पंचायती राज व्यवस्था (Panchayati Raj System) देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाली शासन प्रणाली है। जैसा की आप जानते हैं की भारत एक कृषि प्रधान देश है और देश की 80 से 90 प्रतिशत जनसंख्या हमारे ग्रामीण इलाकों में निवास करती है। जब भी हम ग्रामीण क्षेत्र की बात करते हैं तो ग्राम पंचायत या पंचायत समिति का जिक्र जरूर होता है। भारत सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के विकास कार्यों के सुचारु संचालन के लिए पंचायती सिस्टम के तहत पंचायती राज मंत्रालय बनाया है जो देश भर के पंचायत समिति और जिला परिषद के कार्यों का निर्धारण और संरक्षण करता है। दोस्तों आज हम आपको अपने इस आर्टिकल के माध्यम से पंचायती राज व्यवस्था क्या है-
पंचायती राज के कार्य, महत्व, उद्देश्य, स्तर आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं। यदि आप पंचायती राज व्यवस्था के बारे में जानने के इच्छुक हैं तो हमारा आपसे यह अनुरोध है की पंचायती राज के बारे में हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरूर पढ़ें।
आर्टिकल का विषय | पंचायती राज व्यवस्था (Panchayati Raj System) |
पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत कब हुई | 2 अक्टूबर 1959 |
पंचायती राज व्यवस्था किसके द्वारा की गई | पंडित जवाहर लाल नेहरू |
मंत्रालय | Ministry Of Panchayati Raj |
ऑफिसियल वेबसाइट | panchayat.gov.in |
पंचायती राज व्यवस्था क्या है?
पंचायती राज व्यवस्था को भारत के संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत लागू किया गया है। जैसा की आप जानते हैं की पंचायती राज व्यवस्था के तहत ग्रामीण इलाकों के विकास से संबंधित बहुत से कार्य किये जाते हैं। आप सरल भाषा में यह समझ सकते हैं।
देश के ग्रामीण इलाकों कार्य करने वाली ग्रामीण स्थानीय सरकार भारत के केंद्र सरकार की ही एक शाखा है। पंचायती राज ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों को करने वाली एक स्थानीय निकाय है जो लोगों के जन कल्याण से जुड़े कार्यों को करती है। केंद्र सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था कार्य के आधार पर मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया हुआ है जो इस प्रकार से है।
- ग्राम पंचायत (Village Panchayat): पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम पंचायत सबसे निम्न स्तर पर काम करने वाली संस्था होती है। ग्राम पंचायत का कार्य होता है ग्राम सभा के सभी तरह के चुनावों को निष्पक्ष तरीके से पूर्ण करवाना। ग्राम पंचायत के चुनावों में लोगों के द्वारा एक सरपंच को चुना जाता है। जो की गाँव में होने वाले विकास कार्यों का निरीक्षण और देख रेख करता है। आपको बता दें की सरपंच को कहीं-कहीं मुखिया कहकर भी सम्बोधित किया जाता है।
- पंचायत समिति(Panchayat committee): ग्राम पंचायत के ऊपर काम करने वाली संस्था को पंचायत समिति कहा जाता है। पंचायत समिति का कार्य होता है तहसील, ब्लॉक, आदि में रिक्त संवैधानिक पदों पर योग्य उम्मीदवार की नियुक्ति करना। पंचायत समिति के द्वारा हर पांच साल में निश्चित समय पर चुनाव आयोजित किये जाते हैं। आपको बता दें की पंचायत समिति का सचिव समिति का विकास अधिकारी होता है। पंचायत समिति में विधानसभा, लोकसभा, नगरपालिका, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, प्रधान आदि के सदस्य के रूप में अपना कार्य करते हैं।
- जिला परिषद (District Council): पंचायती राज व्यवस्था में जिला परिषद एक उच्चस्तरीय संस्था है जिसका कार्य आवश्यकता पड़ने पर ग्राम पंचायत और पंचायत समिति का मार्गदर्शन करना है। जिला परिषद का कार्य जिले में आने वाले सभी गांवों और पंचायतों का अध्ययन करके रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार और केंद्र सरकार को देना है। जिला परिषद आवश्यकता पड़ने पर अनुदान के द्वारा ग्राम पंचायतों की मदद करती है। जिला परिषद के सम्पूर्ण कार्यान्वयन की देख रेख एक जिम्मा DM जिलाधिकारी का होता है।
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पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास?
- देश में अंग्रेजों के शासन काल के समय में वायसराय रहे लॉर्ड रिपन को भारत में स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था का जनक कहा जाता है। वर्ष 1882 में लॉर्ड रिपन ने अंग्रेजों की महासभा में स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था का प्रस्ताव दिया था।
- लेकिन वर्ष 1919 में भारत शासन अधिनियम के तहत देश के सभी प्रांतों में दोहरे शासन व्यवस्था को लागू किया गया।
- इसके बाद जब हमारा देश आज़ाद हुआ तो वर्ष 1957 में योजना आयोग के गठन के साथ ही विभिन्न समितियों के सुझावों के तहत सामुदायिक विकास और राष्ट्रीय सेवा विस्तार कार्यक्रमों की शुरुआत हुई।
- पंचायती राज व्यवस्था के संबंध में हम आपको बताते चलें की इसकी शुरूआत देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 2 अक्तूबर 1959 को राजस्थान राज्य के नागौर जिले से की थी। परन्तु आधिकारिक रूप से पंचायती राज की शुरुआत 11 अक्तूबर 1959 को आंध्र प्रदेश राज्य से हुई थी।
Panchayati Raj का उद्देश्य:
- पंचायती राज का मुख्य उद्देश्य है की केंद्र सरकार के द्वारा देश के नागरिकों के लिए जो भी योजनाएं बनाई जाती हैं उन योजनाओं का लाभ पारदर्शी और तीव्र तरीके से लोगों तक पहुँचाया जा सके।
- देश की ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं को मानसिक, शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सके ताकि महिलाएं देश के विकास में बराबर की भागीदार बन सकें।
- ग्राम स्तर में होने वाले जमीनी विवाद, जाति-आधारित भेदभाव, झगड़ों का निबटारा आदि को जल्द से जल्द सामाजिक न्याय पंचायत के तहत निष्पक्ष तरीके से निपटाया जा सके।
पंचायती राज व्यवस्था का संवैधानिक प्रावधान:
- देश के संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद (Article) 40 में पंचायती राज व्यवस्था के बारे में बताया गया है जिसमें कहा गया है की राज्यों को अपने स्तर पंचायतों का गठन करना होगा। जिसके बाद वर्ष 1993 में भारतीय संविधान के 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1992 के तहत पंचायती राज व्यवस्था को संविधानिक मान्यता दे दी गई है।
- आपको यह भी बता दें की भारतीय संविधान के भाग-9 की अनुसुची-11 के अनुच्छेद-243 के तहत पंचायती राज व्यवस्था में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण देने के बारे में बात कही गई है।
- ग्राम सभा के नियम 1993 की धारा 6 (1) में बताया गया है की देश के राज्य में केंद्र सरकार के मुखिया के रूप में नियुक्त राज्यपाल के द्वारा एक गाँव में एक ही ग्राम सभा ही होगी।
- ग्राम सभा की धारा 8 के तहत पंचायत के गठन को परिभाषित किया गया है। इसी तरह धारा 9 के तहत ग्राम पंचायत की अवधि को निर्धारित को किया गया।
पंचायती राज व्यवस्था के 73वें संवैधानिक संशोधन की प्रमुख विशेषतायें:
- केंद्र सरकार ने संवैधानिक संशोधन 73वां के अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था को तीन स्तरीय भागों में विभाजित करने प्रावधान रखा है।
- 73वें संशोधन में जिला स्तर पर जिला परिषद, खंड स्तर पर पंचायती समिति और ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत की व्यवस्था के बारे में बताया गया है।
- प्रावधान में कहा गया है की पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 1 तिहाई आरक्षण प्रदान किया जाये।
- पंचायती राज व्यवस्था के 73वें संशोधन के अनुसार पंचायती व्यवस्था का कार्यकाल 5 साल का होना चाहिए।
Panchayati Raj Committees (पंचायती राज की समितियां):
देश में पंचायती राज व्यवस्था के प्रारूप को तैयार करने में संविधान की विभिन्न समितियों का अहम योगदान है जिनके बारे में हमने आपको आगे आर्टिकल में बताया है –
- बलवंत राय मेहता समिति (1956-57): गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में वर्ष 1956 में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने के लिए बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया। वर्ष 1957 में बलवंत राय मेहता समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी।
- आपको बताते चलें की 1 अप्रैल 1958 को मेहता समिति के द्वारा दिए गए सुझावों को मानकर केंद्र सरकार ने इसे लागू कर दिया। बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया था।
- योजना आयोग के द्वारा पंचायती व्यवस्था में सामुदायिक परियोजनाओं के मुद्दों और राष्ट्रीय विकास की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए
- मेहता समिति ने भारत के ग्रामीण क्षेत्र के हालात को देखते हुए पंचायती राज व्यवस्था को तीन स्तरीय भागों में बाटने का सुझाव दिया था जो इस प्रकार से हैं।
- ग्राम- ग्राम पंचायत
- खंड- पंचायत समिति
- ज़िला- ज़िला परिषद
- अशोक मेहता समिति (1977-78): केंद्र सरकार के द्वारा अशोक मेहता की अध्यक्षता में दिसम्बर 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया। यह समिति बलवंत राय मेहता समिति के द्वारा बताई गयी पंचायती राज व्यवस्था में कमी को दूर करने के लिए बनाई गई थी।
- आपको बता दें की अशोक मेहता समिति में कुल 13 सदस्य शामिल थे। अशोक मेहता समिति ने अपनी फ़ाइनल रिपोर्ट वर्ष 1978 में केंद्र सरकार को सौंपी थी।
- अपनी रिपोर्ट में अशोक मेहता समिति पंचायती राज व्यवस्था में 132 बदलावों की सिफारिशों के साथ पंचायती राज व्यवस्था का नया मॉडल प्रस्तुत किया। समिति के द्वारा दी गई सिफारिशें इस प्रकार से हैं –
- अशोक मेहता समिति के अनुसार राज्य की शक्तियों का जिला स्तर पर विकेन्द्रीकरण (Decentralization) किया जाना चाहिए। जिससे राज्य के कार्यों पर पड़ने वाला बोझ कम होगा।
- समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया की जिन गाँवों की जनसंख्या 15,000 से लेकर 20,000 के बीच है ऐसे सभी 10 से 15 गांवों को जिला स्तर पर गठित मंडल पंचायत में शामिल किया जाना चाहिए।
- समिति के अनुसार गठित जिला परिषद और मंडल पंचायत का कार्यकाल 4 साल का होना चाहिए।
- गाँवों के विकास के लिए तैयार की जाने वाली योजनाओं को जिला परिषद् के द्वारा तैयार किया जाना चाहिए।
- जिला परिषद के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष और मंडल अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से किया जाना चाहिए।
- ग्रामीण क्षेत्र हेतु तैयार की जाने वाली विकास परियोजनाएं जिला परिषद के द्वारा तैयार की जानी चाहिए।
- लेकिन दोस्तों केंद्र सरकार के द्वारा अशोक मेहता समिति के दिए गए सुझावों को अतार्किक मानते हुए अस्वीकार कर दिया गया।
- पी वी के राव समिति (1985): वर्ष 1985 में ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन की सिफारिशों का सुझाव देने वाली पी वी के राव समिति का गठन किया गया।
- समिति ने अपने सुझाव में बताया की आदिवासी क्षेत्र से जुड़ी अनुसूचित जाति एवं जनजाति महिलाओं को केंद्र सरकार की तरफ से आरक्षण का लाभ प्रदान किया जाये।
- राव समिति ने पंचायती राज व्यवस्था को 4 स्तरीय भागों में बाटने की बात कही।
- राज्य विकास परिषद्
- जिला स्तर
- जिला परिषद्
- मंडल स्तर
- समिति ने अपने सुझावों में बताया की पंचायती राज व्यवस्था के चुनाव नियमित रूप से किया जाने चाहिए।
- लेकिन आपको बता दें की केंद्र सरकार ने समिति के सुझाव को लागू ना करके इसे अस्वीकार कर दिया।
- डॉ एल ऍम सिन्घवी समिति (1986): डॉ एल ऍम सिन्घवी की अध्यक्षता के तहत जून 1986 में सिंधवी समिति का गठन किया गया। पंचायती राज व्यवस्था में सुधर कार्य हेतु समिति के द्वारा केंद्र सरकार को दिए गए सुझाव एवं सिफारिशें इस प्रकार से हैं।
- पंचायती राज व्यवस्था में राजनीतिक दल या दल से जुड़े व्यक्ति की भागीदारी नहीं होनी चाहिए। यदि पंचायती राज व्यवस्था में राजनीतिक दल की भागीदारी होती है तो यह ग्रामीण क्षेत्र के सर्वांगीण आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
- पंचायती राज व्यवस्था में न्याय के साथ मध्यस्थता एवं समझौतों का कार्य किया जाना चाहिए।
- समिति का मत है की ग्रामीण इलाकों में शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए न्याय पंचायतों के तहत विशिष्ट पैनलों का गठन किया जाना चाहिए।
- समिति ने अपने सुझावों में बताया की पंचायती राज संस्था से जुड़े मतदाताओं, प्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों और स्वयं सेवकों के कार्य गुणवत्ता में सुधार हेतु पर्याप्त प्रशिक्षण और सार्वजनिक शिक्षा दी जानी चाहिए।
- इस समिति ने पंचायतों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने तथा पंचायतों के पुनर्गठन की सिफारिश की। लेकिन सरकार द्वारा समिति के कुछ सुझावों को मानकर बाकी बचे सुझावों को अस्वीकार कर दिया गया।
- पी. के. थुंगन समिति(1988): वर्ष 1988 में पी.के. थुंगन की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया। थुंगन समिति ने अपने सुझावों में बताया की पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए।
- केंद्र सरकार के सामने वर्ष 1989 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए थुंगन समिति ने संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया।
- आपकी जानकारी के लिए बता दें की लोकसभा से विधेयक पास हो जाने के बाद राज्य सभा में सरकार का बहुमत न होने के कारण संविधान संशोधन विधेयक पारित नहीं हो सका। जिस कारण थुंगन समिति के सुझावों को अस्वीकार कर लिया गया।
पंचायती राज के कार्य:
ग्रामीण क्षेत्र में कानूनी शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए पंचायती राज व्यवस्था के कार्यों को सरकार के द्वारा निर्धारित किया गया है जो इस प्रकार से हैं –
- पंचायती राज व्यवस्था के तहत भारत के ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक रूप में विकास करना।
- केंद्र एवं राज्य सरकार के द्वारा लोगों के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं को लाभ पहुंचाना।
- न्याय पंचायत के तहत ग्रामीण इलाकों में सामाजिक न्याय प्रणाली को मजबूत करना।
- ग्रामीण स्तर पर नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित एवं संरक्षित करना।
- पंचायती राज व्यवस्था के त्रि-स्तरीय संगठीय ढांचे के तहत नयी ग्रामीण सभाओं की स्थापना करना।
- पंचायती स्तर पर होने वाले चुनावों को निष्पक्ष और समय से पूर्ण करवाना।
पंचायती राज का महत्व (Importance):
- पंचायती राज व्यवस्था में सरकार ने होने वाले विकास कार्यों के विश्वसनीय लेखा परीक्षण हेतु ई-ग्राम स्वराज पोर्टल की शुरुआत की है जो की एक सराहनीय प्रयास कहा जा सकता है।
- ग्राम पंचायत को अधिकार है की वह ग्रामीण क्षेत्र में लगने वाले कर, ड्यूटीज, टॉल, शुल्क आदि को वसूल सकेगी।
- ग्राम पंचायत में होने वाले चुनाव के लिए गाँव के समूह साथ मिलकर मतदाता सूची तैयार किया जाना।
- ग्राम स्तर पर लोगों के जन कल्याण होने वाले कार्यों को सही रूप से संचालित हो यह सुनिश्चित करना।
- गाँवों के प्राकृतिक संसाधनों, भूमि रिकॉर्ड और भूमि से संबंधित समस्या को लेकर जागरूकता अभियान के जरिये लोगों में जागरूकता पैदा करना।
पंचायती राज राष्ट्रीय पंचायत पुरूस्कार (Awards)
- पंचायत राज मंत्रालय के द्वारा साल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली संस्थाओं के द्वारा पंचायतों को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार दिया जाता है। पुरस्कारों के वितरण का चयन 17 एसडीजी और 9 स्थानीय निकाय करण के द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- अवार्ड वितरण के लिए पंचायतों के साल भर में किये गए कार्यों के प्रदर्शन का आकलन किया जाता है। प्रदर्शन के आधार पर पंचायतों की रैंक निर्धारित की जाती है।
राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार की प्रमुख विशेषताएं:
- गरीबी मुक्त और बढ़ी आजीविका पंचायत
- स्वस्थ पंचायत
- बाल हितैषी पंचायत
- जल पर्याप्त पंचायत
- स्वच्छ और हरित पंचायत
- पंचायत में आत्मनिर्भर बुनियादी ढांचा
- सामाजिक रूप से सुरक्षित पंचायत
- सुशासन वाली पंचायत
- महिला हितैषी पंचायत
पंचायती राज से जुड़े प्रश्न एवं उत्तर (FAQs)
भारत में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत कब हुई ?
भारत में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत 2 अक्टूबर 1959 को पंडित जवाहर लाल नेहरू के द्वारा की गई थी।
eGramSwaraj क्या है ?
eGramSwaraj भारत की केंद्र सरकार के द्वारा लांच किया गया वेब पोर्टल है। जिस पर आप अपने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्यों से संबंधित लेखा जोखा और रिपोर्ट चेक कर सकते हैं। रिपोर्ट चेक करने हेतु eGramSwaraj की आधिकारिक वेबसाइट egramswaraj.gov.in
पंचायती राज की आधिकारिक वेबसाइट क्या है ?
पंचायती राज की आधिकारिक वेबसाइट panchayat.gov.in है।
पंचायती राज व्यवस्था का 73वां संसोधन कब लागू हुआ ?
केंद्र सरकार के द्वारा पंचायती राज व्यवस्था का 73वां संसोधन वर्ष 1993 में लागू किया गया।
Panchayati Raj की contact details:
यदि आप अपने ग्रामीण क्षेत्र में होने वाले विकास कार्यों या अन्य किसी कार्य से संतुष्ट नहीं हैं तो आप Panchayati Raj मंत्रालय की contact डिटेल्स से संपर्क कर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। नीचे टेबल में हमने आपको Panchayati Raj की contact details की सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की है।