इतिहास में जब भी महान शासकों की बात आती है तो आपने राणा कुम्भा का नाम तो अवश्य सुना होगा क्योंकि यह महान शासक के रूप में जाने जाते है। ये एक अच्छे शासक थे साथ ही यह बहुत विद्वान भी थे। आपको बता दे कुम्भा वेद, मीमांसा, उपनिषद, स्मृति, साहित्य, व्याकरण तथा राजनीति के एक अच्छे ज्ञाता है। इनका पूरा नाम कुम्भकर्ण सिंह था। आज हम आपको इस आर्टिकल में राणा कुम्भा जीवनी (Biography of Rana Kumbha in Hindi Jivani) से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी को साझा करने वाले है अतः इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य देखें।
राणा कुम्भा जीवन परिचय
यह एक शासक थे जिन्होंने अपने दम पर अपने नाम को हासिल किया। आपको बता दे एकलिंग माहात्म्य रसिक प्रिया, कुम्भलगढ़ प्रशस्ति आदि से राणा कुम्भा का जो शासनकाल था उसकी जानकारी प्राप्त होती है। कुम्भा 1433 ई में गद्दी पर विराजमान हुए थे। इन्होने अपने स्थानीय तथा पड़ोसी राज्यों को जीतकर अपने शासनकाल के समय में अपनी शक्ति को और भी बढ़ा लिया था।
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वर्ष 1437 में मालवा के सुलतान महमूद खिलजी पर राणा द्वारा आक्रमण किया गया था और यह आक्रमण सारंगपुर में हुआ था। युद्ध में कुम्भा ने खिलजी और परास्त कर दिया और वह युद्ध छोड़कर भाग किया यह एक भीषण युद्ध था। परन्तु कुंभा ने खिलजी का पीछा किया तथा महमूद को अपने कब्जे में बंदी बना लिया। और उसे चितोड़ में बंद कर दिया ठीक छः महीने बाद उसे रिहा कर दिया गया। महमूद ने वहां से निकलने के बाद कई बार युद्ध करने की कोशिश की परन्तु वह Kumbha से हारता गया।
Biography of Rana Kumbha in Hindi Jivani
नाम | राणा कुम्भा |
पूरा नाम | कुम्भकर्ण सिंह |
जन्म | – |
जन्म स्थान | – |
मृत्यु | 1473 ई |
राज्याधिकार | 1433-1468 |
पिता | राणा मोकल |
माता | सौभाग्य देवी |
राज्याभिषेक | 1433 |
पत्नी | मीराबाई |
संतान | उदय सिंह, राणा रायमल (पुत्र), रमाबाई (वागीश्वरी) |
Rana Kumbha का प्रारंभिक जीवन
सिसोदिया के राजपूत वंश में Rana Kumbha का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम महाराणा मोकल था तथा सौभाग्य देवी माता का नाम था। महाराणा कुम्भा का पूरा नाम महाराणा कुम्भकरण था। इन्हे कला करने का अत्यंत शोक था। जब इनके पिता की मृत्यु हुई मात्र ये उस समय 10 साल के थे और समय इनको मेवाड़ की गद्दी पर विराजमान कर दिया गया था।
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Rana Kumbha की रचनाएँ
महाराणा कुंभा एक महान शासक के अतिरिक्त एक रचनाकार भी थे इनके द्वारा कई रचनाएँ रची गई थी जैसे- संगीत के कई ग्रंथ एवं चंडिष्टक, गीतगोविन्द आदि की पुस्तकों की व्याख्या करना। ये वीणा वादन भी करते थे और नाटक के एक बहुत अच्छे एक्सपर्ट थे। इनके द्वारा कीर्तिस्तम्भ के निर्माण पर भी एक ग्रन्थ लिखा है।
Rana Kumbha द्वारा निर्मित स्थल
कुम्भा द्वारा मशहूर कुंभलमेर का किला बनाया गया है या किला दुनियाभर में प्रसिद्ध है जो कि कुम्भलगढ़ के किले के नाम से भी जाना जाता है। तथा इन्होने अपने राज्य में ही श्याम जी के मंदिर को भी बनवाया था ताकि लोग मंदिर में पूजा करने जा सके। इसके अतिरिक्त इन्होने चितौड़ का किला, श्याम जी मंदिर, रामकुंड तथा कुंभ लक्ष्मी नाथ मंदिर कर निर्माण भी इन्होने ही करवाया है। और इन्होने स्वयं अपने हाथों से कुकड़ेश्वर के कुंड का कायाकल्प भी किया है। इनके द्वारा कई स्मारकों एवं विभिन्न मूर्तियों का भी कायाकल्प किया गया है और संगीत क्षेत्र में इन्होने महाकाव्य भी लिखे है जो कि ये है संगीतराज वार्तिक तथा एकलिंग माहात्म्य आदि।
Rana Kumbha विवाह
ऐसा कहा जाता है महाराणा कुम्भा ने कई राजयकन्याओं के साथ मजबूरन विवाह किया था। उन महारानियों के नाम की जानकारी का कोई भी पता नहीं है कि उन्होंने कितने विवाह किये थे और उनकी कितनी पत्नियां थी। परन्तु कई ग्रंथों में उनकी महारानी कुम्भलदेवी, अपूर्वदेवी आदि के नाम जरूर बताए गए है इसमें रायमल की माता का नाम जो कि मोटमराव अजमेर के ठाकुर की बेटी पुवाड़रेगभरत्न बताया गया है।
Rana Kumbha की संतान
महाराणा कुम्भा के 11 पुत्र थे जिनके नाम ये है उदा, गोपाल, रायमल, अमरसिंह, नागराज, आसकरण, जैतसिंह महारावल, गोविन्ददास, खेता तथा अचलदास आदि तथा इनकी एक पुत्री भी थी इनका नाम रमाबाई था। मोहम्मद बगेड़ा द्वारा आक्रमण किये गए गिरनार के चुडासमा राज मंडलीक में इनकी बेटी का विवाह हुआ था।
Maharana Kumbha के महत्वपूर्ण युद्ध
Maharana Kumbha एक महान एवं वीर राजा थे जिन्होंने अपने राज्य की रक्षा करते हुए एवं अपने राज्यकाल में कई युद्ध लगे गए है और इन संघर्षों में शत्रुओं को हमेशा हराया है। उनके द्वारा बहुत से युद्ध लड़े गए है जो नीचे हम विस्तार से बताने जा रहे है।
सारंगपुर का युद्ध
अपने पिता की हत्या का बदल लेने एवं सुल्तान महमूद खिलजी को खदेड़ने के लिए वर्ष 1437 में Maharana Kumbha द्वारा युद्ध करने की घोषणा की गई और उन्होंने महमूद को युद्ध के मैदान से हरा दिया। मंदसौर तथा जावरा पर भी कब्जा कर लिया। जब यह जीत उनकी सफल हुई उसके पश्चात उन्होंने विजय स्तम्भ किया ताकि वे अपने पिता की हत्या का बदला ले सके।
कुम्भलगढ़ पर चढ़ाई
सारंगपुर के युद्ध में सफल होने के पश्चात् फिर से मोहम्मद खिलजी तथा राणा के मध्य युद्ध हुआ। जैसा कि इस युद्ध से पहले राणा द्वारा खिलजी को केवल मैदान से खदेड़ा गया था और उसे रिहा कर दिया गया था परन्तु वह सुधरा नहीं और बदला लेने की चाह में लड़ाई करने के लिए कुम्भलगढ़ किले पर आक्रमण करने लगा। और इस आक्रमण में राणा के सेनापति को खिलजी ने मार दिया यह खबर सुनकर कुम्भा स्वयं ही युद्ध लड़ने आये और एक बार फिर से उन्होंने महमूद खिलजी को युद्ध में हरा दिया।
गागरोन पर आक्रमण
कुम्भलगढ़ किले पर सफलता हासिल ना होने पर अब सुलतान द्वारा अब सीमावर्ती किलों पर कब्जा करने की कोशिश की जा रही थी परन्तु अभी भी राणा अपनी शक्ति को और मजबूत किए हुए थे। और सुलतान द्वारा वर्ष 1443 में गागरोन पर आक्रमण किया गया। इस युद्ध में कुम्भा के सेनापति अहिर को मार दिया गया। खिलजी ने यह युद्ध जीतकर गागरोन पर कब्जा कर दिया।
मालगढ़ पर आक्रमण
गागरोन पर खिलजी की सफलता होने के बाद अब उसने मालगढ़ पर आक्रमण करने की योजना बनाई परन्तु अब राणा कुम्भा पहले से ही अपने तैयारी में थे और सचेत हो गए। खिलजी द्वारा मालगढ़ पर आक्रमण किया गया और यह युद्ध 3 दिनों तक चलता रहा जिसमे कुम्भा ने खिलजी को बुरी तरह से हराया और खिलजी अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गया।
अजमेर तथा मालगढ़ पर आक्रमण
मालगढ़ का युद्ध हारने के बाद खिलजी ने फिर से एक नई योजना बनाई और अब उसमे अपने बेटे गयासुद्दीन को रणथम्भौर पर युद्ध करने के लिए मैदान में भेजा और वह स्वयं अजमेर पर युद्ध करने के लिए चला गया। उसकी यह चाल थी कि कुम्भा को चारो तरफ से घेर देंगे ताकि उसकी शक्ति कमजोर हो जाए और उस पर हमला किया जा रहे। और वर्ष 1455 में यह युद्ध लड़ा गया जिसमे खिलजी की दुबारा से हार हुई इस बार कुम्भा की जगह गाजघर सिंह युद्ध लड़ रहे थे।
हार के पश्चात खिलजी ने 1457 से फिर से मालगढ़ पर हमला किया और अपने कब्जे में कर लिया। इस समय कुम्भा ने युद्ध नहीं लड़ा वे इस समय गुजरात की यात्रा पर थे। परन्तु यह खबर सुनकर कुम्भा वापस लौटे और उन्होंने खिलजी को परास्त कर दिया और मालगढ़ को उसे कब्जे से छुटकारा दिला दिया।
नागौर का युद्ध
कुम्भा के शासनकाल में नागौर के शासक फिरोज खान थे जिनके दो बेटे थे और वे दोनों ही चाहते थे कि वे राज्य की गद्दी पर बैठे और इसलिए वे अपने पिता के लिए जाल बन रहे थे कि उनकी हत्या कैसे की जाए। इसके लिए उन्होंने कुम्भा से सहायता मांगी और राजनितिक दृष्टि को देखकर राणा ने उनसे संधि कर ली। परन्तु जब सिहांसन प्राप्त हो गया तो शम्स खान अपनी की गई संधि को भूल गए या उन्होंने इस अनदेखा कर दिया और कुम्भा ने यह सब देखकर योजना बनाई कि अब वे नागौर पर कब्जा करेंगे और युद्ध करने निकल पड़े।
शम्स खान ने एक नई चाल चली और अपनी राजनितिक शक्ति को बढ़ाने के लिए गुजरात के शासक सुल्तान कुतुबुद्दीन की बेटी का हाथ माँगा और शादी कर दी ताकि युद्ध में वे उनकी मदद करेंगे। दामाद का साथ देने के लिए कुतुबुद्दीन ने रायराचन्द्र एवं मलिक गिदई को युद्ध लड़ने के लिए भेजने का फैसला किया परन्तु राणा कुम्भा ने इन सब को उनकी सेनाओं से साथ हरा दिया।
महाराणा कुम्भा की मृत्यु
जैसा कि आप सभी जानते है कि महाराणा कुम्भा राजपूत वंश के एक महान राजा थे। भारत में राजाओं के स्थान में इनका सबसे ऊँचा स्थान था। इनकी मृत्यु को बहुत दुखद बताया जाता है ऐसा कहा जाता है कि षड्यंत्र रच कर इनकी मृत्यु इनके मेटे उदय सिंह द्वारा कराई गई थी। इनकी मृत्यु वर्ष 1468 में हुई थी।
राणा कुम्भा जीवन परिचय से सम्बंधित प्रश्न/उत्तर
राणा कुम्भा का पूरा नाम क्या है?
कुम्भकर्ण सिंह राणा कुम्भा का पूरा नाम क्या है।
महाराणा कुम्भा कौन थे?
महाराणा कुम्भा मेवाड़ के एक साहसी तथा महान शासक थे।
Maharana Kumbha का राज्याभिषेक कब हुआ था?
वर्ष 1433 में Kumbha का राज्याभिषेक हुआ था।
Kumbha के पिता का क्या नाम था?
इनके पिता का नाम राणा मोकल था।
Rana Kumbha की मृत्यु कब हुई?
वर्ष 1473 ई को राणा कुम्भा की मृत्यु हो गई थी।
महाराणा कुम्भा की पत्नी कौन थी?
महाराणा कुम्भा की पत्नी मीराबाई थी।
इस लेख में हमने आपको Biography of Rana Kumbha in Hindi Jivani से सम्बंधित प्रत्येक जानकारी को साझा कर दिया है यदि आपको कोई अन्य प्रश्न या जानकारी जाननी है तो आप नीचे दिए हुए कमेंट सेक्शन में अपना प्रश्न लिख सकते है हमारी टीम द्वारा आपके प्रश्रों का उत्तर जल्द ही दिया जाएगा।
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