आधुनिक इतिहास में भारत में सिख धर्म की स्थापना विश्व की एक महत्वपूर्ण घटना है। भारत में सिख धर्म को बडे आदर और पवित्रता के साथ देखा जाता है। आज के इस लेख में हम आपको बतायेंगे कि सिख धर्म का उदय कैसे हुआ, सिख धर्म का इतिहास (HISTORY OF SIKHISM) और सिख धर्म के दस गुरुओं के नाम (Shikh Guru Name List ) क्या हैं. इसके बारे में भी आपको हम बताने जा रहे हैं। सिख धर्म के बारे में अधिक जानने के लिये इस लेख को पूरा अवश्य पढें।
सिख धर्म का इतिहास (History of Sikhism)
Shikhism-सिख धर्म की नींव डालने का श्रेय गुरू नानक देव जी को दिया जाता है। वे ही सिखों के पहले गुरू माने जाते हैं। 15 वीं शताब्दी में गुरू नानक ने सिख परंपरा की शुरूआत की थी। सिख का अर्थ शिष्य से है। इसी गुरू शिष्य की परंपरा से ही सिख पंथ अपने अस्तित्व मे आया। गुरू नानक के सिख परंपरा की स्थापना के बाद इस धर्म में नौ गुरू और हुये। गुरू गोविन्द सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरू हुये और उनके द्वारा गुरू परंपरा को समाप्त करते हुये गुरू ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरू मानते हुये गुरू परंपरा को समाप्त कर दिया था। गुरू गोविन्द सिंह ने ही खालसा पंथ और सिख धर्म को उसका वर्तमान स्वरूप दिया। आईये जानते हैं सिखों के सभी दस गुरूओं के बारे में-
सिख धर्म के दस गुरुओं के नाम (Shikh Guru Name List)
- गुरू नानक देव (Guru Nanak)
- गुरू अंगद देव (Guru Angad Dev)
- गुरू अमर दास (Guru Amar Das)
- गुरू राम दास (Guru Ram Das)
- गुरू अर्जन देव (Guru Arjan Dev)
- गुरू हरगोविन्द (Guru Har Govind Singh)
- गुरू हर राय (Guru Har Rai)
- गुरू हर किशन (Guru Har Kishan)
- गुरू तेग बहादुर (Guru Teg Bahadur)
- गुरू गोविन्द सिंह (Guru Govind Singh)
गुरू नानक देव
- गुरू नानक सिख परंपरा की स्थापना करने वाले सिखों के पहले गुरू थे। गुरू नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब में हुआ था। रावी नदी के किनारे तलवंडी गांव में नानक का जन्म हुआ। बाद में इस गांव का नाम उनके नाम पर ननकाना रख दिया गया। इनके पिता का नाम मेहता कालूचंद खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था।
- गुरू नानक ने ही पहले आदि ग्रंथ की रचना की थी।
- साल 1507 ई से साल 1539 तक नानकशाह गुरू गद्दी पर रहे।
- करतारपुर साहिब में गुरू नानक की समाधि स्थित है।
- अपनी मृत्यु से पूर्व नानक ने अपने ही एक शिष्य, भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी चुन लिया था। यही भाई लहना आगे चलकर गुरू अंगद देव के नाम से जाने गये।
गुरू अंगद देव
- भाई लहना जो कि बाद में चलकर गुरू अंगद देव के नाम से विख्यात हुये और सिख धर्म के दूसरे गुरू बने। गुरू अंगद देव का जन्म 31 मार्च 1504 ई को पंजाब प्रान्त के फिरोजपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम फेरू जी और माता का नाम रामो देवी था। इनके पिता एक व्यापारी थे। जो जगह जगह घूमकर व्यापार किया करते थे।
- गुरू नानक के सिख धर्म की स्थापना करने के पश्चात युवा भाई लाहन नानक के सम्पर्क में आये और उनके शिष्य बन गये।
- शिष्य के तौर पर इन्होंने गुरू नानक की बहुत सेवा की। गुरू नानक ने ही इन्हें अंगद का नाम दिया था। करतारपुर में नानक के अंतिम समय में गुरू अंगद जी उनके साथ ही थे।
- गुरू अंगद देव को पंजाबी भाषा की लिपि गुरूमुखी की शुरूआत करने का श्रेय भी दिया जाता है।
- अपनी मृत्यु से पूर्व गुरू नानक ने अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी चुनने की घोषणा की थी।
- गुरू अंगद देव जी साल 1539 ई से साल 1552 तक गुरू की पदवी पर आसीन रहे।
गुरू अमर दास
- गुरू अमर दास जी सिखों के तीसरे गुरू थे। इन्हें सिख धर्म के एक महान प्रचारकों में गिना जाता है। जिन्होंनें गुरू नानक की परम्पराओं को बखूबी आगे बढाने का कार्य किया।
- गुरू अमर दास जी का जन्म 15 मई 1479 ई को पंजाब प्रान्त के बसर्के गांव में हुआ था। यह स्थान आज भारत के पंजाब राज्य में स्थित है जिसे कि अमृतसर के नाम से जाना जाता है।
- इनके पिता का नाम तेजभान भल्ला और माता का नाम बख्त कौर था।
- गुरू अमर दास ने अपने जीवन काल में कई भजनों की रचना की, जिन्हें कीरत या कीर्तन में गाया जाता है। आनंद कारज भी इन्हीं में से एक है। जिसे कि विवाह के अवसर पर गाये जाने की परंपरा आज भी है।
- गुरू अमर दास ने अमृतसर में एक भव्य गुरूद्वारे का निर्माण कार्य शुरू किया। इसे हरिमंदिर साहिब के नाम से जाना जाने लगा। लेकिन वह इसका निर्माण पूरा नहीं कर सके।
- बाद में सिखों के अन्य गुरूओं और तत्कालीन महाराजा रणजीत सिंह के योगदान से इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ। आज इसे स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है।
- स्वर्ण मंदिर सिखों का सबसे पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है।
- गुरू अमर दास का गुरूकाल साल 1552 ई से 1574 ई तक रहा। गुरू अमर दास जी ने अपने गुरूकाल में सिख धर्म के प्रचार प्रसार के लिये 22 गद्दियों की भी स्थापना की थी।
गुरू राम दास
- सिख धर्म के चौथे गुरू राम दास जी हुये। इनके बचपन का नाम जेठा था। गुरू रामदास जी का जन्म 24 सितम्बर 1534 ई को वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था।
- इनके पिता का नाम हरि दास और माता का नाम अनूप देवी था। बेहद कम उम्र में ही जेठा के माता पिता की मृत्यु हो गयी।
- इसके बाद जेठा अपनी दादी के साथ एक दूसरे स्थान पर बस गये जहां इनकी मुलाकात गुरू अमर दास से हुयी। गुरू से मुलाकात के बाद वह उनके शिष्य बन गये और उनका नाम राम दास हुआ।
- गुरू राम दास ने अमर दास की पुत्री बीबी भानी से शादी की थी। इस शादी से उनके तीन पुत्र हुये। इनके नाम थे पृथ्वी चंद, महादेव और अर्जन देव।
- गुरू राम दास एक प्रसिद्व कवि भी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कई भजन और सूत्र लिखे। वर्तमान गुरू ग्रंथ साहिब में भी लगभग 600 से अधिक भजन गुरू राम दास जी के लिखे हैं।
- गुरू राम दास को साल 1574 ई में सिख धर्म का चौथा गुरू बनाया गया। वे अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। अपने गुरूकाल में गुरू राम दास ने एक पवित्र शहर रामसर को बसाया। जिसे आज अमृतसर के नाम से जाना जाता है।
- गुरू राम दास ने अपने सबसे छोटे बेटे अर्जन देव को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। इसके कारण उन पर परिवारवाद के भी आरोप लगे।
गुरू अर्जन देव या अर्जुन देव
- अर्जन देव सिखों के पांचवे गुरू थे। इन्हें इनके पिता गुरू राम दास ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर चुना था। गुरू अर्जन देव सिख धर्म के लिये अपने प्राणों का बलिदान देकर शहीद होने वाले पहले सिख गुरू थे।
- गुरू जी का जन्म 25 अप्रैल 1563 ई को गुरू राम दास के तीसरे और सबसे छोटे पुत्र के रूप में गोइंदवाल साहिब में हुआ था।
- गुरू अर्जन देव को बेहद आध्यात्मिक गुरू माना जाता है। वे एक महान गुरू होने के साथ साथ एक बेहद विपुल कवि भी थे। सिखों के सबसे पवित्र ग्रंथ गुरू ग्रंथ साहिब में एक तिहाई से अधिक भाग गुरू अर्जन देव के द्वारा ही लिया गया है।
- गुरू अर्जन देव ने ही सिखों के प्रसिद्व तीर्थ स्थल स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया गया था।
- तत्कालीन क्रूर मुगल शासक जहांगीर ने गुरू अर्जन देव को इस्लाम कबूल करने के लिये कई यातनायें दी। लेकिन गुरू जी ने अपना धर्म छोडना स्वीकार नहीं किया।
- अंत में मुगलों की यातनायें सहते हुये गुरू अर्जन देव ने 9 जून 1606 ई को धर्म के लिये अपनी शहादत दे दी।
गुरू हरगोविन्द सिंह
- गुरू हरगोविन्द सिखों के छठवें गुरू हुये। इन्हें छठवां नानक भी कहा जाता है। इनका जन्म वर्ष 1595 ई में अमृतसर के निकट वडाली गुरू नाम के गांव में हुआ था।
- गुरू हरगोविन्द सिंह पांचवे गुरू अर्जन देव के पुत्र थे। अपने पिता की जहांगीर के द्वारा हत्या के बाद हरगोविन्द मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में गुरू बन गये थे।
- गुरू हरगोविन्द सिंह के द्वारा ही हरमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त की स्थापना की थी।
- अकाल तख्त को ही वर्तमान में सिख समुदाय से जुडे सभी जरूरी निर्णय लेने का अधिकार है।
- गुरू हरगोविंद जी की तीन पत्नियां थी। दामोदरारी, नानकी और महादेवी।
- उन्होंने सिख सेना को संगठित किया और करतारपुर के युद्व में भी भाग लिया था। अपने जीवनकाल में गुरू हरगोविंद सिंह ने मुगलों के खिलाफ कई लडाईयां लडी।
- गुरू हरगोविंद सिंह अपने साथ दो तलवार रखते थे। जिन्हें वह आध्यात्म और भौतिक जगत के प्रतीक के रूप में रखा करते थे।
- साल 1606 ई से 1644 तक हरगोविंद जी सिखों के गुरू रहे।
गुरू हर राय
- गुरू हर राय सिखों के सातवें गुरू थे। गुरू परंपरा में हर राय को एक महान आध्यात्मिक गुरू के साथ साथ एक राष्ट्रवादी चिंतक के रूप में भी याद किया जाता है। 16 जनवरी 1630 को पंजाब के कीरतपुर रोपड में गुरू हर राय का जन्म हुआ था। सत्ता पाने के लिये मुगल संघर्ष के दौरान गुरू हर राय ने दार शिकोह को शरण दी और उसका उपचार भी किया था। माना जाता है कि इस कारण से उन्हें जहर दे दिया गया था। जिससे उनकी मौत हो गयी। गुरू हर राय के साहित्य के बारे में प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। अपना अन्त समय नजदीक देखकर गुरू हर राय ने अपने सबसे छोटे बेटे हर किशन को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया और गुरू गद्दी उसे सौंप दी। गुरू हर किशन की आयु उस समय मात्र 5 वर्ष की थी। गुरू हर राय ने लगभग 17 वर्षों तक गुरू गद्दी संभाली।
गुरु हर किशन
- सिखों के आठवें गुरू हर किशन हुये। उनके पिता के द्वारा मात्र 5 वर्ष की उम्र में ही उन्हें गुरू नियुक्त कर दिया गया था। इस प्रकार गुरू हर किशन 7 अक्टूबर 1661 को गद्दी पर बैठने वाले सबसे कम उम्र के गुरू बन गये थे। गुरू हर किशन का जन्म 7 जुलाई 1656 को कीरतपुर साहिब में हुआ था। इनकी माता का नाम किशन कौर था। प्रसिद्व धर्मगुरू रामराय इनके बडे भाई थे। राम राय को सिख धर्म के विरूद्व आचरण करने और मुगलों के पक्ष में खडे होने के कारण पंथ से निष्कासित कर दिया गया था।
- गुरू हर किशन ने अपना अधिकतर समय दिल्ली में बिताया। उन दिनों दिल्ली में हैजा और छोटी माता का भयंकर प्रकोप हुआ। गुरू जी ने बिना भेदभाव के सभी लोगों की इस दौरान सेवा की। बीमारी से पीडित लोगों की सेवा करते करते वह स्वयं भी बीमारी से पीडित हो गये। अपनी मृत्यु को निकट देखते हुये उन्होंने अपनी माता को अपने उत्तराधिकारी के बारे में जानकारी देने के लिये बुलाया। उत्तराधिकारी के तौर पर इन्होंने बाबा बकाला का नाम लिया। उस वक्त बकाला गांव में रह रहे गुरू तेग बहादुर सिखों के अगले गुरू बने।
गुरू तेग बहादुर
- गुरू तेग बहादुर का नाम गुरू पंरपरा में बडे आदर के साथ लिया जाता है। यह सिखों के छठे गुरू हरगोविंद सिंह के पुत्र थे। इनका जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर में हुआ था। यह युद्व कला में निपुण थे। इनकी तलवारबाजी में महारत के कारण ही इनका नाम तेग बहादुर रखा गया। अपने नाम के ही अनुसार वे बेहद वीरता से मुगलों के खिलाफ लडते रहे। गुरू तेग बहादुर को उनके नेक कामों के लिये याद किया जाता है। उन्होंने लोगों के लिये कई धर्मशालाएं बनवायी, कुंये खुदवाये और अनेकों परोपकारी कार्य किये। जब मुगल जबरदस्ती कश्मीर के पण्डितों और सिखों को मुसलमान बनाने लगे तो गुरू तेग बहादुर ने इसके खिलाफ जमकर संघर्ष किया। जब मुगल बादशाह ने इन्हें मुसलमान बनाना चाहा तो गुरू ने कहा कि वह शीश कटा सकते हैं लेकिन केश नहीं कटवा सकते। मुगल बादशाह ने उन्हें कई प्रकार की यातनायें दी। और अन्त में गुरू तेग बहादुर का सिर कटवा दिया। आज भी हर साल 24 नवंबर को उनकी याद में शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
गुरु गोबिन्द सिंह
- सिख पंथ को आधिकारिक रूप से एक धर्म के रूप में स्थापित करने का श्रेय सिखों के दसवें गुरू गोविंद सिंह को दिया जाता है। उन्होंने किसी जीवित गुरू की परंपरा के स्थान पर गुरू ग्रंथ साहिब की एक गुरू के रूप में स्थापना की। इस प्रकार गुरू गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरू हुये। 12 जनवरी 1666 को गोविंद सिंह का जन्म पटना में हुआ था। इस स्थान पर वर्तमान में पटना साहिब गुरूद्वारा स्थापित है। गुरू गोविंद सिंह ने सिख सेना को और अधिक मजबूती प्रदान की और कई युद्व भी लडे। इसी के साथ उन्होंने सिखों के लिये अनिवार्य पंच ककार की शुरूआत भी की। यह पंच ककार हैं केश, कडा, कंघा, कच्छ और कृपाण। गुरू गोविंद सिंह ने गुरू ग्रंथ साहिब की पाण्डुलिपि को अंतिम रूप दिया और घोषणा की कि उनके बाद गुरू ग्रंथ साहिब ही सिखों का नेतृत्व करेगी। उन्होंने खालसा पंथ और सिख धर्म को उसका वर्तमान स्वरूप प्रदान किया।
सिख धर्म के गुरुओं से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQ
गुरू नानक देव, गुरू अंगद देव, गुरू अमर दास, गुरू राम दास, गुरू अर्जन देव, गुरू हरगोविन्द, गुरू हर राय, गुरू हर किशन, गुरू तेग बहादुर और गुरू गोविन्द सिंह सिखों के दस धर्म गुरू हैं।
गुरू नानक देव सिखों के पहले गुरू हैं।
गुरू गोविन्द सिंह सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरू थे.
गुरू गोविन्द सिंह के बाद गुरू परंपरा में गुरू ग्रन्थ साहिब को गुरू के तौर पर स्थापित किया गया था। वर्तमान में भी गुरू ग्रन्थ साहिब ही सिखों के गुरू की गद्दी पर रखी जाती है।
सिखों की गुरू परंपरा में दसवें और आखिरी गुरू गोविन्द सिंह थे।