आज के समय में बेरोजगारी शब्द एक ऐसा शब्द है जिसे लगभग सभी पढ़ने लिखने वाले बच्चे तक जानते होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि ये समस्या काफी लम्बे समय से चली आ रही है। ये एक ऐसी समस्या है जिससे अब जल्द से जल्द निजात पाने का प्रयास करना होगा। इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से बेरोजगारों के लिए रोजगार के अवसर विकसित करने का प्रयास कर रही है। लेकिन बावजूद इसके सरकार के ये प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। इसलिए अब आवश्यक हो चूका है कि सभी मिलकर Unemployment जैसी इस समस्या का हल ढूंढें। इस लेख में भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंध के रूप में चर्चा देखें।
प्रस्तावना
भारत में बेरोजगारी की समस्या एक गंभीर मुद्दा है जिसका सामना देश की बड़ी जनसंख्या को करना पड़ रहा है। बेरोजगारी के कई कारण हैं और इसके परिणाम समाज पर व्यापक असर डालते हैं। कारणों की बात करें तो, भारत में बेरोजगारी की एक प्रमुख वजह शिक्षा और कौशल की कमी है। बहुत से युवा शिक्षा की पूरी सुविधा नहीं प्राप्त कर पाते, जिससे उन्हें नौकरी के अवसर मिलने में कठिनाई होती है। इसके अलावा, तकनीकी और व्यावसायिक कौशल की कमी भी बेरोजगारी में योगदान देती है।
आर्थिक विकास की धीमी गति और उद्योगों का अपर्याप्त विकास भी बेरोजगारी में बढ़ोतरी का कारण है। बढ़ती जनसंख्या और उसके अनुपात में नौकरी के अवसरों का न होना इस समस्या को और भी गंभीर बनाता है। बेरोजगारी के परिणाम समाज पर गहरे असर डालते हैं। इससे गरीबी बढ़ती है, अपराध दर में वृद्धि होती है, और सामाजिक असंतोष उत्पन्न होता है। युवाओं में निराशा और अवसाद की समस्या भी बढ़ती है।
इस समस्या का समाधान करने के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार, कौशल विकास के कार्यक्रम, और उद्योगों का विकास आवश्यक है। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर नई नौकरी के अवसर सृजित करने होंगे और युवाओं को उनके कौशल के अनुसार रोजगार प्रदान करने के लिए पहल करनी होगी। यह एक जटिल समस्या है, लेकिन सही नीतियों और प्रयासों से इसका समाधान संभव है।
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बेरोजगारी (Unemployment) क्या है ?
सीधे शब्दों में कहें तो बेरोजगारी वो स्थिति है जब आप के पास योग्यता होने के बावजूद कोई रोजगार न हो। या इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि जब किसी व्यक्ति के पास योग्यता हो और वो व्यक्ति रोजगार करने के लिए इच्छुक हो लेकिन बावजूद उसे रोजगार न मिले तो इसे बेरोजगारी कहा जाएगा। बेरोजगारों की श्रेणी में सिर्फ उन्हीं व्यक्तियों को रखा जाएगा जो निम्नलिखित शर्तों को पूरा करते हैं –
- काम या रोजगार करने हेतु योग्यता / पात्रता रखते हों।
- कार्य करने हेतु इच्छुक हों।
- वर्तमान मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार हों।
ऊपर बतायी गयी परिस्थितियों के तहत आने वाले व्यक्ति जिन्हें रोजगार न मिल रहा हो, उन्हें ही बेरोजगार की श्रेणी में रखा जा सकता है। जबकि वो व्यक्ति जो इनमें से कोई भी एक को पूरा नहीं करता वो बेरोजगार की श्रेणी में नहीं आएगा। जैसे कि यदि कोई व्यक्ति योग्यता नहीं रखता या फिर योग्य हो लेकिन वो इच्छुक न हो, तो ऐसे में भी उसे बेरोजगारों में नहीं गिना जाएगा। इसके अतिरिक्त यदि कोई व्यक्ति किसी बीमारी के चलते रोजगार हेतु योग्य न हो, बुजुर्ग, बच्चे, विद्यार्थी आदि इनसे बाहर रखा जाता है।
बेरोजगारी के प्रकार
दिन प्रतिदिन बढ़ती बेरोजगारी के चलते समाज में बहुत से युवाओं व अन्य वर्ग के लोगों में अवसाद और हताशा की स्थिति बनी हुई है। बेरोजगारी विभिन्न प्रकार की होती है। जिसके बारे में आप इस लेख में आगे पढ़ सकते हैं -तकनीकी बेरोजगारी, ऐच्छिक बेरोजगारी, अनैच्छिक बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी, संघर्षात्मक बेरोजगारी, संरचनात्मक बेरोजगारी, चक्रीय बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी, खुली बेरोजगारी, छिपी बेरोजगारी। आइए अब सभी तरह की बेरोजगारी में से कुछ के बारे में संक्षिप्त में जानकारी प्रदान कर रहे हैं –
तकनीकी बेरोजगारी
तकनीकी बेरोजगारी से अर्थ है – वो बेरोजगारी जो कि तकनीकी परिवर्तनों के चलते होती है। यानी किसी तकनीक में हुए परिवर्तन की वजह से बेरोजगारी जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाए वो ही तकनीकी बेरोजगारी कही जाती है। इसे आप इस उदाहरण के साथ समझ सकते हैं कि आज के समय में अधिक आर्थिक लाभ के लिए लोग श्रम के स्थान पर मशीनों का इस्तेमाल करने लगे हैं। खासकर के स्वचालित मशीनों की वजह से ये बेरोजगारी की प्रक्रिया और भी तेज हो चुकी है। क्योंकि मशीन ही अब लोगों का काम कर लेती हैं। साथ ही एक बार की लागत में काफी मुनाफा भी हो जाता है।
शिक्षित बेरोजगारी
शिक्षित बेरोजगारी खासकर उन लोगों से संबंधित होती है जो यूँ तो सामान्य रूप से पढ़े लिखे होते हैं। इस प्रकर की बेरोजगारी में दोनों प्रकार की बेरोजगारी आती है – खुली बेरोजगारी और अल्प बेरोजगारी। कुछ शिक्षित बेरोजगार पूर्ण रूप से बेरोजगार होते हैं। यानी उन्हें कोई काम नहीं मिलता। जबकि कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें रोजगार प्राप्त तो होता है परन्तु वो उनकी शिक्षा या योग्यता के अनुसार नहीं होता। ऐसे सभी बेरोजगार अल्प बेरोजगार की श्रेणी में आते हैं।
मौसमी बेरोजगारी
मौसमी बेरोजगारों वो होती जब कोई व्यक्ति वर्ष में सिर्फ कुछ विशेष समयावधि के दौरान ही रोजगार प्राप्त करता है। उदाहरण के लिए हम कृषि को ले सकते हैं। यदि कोई किसान एक ही फसल की खेती करता है तो वो बाकी के महीने बेरोजगार रहता है।
खुली / अनैच्छिक बेरोजगारी
अनैच्छिक बेरोजगारी या खुली बेरोजगारी, बेरोजगारी की वो स्थिति है जब कोई व्यक्ति लिए योग्य हो और इच्छुक भी हो लेकिन उसे रोजगार न मिले। ऐसी बेरोजगारी लगभग सभी क्षेत्रों में मिल जाती है।
चक्रीय बेरोजगारी
इस प्रकार की बेरोजगारी (चक्रीय बेरोजगारी) तब देखने को मिलती है जब अर्थव्यवस्था में चक्रीय ऊँच-नीच आती है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं जैसे तेजी, आर्थिक सुस्ती, आर्थिक मंदी तथा पुनरुत्थान चार अवस्थाएं या चक्र है। जिनके आधार पर बेरोजगारी निर्भर करती है। जैसे कि आर्थिक तेजी के समय आर्थिक क्रिया भी उच्च स्तर पर होती है और इसलिए रोजगार भी अच्छा होता है। और जैसे ही इसमें कमी आती है इसका असर लोगों के रोजगार पर पड़ता है।
छिपी बेरोजगारी
छिपी बेरोजगारी वो होती है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी योग्यता और क्षमता से कम का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त जहां किसी कार्य के लिए सीमित सदस्य की आवश्यकता हो लेकिन उसी कार्य हेतु निर्धारित संख्या से अधिक हो तो इस परिस्थिति में छिपी बेरोजगारी को देख सकते हैं।
बेरोजगारी के प्रभाव
गरीबी की वृद्धि : बेरोजगारी के बढ़ने से समाज में गरीबी का स्तर बढ़ जाता है। सामान्य तौर पर बेरोजगार व्यक्तियों के लिए आय का कोई साधन न होने पर उनके मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में संकट उत्पन्न हो जाता है। इससे न सिर्फ गरीबी बढ़ती बल्कि इससे होने वाले नुकसान भी इसमें जुड़ जाते हैं।
सामाजिक अराजकता व समस्याओं में बढ़ोतरी : जब मनुष्य अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आय का कोई साधन प्राप्त करने में सक्षम नहीं होता तो ऐसे में वो अनैतिक कार्यों की तरफ अग्रसर होता है। जिससे समाज में असुरक्षा आ जाती है और साथ ही दिन प्रतिदिन अपराधों में बढ़ोतरी हो जाती है। जैसे की चोरी, डकैती, अपहरण बेईमानी शराबखोरी जुआ आदि ऐसे अनेक अपराध है जो बेरोजगारी की वजह से बढ़ जाते हैं।
मानवीय संसाधनों की हानि : बेरोजगारी में वृद्धि होना अर्थात मानवीय संसाधनों की हानि है। जैसे की यदि रोजगारों की कमी है तो ऐसे में युवाओं और योग्यता रखने वाले व्यक्तियों का श्रम व प्रतिभा का नुकसान हो जाता है। देश की आर्थिकी में बढोत्तरी लाने के लिए ये आवश्यक है कि ज्यादा से ज्यादा व्यक्तियों की रचनात्मकता और श्रम का उपयोग किया जाए। और उन्हें रोजगार प्रदान कराया जाए।
औद्योगिक संघर्ष – बेरोजगारी के प्रकारों में से एक है संघर्षात्मक बेरोजगारी। बेरोजगारी के चलते औद्योगिक संघर्ष उत्पन्न हो जाते हैं। श्रमिक और मालिकों के मध्य होने वाले इस संघर्षों के चलते बेरोजगारी का स्तर बढ़ता ही चला जाता है। इसका प्रभाव फिर देश में कम उत्पादन और बढ़े हुए दामों के रूप में देखने को मिलते हैं।
शोषण में वृद्धि : बेरोजगारी के चलते कार्य करने वाले श्रमिकों कर्मचारियों का शोषण किया जाता है। उन्हें कम मजदूरी या कम वेतन दिया जाता है और साथ ही प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कार्य करना होता है। इसके अतिरिक्त उन्हें उनके योग्यता के अनुसार कार्य भी नहीं मिलता जिससे उनकी कार्यकुशलता भी प्रभावित होती है।
राजनीतिक अस्थिरता – इसका एक प्रभाव राजनीतिक अस्थिरता भी हो सकती है। कार्य न मिलने पर बेरोजगारों के मन में आक्रोश पनपता है। जिसे वो कई बार सरकार के खिलाफ नारे बाजी, विरोध जताते हैं। इसमें तोड़ फोड़, पुतले जलना, पब्लिक प्रॉपर्टी का नुकसान करना आदि शामिल होते हैं जिससे बहुत से लोगों का नुकसान होता है और साथ ही इसका प्रभाव सरकार भी पड़ता है। और वो जनता का भरोसा खो देती है।
बेरोजगारी (Unemployment) का निवारण
हमने अभी तक बेरोजगारी और समाज पर उसके दुष्प्रभावों के बारे में जाना। आइये अब जानते हैं कि बेरोजगारी से निजात पाने के लिए हम कौन से कदम उठा सकते हैं।
- भारत सरकार ने देश में व्याप्त बेरोजगारी को खत्म करने के लिए बहुत सी योजनाओं को शुरू किया है। यही नहीं ये योजनाएं केंद्र से लेकर राज्य स्तर तक शुरू की गयी हैं।
- विभिन्न पोर्टलों के जरिये इन योजनाओं के बारे में सभी बेरोजगारों को इनके बारे में आधिकारिक सूचना प्रदान की जाती है। इसलिए आवश्यक है कि इस संबंध में जनता को सूचित किया जाए।
- इसके अतिरिक्त देश में बहुत सी समस्या हैं जिनके चलते बेरोजगारी के स्तर में बढ़ोतरी हो रही है। जैसे कि – बढ़ती जनसंख्या।
- यदि जनसंख्या कण्ट्रोल किया जाए तो बेरोजगारी पर भी काबू पाया जा सकता है।
- स्वरोजगार से संबंधित विभिन्न योजनाएं हैं। और अब समय है की इन्हें समझकर सभी लोग स्वरोजगार शुरू करें और दूसरों को भी रोजगार प्रदान करें।
- सरकार द्वारा शुरू की गयी योजनाओं का उपयोग करें। आर्थिक सहायता लेकर अपना कार्य शुरू करें।
- शिक्षा सिर्फ डिग्री के लिए न हो। उसे पूर्ण करने के लिए प्रैक्टिकल ज्ञान होना भी आवश्यक है।
बेरोजगारी से संबंधित प्रश्न उत्तर
बेरोजगारी क्या है ?
बेरोजगारी का आशय उस स्थिति से है जब कोई व्यक्ति जीविकोपार्जन हेतु रोजगार करने का इच्छुक हो। लेकिन उसे रोजगार न मिल रहा हो। इसे ही बेरोजगारी कहते हैं।
बेरोजगारी के क्या कारण हैं ?
बेरोजगारी की समस्या के पीछे बहुत से कारण हैं जिनमें से कुछ हैं – जनसंख्या में असीमित वृद्धि और रोजगार के अवसरों में उस के आधार में वृद्धि नहीं हो पाती। त्रुटिपूर्ण आर्थिक नियोजन, अधिक मात्रा में कार्यों हेतु यंत्रों का प्रयोग, अशिक्षा आदि ऐसे बहुत से अन्य कारण हैं जिसके वजह से आज के समय में बेरोजगारी बहुत हद तक बढ़ गयी है।
बेरोजगारी से क्या नुकसान हैं ?
बेरोजगारी के चलते बहुत से नुकसान हैं। जैसे कि – बेरोजगारी के चलते व्यक्ति मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाता, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति आत्महत्या, चोरी डकैती व अन्य ऐसे कृत्य करने लगते हैं, जो समाज के लिए हानिकारक होते हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिक विघटन और सामुदायिक विघटन जैसी समस्या भी आती है। साथ ही इससे देश का विकास पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
भारत में बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है?
इसका मतलब यह है कि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है, अर्थव्यवस्था रोजगार की माँगो को पूरा नहीं कर पाती है और लोगों की बढ़ती हुई हिस्सेदारी को काम नहीं मिल पाता है।
बेरोजगारी कितने प्रकार की होती है ?
बेरोजगारी के अनेक प्रकार है जैसे – ऐच्छिक बेरोजगारी, अनैच्छिक बेरोजगारी, संघर्षात्मक बेरोजगारी, सरंचनात्मक बेरोजगारी, चक्रीय बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी, तकनीकी बेरोजगारी, खुली बेरोजगारी, छिपी बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी
आज इस लेख / निबंध के माध्यम से हम ने आप को बेरोजगारी से संबंधित अन्य बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारी दी है। उम्मीद है कि आप को ये निबंध उपयोगी लगा होगा। यदि आप ऐसे ही अन्य लेख व निबंध पढ़ना चाहते हैं तो आप हमारी वेबसाइट Hindi NVSHQ पर विजिट कर सकते है।