हरित क्रांति एक ऐसी क्रांति को कहा जाता है जिसका सम्बन्ध कृषि क्षेत्र में रासायनिक तथा बीज के अत्यधिक उत्पादन से तीव्र वृद्धि करना। भारत में हरित क्रांति की शुरुआत सन (1966-1967) में हुई थी। जिसे प्रोफेसर नॉरमन बोरलॉग द्वारा शुरू किया गया था।
सर्वप्रथम भारत में इसकी शुरुआत एस. स्वामीनाथन ने की इन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। कृषि एवं खाद्य मंत्री बाबू जगजीवन राम को हरित क्रांति का प्रणेता माना जाता है, इन्होने एम० एस० स्वामीनाथन की कमेटी की सिफारिशों पर इस क्रांति का सफलतम संचालन किया और इसके संतोषजनक परिणाम भविष्य में देखने को भी मिले।
इसका मुख्य उद्देश्य देश में जितने भी सिंचित व असिंचित कृषि क्षेत्र में अधिक उपज देने वाले संकर तथा बौने बीज के उपयोग से फसल उत्पादन की वृद्धि में बढ़ोतरी करना।
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हरित क्रांति से अभिप्राय है कि “कृषि की उत्पादन तकनीक को सुधारने एवं कृषि उत्पादन में वृद्धि करना” उत्पादन तकनीकी में सुधार से मतलब है कि हल के स्थान पर जुताई के लिए ट्रैक्टर का प्रयोग करना। बरसात के लिए मानसून पर निर्भर न रहकर ट्यूबवेल से सिंचाई की व्यवस्था करना।
हरित क्रांति क्या है?
विश्वभर में कृषि मनुष्य की खाद्य आवश्यकता का सर्वाधिक विकसित उपाय है। भारत में कुल 3280 लाख हेक्टेयर भूमि में से करीब आधी भूमि पर कृषि की जाती है। इसके बावजूद भी स्वतंत्रता के बाद भारत की सबसे बड़ी समस्या खाद्यान की अपर्याप्तता थी।
क्यूंकि परंपरागत कृषि से उत्पादन कम होता था और देश की बढ़ती जनसंख्या के चलते एक गंभीर समस्या की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
इसीलिए इन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत ने अपने कृषि ढाँचे परिवर्तन करते हुए एक नए प्रकार की कृषि पद्धति को अपनाकर खाद्यान के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा बदलाव किया जिसे हरित क्रांति कहा गया।
कृषि क्षेत्रों में अच्छी फसल या उच्च पैदावार वाले बीजों, उर्वरकों का प्रयोग करके उत्पादन में तेजी लाने की प्रक्रिया को हरित क्रांति कहा गया है।
इसमें परंपरागत तकनीक की जगह पर नई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है और साथ-साथ उर्वरकों, सिंचाई के साधनों और उपयुक्त कीटनाशकों के प्रयोग करने से उत्तम किस्म की बीजों द्वारा उत्पादन को बढ़ने का प्रयास किया जाता है।
आर्टिकल | हरित क्रांति क्या है |
हरित क्रांति की शुरुआत हुई | सन 1966-1967 |
विश्व में सर्वप्रथम शुरू किया गया | नॉरमन बोरलॉग द्वारा |
भारत में हरित क्रांति का जनक | एस. स्वामीनाथन |
उद्देश्य | कृषि की उत्पादन तकनीक को सुधारने एवं कृषि उत्पादन में वृद्धि करना |
भारत में हरित क्रांति के जनक
- भारत में हरित क्रांति की शुरुआत सन 1966-67 के बीच में हुआ था। इसका श्रेय नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को समर्पित है। लेकिन भारत में हरित क्रांति का जनक एम० एस० स्वामीनाथन को कहा जाता है।
- हरित क्रांति से अभिप्राय है कि सिंचित व असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक मात्रा में उपज कर संकर व बोन बीजों का इस्तेमाल करके कृषि उत्पादन में वृद्धि करना। हरित क्रांति से ही भारत में कृषि के क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई और साथ ही कृषि में हुए सुधार के चलते देश में कृषि का उत्पादन छमता बढ़ी है।
- कृषि में हुई उपलब्धियों तकनिकी एवं संस्थागत परिवर्तन तथा उत्पादन में होने वाली वृद्धि के लिए हरित क्रांति को आगामी रूप से देखा जाता है।
Green Revolution की उपलब्धियां
- Green Revolution चलने के बाद देश क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। कृषि क्षेत्र में हुए गुणात्मक सुधार के बाद देश में कृषि की उत्पादन क्षमता बढ़ी है। खाद्यान में आत्मनिर्भरता आई है साथ ही व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा भी मिला है और देश के किसानों के द्रष्टिकोण में भी परिवर्तन देखने को मिला है।
- हरित क्रांति होने के फलस्वरूप गेहूं, मक्का, गन्ना और बाजरा की फसलों में प्रतिहेक्टेयर उत्पादन एवं कुल उत्पादकता में काफी वृद्धि देखने को मिली है। इस क्रांति की उपलब्धियों को कृषि में तकनीकी एवं संस्थागत परिवर्तन में हुए सुधारों को निम्न तरीकों से देखा जा सकता है-
रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग
- Green Revolution की राह पर नवीन कृषि नीति में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग करने की मात्रा में भी वृद्धि हुई है। 1960-61 में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग प्रति हेक्टेअर 2 कि०ग्राम होता था और 2008-09 में यह बढ़कर 128 कि० ग्राम प्रति हेक्टेअर हो गया।
- इसी प्रकार देश में 1960-61 के समय पर रासायनिक खादों की कुल खपत 2.92 लाख टन थी और यह बढ़कर 2008-09 में 249 लाख टन हो गई।
उन्नतशील बीजों को अधिक इस्तेमाल
- Green Revolution होने के बाद देश में उन्नतशील बीजों का प्रयोग बढ़ा है और साथ ही बीजों की नई किस्म की खोज की गई है। इस समय तक अधिक उपज देने वाला कार्यक्रम गेहूं, धान, बाजरा, मक्का व ज्वर जैसी फसलों पर लागू किया गया है।
- लेकिन गेहूं में सबसे अधिक सफलता प्राप्त हुई है। वर्ष 2008-09 में 1 लाख क्विंटल प्रजनक बीज तथा 9 लाख क्विंटल आधार बीजों का उत्पादन हुआ है।
सिंचाई एवं पौध संरक्षण
- Green Revolution में प्रयोग हुई नई विकास विधि के अंतर्गत देश में सिंचाई सुविधा का बड़ी तेज़ी से विस्तार हुआ है। देश में 1951 के समय पर खिंचाई की कुल क्षमता 223 लाख हेक्टेअर थी एयर यह बढ़कर 2008-09 में 1 लाख हेक्टेयर हो गई।
- 1951 में देश के कुल सिंचित क्षेत्र 210 हेक्टर था और यह बढ़कर 2008-09 में 673 लाख हेक्टेअर हो गई। पौध संरक्षण में खरपतवार एवं कीटों का नाश करने के लिए दवा छिड़कने का काम किया जाता है।
बहुफसली कार्यक्रम व आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग
- बहुफसली कार्यक्रम का अर्थ है एक ही भूमि पर एक से अधिक फसल उगाकर उत्पादन को बढ़ाना। भूमि की उर्वरता को नष्ट किए बिना भूमि के एक इकाई में अधिक उत्पादन करना बहुफसली कार्यक्रम कहलाता है।
- हरित क्रांति में आधुनिक कृषि उपकरणों जैसे- ट्रैक्टर, थ्रेसर, हार्वेस्टर, बुलडोज़र डीजल व लाइट के पम्पसेटों आदि सबने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस प्रकार से कृषि में मानव शक्ति तथा पशुओं के प्रतिस्थापन संचालन शक्ति द्वारा किया गया है। जिससे कृषि क्षेत्र में उपयोग एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि
- देश को सबसे बड़ा लाभ हरित क्रांति तथा भारतीय कृषि में लागू हुई नई विकास विधि का सबसे बड़ा लाभ ये हुआ कि फसलों के क्षेत्रफल में वृद्धि, कृषि उत्पादन तथा उत्पादकता में भी बढ़ोतरी हुई। मुख्य तौर पर गेहूं, ज्वार, धान, मक्का, बाजरा के उत्पादन में आशा के अनुरूप वृद्धि हुई है।
- इस परिणाम यह निकला की भारत खाद्यान में आत्मनिर्भर हो गया है। देश में 1951-52 के समय पर खाद्यानों का कुल उत्पादन 5 करोड़ टन था, जो बढ़कर 2008-09 में 23 करोड़ टन हो गया। इस तरह से प्रति हेक्टेअर उत्पादकता में भी पर्याप्त सुधर देखने को मिला है।
हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव
हरित क्रांति में गैर अनाज को शामिल नहीं किया गया अपितु गेहूँ, चावल, ज्वार, मक्का और चावल आदि सभी खाद्यानों को उत्पादन क्रांति के स्टार पर किया गया लेकिन मोठे अनाज, दलहन, तिलहन को हरित क्रांति को इस दायरे से बहार रखा गया।
गन्ना, चाय, कपास, जूट जैसी प्रमुख व्यावसायिक फसलें भी हरित क्रांति से अछूती रहीं है। अधिक उपज देने वाले किस्म केवल पांच फसलें-गेहूं, चावल, बाजरा, मक्का, ज्वार तक ही सीमित रखा गया। इसलिए गैर-खाद्यानों को इस से बहार रखा गया।
रसायनों का अत्यधिक उपयोग– हरित क्रांति के परिणाम उन्नत सिंचाई परियोजनाओं और फसल किस्मों हेतु कीटनाशकों और सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों का बड़े पैमाने पर उपयोग हुआ है। कीटनाशकों के के गहन उपयोग से नुकसान के बारे में किसानों को शिक्षित करने का प्रयास नहीं किया गया।
आमतौर पर अशिक्षित मजदूरों, किसानों के द्वारा ही बिना किसी निर्देशों का पालन किये बिना फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है। इस से फसलों को फायदे से अधिक नुक्सान होता है और पर्यावरण व मिट्टी के प्रदूषण का कारन भी बनता है।
फसल के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए बार-बार एक ही फसल चक्र को अपनाने से मिट्टी में पोसन तत्वों की कमी हो जाती है। क्यूंकि क्षारीय रसायनों के उपयोग से मिट्टी के पीएच स्तर में बढ़ोतरी हो गई है। मिट्टी में जहरीले रसायनों के प्रयोग से लाभकारी रोगजनक नष्ट हो गए, जिससे उपज में गिरावट आई।
निष्कर्ष
- विकासशील देशों व भारत के लिए हरित क्रांति एक बड़ी उपलब्धि थी जो राष्ट्र खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक रही। कुछ फसलों के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई है। कृषि क्षेत्र के परंपरागत स्वरुप में परिवर्तन आया है।
- लेकिन कुछ कमियां इसमें देखने को मिलती है। लेकिन अंततः इस क्रांति को खाद्यान में आत्मनिर्भर बनाया है। देश में भरपूर खाद्यान उत्पादन करने की क्षमताएं में बढ़ोतरी हुई है।
Harit Kranti से सम्बंधित प्रश्न
हरित क्रांति उस क्रांति को कहा जाता है, जिसका सीधा सम्बन्ध कृषि क्षेत्र में तीव्र वृद्धि से है, जिससे रासायनिक उर्वरक तथा बीज के अत्यधिक उत्पादन से है।
इसकी शुरुआत सन 1966-67 में हुई थी और इसे सर्वप्रथम मेक्सिको के प्रोफेसर नारमन बोरलॉग के शुरू किया था।
भारत में Green Revolution का जनक एस. स्वामीनाथन को कहा जाता है, वो एक वनस्पति विज्ञानी थे।
हरित क्रांति का सम्बन्ध कृषि से है।