महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – Mahadevi Verma ka Jivan parichay

हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक माने जाने वाली महादेवी वर्मा है। इन्होने हिंदी कविताओं में खड़ी बोली का कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल ब्रजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। महादेवी वर्मा एक कवयित्री होने के साथ साथ एक संस्मरणकार, रेखाचित्रकार, गद्य लेखिका एवं ... Read more

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Reported by Rohit Kumar

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हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक माने जाने वाली महादेवी वर्मा है। इन्होने हिंदी कविताओं में खड़ी बोली का कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल ब्रजभाषा में ही संभव मानी जाती थी।

महादेवी वर्मा एक कवयित्री होने के साथ साथ एक संस्मरणकार, रेखाचित्रकार, गद्य लेखिका एवं निबंधकार भी है। ये संगीत की अच्छी जानकार भी है। उन्हें साहित्य जगत के बहुत से महत्वपुर्ण पुरस्कारो से भी सम्मानित किया जा चुका है। हिंदी साहित्य जगत में महादेवी वर्मा का नाम उसी भाँति चमकता है जिस भाँति आकाश में ध्रुव तारा चमकता है।

तो आज हम ऐसी ही महान कवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – Mahadevi Verma ka Jivan parichay जानेगे। लेख सम्बन्धी विषय के बारे अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए लेख के अंत तक हमारे साथ जुड़े रहे :-

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय - Mahadevi Verma ka Jivan parichay
Mahadevi Verma ka Jivan parichay

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा एक सादा जीवन व्यतीत करने वाली महिला थी। इन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन नारी के अधिकारों के लिए न्यौछावर कर दिया। यह एक महान लेखिका होने के साथ साथ एक महिला समाज सुधारक भी थी तो चलिए महादेवी वर्मा जी के बारे में विस्तार से जानते है।

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प्रारंभिक जीवन

महादेवी वर्मा जी का जन्म 26 मार्च 1907 में फर्रुखाबाद, उत्तरप्रदेश में हुआ था। इनके जन्म के दिन भाग्यवश होली का पावन त्यौहार भी था।इनके पिता जी का नाम श्री गोविन्द प्रकाश वर्मा था जो भागलपुर गाँव के एक कॉलेज में प्रधानाध्यापक थे।

इनकी माता जी का नाम श्रीमती हेमरानी देवी था जो एक परम विदुषी धार्मिक, कर्मनिष्ठ, भावुक महिला थी और साथ ही वे हिंदी विषय में ख़ास रूचि रखती थी महादेवी जी का कहना है कि उनकी माता जी से ही उन्हें हिंदी के प्रति रुझान संस्कार के रूप में मिला था।

ऐसा माना जाता है कि कई पीढ़ियों से उनके परिवार में किसी पुत्री का जन्म नहीं हुआ था। तो उनके दादा जी बाबू बाँके बिहारी जी ने देवी की उपासना की। जिसके परिणाम स्वरुप महादेवी वर्मा का जन्म हुआ और इसी कारण इनका नाम महादेवी रखा गया।

सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला उनके मानस बंधू थे जिनको वे राखी भी बांधती थी। निराला जी से उनकी अत्यधिक निकटता थी करीब 40 वर्षो तक महादेवी वर्मा जी ने इनकी कलाई पर राखी बाँधी थी। बचपन से ही महादेवी वर्मा जी को चित्रकला, काव्यकला, संगीतकला में बेहद रूचि थी।

शिक्षा

आरंभिक शिक्षा महादेवी वर्मा जी ने इंदौर के मिशन स्कूल से की और साथ ही इनको संगीत, चित्रकला, संस्कृत और अंग्रेजी की शिक्षा घर पर ही दी जाती थी।

1916 ई० में मात्र 9 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह हो जाने के कारण उनकी पढाई बीच में स्थगित हो गयी थी। विवाह के बाद 1919 में इन्होने क्रास्टवेट कॉलेज इलाहबाद में प्रवेश ले लिया और वहीं छात्रावास में रहने लगी।

1921 में इन्होने आठवीं कक्षा प्रथम स्थान से उत्तीर्ण की। 1925 में उन्होंने मैट्रिक पास की। एम. ए. करने के लिए प्रयाग यूनिवर्सिटी चली गयी। उन्होंने 1932 में संस्कृत से एम. ए. उत्तीर्ण की।

वैवाहिक जीवन

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1916 में जब महादेवी वर्मा केवल 9 वर्ष की थी तब उनके दादा जी बाबू बांके बिहारी जी ने उनका विवाह बरेली के श्री स्वरुप नारायण वर्मा के साथ करा दिया था।

उस समय वे खुद दसवीं कक्षा के छात्र थे। स्वरुप नारायण मैट्रिक पास करने के बाद लखनऊ मेडिकल कॉलेज चले गए थे और वह पर ही बोर्डिंग हाउस में रहने लगे थे। उस समय महादेवी वर्मा भी क्रास्टवेट कॉलेज इलाहबाद के छात्रावास में रहती थी।

उस समय महादेवी वर्मा को अपने वैवाहिक जीवन में कोई रूचि नहीं थी। स्वरुप नारायण एक अच्छे इंसान थे इसलिए महादेवी वर्मा जी को उनसे कोई वैमनस्य नहीं था। वैवाहिक जीवन भले ही उनका अच्छा न हो लेकिन एक सामान्य स्त्री पुरुष की भाँति उनका संबंध मधुर था।

दोनों की एक दूसरे से पत्र के माध्यम से बाते भी होती थी और कभी कभी नारायण जी उनसे मिलने भी जाते थे। महादेवी जी का जीवन एक सन्यासी की तरह ही बीता उन्होंने सम्पूर्ण जीवन स्वेत वस्त्र ही पहने और सादा जीवन ही बिताया। 1966 में पति की मृत्यु होने के बाद महादेवी वर्मा जी स्थायी रूप से इलाहबाद में ही रहने लगी।

साहित्यिक जीवन

जब वे केवल 7 वर्ष की थी तभी उन्होंने कविता लिखनी प्रारम्भ कर दी थी। आठवीं कक्षा के उपरांत उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत कर दी थी और 12वी कक्षा पास करने तक वे एक कवयित्री के रूप में विख्यात हो चुकी थी। जिसके बाद विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा। एम.ए. करने तक उनके 2 काव्य संग्रह(नीहार, रश्मि) भी प्रकाशित हो चुके थे।

जब वे प्रयाग में अध्ययन के लिए गयी थी तो वे एक छात्रावास में रही थी छात्रावास कक्ष में उनकी रूममेट सुभद्राकुमारी चौहान भी उनके साथ रहती थी। सुभद्राकुमारी चौहान के साथ महादेवी वर्मा का सहित्यिक आदान प्रदान हुआ। जिसके परिणाम स्वरुप ही जो महादेवी जी के अंदर बीज रूपी साहित्यिक संस्कार मौजूद थे वे उभर कर एक दिशा प्राप्त करने लगे। सुभद्राकुमारी चौहान ने उनको काव्य जीवन में आगे बढ़ने के लिए बेहद प्रोत्साहित किया था।

कार्य क्षेत्र

एम.ए. करने के बाद महादेवी वर्मा जी को प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्रधानाचार्या का पद मिला। इन्होने महिलाओ के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनका कहना था कि नारियो को शिक्षित होना आवश्यक है इन्होने नारी स्वतंत्रता के लिए विभिन्न संघर्ष किए।

कुछ वर्षो तक ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद की मनोनीत सदस्य भी रही। 1923 में इन्होने महिलाओ की स्थितियों से सम्बंधित एक प्रमुख पत्रिका चाँद का भी संपादन किया।

1930 में नीहार, 1932 में रश्मि, 1935 में नीरजा, 1936 में सांध्यगीत नामक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। 1939 में चारो संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ यामा नाम से प्रकाशित किया गया। इनके अलावा उनके और भी बहुत से काव्य, गद्य, निबंध प्रकाशित हुआ। और आज वे एक महान कवयित्री के रूप में जानी जाती है।

प्रमुख कृतियाँ

काव्य संग्रह

नीहार(1930) :- नीहार महदेवी वर्मा जी का प्रथम काव्य संग्रह है। यह गाँधी हिंदी पुस्तक भण्डार, प्रयाग द्वारा प्रकशित किया गया था।

रश्मि (1932) :- इसमें 1927 से 1931 तक का महादेवी जी का दर्शन और चिंतन पक्ष मुखर प्रतीत होता है।

नीरजा (1935):- इस संग्रह के गीतों में महादेवी जी के जीवनदृष्टि का विकसित रूप दृष्टिगोचर होता है। इसमें 1931 से 1934 तक की रचनाएँ है।

सांध्यगीत (1936) :- इसमें 1934 से 1936 तक के रचित गीत है। इस कविता संग्रह में श्रृंगारपरक गीतों को संकलित किया गया है। इसमें सुख-दुःख, आंसू, वेदना, आसा, निराशा, विरह आदि का समन्वय है।

दीपशिखा (1942) :- इसमें 1936 से 1942 तक के गीत है। इस काव्य संग्रह में 147 पृष्ठ है। यह लोकभारती प्रकाशन इलाहबाद द्वारा प्रकाशित किया गया था।

रेखाचित्र संस्मरण

  • अतीत के चलचित्र (1941)
  • स्मृति की रेखाएँ (1943)
  • पथ के साथी (1956)
  • मेरा परिवार (1972)

निबंध संग्रह

  • श्रृंख्ला की कड़ियाँ (1942)
  • विवेचनात्मक गद्य (1942)
  • साहित्यकार की आस्था एवं अन्य निबंध (1962)
  • संकल्पिता (1969)
  • श्रणदा

बाल साहित्य

  • ठाकुर जी भोले है
  • आज खरीदेगे हम ज्वाला

महादेवी वर्मा से समबन्धित रोचक तथ्य

  • छायावाद की कवयित्री महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है।
  • उनकी अनुदित कृति सप्तपर्ण 1959 में प्रकाशित हुई थी
  • बौद्ध धर्म के प्रति उनकी विशेष आस्था थी।
  • उन्होंने वैदिक, लौकिक एवं बौद्ध साहित्य का काव्यानुवाद भी किया है।
  • निराला ने उन्हें हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती भी कहा है।
  • उन्होंने एक पत्रिका का संपादन भी किया जिसका नाम था चाँद
  • महादेवी वर्मा के मानस बंधू (माने हुए भाई) पंत और निराला थे।
  • महादेवी जी ने हिंदी लेखकों की सहायता के लिए 1955 में साहित्यकार संसद नामक एक संस्था इलाहबाद में स्थापित की।
  • इन्होने भारत में महिला कवि सम्मलेन की नीव रखी।
  • महिला विद्यापीठ प्रयाग में 15 अप्रैल 1933 को सुभद्राकुमारी की अध्यक्षता में महादेवी वर्मा जी ने पहला अखिल भारतीय महिला कवि सम्मलेन संपन्न किया।
  • उमागढ़ गाँव में मीरा मंदिर नाम का बांग्ला बनवाया जो अब महादेवी साहित्य संग्राहलय के नाम से जाना जाता है।

पुरस्कार एवं सम्मान

  • 1934 ई० में नीरजा नामक काव्यकृति के लिए में सेकसरिया पुरस्कार से भी नवाजा गया था।
  • 1942 में स्मृति के रेखाएं रेखाचित्र संग्रह के लिए द्विवेदी पदक से सम्मानित किया गया।
  • 1943 में मंगलाप्रसाद पारितोषिक और भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • 1952 में उत्तरप्रदेश विधान परिषद की सदस्य मनोनीत हुई।
  • 1956 में भारत सरकार द्वारा साहित्यिक सेवा के लिए पद्म भूषण की उपाधि दी गयी।
  • 1971 में महादेवी वर्मा जी साहित्य अकादमी में सदस्य्ता प्राप्त करने वाली पहली महिला बनी।
  • 1982 में यामा ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया।
  • 1988 में मरणोपरांत पद्मा विभूषण से सम्मानित किया गया।
  • 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय, 1977 में कुमाऊ विश्विद्यालय, 1980 में दिल्ली विश्विद्यालय, 1984 में बनारस हिन्दू विश्विद्यालय में उन्हें डी.लिट. की उपाधि दी गयी।
  • भारत की 50 यशश्वी महिलाओ में महादेवी वर्मा जी का नाम भी शामिल है।
  • 16 सितम्बर 1991 में डाकतार विभाग द्वारा उनके सम्मान में 2 रूपए का युगल डाक टिकट भी जारी किया गया था।

उपर्युक्त आर्टिकल में हमने आपको महादेवी वर्मा जी का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं के बारे में बताया है यदि आप जयशंकर प्रसाद की रचनाओं के बारे में जानना चाहते है तो यहाँ देख सकते है।

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय से सम्बंधित कुछ प्रश्न उत्तर

महादेवी वर्मा जी का स्वर्गवास कब हुआ था ?

11 सितम्बर 1986 में महान कवयित्री महादेवी वर्मा जी का स्वर्गवास हुआ था।

मनोनीत सदस्य कौन होते है ?

मनोनीत सदस्य वे होते है जो जिन्हे राष्ट्रपति द्वारा चुना जाता है न कि जनता द्वारा।

पद्म भूषण सम्मान क्या है ?

भारत का दूसरा सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण सम्मान है।

मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरुस्कार क्या है ?

मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार आधुनिक युग में साहित्य क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे सम्मानित पुरुस्कार है।

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