जायेगी लेकिन भारत का विभाजन भी किया जायेगा।
इसके लिये 15 अगस्त का दिन तय किया गया। इस दिन भारत के विभिन्न हिस्सों में खुशियां मनायी गयी। और भारत ने आधिकारिक रूप में संविधान सभा की बैठकें चालू कर दीं। 15 अगस्त 1947 को परिणामस्वरूप भारत को आजादी दे दी गयी और साथ ही भारत का विभाजन भी कर दिया गया। भारत के उत्तरी हिस्से और पूर्वी हिस्से को भारत से अलग कर दिया गया और पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान नाम से एक नये देश की स्थापना की गयी।
स्वतंत्रता और विभाजन
भारत को स्वतंत्रता तो मिल चुकी थी लेकिन इसके लिये उसे बंटवारे की कीमत चुकानी पडी थी। बंटवारा होते ही पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान और भारत में खूनी संघर्ष ने जन्म लिया। धार्मिक और साम्प्रदायिक हिंसा में सबसे अधिक प्रभावित पंजाब और सिंध क्षेत्र रहा। इस हिंसा मे हजारों हिन्दू, मुस्लिम और सिख समुदाय के लोग मारे गये। लाखों लोग अपने घर से बेघर हो गये। और कई अन्य घायल हो गये।
कांग्रेस शुरूआत से ही बंटवारे के पक्ष में नहीं थी। गांधी जी भी भारत के बंटवारे को लेकर सहमत नहीं थे। बंटवारे के कारण हुयी धार्मिक हिंसा ने गांधी जी को बेहद दुखी कर दिया। गांधी जी ने स्वतंत्रता के किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया। गांधी जी ने अपना पूरा समय बंटवारे से पीडित लोगों की देखरेख में बिताया। वे अधिकांश समय अस्पतालों के चक्कर काटते रहे। इसके कुछ समय बाद गांधी ने देश को संबोधित किया और हिंदुओं और मुसलमानों से शांति की अपील की।
धर्म निरपेक्षता
विभाजन के बाद भी देश वासियों के मन से धार्मिक उन्माद और साम्प्रदायिक भेदभाव समाप्त नहीं हुआ था। इसे रोकने के लिये पंडित नेहरू के आग्रह पर कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित किया। इसके साथ ही संविधान सभा पर भी इस घटना का गहरा प्रभाव हुआ और अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों, धार्मिक और साम्प्रदायिक भेदभाव को कम करने के प्रस्ताव संविधान का हिस्सा बने। कांग्रेस का कहना था किपाकिस्तान में हालात जो रहें भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा जहाँ सभी नागरिकों को पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे तथा धर्म के आधार पर भेदभाव के बिना सभी को राज्य की ओर से संरक्षण का अधिकार होगा। कांग्रेस ने आश्वासन दिया कि वह अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों के किसी भी अतिक्रमण के विरुद्ध हर मुमकिन रक्षा करेगी।
भारत छोड़ो आन्दोलन-FAQ
महात्मा गांधी के द्वारा 8 अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन की घोषणा की गयी थी।
8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के द्वारा भारत छोडो आंदोलन की घोषणा की गयी थी। धीरे धीरे इस आंदोलन ने जन आंदोलन का रूप ले लिया। अगस्त माह की शुरूआत में घोषित होने के कारण इसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
भारत छोडो आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी के द्वारा किया गया था।