आप ने भी आर्यभट्ट का नाम अवश्य ही सुना होगा। यदि नहीं भी ध्यान आ रहा तो कोई बात नहीं, हम बता देते हैं। आर्यभट्ट प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद, खगोलशास्त्री और गणितज्ञ माने जाते हैं।
विज्ञान और गणित के क्षेत्र में इनके अनेक कार्य हैं, जिसके आधार पर आज भी वैज्ञानिक अपनी नई खोज करते हैं। आज हम इस लेख में इन्ही आर्यभट्ट के बारे में जानकारी (Aryabhatta Biography) देंगे। जिन्होंने 23 वर्ष की उम्र में ही आर्यभटीय जैसे ग्रन्थ की रचना कर दी थी। जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने बहुत सी अन्य खोजे की थी जो कि उस समय में बिना किसी ख़ास संसाधनों के संभव होना ना के बराबर ही था। विस्तार से जानने के लिए आगे पढ़ें –
जानिए आर्यभट्ट कौन थे ?
जैसे की लेख में हमने बताया कि आर्यभट्ट एक महान ज्योतिषविद और गणितज्ञ हैं। इनके द्वारा रचित ‘आर्यभटीय’ के अनुसार इनका जन्म शक संवत् 398 में कुसुमपुर में हुआ था। इनकी उत्पत्ति भट्ट ब्रह्मभट्ट समुदाय में मानी जाती है। इनके जन्मस्थान के बारे में अभी भी कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता क्यूंकि उस वक्त का कुसुमपुर कौन सा था।
इस बारे में कुछ साफ़ नहीं कहा जा सकता है। कुछ लोगों का मानना है कि बिहार राज्य में वर्तमान पटना ही कुसुमपुर है क्यूंकि इसका प्राचीन नाम भी कुसुमपुर था। जबकि कुछ मानते हैं कि अब ये लगभग सिद्ध है कि आर्यभट्ट द्वारा बताया गया कुसुमपुर दक्षिण में था।
आर्यभट्ट के जन्मस्थान के संबंध में एक अन्य मान्यता है कि उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ होगा। इसी प्रकार और भी बहुत से हालाँकि ये बात तय है की वो उच्च शिक्षा के लिए कभी न कभी कुसुमपुरा रहे थे। ये कुसुमपुरा वर्तमान में बिहार के पटना के रूप में पहचाना गया है।
Highlights Of Aryabhatta Biography
यहाँ आप आर्यभट्ट के जीवन परिचय के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण बातें जा सकते हैं।
लेख का नाम | आर्यभट्ट की जीवनी |
जन्म | दिसंबर, ई.स.476 |
मृत्यु | दिसंबर, ई.स. 550 [74 वर्ष] |
जन्म स्थान | कुसुमपुरा/ अश्मक, भारत |
रचनायें | आर्यभट सिद्धांत, आर्यभटीय |
संबंधित कार्यक्षेत्र | गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री |
कार्यस्थल | नालंदा विश्वविद्यालय |
खोज / योगदान | पाई का मान एवं शून्य की खोज |
आर्यभट्ट के कार्य व योगदान
प्राचीन समय में आर्यभट के कार्यों की बात करें तो हम उनकी रचनाओं के आधार पर इसका पता कर सकते हैं। आप को बता दें कि आर्यभट्ट द्वारा कुल 4 ग्रंथों की रचना की गयी है। जिनमे से तीन ग्रंथो की सभी जानकारी उपलब्ध है जबकि एक ग्रन्थ ऐसा है जिसमें से सिर्फ 34 श्लोक ही उपलब्ध हैं। ये चार ग्रन्थ हैं –
- दशगीतिका
- आर्यभटीय
- तंत्र
- आर्यभट्ट सिद्धांत
आर्य सिद्धांत
आर्यभट्ट द्वारा रचित चारों ग्रंथों में से आर्यभट्ट सिद्धांत ऐसा ग्रन्थ है जिसमें लिखे गए सभी श्लोकों में से मात्र 34 श्लोक ही उपलब्ध हैं। आर्यभट्ट सिद्धांत खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है। ये ही ऐसा ग्रन्थ है जिसका सातवें शतक में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था।
हालाँकि इतनी उपयोगिता के बावजूद ये बाद में लुप्त हो गया था और इस संबंध में कुछ अधिक जानकारी नहीं है। इस के संबंध में वराहमिहिर के लेखनों से जानकारी प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त बाद में आये गणितज्ञ और टिपण्णीकारों के द्वारा भी प्राप्त होती है।
माना गया है कि आर्य सिद्धांत, प्राचीन सूर्य सिद्धाँत पर आधारित है। जिसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग हुआ है। इस ग्रन्थ में खगोलीय उपकरणों का वर्णन प्राप्त होता है। जैसे कि – एक परछाई यन्त्र (छाया-यन्त्र), नोमोन(शंकु-यन्त्र), संभवतः कोण मापी उपकरण, एक बेलनाकार छड़ी यस्ती-यन्त्र, एक छत्र-आकर का उपकरण जिसे छत्र- यन्त्र , आदि।
आर्यभटीय
आर्यभटीय उनकी प्रमुख कृति मानी जाती है। जो कि गणित और खगोल विज्ञान का संग्रह है। माना जाता है कि ये नाम (आर्यभटीय) भी बाद के टिप्पणीकारों द्वारा ही दिया गया है। आर्यभट द्वारा किये गए कार्य के प्रत्यक्ष विवरण सिर्फ़ आर्यभटीय के माध्यम से ही ज्ञात होते हैं।
इस ग्रन्थ की रचना उन्होंने 23 वर्ष की उम्र में ही कर दी थी, वो भी बिना किसी संसाधनों के। उनकी ये रचना संस्कृत में की थी, साथ ही उन्होंने किसी भी प्रकार के अंकों का इस्तेमाल नहीं किया है, इसमें छंदों (संस्कृत में कोडिंग भी कह सकते हैं) अक्षरों (अल्फाबेट्स) का प्रयोग किया था।
आर्यभटीय में वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों के बारे में जानकारी दी गयी है। उन्होंने इस ग्रन्थ में 33 श्लोकों में गणितविषयक सिद्धांतों को मात्र 3 पेज में ही बता दिया है। वहीँ मात्र 5 पन्नों में 75 श्लोंकों के जरिये खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त और इसके लिए उपयोग होने वाले यंत्रो के बारे में भी जानकारी समेट दी है।
आर्यभटीय के गणितीय भाग में बीजगणित, अंकगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति, सतत भिन्न, द्विघात समीकरण, घात श्रृंखला के योग और ज्याओं की एक तालिका आदि के बारे में जानकारी है।
इस समूचे ग्रन्थ में कुल 108 छंद हैं (साथ में परिचयात्मक 13 अतिरिक्त भी हैं) इसलिए इस ग्रन्थ को आर्य-शत-अष्ट (अर्थात आर्यभट के १०८) के नाम से भी जाना जाता है। इस पूरे ग्रन्थ को चार पदों अथवा अध्यायों में विभाजित किया गया है –
- गीतिकपाद : (13 छंद)
- गणितपाद (33 छंद)
- कालक्रियापाद (25 छंद)
- गोलपाद (50 छंद)
आर्यभट्ट के योगदान (Aryabhatta Biography)
आर्यभट्ट एक ज्योतिषविद, खगोलशास्त्री और गणितज्ञ थे। उन्होंने इस क्षेत्र में विभिन्न योगदान दिए। जिन्हे आप लेख में आगे पढ़ सकते हैं।
- आर्यभट्ट द्वारा गणित में पूर्ववर्ती आर्किमिडीज़ द्वारा सुनिश्चित पाई के मान को इससे भी अधिक और सही निरूपित किया।
- उन्होंने खगोलविज्ञान के क्षेत्र में यह सबसे पहली बार उदाहरण के साथ घोषित किया कि स्वयं पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।
- आर्यभट्ट द्वारा शून्य की खोज की गयी है जो की गणित की सबसे बड़ी खोजों में से एक है। क्यूंकि बिना शून्य के गणनाएं सम्भव नहीं हो सकती। शून्य का महत्व आप ऐसे समझ सकते हैं कि किसी अंक के साथ लगने पर उसका मान दस गुना बढ़ जाता है।
- स्थानीय मानक पद्धति की जानकारी भी सबसे पहले आर्यभट्ट द्वारा दी गई है।
- आर्यभटीय में त्रिभुज के क्षेत्रफल के बारे में जानकारी भी दी गई है।
- आर्यभट्ट ने अर्ध ज्या का विवेचन भी किया है। आप इसे Concept of Sine के तौर पर जानते होंगे।
- वर्गों एवं घनो की श्रंखला के जोड़ के परिणाम का वर्णन भी आर्यभटीय में मिल जाएगा।
- खगोलीय क्षेत्र से संबंधित उन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा के बारे में जानकारी दी। उन्होंने माना कि पृथ्वी की कक्षा गोलाकार नहीं अपितु दीर्घवृत्तीय है।
- उन्होंने आर्यभटीय में वर्णन किया है कि आकाश या तारे नहीं घूमते अपितु हमारी पृथ्वी ही अपने अक्ष पर घूमती है, जिसकी वजह से हमे आकाश और तारे घूमते हुए दीखते हैं। यानी तारों की स्थिति घूमती हुई दिखती है।
- आर्यभट्ट ने चंद्र ग्रहण और सूर्यग्रहण की पुरानी मान्यताओं को नकारते हुए इसके पीछे खगोलीय कारण बताये हैं। उन्होंने बताया कि सूर्य के प्रकार के रिफ्लेक्शन से ही अन्य गृह और चंद्र में रौशनी होती है और जब ग्रहण लगता है तो ये पृथ्वी पर पड़ने वाली छाया होती है या पृथ्वी की ही छाया होती है। इसे ऐसे समझें –
- सूर्य ग्रहण : हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई सूर्य के चक्कर लगाती है। जबकि चन्द्रमा भी अपनी अक्ष पर घुमते हुए हमारी पृथ्वी और साथ ही साथ सूर्य का चक्कर भी लगाता है। ऐसे में जब चन्द्रमा चक्कर लगाते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है तो चन्द्रमा के आने से सूर्य का उतना हिस्सास हमे नहीं दिखाई देता। जिसे लोग सूर्यग्रहण के नाम से जानते हैं।
- चंद्र ग्रहण : चनद्रग्रहण की स्थिति तब आती है जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है। ऐसे में पृथ्वी की छाया चंद्र पर पड़ती है। जिसे चन्द्रग्रहण कहते हैं। कहते हैं पृथ्वी की जितनी छाया जितने बड़े हिस्से पड़ेगी उतना ही बड़ा चंद्रग्रहण होता है।
Aryabhatta biography से संबंधित प्रश्न उत्तर
Aryabhatt प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे।
आर्यभट्ट ने 23 वर्ष में आर्यभटीय की रचना की थी। साथ ही हमारी पृथ्वी गोल है और सूर्य के चारों ओर घूमती है, इसके बारे में भी उन्होंने ही बताया। डेसीमल और जीरो आदि की जानकारी व अन्य ऐसी ही बहुत सी जानकारियां जैसे मैथ्स से संबंधित जानकारी आर्यभट्ट द्वारा वतायी गयी थी। विस्तृत जानकारी हेतु इस लेख को पढ़ें।
माना जाता है 476 ईस्वी को पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) अथवा अश्माक में हुआ था।
5वीं शताब्दी में गणितज्ञ और खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट ने अपने संस्कृत ग्रंथों में वर्गमूल और घनमूल खोजने के लिए शून्य को एक प्लेसहोल्डर के रूप में और एल्गोरिदम में उपयोग किया था।
आर्यभट्ट को दशमलव प्रणाली में शून्य का उपयोग करने का श्रेय दिया जाता है, जबकि ब्रह्मगुप्त को शून्य के गुणों का विवरण देने का श्रेय दिया जाता है , जैसे कि किसी संख्या को स्वयं से घटाना।
आज इस लेख में आप ने Aryabhatta Biography /आर्यभट्ट की जीवनी के बारे में जाना। उम्मीद है आप को ये जानकारी पसंद आयी होगी। यदि आप ऐसे ही अन्य लेखों को पढ़ना चाहते हैं तो आप हमारी वेबसाइट Hindi NVSHQ पर विजिट कर सकते हैं।
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