सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय – रचनाएँ, कविता और भाषा (Suryakant Tripathi Nirala)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी कविता के छायावाद युग के चार स्तम्भों में से एक है। आधुनिक युग के हिंदी साहित्य के विकास इनका विशेष योगदान है। वैसे तो इन्होंने बहुत सी कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे है लेकिन इनको विशेष रूप से विख्याति इनकी कविताओं के कारण मिली है। निराला जी एक कवि, कहानीकार, ... Read more

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Reported by Rohit Kumar

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी कविता के छायावाद युग के चार स्तम्भों में से एक है। आधुनिक युग के हिंदी साहित्य के विकास इनका विशेष योगदान है। वैसे तो इन्होंने बहुत सी कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे है लेकिन इनको विशेष रूप से विख्याति इनकी कविताओं के कारण मिली है। निराला जी एक कवि, कहानीकार, लेखक, उपन्यासकार होने के साथ-साथ संपादक भी थे। इनको प्रगतिवाद, प्रयोगवाद एवं नयी कविताओं का जनक माना जाता है। निराला जी हिंदी साहित्य के सूर्य है और इनकी प्रतिभा निराली है। आज हम जानेंगे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय – रचनाएँ, कविता और भाषा (Suryakant Tripathi Nirala). सूर्यकान्त त्रिपाठी के बारे में सभी जानकारी प्राप्त करने के लिए लेख को अंत तक पढ़े

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय - रचनाएँ, कविता और भाषा (Suryakant Tripathi Nirala)
Suryakant Tripathi Nirala ka Jivan parichay

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ एक कवि थे। यह छायावाद के प्रमुख प्रवर्तक भी माने जाते है। उनकी कविताओं के विषय में विविधता और नवीन प्रयोगो की बहुलता है। इनकी कविताओं में श्रृंगार, रहस्यवाद, प्रकृति वर्णन, राष्ट्र प्रेम होता है और साथ ही शोषण, वर्गभेद के विरुद्ध विद्रोह एवं दीन दुखियों के लिए सहानुभूति इनकी कविताओं में आपको देखने को मिल जाएगी।

प्रारम्भिक जीवन

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी 1896 ई० में बंगाल राज्य के माहिषादल रियासत के मेदिनीपुर गॉंव में हुआ था। इनके पिताजी का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी था जो उत्तरप्रदेश राज्य में उन्नाव जिले के गढ़कोला गॉंव के मूल निवासी थे किन्तु राजकीय सेवा में होने के कारण वे महिषादल में रहने लगे। उनकी माता जी का नाम रुकमणी था। जब निराला जी मात्र तीन वर्ष के थे तभी उनकी माता जी का स्वर्गवास हो गया था जिस कारण उनका प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों में बीता। और इनकी 20 वर्ष की आयु तक उनके पिता जी का भी देहांत हो गया है। महादेवी वर्मा जी इनकी मुँहबोली बहन थी जिन्होंने लगभग 40 वर्षों तक इनकी कलाई में राखी बाँधी थी।

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शिक्षा

Suryakant Tripathi Nirala जी की शिक्षा बंगाल से प्रारम्भ हुई थी ,वहाँ उन्होंने हाई स्कूल तक की ही पढाई की थी। जिसके बाद उन्होंने हिंदी, संस्कृत और बांग्ला भाषा का स्वतंत्र अध्ययन किया था। प्रारम्भ से ही उन्हें रामचरित्र मानस अत्यंत प्रिय थी। वे हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा में निपूर्ण थे।ये स्वामी विवेकानंद, रविंद्र नाथ टैगोर और रामकृष्ण परमहंस के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थे। उनकी संगीत में भी विशेष रूचि थी। जिस प्रकार निराला जी छायावाद के चार स्तम्भों में से एक एक उसी प्रकार छायावाद का एक स्तम्भ महान कवि जयशंकर प्रसाद को भी माना जाता है।

वैवाहिक जीवन

13 वर्ष की आयु में उनका विवाह रायबरेली के पंडित रामदयाल की पुत्री मनोहरा देवी से हो गया था। मनोहरा देवी सुंदर और शिक्षित कन्या थी साथ ही उनको संगीत का भी ज्ञान था। अपनी पत्नी के कहने पर ही निराला जी ने हिंदी सीखी। जिसके बाद उन्होंने बांग्ला भाषा के अलावा हिंदी में भी कविता लिखनी शुरू कर दी।

बचपन से ही निराश जीवन के बाद उन्होंने अपनी पत्नी के साथ कुछ साल सुख के व्यतीत किये। किन्तु ये सुख ज्यादा लम्बे समय तक नहीं चला और प्रथम युद्ध में फैली महामारी के कारण उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी। इनका एक पुत्र और एक पुत्री थी जिसका नाम सरोज थी। पुत्री की शादी के बाद उसके पति की मृत्यु हो गयी और सरोज विधवा हो गयी। कुछ समय बाद सरोज की भी मृत्यु हो गयी। ये घटना Suryakant Tripathi Nirala जी के दिल पर घर कर गयी। जिसके बाद उन्होंने अपनी पुत्री की याद में सरोज स्मृति नामक काव्य संग्रह भी लिखा।

साथ ही वे आर्थिक विषमताओं से भी घिर गए। उनके ऊपर पुरे परिवार की जिम्मेदारी थी और अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए एक नौकरी पर्याप्त नहीं थी। निराला जी के जीवन की विशेष बात ये थी कि उन्होंने कभी अपने सिद्धांत नहीं त्यागे। आर्थिक संघर्षों के बाद भी उन्होंने अपना साहस नहीं गवाया। और नौकरी के साथ-साथ साहित्य क्षेत्र में भी कार्य करते रहे।

परिवारीरक विपत्तिया

बचपन से ही इनका जीवन कठिनाई के बीच बीता सर्वप्रथम इनकी माता जी इनको छोड़कर स्वर्ग लोक सिधार गयी थी। आर्थिक परेशानियाँ तो इनके जीवन में थी ही साथ ही ये अनेक प्रकार के सामाजिक, साहित्यिक संघर्षों को झेलते रहे लेकिन इन्होंने कभी अपने लक्ष्य को नीचे नहीं रखा। पिताजी के भी असामयिक निधन के बाद पुरे परिवार की जिम्मेदारी इन्हीं पर आ गयी थी। इन्फ्लुएंजा महामारी के कारण कुनबे के बहुत से सदस्य भी चल बसे। वे परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी के चलते अपने मार्ग पर चलते रहे। इन सब परिस्थितियों से चलते इनके दार्शनिक क्षमता का विकास हुआ।

कार्य क्षेत्र

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी की पहली नियुक्ति महिषादल में जी हुई थी जहाँ उन्होंने 1918 से 1922 तक नौकरी की थी। उसके बाद वे स्वतंत्र लेखन, संपादन, एवं अनुवाद कार्य क्षेत्र को ओर तत्पर हुए। 1923 में कलकत्ता से प्रकाशित समन्वय का संपादन किया। 1923 में ही अगस्त महीने में उन्होंने मतवाला के संपादक मंडल में कार्य करना प्रारम्भ किया। जिसके बाद गंगा पुस्तक कार्यालय जो लखनऊ में था वहाँ उनकी नियुक्ति हुई। वहाँ वे उस संस्था की मासिक पत्रिका सुधा से 1935 तक जुड़े रहे।

1935 से 1940 तक का समय उन्होंने लखनऊ में ही व्यतीत किया। 1942 से अंतिम यात्रा तक का समय इन्होंने इलाहाबाद में ही बिताया। वहीं इन्होंने अनुवाद और लेखन का कार्य किया।

रोचक तथ्य

  • इनकी पहली कविता जन्मभूमि 1920 में प्रभा मासिक पत्र में प्रकाशित हुई थी।
  • इनका पहला कविता संग्रह अनामिका 1923 में प्रकाशित हुआ था।
  • इनका पहला निबंध बंग भाषा का उच्चारण 1920 में मासिक पत्र सरस्वती में प्रकाशित हुआ था।
  • 1930 में परिमल काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ था।
  • साहित्य साधना में लीन निराला जी ने रामकिशन मिशन के पत्र समन्वय का संपादन किया।
  • 1933 मतवाला का भी संपादन किया। जिसके बाद ही उनका उपनाम निराला रखा गया। मतवाला में ही उनका नाम निराला छपा था।

भाषा

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Suryakant Tripathi Nirala जी छायावादी के एक सफल कवि है। जिन्होंने तत्सम प्रधान शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। निराला जी का दृष्टिकोण भाषा के विषय में थोड़ा उदार रहा है। यदि कुछ जगहों पर वे समास बहुल संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करते तो अन्य जगहों पर वे सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते थे। अनुप्रास, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, उपमा आदि अलंकारों का उचित प्रयोग उनके काव्यों में देखा जा सकता है।निराला जी ने सम्पूर्ण काव्य मुक्त छंद में ही लिखा है। यही कारण है कि निराला जी को मुक्त छंद का प्रवर्तक माना जाता है। इनकी भाषा शैली सरल और मुहावरेदार है। उन्होंने परिमार्जित साहित्यिक खड़ी बोली में रचनाएँ भी की है।

रचनाएँ

निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने साहित्य की विविध विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी की एवं अनेक रचनाओं का निर्माण किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ कुछ इस प्रकार है :-

काव्य ग्रन्थ

  • अनामिका (1923)
  • परिमल (1930)
  • गीतिका (1936)
  • तुलसीदास (1939)
  • आराधना
  • अनामिका द्वितिय (राम की शक्तिपूजा, सरोज स्मृति) (1939)
  • कुकुरमुत्ता (1942)
  • अणिमा (1943)
  • बेला (1946)
  • नए पत्ते (1946)
  • अर्चना (1950)
  • आराधना (1953)
  • गीत गूंज (1954)

गद्य संग्रह

  • लिली (1934)
  • सखी (1935)
  • सुकुल की बीवी (1941)
  • चतुरी चमार (1945)
  • देवी (1948)

उपन्यास

  • अप्सरा (1931)
  • अल्का (1933)
  • प्रभावती (1936)
  • निरुपमा (1936)
  • कुल्ली भाट (1939)
  • बिल्लेसुर बकरिहा (1942)
  • चोट की पकड़ (1946)
  • काले कारनामे (1950)
  • चमेली
  • इन्दुलेखा
  • तकनीकी

निबंध

  • रविंद्र कविता कानन (1929)
  • प्रबंध पद्म (1934)
  • प्रबंध प्रतिमा (1940)
  • चाबुक (1942)
  • चयन (1957)
  • संग्रह (1963)

पुराण कथाएं

  • महाभारत (1939)
  • रामायण की अंतरकथाएं (1956)

नाटक

  • शकुंतला
  • दुर्गेश नंदिनी

बाल कथाएँ

  • भक्त ध्रुव (1926)
  • भक्त पहलाद (1926)
  • भीष्म (1926)
  • महाराणा प्रताप (1927)
  • सीखभरी कहानिया (1969)

सामाजिक कविताएँ

  • भिक्षुक
  • विधवा
  • वह तोड़ती पत्थर
  • सखी वसंत आया

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की प्रसिद्ध कविता

वह तोड़ती पत्थर

देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत-नयन, प्रिय-कर्म-रत मन।
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार-
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार | (1)

चढ़ रही थी धूप
गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप,
उठी झुलसाती हुई लू,
रुई ज्यो जलती हुई भू
गर्द चिनगी छा गयी
प्राय: हुई दुपहर-
वह तोड़ती पत्थर | (2)

देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्न-तार
देख कर कोई नहीं
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार |
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा –
“मैं तोड़ती पत्थर” | ( 3)

मौन

बैठ लें कुछ देर
आओ,एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप,निर्द्वन्द ।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से सम्बंधित प्रश्न उत्तर

निराला जी की अंतिम कविता कौनसी थी ?

निराला जी की अंतिम कविता “संध्याकाकली” है जिसको अनामिका में ही संग्रहित कर दिया गया था।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की मृत्यु कब हुई थी ?

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 में इलाहबाद उत्तरप्रदेश में हुई थी।

आधुनिक युग के छायावाद कविता के चार स्तम्भ कौन है ?

आधुनिक युग के छायावाद कविता के चार स्तम्भ सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा और सूर्यकलंत त्रिपाठी निराला है।

मनोहरा देवी शादी से पहले कहाँ की निवासी थी ?

मनोहरा देवी शादी से पहले रायबरेली जिले के डायमंड गॉंव में रहती थी।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को पद्मभूषण की उपाधि कब दी गयी थी ?

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को मरणोपरांत पद्मभूषण की उपाधि दी गयी थी।

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