हिन्दू धर्म में पौराणिक कथाओं और उनसे जुडी जगहों का बेहद ही खास महत्व रहा है। और जब बात शक्तिपीठ की आती है तो करोडों भारतीयों में इन शक्तिपीठों में अगाध श्रद्वा और भक्ति की भावना देखी जाती है। इस लेख में हम आपको भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित 51 शक्तिपीठों (51 Shakti Peeth) की जानकारी उनके नाम और अन्य सभी विवरणों के साथ देने जा रहे हैं। शक्तिपीठ के बारे में अधिक जानकारी के लिये इस लेख को पूरा अवश्य पढें।
शक्तिपीठ (Shakti Peeth) क्या हैं ?
धार्मिक मान्यता है कि माता सती जी के अंग धरती में जिस जिस स्थान पर गिरे, वहां शक्तिपीठों (Shakti Peeth) की स्थापना की गयी। इन शक्तिपीठों में अलग अलग रूपों में देवी सती की पूजा की जाती है। माता सती और शक्तिपीठों के सन्दभ में एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है।
शक्तिपीठों का पौराणिक महत्व और कथा
हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सती के शरीर के विभिन्न हिस्सों से इन शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था। पौराणिक कथा का विवरण इस प्रकार है कि – माता सती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। माता सती के पिता दक्ष प्रजापति थे। दक्ष प्रजापति ब्रहमा जी के मानस पुत्र और सभी प्रजापतियों में प्रमुख थे। इन्हें देवताओं के द्वारा सम्मान प्राप्त था। एक बार भववान शंकर दक्ष प्रजापति के आगमन पर उनके सम्मान में खडे नहीं हुये। दक्ष प्रजापति को यह देखकर अहंकारवश बडा क्रोध आया। वे मन ही मन भगवान शिव से द्वेष रखने लगे।
इसके बाद दक्ष प्रजापति ने एक बहुत बडे यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ का नाम बृहस्पति सर्व था। अपने इस विराट और विशाल यज्ञ में दक्ष ने सभी देवी देवताओं, ब्रहमा, विष्णु आदि समस्त लोकों के देवताओं को आमंत्रित किया था। किन्तु अपने दामाद भगवान शंकर को द्वेष के कारण दक्ष ने जान बूझकर यज्ञ का निमंत्रण नहीं दिया। जब माता सती को इस बात का पता चला तो वे अपने मायके दक्ष प्रजापति के यहां जाने को तैयार हुयी। भगवान शिव के मना करने पर भी माता सती ने कनखल की ओर प्रस्थान किया, जहां कि प्रजापति का विशाल यज्ञ हो रहा था।
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कनखल आकर माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से भगवान शंकर को निमंत्रण नहीं देने के बारे में पूछा तो दक्ष प्रजापति ने भरी सभा में भगवान शिव का अपमान किया और उन्हें अपशब्द भी कहे। माता सती अपने पति का यह अपमान सह न सकी और यज्ञ की आग में जलते हुये अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये।
इधर भगवान शंकर को जब सारे घटनाक्रम की जानकारी हुयी तो उन्हें भयंकर क्रोध आया। इसी क्रोध में उनका तीसरा नेत्र खुल गया। अत्यंत क्रोध में भगवान शिव ने अपने सिर से एक जटा उखाडी और उसे जमीन पर पटक दिया। भगवान शिव की इस जटा से महाप्रलयंकारी वीरभद्र का जन्म हुआ। भगवान ने रौद्र रूप के वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने और अहंकारी दक्ष प्रजापति का वध करने का आदेश दिया। वीरभद्र अन्य गणों के साथ कनखल गये और पूरे यज्ञ को नष्ट करके तहस नहस कर दिया। वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का सिर धड से अलग कर दिया। अन्त में भगवान शिव स्वयं यज्ञस्थल में प्रकट हुये और माता सती के पार्थिव शरीर को उठाकर अत्यंत पीडा में इधर उधर भटकने लगे।
भगवान शिव माता सती के पार्थिव शरीर को उठाकर भीषण विध्वंसक तांडव करने लगे। भगवान के इस प्रकार से तांडव करने से चारों ओर महा प्रलय होने लगी और तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। समस्त चराचर और तीनों लोकों को प्रलय में समाता देखकर भगवान विष्णु ने सृष्टि को बचाने के लिये अपना सुदर्शन चक्र छोडकर माता सती के शरीर को काट दिया। भगवान विष्णु के चक्र से माता सती के शरीर के 52 टुकडे हो गये। ये 52 हिस्से धरती पर जिस जिस स्थान पर गिरे वे शक्तिपीठ कहलाये। कालान्तर में भगवान शिव का क्रोध शान्त हुआ। मान्यता है कि अगले जन्म में माता सती ने पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव से विवाह किया।
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देवी मां सती के 51 प्रमुख शक्तिपीठ (51 Shakti Peeth)
माता सती को समर्पित सभी 51 शक्ति पीठ (51 Shakti Peeth) भारतीय उपमहाद्वीप में ही स्थित हैं। अलग अलग स्थानों में माता के शरीर के अलग अलग हिस्सों के गिरने के कारण इनके नाम भी इसी अनुसार पडे। सभी शक्तिपीठों (Shakti Peeth) में भिन्न भिन्न शक्तियों के रूप में माता की पूजा अर्चना और भक्ति की जाती है। देवी सती के साथ महादेव भी भैरव के रूप में विराजमान रहते हैं। आइये जानते हैं कौन कौन से स्थानों पर माता के अंग गिरे थे और कौन सा शक्तिपीठ कहां स्थित है।
क्रम संख्या | स्थान | शरीर का अंग अथवा आभूषण | शक्ति अथवा रूप | रक्षित भैरव |
1 | हिंगलाज माता मंदिर, बलूचिस्तान प्रांत, पाकिस्तान | ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का सिर गिरा था। गुफा रूप में स्थित इस मंदिर में माता विग्रह के रूप में विराजमान है। मंदिर की विशेषता है कि यहां किसी भी प्रकार का दरवाजा नहीं है। | कोट्टरी रूप | भीमलोचन भैरव |
2 | नैना देवी मंदिर, बिलासपुर हिमाचल प्रदेश | हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित इस शक्तिपीठ की मान्यता है कि यहां माता सती के आंख गिरी थी। इस कारण इसे नयना या नैना देवी के नाम से जाना जाता है। | महिषासुर मर्दिनी स्वरूप | क्रोधीश भैरव |
3 | वृंदावन, मथुरा के पास उत्तर प्रदेश | बाल | उमा स्वरूप | भूतेश भैरव |
4 | अरासुरी अम्बाजी मंदिर, गुजरात-राजस्थान की सीमा पर | ऐसी मान्यता है कि यहां माता सती के ह्दय का कुछ भाग गिरा था। मंदिर का रंग उजला सफेद होने के कारण इसे धौला गढवाली माता के नाम से भी जाना जाता है। बेहद प्राचीन इस मंदिर का धार्मिक आस्थावान लोगों में बहुत महत्व है। | अम्बाजी स्वरूप | बटुक भैरव |
5 | गुह्येश्वरी माता मंदिर, काठमांडू, नेपाल | माना जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्या अंग गिरा था। यह स्थान बागमती नदी के तट पर प्रसिद्व पशुपतिनाथ मंदिर के समीप स्थित है। तंत्र मंत्र में इस स्थान की बहुत मान्यता है। इस कारण यहां अधिकांश संख्या में तांत्रिक दिखायी पडते हैं। | महाशिरा स्वरूप | कपाली भैरव |
6 | नीलांचल पर्वत पर कामगिरी, गुवाहटी, असम | यह स्थान सभी शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां माता की महामुद्रा योनि कुण्ड की पूजा होती है। तन्त्र मन्त्र और योग साधना के लिये यह सिद्व स्थान है। | आद्यशक्ति, महाभैरवी ,कामाख्या, कौमारी स्वरूप | महाभैरव उमानंद भैरव |
7 | कुरूक्षेत्र, हरियाणा | इस क्षेत्र में देवी सती के पांव की एडी का भाग गिरा था। यहां देवी सावित्री के रूप में विराजमान रहती हैं। | सावित्री स्वरूप | स्थाणु भैरव |
8 | कालीपीठ, कालीघाट, कोलकाता | यहां माता सती के दायें पैर का अंगूठा गिरा था। यहां माता की कालिंका के रूप में पूजा होती है। | कालिका स्वरूप | नकुलीश भैरव |
9 | कुमारी पहाडी, तारा तेरणी, उडीसा | कुमारी पहाडी के उपर माता सती का बांया स्तन गिरा था। इस स्थान को तारने वाला अर्थात तारिणी कहा जाता है। माता सती की यहां तारा देवी के रूप में पूजा की जाती है। | तारा देवी स्वरूप | शिव भैरव |
10 | विमला देवी मंदिर, पुरी, उडीसा | माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती की नाभि गिरी थी। इस स्थान में माता विमला रूप में विराजमान हैं। यह मंदिर द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक जगन्नाथ महादेव क्षेत्र में ही स्थित है। | विमला स्वरूप | जगन्नाथ भैरव |
11 | करवीर पुर, कोल्हापुर, महाराष्ट्र | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर माता सती का त्रिनेत्र गिरा था। | महिषासुरमर्दनी महालक्ष्मी स्वरूप | क्रोधीश भैरव |
12 | श्रीपर्वत, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर | लद्दाख के सुदूर उत्तरी क्षेत्र में माता सती के दांये पांव की पायल गिरी थी। यहां माता सुंदरी के रूप में विराजमान हैं। | श्री सुंदरी स्वरूप | सुन्दरानन्द भैरव |
13 | विशालाक्षी मंदिर, वाराणसी | इस स्थान पर माता सती के दाहिने कान की मणि गिरी थी। इसी कारण से इसे मणिकर्णिका भी कहा जाता है। यहां की शक्ति विशालाक्षी है। और भैरव काल भैरव हैं। | विशालाक्षी स्वरूप | काल भैरव |
14 | गोदावरी नदी के तट पर, आंध्र प्रदेश | मान्यता है कि यहां माता सती का गर्भ गिरा था। यह शक्तिपीठ ज्योर्तिलिंग मल्लिकार्जुन क्षेत्र के समीप ही स्थित है। | श्रीशैले भ्रमरम्बिका स्वरूप | शम्बरानंद भैरव, मल्लिकार्जुन |
15 | विरजा क्षेत्र, उत्कल, उडीसा | इस स्थान पर देवी सती की नाभि गिरी थी। | विमला स्वरूप | जगन्नाथ भैरव |
16 | दाक्षायणी माता मंदिर, मानसा, मानसरोवर, तिब्बत | माता सती का दांया हाथ गिरने के कारण इस स्थान को दाक्षायनी कहा जाता है। माता यहां दाक्षायनी रूप में विराजमान हैं। तथा माता की दांयी भुजा की पूजा यहां की जाती है। | दाक्षायनी स्वरूप | अमर भैरव |
17 | महामाया मंदिर, पहलगाम, कश्मीर | कहा जाता है कि माता सती के गले का हिस्सा पहलगाम के उत्तरी भाग में गिरा था। यहां देवी के महामाया स्वरूप की पूजा होती है। | महामाया स्वरूप | त्रिसंध्येश्वर भैरव |
18 | ज्वालामुखी माता मंदिर, कांगडा, हिमाचल प्रदेश | सभी शक्तिपीठों में से जागृत शक्तिपीठ इसे माना जाता है। यहां माता सती की जीभ गिरी थी। यह सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला शक्तिपीठ माना जाता है। यहां अखण्ड ज्योति जलती रहती है। जिस कारण इसे ज्वाला मुखी अथवा ज्वालपा भी कहा जाता है। | ज्वालपा (अंबिका) स्वरूप | उन्मत्त भैरव |
19 | माता त्रिपुरमालिनी, जालंधर, पंजाब | इस स्थान पर माता सती का बांया वक्ष गिरा था। | त्रिपुरमालिनी स्वरूप | भीषण भैरव |
20 | वैद्यनाथ धाम, झारखंड | इस स्थान पर माता सती के हृदय का हिस्सा निपात हुआ था। | शक्ति स्वरूपिणी | बैद्यनाथ या बैजनाथ |
21 | गंडकी माता मंदिर, गंडक नदी तट, पोखरा, नेपाल | इस स्थान पर माता सती के मस्तक के कुछ हिस्से के गिरने की मान्यता है। | गंडकी चंडी स्वरूप | चक्रपाणि भैरव |
22 | बहुला माता मंदिर, अजेय नदी का तट, वर्धमान, पश्चिम बंगाल | बायां हाथ | देवी बाहुला स्वरूप | भीरुक भैरव |
23 | मांगल्य माता मंदिर, उज्जयिनी, पश्चिम बंगाल | दायीं कलाई | मंगल चंद्रिका स्वरूप | कपिलांबर भैरव |
24 | माता त्रिपुरसुंदरी, त्रिपुरा | दायां पैर | त्रिपुर सुंदरी स्वरूप | त्रिपुरेश भैरव |
25 | मां भवानी मंदिर, छत्राल, चटगांव, बांग्लादेश | दांयी भुजा | भवानी स्वरूप | चंद्रशेखर भैरव |
26 | माता भ्रामरी मंदिर, त्रिस्रोता, जलपाईगुडी, पश्चिम बंगाल | बायां पैर | भ्रामरी स्वरूप | अंबर भैरव |
27 | माता ललिता देवी, प्रयागराज संगम तट, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश | हाथ की अंगुली | ललिता स्वरूप | भव भैरव |
28 | माता जयंती, जयंतिया पहाडी, असम | बायीं जंघा | जयंती स्वरूप | क्रमादीश्वर भैरव |
29 | युगाद्या, माता भूतधात्री, वर्धमान, पश्चिम बंगाल | दायें पैर का अंगूठा | जुगाड्या स्वरूप | क्षीर खंडक भैरव |
30 | कन्याश्रम, कन्याश्री, माता कन्याकुमारी, तमिलनाडु | कहा जाता है कि यहां पर माता सती की पीठ का हिस्सा गिरा था। इस स्थान को मनोकामना पूर्ण करने वाले शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। | श्रवणी स्वरूप | निमिष भैरव |
31 | मणिबंध, अजमेर, राजस्थान, माता गायत्री | दो पहुंचियां | गायत्री स्वरूप | सर्वानंद भैरव |
32 | श्रीशैल, महालक्ष्मी, बांग्लादेश | गला | महालक्ष्मी स्वरूप | शंभरानंद भैरव |
33 | कांची, देवगर्भा, बीरभूम, पश्चिम बंगाल | अस्थि | देवगर्भ स्वरूप | पिंगल भैरव |
34 | पंचसागर, वाराही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश | निचला दाड़ | वाराही स्वरूप | महारुद्र भैरव |
35 | करतोयातट, अपर्णा, शेरपुर, बांग्लादेश | बायां पायल | अर्पण स्वरूप | वामन भैरव |
36 | विभाष, मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल, कपालिनी | बायीं एड़ी | कपालिनी (भीमरूप) स्वरूप | शर्वानंद भैरव |
37 | सोन नदी के तट पर, कालमाधव, अमरकंटक, मध्य प्रदेश | बायां नितंब | काली स्वरूप | असितांग भैरव |
38 | नर्मदा नदी का तट, माता शोणाक्षी, अमरकंटक, मध्य प्रदेश | दायां नितंब | नर्मदा स्वरूप | भद्रसेन भैरव |
39 | रामगिरी, चित्रकूट, माता शिवानी, चित्रकूट धाम, उत्तर प्रदेश | दायां वक्ष | शिवानी स्वरूप | चंदा भैरव |
40 | शुचितीर्थम, माता नारायणी, कन्याकुमारी, तमिलनाडु | ऊपरी दाड़ | नारायणी स्वरूप | संहार भैरव |
41 | सोमनाथ मंदिर प्रभास क्षेत्र, माता चंद्रभागा, जूनागढ, गुजरात | आमाशय | चंद्रभागा स्वरूप | वक्रतुंड भैरव |
42 | शिप्रा नदी का तट, भैरव पर्वत, माता अवंती, उज्जैन, मध्य प्रदेश | इस स्थान पर माता सती का ओष्ठ गिरा था। द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकालेश्वर के समीप ही यह शक्तिपीठ स्थित है। | महाकाली स्वरूप | भैरव लम्बकर्ण या महाकाल भैरव |
43 | जनस्थान, माता भ्रामरी, नासिक, महाराष्ट्र | माता सती की ठुड्डी नासिक के इस स्थान पर गिरी थी। भंवरों से घिरी होने के कारण इसे भ्रामरी कहा जाता है। और माता को भ्रामरी के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर में शिखर नहीं है। | भ्रामरी, शाकम्बरी स्वरूप | विकृताक्ष भैरव |
44 | रत्नावली, कुमारी, हुगली जिला, पश्चिम बंगाल | दायां स्कंध | कुमारी स्वरूप | शिवा भैरव |
45 | माता उमा महादेवी, मिथिला, भारत नेपाल सीमा, जनकपुर | बायां स्कंध | उमा स्वरूप | महोदर भैरव |
46 | नालहाटी, कालिंका, वीरभूम, पश्चिम बंगाल | पैर की हड्डी | कलिका देवी स्वरूप | योगेश भैरव |
47 | सुरकुट पर्वत, माता सुरकंडा, टिहरी गढवाल, उत्तराखण्ड | ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का सिर धड से अलग होकर गिरा था। यहां माता की दुर्गा के रूप में पूजा होती है। | दुर्गा स्वरूप | आकाशी भैरव |
48 | विराट नगर, माता अंबिका, भरतपुर, राजस्थान | बायें पैर की अंगुली | अंबिका स्वरूप | अमृतेश्वर भैरव |
49 | कर्णाट, जयादुर्गा माता, कांगडा, हिमाचल प्रदेश | दोनों कान | जयदुर्गा स्वरूप | अभिरु भैरव |
50 | माता सुनंदा, शिखरपुर, बांग्लादेश | नासिका | सुनंदा स्वरूप | त्रयंबक भैरव |
51 | पटना, सर्वानंदकारी, पटना, बिहार | दाहिनी जांघ | सर्वानंद कारी देवी दुर्गा स्वरूप | व्योमकेश भैरव |
जागृत शक्तिपीठ
इनके साथ ही आदिगुरू शंकराचार्य के द्वार 9 जागृत शक्तिपीठ भी बताये गये हैं। जो कि शक्तिपीठों में अपना एक अलग महत्व रखते हैं-
- काली माता कलकत्ता
- हिंगलाज भवानी पाकिस्तान
- शाकम्भरी देवी सहारनपुर
- विंध्यवासिनी शक्तिपीठ (Shakti Peeth), मिर्जापुर उत्तर प्रदेश
- चामुण्डा देवी हिमाचल प्रदेश
- ज्वालामुखी हिमाचल प्रदेश
- कामाख्या देवी असम
- हरसिद्धि माता उज्जैन
- छिन्नमस्तिका माता मंदिर रामगढ, झारखण्ड
Shakti Peeth से सम्बन्धित प्रश्न
तंत्र चूडामणि के अनुसार शक्तिपीठों की कुल संख्या 52 है। किन्तु इनमें से 51 शक्तिपीठों (51 Shakti Peeth) को ही प्रमुख माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान विष्णु के द्वारा माता सती के शरीर को विभिन्न हिस्सों में काटा गया तो वे हिस्से धरती पर गिरे। धरती पर जहां भी यह अंग गिरे वहां शक्तिपीठ (Shakti Peeth) का निर्माण हुआ। शक्तिपीठों की कुल संख्या 51 है।
आदिगुरू शंकराचार्य के द्वारा अपने भारत भ्रमण के दौरान देवी के शक्तिपीठों और पवित्र स्थानों में से 9 स्थानों को चुना और इन्हें जागृत शक्तिपीठ कहा। जागृत का अर्थ है कि जहां देवी अपनी जागृत शक्ति के साथ विराजमान है।