महात्मा ज्योतिबा फुले को 19वी सदी का प्रमुख समाज सेवक माना जाता है। इन्होने नारी शिक्षा, अछुतोद्वार, विधवा विवाह और किसानो के हित के लिए बहुत से सार्थक प्रयास किये थे। ज्योतिबा फुले आज भी अपने महान कार्यो के लिए याद किये जाते है।
उनका मानना था कि जो संस्कार एक माता अपने बच्चो को देती है उसी में उन बच्चो के भविष्य के बीज होते है इसलिए लड़कियों का शिक्षित होना अति आवश्यक है। ज्योतिबा फुले जीवनी बहुत ही प्रेरक है। महात्मा ज्योतिबा फुले ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने महिलाओ के लिए एक स्वतंत्र स्कूल खोला था।
आज हम ऐसे ही महान समाज सुधारक के विषय में चर्चा करेंगे और जानेगे ज्योतिबा फुले जीवनी – Biography of Jyotirao Phule in Hindi Jivani. अधिक जानकारी के लिए लेख के अंत तक हमारे साथ जुड़े रहे।
ज्योतिबा फुले जीवनी। Biography of Jyotirao Phule in Hindi Jivani
पुरे जीवन में ज्योतिबा फुले ने गरीबो, दलितों और महिलाओ के लिए संघर्ष किया है। इन्होने लड़कियों को पढ़ाने और जातिवाद खत्म कारण एक लिए बहुत से प्रयास किये थे। इन्हे समाज के सशक्त प्रहरी के रूप में सदैव याद किया जाता रहेगा। यहाँ आपको ज्योतिबा फुले जीवनी के सम्बन्ध में सभी जानकारिया दी जा रही है :-
आरंभिक जीवन
महात्मा ज्योतिबा फुले का पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव गोंहे था लेकिन बाद में इनका नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले हो गया। इनका जन्म का जन्म 11 अप्रैल 1827 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के कटगुण में हुआ था।
इनके पिता जी का नाम गोविन्दराव था और इनकी माता का नाम चिमणा बाई था। यह एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे जीवन यापन करने के लिए इनके पिताजी बाग़ बगीचों में माली का काम करते थे इसी कारण माली के कार्य में लगे इन लोगो को फुले नामा से जाना जाता था।
कटगुण से उनका परिवार खानवड़ी (पुणे) चला गया था। जब ज्योतिबा मात्र 9 महीने के थे तब उनकी माता जी का देहांत हो गया है जिसके बाद उनका पालन पोषण सगुनाबाई नाम की एक दाई ने किया, उन्होंने जी फुले जी को एक माता का प्यार और ममता दी।
शिक्षा
जब ज्योतिराव गोविंदराव फुले 7 वर्ष के थे तब उनको गॉंव के स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया। लेकिन वहाँ जातिगत भेद-भाव के कारण उन्हें विद्यालय छोड़ना पड़ा।
परन्तु विद्यालय छोड़ने के उपरांत भी उनके पढ़ने की इच्छा ख़त्म नहीं हुई फिर सगुनाबाई ने ज्योतिबा को घर में ही पढ़ने में मदद की। सभी काम खत्म करने के बाद जो टाइम मिलता उसमे वे घर बैठ कर पढाई करते थे।
अरबी, फ़ारसी के विद्वान् गफ्फार बेग मुंशी उनके पडोसी थे। उन्होंने ज्योतिबा की प्रतिभा को पहचाना और उससे प्रभावित होकर उनको पुनः विद्यालय भेजने के लिए पृथक प्रयास किये।
परिणामस्वरूप ज्योतिबा फिर से स्कूल जाने लगे वे हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आते थे। 1846 में ज्योतिबा ने अपनी माध्यमिक शिक्षा स्कॉटिश मिशन हाई स्कूल, पुणे से पूरी की। जिसके बाद उन्होंने 1847 में लहुजी वस्ताद साळवे के पास से शिक्षा ली।
वैवाहिक जीवन
1840 में जब वे 13 वर्ष के थे तो उनका विवाह सावित्री बाई से हुआ था। उस समय सावित्री बाई की उम्र 9 वर्ष थी। दोनों पति पत्नी ने मिलकर समाज सुधारकर के रूप में अपना पूरा जीवन लगा दिया।
दोनों की अपनी कोई संतान ना होने के करना इन्होने एक विधवा औरत से उसका पुत्र गोद लिया था। जो बड़ा होकर डॉक्टर बना और अपने माता पिता की भांति ही देश की समाज सेवा करता रहा।
कैसे मिली स्कूल खोलने की प्रेरणा
1848 में ज्योतिबा फुले के साथ हुई एक घटना ने उनको जाति भेद भाव के प्रति हो रहे सामाजिक अन्याय के प्रति कुछ कदम उठाने के लिए तत्पर कर दिया।
वो घटना कुछ इस प्रकार थी कि जब ज्योतिबा के एक मित्र ने उनको अपनी शादी पर आमंत्रित किया तो ज्योतिबा उस शादी समारोह में शामिल होने के लिए चले गए।
वो शादी ब्राह्मण परिवार की थी यानि उनका वो मित्र ब्राह्मण था। तभी जो लड़की वाले तो उनको फुले जी के अस्तित्व के बारे में पता लगा और ब्राह्मण लड़की वालो ने फुले जी का खूब तिरस्कार किया।
जिसके बाद उन्होंने वो समारोह छोड़ दिया और समाज में हो रहे जाति भेद भाव को और सामाजिक प्रतिबंधों को चुनौती देना का मन बना लिया।
उन्होंने निश्चय किया कि वे वंचित वर्ग के लोगो के लिए स्कूल की स्थापना करेंगे उस समय जात-पात, रंग-भेद, ऊंच -नीच ये सब बहुत माना जाता था।
उस समय दलित वर्ग की शिक्षा और नारियो की शिक्षा के लिए के विद्यार्थी को अपने घर में पढ़ाते थे। बच्चो को छिपा कर लाते और फिर वापस छोड़ कर आते। जैसे जैसे उनके समर्थक बढ़ते गए उन्होंने खुले आम पढ़ाना शुरू कर दिया। और फिर सन 1848 में लड़कियों के लिए एक स्कूल की स्थापना भिड़े गॉंव, बुधवार पेठ, पुणे में की।
स्कूल की स्थापना
शिक्षा के क्षेत्र में औपचारिक रूप से कुछ करने की महत्वाकांक्षा रखते हुए Jyotirao Phule ने सन 1848 में एक स्कूल खोला। नारियो को स्थिति सुधारने के लिए और उनका शिक्षा स्तर बढ़ाने के लिए ये उनका पहला कदम था।
अब इन्हों स्कूल खोल तो दिया था लेकिन यहाँ पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं मिला यदि कोई पढ़ाता भी तो फिर वह सामाजिक दबाव में आ कर यह कार्य छोड़ देता। तब इन्होने इस गंभीर समस्या के हल हेतु अपनी पत्नी को शिक्षित करना प्रारम्भ किया।
उनके इस कार्य में उच्चवर्ग के लोगो ने बाधा डालने की बहुत कोशिश की। जिसके बाद सावित्री बाई फुले प्रशिक्षित होकर देश की पहली महिला शिक्षक बनी।
जब ये दोनों मिलकर निम्न वर्ग के बच्चो और लड़कियों को शिक्षित करने लगे तो लोगो ने इनका बहिष्कार करना आरम्भ कर दिया। और इनके पिता पर दवाब डाल कर दोनों पति पत्नी को घर से निकलवा दिया। गृहत्याग के बाद इन्हे बहुत से समस्याओ का सामना करना पड़ा।
विपरीत परिस्थितियों में भी दोनों ने हार नहीं और अपन लक्ष्य की और अग्रसर होते रहे। और अपने साथक प्रयासों में सफल भी हुए। बाद में इन्होने लड़कियों की शिक्षा के लिए दो स्कूल और खोल दिए। निम्न वर्ग के लिए एक स्वदेशी स्कूल खोला। 1852 में पुणे लाइब्रेरी की स्थापना की।
ज्योतिबा की हत्या करने का प्रयास
1856 में ज्योतिबा की हत्या करने का प्रयास किया गया था। एक दिन जब रात को महात्मा ज्योतिबा फुले घर लौट रहे थे उनको घर जाने के लिए देर हो रही थी रात भी काफी हो चुकी थी इस कारण वे जल्दी जल्दी अपने कदम बढ़ा रहे थे।
तभी उन्होंने देखा कि सामने से 2 व्यक्ति चमचमाती तलवारे लिए जा रहे है। फुले जल्दी से उनके पास पहुंचे और उनसे उनका परिचय एवं इतनी रात में ऐसे घूमने का कारण पूछा तब उन लोगो ने कहा की हम दोनों ज्योतिबा को मारने जा रहे है।
इस बात पर ज्योतिबा ने उनसे पूछा कि ऐसा करने से तुम्हे क्या मिलेगा। उन दो अजनबियों ने बोला ऐसा करने से हमे पैसे मिलेंगे और हमे पैसो की आवश्यकता है।
तभी ज्योतिबा ने बोला की मुझे मारो मैं ही ज्योतिबा हूँ यदि ऐसा करने से तुम्हारा हित होता है तो मुझे ख़ुशी होगी। ये कथन सुनते ही उनके हाथो से तलवारे छूट गयी और वे उनके शिष्य बन गए।
Jyotirao Phule का समाज सुधारक के रूप में योगदान
- 1860 में विधवा विवाह में मदद की।
- 1863 में भूर्ण हत्या को रोकने के लिए एक सगठन की स्थापना की।
- 1964 में गोखले गार्डन में विधवा विवाह होने में मदद की।
- 1873 में सत्य शोधक समाज की स्थापना की
- सत्य शोधक समाज जल्द ही पुरे महाराष्ट्र में फ़ैल गया। और इस समाज ने जगह जगह दलितों और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल खोले, छुआ छूत का विरोध किया। किसानो के हितो की रक्षा के लिए आंदोलन चलाये।
- जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए इन्होने बिना पंडित के ही विवाह संस्कार प्रारंभ किया। जिसके लिए इन्हे बॉम्बे हाई कोर्ट से भी मान्यता प्राप्त हो गयी थी।
- 1876 से 1882 तक फुले पुणे नगर निगम के सदस्य भी रहे।
- 1880 में शराब की दुकानों की शुरुआत करने का विरोध किया।
- 1880 में विलियम हंटर शिक्षा आयोग के सामने प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य करने की मांग की।
- यह बाल विवाह के विरोधी और विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे।
- फुले और उनके संगठन के द्वारा किये गए प्रयासों के कारण सरकार ने एग्रीकल्चर एक्ट पास किया।
महात्मा ज्योतिबा फुले की साहित्य रचनाएँ
फुले बहुमुखी प्रतिभा के धनि थे साथ ही ये एक लेखक भी थे। इनके द्वारा लिखी गयी पुस्तके निम्नलिखित है :-
- तृतीय रत्न
- ब्राह्मणो का चातुर्य
- गुलामगिरी
- छत्रपति शिवाजी
- अछूतो की कैफियत
- किसान का कोड़ा
- सार्वजानिक सत्यधर्म आदि
ज्योतिबा फुले जीवनी से सम्बंधित कुछ प्रश्न उत्तर
फुले का निधन 28 नवंबर 1890 ई० में पुणे में हुआ था।
Jyotirao Phule की सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक उनके निधन के बाद 1891 में प्रकाशित हुई थी
महात्मा ज्योतिबा फुले को 11 मई 1888 में विट्ठलराव कृष्णाजी वंडेकर जी ने महात्मा की उपाधि से सम्मानित किया।
सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1931 में हुआ था और वे भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका और मराठी कवयित्री थी।
ज्योतिबा फुले जयंती प्रत्येक वर्ष 11 अप्रैल को मनाई जाती है।