रामधारी सिंह दिनकर एक भारतीय निबन्धकार, कवि, साहित्यकार के रूप में जाने जाते है। इन्होने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगो में राष्ट्र के प्रति प्रेमपूर्ण भावनाओ को जागरूक किया। आजादी से पहले लिखी गयी कविताओं ने इन्हे राष्ट्रीय कवि की पहचान दिलाई। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन्होंने पहले तो क्रान्तिकारी आंदोलन का समर्थन किया लेकिन बाद में गांधीवाद बन गए।
वे खुद को एक बुरा गांधीवाद कहते थे क्योंकि उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से युवाओ में आक्रोश और बदले की भावना उत्पन्न की थी। दिनकर जी एक राष्ट्र प्रेमी थे देश प्रेम के प्रति यह कविताएं भी लिखते थे। द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित उनके कुरुक्षेत्र काव्य को विश्व में 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वा स्थान प्राप्त है।
आज हम रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय के बारे में विस्तृत रूप से बतायेगे। रामधारी सिंह दिनकर जैसे महान कवि के बारे में अधिक जानने के लिए लेख के अंत तक हमारे साथ जुड़े रहिए :-
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
दिनकर एक भारतीय कवि, लेखक, निबंधकार, स्वतंत्रता सेनानी और संसद के सदस्य भी थे। रामधारी सिंह दिनकर आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रास के कवि के रूप में जाने जाते है।
राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीयता को इनके काव्य की मूल-भूमि मानते हुए इन्हे ‘युग-चारण’ और ‘काल के चारण’ की संज्ञा दी गई है। राष्ट्रवादी भावनाओ से पूर्ण क्रन्तिकारी संघर्ष को प्रेरित करने वाली कविताओं के कारण इनको अपार लोकप्रियता हासिल हुई थी।
इनका जन्म 23 सितम्बर 1908 के बिहार के बेगूसराय जिले के एक छोटे से गाँव सिमरिया में हुआ था। यह एक किसान परिवार से सम्बंधित थे। इनके पिता जी का नाम बाबू रवि सिंह और माता जी का नाम मनरूप देवी था।
दिनकर जब मात्र 2 वर्ष के थे जब उनके पिताजी का देहांतवास हो गया था जिसके बाद पुरे परिवार की जिम्मेदारी उनकी माताजी के ऊपर आ गयी थी।
जिस प्रकार दिनकर जी देशप्रेमी थे और उनसे संबधित कविताएं लिखते थे उसी प्रकार तुलसीदास जी रामभक्ति में लीन होकर काव्यों की रचना करते थे।
शिक्षा
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन बचपन में ही कठिनाइयों से पूर्ण था। सर्वप्रथम इन्होने संस्कृत के एक पंडित के पास शिक्षा प्राप्त करनी शुरू की जिसके बाद इन्होने गाँव के ही प्राथमिक स्कूल से अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की।
जिसके बाद पास के ही एक बोरो नामक गॉंव में आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वहाँ प्रवेश ले लिया। स्कूल जाने के लिए गंगा घाट पार करके काफी दूर तक पैदल जाना पड़ता था। मोकामाघाट हाई स्कूल से इन्होने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण की। यही से इनके जीवन में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा।
1928 में इन्होने अपनी मैट्रिक पूरी कर ली थी। फिर इन्होने पटना विश्विद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए(B.A.) की। साथ ही इन्होने साहित्यकर के रूप संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू भाषाओ में महारत हासिल की थी।
कार्यक्षेत्र
बीए करने के बाद आजीविका चलाने के लिए एक स्कूल में अध्यापक बन गए थे जिसके बाद 1934 में बिहार सरकार के सब रजिस्टार के रूप में कार्य किया। उस समय अंग्रेज सरकार भारत पर अपना राज ज़माने की सोच रही थी तब इन्होने अंग्रोजे के खिलाफ बहुत सी कविताएं लिखी।
आजादी के बाद यह मुजफ्फरनगर के विश्विद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष में रूप में नियुक्त किये गए। 1952 में जब प्रथम संसद का निर्माण हुआ तो इनको राजयसभा के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया जिसके बाद वे दिल्ली आ गए।
12 वर्षो तक ये संसद के सदस्य रहे। जिसके बाद 1964 में इनको भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया। फिर एक साल बाद यानि 1965 में भारत सरकार द्वारा उनको हिंदी सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया जहाँ उन्हीने 6 साल तक कार्य किया।
साहित्य जीवन
रामधारी सिंह दिनकर जी की गिनती आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाती है। इनका नाम विशेष रूप से राष्ट्रीय चेतना, जाग्रति उत्पन्न करने वाली कवियों में आता है।
हाई स्कूल के दिनों में ही ओज, विद्रोह, आक्रोश के साथ कोमल भावनाओ के रामधारी सिंह दिनकर के मन में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। एक कवि के रूप में उनका जीवन 1935 से शुरू हुआ। जब रेणुका प्रकाशित हुई और हिन्दी जगत के लिए एक नई शैली, नई भाषा, नई शक्ति उभर कर आयी।
जिसके तीन वर्ष बाद हुंकार प्रकाशित हुई। जिसके बाद देश के युवा वर्ग ने उनकी कविताओं को कंठहार बना लिया। सभी के लिए यह अब राष्ट्रीयता, विद्रोह एवं क्रांति के कवि माने जाने लगे। द्वितीय महायुद्ध के समय कुरुक्षेत्र प्रकाशित हुई जिसकी मूल प्रेरणा युद्ध नहीं बल्कि देश के प्रति भक्ति थी। रामधारी सिंह दिनकर के प्रथम तीन काव्य संग्रह प्रमुख है जो निम्नलिखित है :-
1). रेणुका (1935) :- रेणुका में अतीत के गौरव के प्रति कवि का सम्मान और आकर्षण झलकता है लेकिन साथ ही वर्तमान परिवेश की नीरसता से परेशान मैं की पीड़ा का भी परिचय देखने को मिलता है।
2). हुंकार (1938):- हुंकार में कवि अतीत के गौरव गान की अपेक्षा वर्तमान समय के दैत्य के प्रति क्रोध प्रदर्शन की ओर अधिक उन्मुख नजर आता है।
3). रसवंती (1939):- रसवंती में कवी की सौंदर्य खोज व्रती काव्यात्मक हो जाती है परन्तु कवि का लक्ष्य अँधेरे में सौंदर्य की खोज नहीं बल्कि प्रकाश में ज्ञात सौंदर्य की आराधना है।
काव्य रचना
काव्य संग्रहो के अतिरिक्त दिनकर जी ने अनेक प्रबंध काव्यों की रचना भी की है। जिनमे उर्वशी, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी प्रमुख है। कुरुक्षेत्र में दिनकर ने महाभारत के शांति पर्व के मूक कथानक की रूपलेखा लेते हुए भीष्म और युधिष्ठिर के मध्य संवाद के रूप में शांति एवं युद्ध के विस्तृत, गंभीर और महत्वपूर्ण विषयो पर अपने विचार प्रस्तुत किये है।
इस तरह का विचार तत्व दिनकर के किसी भी काव्य में उभरकर नहीं आया था। कुरुक्षेत्र के बाद उर्वशी में फिर से विचार तत्व की प्रधानता देखने को मिलती है। उर्वशी को स्वयं दिनकर जी ने कामाध्याय की उपाधि दी थी। इस कविता ने दिनकर जी की कविताओं को एक नए शिखर पर पहुँचा दिया था।
जिसके बाद दिनकर ने अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी किया है, जिनमें ‘अनुग्रह अभिनन्दन ग्रन्थ‘ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। रामधारी सिंह दिनकर साहित्य के ऐसे सशक्त हस्ताक्षर हैं जिनकी कलम में दिनकर यानी सूर्य की भाँति चमक थी।
भाषा शैली
रामधारी सिंह दिनकर की भाषा शैली साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमे संस्कृत के तत्सम शब्दों का उपयोग हुआ है। कही कही पर उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का भी इस्तेमाल भी देखने को मिलता है जिस कारण उनकी भाषा प्रवाहमयी हो जाती है।
इनकी भाषा शैली भावो के अनुकूल परिवर्तनशील भी है। कही कही व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धिया भी है। दिनकर जी की रचनाओं की भाषा में विशेषकर वीर, रौद्र, करुण एवं शांत रसो का सफलतापूर्वक प्रयोग देखने को मिलता है।
काव्य कृतियाँ
- बारदोली-विजय संदेश (1928)
- प्रणभंग (1929)
- रेणुका (1935)
- हुंकार (1938)
- रसवन्ती (1939)
- द्वंद्वगीत (1940)
- कुरूक्षेत्र (1946)
- धूप-छाँह (1947)
- सामधेनी (1947)
- बापू (1947)
- इतिहास के आँसू (1951)
- धूप और धुआँ (1951)
- मिर्च का मजा (1951)
- रश्मिरथी (1952)
- दिल्ली (1954)
- नीम के पत्ते (1954)
- नील कुसुम (1955)
- सूरज का ब्याह (1955)
- चक्रवाल (1956)
- कवि-श्री (1957)
- सीपी और शंख (1957)
- नये सुभाषित (1957)
- लोकप्रिय कवि दिनकर (1960)
- उर्वशी (1961)
- परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
- आत्मा की आँखें (1964)
- कोयला और कवित्व (1964)
- मृत्ति-तिलक (1964)
- दिनकर की सूक्तियाँ (1964)
- हारे को हरिनाम (1970)
- संचियता (1973)
- दिनकर के गीत (1973)
- रश्मिलोक (1974)
- उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ (1974)
गद्य कृतियाँ
- मिट्टी की ओर (1946)
- चित्तौड़ का साका (1948)
- अर्धनारीश्वर (1952)
- रेती के फूल (1954)
- हमारी सांस्कृतिक एकता (1955)
- भारत की सांस्कृतिक कहानी (1955)
- संस्कृति के चार अध्याय (1956)
- उजली आग (1956)
- देश-विदेश (1957)
- काव्य की भूमिका (1958)
- पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण (1958)
- वेणुवन (1958)
- धर्म, नैतिकता और विज्ञान (1969)
- वट-पीपल (1961)
- लोकदेव नेहरू (1965)
- शुद्ध कविता की खोज (1966)
- साहित्य-मुखी (1968)
- राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी (1968)
- हे राम! (1968)
- संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ (1970)
- भारतीय एकता (1971)
- मेरी यात्राएँ (1971)
- दिनकर की डायरी (1973)
- चेतना की शिला (1973)
- विवाह की मुसीबतें (1973)
- आधुनिक बोध (1973)
पुरस्कार
- 1959 में साहित्य के चार अध्याय के लिए रामधारी सिंह दिनकर जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।
- 1959 में इनको भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से अलंकृत किया गया था। यह पुरस्कार इनको भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा दिया गया था।
- उर्वशी के लिए इनको ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था।
- 1999 में भारत सरकार द्वारा इनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया।
- दिनकर जी को उनकी रचना कुरुक्षेत्र के लिए काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार और भारत सरकार से सम्मान मिला।
- 1968 में दिनकर जी को राजस्थान विद्यापीठ ने साहित्य चूड़ामणि से सम्मानित किया गया।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय से सम्बंधित प्रश्न उत्तर
पहली बार 1952 में रामधारी सिंह दिनकर संसद के सदस्य मनोनीत किये गए थे।
रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु 24 अप्रैल 1974 में तमिलनाडु में हुई थी।
1928 में प्रकाशित ‘बारदोली-विजय’ संदेश उनका पहला काव्य-संग्रह था।
बारदोली-विजय संदेश (1928), प्रणभंग (1929), रेणुका (1935), हुंकार (1938), रसवन्ती (1939), द्वंद्वगीत (1940), कुरुक्षेत्र (1946), धूप-छाँह (1947)
रामधारी सिंह दिनकर जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस राजनीति पार्टी से सम्बंधित थे।