तुलसीदास जी का जीवन परिचय | Biography of Tulsidas in Hindi

तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के महान कवि और भक्त थे। उनका जन्म 1511 में सोरों, उत्तर प्रदेश में हुआ था। तुलसीदास जी ने अपना जीवन भगवान राम की भक्ति में बिताया। उन्होंने अयोध्या, चित्रकूट, और काशी में रहकर भगवान राम की आराधना की। तुलसीदास जी को हिंदी साहित्य का सबसे महान कवि माना जाता है।

Photo of author

Reported by Dhruv Gotra

Published on

तुलसीदास (Tulsidas) जी एक बैरागी साधु, हिंदी साहित्य के महान कवि, साहित्यकार एवं दार्शनिक थे। तुलसीदास जी ने अपने जीवन काल में राम भक्ति में लीन रहकर अनको ग्रंथों की रचनाएं कीं। तुलसीदास द्वारा रचित “रामचरितमानस” एक पुरातन पौराणिक बहु प्रसिद्ध ग्रंथ है। जिसे एक महाकाव्य के रूप में भी जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बताते चलें की श्री रामचरितमानस को विश्व के सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46वां स्थान प्राप्त है। तुलसी दास जी ने रामचरितमानस के अलावा, वाल्मीकि ऋषि, गीतावली, दोहावली, संस्कृत रामायण आदि काव्यों की रचना की थी। तुलसीदास जी भगवान राम के सच्चे भक्त एवं अनुयायी थे।

कुछ लोग मानते हैं की गोस्वामी तुलसीदास जी त्रेता युग में रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि के अवतार थे। परन्तु इस संबंध में विद्वानों की राय बंटी हुई है। दोस्तों आज का हमारा आर्टिकल तुलसी दास (Tulsidas) जी के सम्पूर्ण जीवन से जुड़ी घटनाएं, रचनायें, भक्ति प्रसंग आदि की जानकारियों पर आधारित है।

यदि आप गोस्वामी तुलसीदास के जीवन (Goswami Tulsidas ka Jivan Parichay) के बारे में जानने के इच्छुक हैं तो आपको हमारा यह आर्टिकल ध्यानपूर्वक अंत तक जरूर पढ़ना चाहिए।

यह भी देखें: महान संत तुकाराम महाराज का जीवन परिचय

तुलसीदास जी का जीवन परिचय (Biography of Tulsidas):

पूरा नाम (Full Name)गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulasidas)
बचपन का नाम (Childhood’s Name)रामबोला
उपनाम (Nick Name)गोस्वामी, अभिनव वाल्मीकि, इत्यादि
जन्मतिथि (Date of birth)1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०)
उम्र (Age)मृत्यु के समय 112 वर्ष
जन्म स्थान (Place of birth)सोरों शूकरक्षेत्र, कासगंज, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु (Death)1623 ई० (संवत 1680 वि०)
मृत्यु का स्थान (Place of Death)वाराणसी, उत्तर प्रदेश
गुरु / शिक्षक (Teacher)नरसिंहदास
धर्म (Relegion)हिन्दू
दर्शन (Philosophy)वैष्णव
तुलसीदास जी प्रसिद्ध कथन (Quotes)सीयराममय सब जग जानी।
करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी॥
(रामचरितमानस १.८.२)
प्रसिद्ध साहित्यिक रचनायेंरामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, इत्यादि

तुलसीदास जी का परिवार (Family):

पिता का नाम (Father)आत्माराम शुक्ल दुबे
माँ का नाम (Mother)हुलसी दुबे
पत्नी का नाम (Wife)बुद्धिमती (रत्नावली)
बच्चो के नाम (Children)बेटा  – तारक
शैशवावस्था में ही निधन
तुलसीदास जी का जीवन परिचय
Tulsidas ka Jivan Parichay

तुलसीदास जी का शुरूआती जीवन (Early life):

  • ऐतिहासिक जानकारी और साक्ष्य के आधार पर बात करें तो गोस्वामी तुलसी दास जी का जन्म 1511 ईस्वी में कासगंज, उत्तर प्रदेश में एक सर्यूपारिय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। लेकिन कुछ विद्वान मानते हैं की तुलसी दास जी का जन्म राजापुर जिले के चित्र कूट में हुआ था।
  • मुग़ल शासक अकबर को तुलसीदास जी का समकालीन सम्राट माना जाता है। तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्मा राम शुक्ल दुबे एवं माता जी का नाम हुलसी दुबे था तुलसीदास जी की माता एक आध्यात्मिक महिला एवं गृहणी थीं।
  • तुलसी दास जी के जन्म के संबंध में एक बहुत ही चर्चित प्रसंग सुनने को मिलता है की तुलसी दास जन्म के समय 12 माह तक अपनी मां के गर्भ में थे। जब तुलसी दास जी का जन्म हुआ तो वह काफी हष्ट-पुष्ट बालक के रूप में दिखाई दे रहे थे एवं तुलसी दास जी के मुंह में दांत थे।
    अपने जन्म के साथ ही तुलसी दास ने राम नाम लेना शुरू कर दिया था। जिस कारण तुलसी दास जी के बचपन का नाम “रामबोला” पड़ गया। जन्म की यह सब घटनाएं देख उनके आस पास के रहने वाले लोग बहुत ही आश्चर्य चकित थे।

तुलसीदास जी की शिक्षा (Education):

  • तुलसी दास जी की प्रारम्भिक शिक्षा उनके गुरु नर सिंह दास जी के आश्रम में हुई थी। जब तुलसी दास जी 7 वर्ष के थे तो उनके माता-पिता ने प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा के लिए श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) के आश्रम भेज दिया था।
  • नर सिंह बाबा जी के आश्रम में रहते हुए तुलसीदास जी ने 14 से 15 साल की उम्र तक सनातन धर्म, संस्कृत, व्याकरण, हिन्दू साहित्य, वेद दर्शन, छः वेदांग, ज्योतिष शास्त्र आदि की शिक्षा प्राप्त की।
  • रामबोला के गुरु नर सिंह दास ने ही रामबोला का नाम गोस्वामी तुलसीदास रखा था।
  • अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद तुलसीदास जी अपने निवास स्थान चित्रकूट वापस आ गए और लोगों राम कथा , महाभारत कथा आदि सुनाने लगे।

तुलसीदास का तपस्वी बनना:

  • तुलसीदास जी का तपस्वी और जीवन की मोह माया को त्याग देने के संबंध में एक प्रसंग बहुत प्रचलित है।
  • तुलसीदास जी का विवाह बुद्धिमती नाम की लड़की से 1526 ईस्वी (विक्रम संवत 1583) में हो गया था। बुद्धिमती को लोग रत्नावली के नाम से अधिक जानते थे।
  • विवाह के पश्चात तुलसीदास जी अपनी पत्नी के साथ राजापुर नामक स्थान में रहा करते थे। तुलसीदास और रत्नावली दम्पति का एक पुत्र था जिसका नाम तारक था। लेकिन किसी कारण वश बहुत ही कम उम्र में तारक की मृत्यु शयन अवस्था में हो गई थी।
  • पुत्र की मृत्यु के बाद तुलसीदास जी का अपनी पत्नी से लगाव कुछ अधिक ही बढ़ गया था। तुलसीदास जी किसी भी हालत में अपनी पत्नी से अलगाव सहन नहीं कर सकते थे।
  • दुःख से पीड़ित तुलसीदास जी की पत्नी एक दिन बिना बताये अपने मायके चली गई। जब तुलसीदास जी को इसके बारे में पता चला तो वह रात को चुपके से अपनी पत्नी से मिलने ससुराल पहुंच गए।
  • यह सब देख रत्नावली बहुत ही ज्यादा शर्म की भावना महसूस हुई। और रत्नावली ने तुलसीदास जी से कहा “ये मेरा शरीर जो मांस और हड्डियों से बना है। जितना मोह आप मेरे साथ रख रहे हैं अगर उतना ध्यान भगवान राम पर देंगे तो आप संसार की मोह माया को छोड़ अमरता और शाश्वत आनंद प्राप्त करेंगे।
  • अपनी पत्नी की यह बात तुलसीदास जी को एक हृदयघात करती हुई एक तीर की तरह चुभी और उन्होंने घर को त्यागने का मन बना लिया। जिसके बाद तुलसीदास जी घर छोड़कर तपस्वी बन गए। तपस्वी बनकर तीर्थ स्थानों का भ्रमण करने लगे।
  • चौदह साल तक विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर अंत में तुलसीदास जी वाराणसी पहुंचे। वाराणसी पहुंचकर तुलसीदास आश्रम बनाकर रहने लगे और लोगों को धर्म, कर्म, शास्त्र, आदि की शिक्षा देने लगे।

तुलसीदास जी की हनुमान जी से मुलाक़ात:

tulsidas jii meet lord hanuman
जब तुलसीदास जी भगवान हनुमान से मिलें

दोस्तों आपको बता दें की तुलसीदास जी की रचनाओं में बहुत सी जगहों पर हनुमान जी से मुलाकात का वर्णन किया है। अपनी रचना में तुलसीदास जी लिखते हैं की जब वह वैराग्य धारण कर वाराणसी में रह रहे थे। तो एक दिन बनारस के घाट पर तुलसीदास जी की मुलाक़ात एक साधु से होती है जो भगवा वस्त्र पहने राम नाम का जाप करते हुए गंगा की ओर स्नान करने लिए जा रहा था। अचानक ही मार्ग में तुलसीदास जी उस साधु से टकराते हैं। टकराने के बाद तुलसीदास जी चिल्लाते हुए कहते हैं की हे साधु महाराज मैंने आपको पहचान लिया है, मुझे पता है आप कौन हैं। हे साधु महाराज आप मुझे इस से छोड़कर नहीं जा सकते। तुलसीदास जी इतना कहने पर साधू ने कहा “हे तपस्वी भगवान राम आपका भला करें” इतना कहकर साधू ने तुलसीदास जी को आशीर्वाद दिया और अपने स्थान की ओर चले गए। हनुमान जी ने तुलसीदास जी का मार्ग दर्शन करते हुए बताया की जब तुम चित्रकूट आओगे तो तुम्हें भगवान राम के दर्शन होंगे।

व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp

तुलसीदास जी की भगवान राम (lord Ram) जी से मुलाक़ात:

goswami-tulasidas-chitrakoot-ghaat-meet-lord-ram.jpg
जब तुलसीदास भगवान राम से मिले।

रामचरितमानस में एक प्रसिद्ध प्रसंग मिलता है जब तुलसीदास जी भगवान राम से भेंट की। घटना कुछ इस प्रकार है की रामभक्ति में लीन रहने वाले तुलसीदास जी एक समय जब उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित चित्रकूट के रामघाट में आश्रम बना कर रहते थे। तो एक दिन तुलसीदास जी कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने गए हुए थे। जहाँ तुलसीदास जी ने दो राजकुमारों को घोड़े पर सवार आते देखा लेकिन तुलसीदास जी ना तो उन दोनों राजकुमारों को पहचान सके और ना ही उन दोनों राजकुमारों के बीच अंतर जान सके। इस घटना के बाद जब अगली सुबह नदी के किनारे घाट पर तुलसीदास जी चंदन का लेप बना रहे थे तो दो राजकुमार तपस्वी का भेष बनाकर तुलसीदास जी एक आश्रम आते हैं। राजकुमारों को देख तुलसीदास जी उनको पहचान लेते हैं यह भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण है।

तुलसीदास जी राजकुमारों को देखकर कहते हैं की भगवान मैं आपको पहचान गया। आपको मेरा प्रमाण। मेरी इस कुटिया में आपका स्वागत है। इसके बाद भगवान राम तुलसीदास जी के पास गए और चंदन के लेप का तिलक माँगा। तुलसीदास जी ने भगवान राम के माथे पर तिलक लगाया और पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया। इस तरह से भगवान राम का मिलन तुलसीदास जी से हुआ।

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

भगवान राम से भेंट के संबंध में तुलसीदास जी ने उपरोक्त में बताया है। इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं की भगवान राम की मनमोहक अद्भुत छवि को देखकर वह मंत्र मुग्ध हो गए और अपनी सुध-बुध खो बैठे। जब भगवान राम ने तिलक लगाने को कहा तो तुलसीदास जी तब ज्ञात हुआ की यह प्रभु श्री राम है। जिसके बाद तुलसीदास जी ने श्री राम को चन्दन का तिलक लगाया और भक्ति अवस्था में लीन होकर अंतर्ध्यान हो गए।

तुलसीदास जी की प्रसिद्ध रचनाएँ

तुलसीदास जी ने अपने 112 वर्ष के लम्बे जीवन काल में अनको काव्य रचनाएं की। यहां हमने तुलसीदास जी की रचनायें और उनके प्रकाशित वर्ष की जानकारी दी है।

रचनायें प्रकाशित वर्ष
रामचरितमानस1574 ईस्वी
रामललानहछू1582 ईस्वी
वैराग्यसंदीपनी1612 ईस्वी
सतसई
बरवै रामायण1612 ईस्वी
हनुमान बाहुक
कविता वली1612 ईस्वी
गीतावली
श्रीकृष्णा गीतावली1571 ईस्वी
पार्वती-मंगल1582 ईस्वी
जानकी-मंगल1582 ईस्वी
रामाज्ञाप्रश्न
दोहावली1583 ईस्वी
विनय पत्रिका1582 ईस्वी
छंदावली रामायण
कुंडलिया रामायण
राम शलाका
झूलना
हनुमान चालीसा
संकट मोचन
करखा रामायण
कलिधर्माधर्म निरूपण
छप्पय रामायण
कवित्त रामायण
रोला रामायण

तुलसीदास जी की रचनाओं से संबंधित Quotes:

  • गीतावली: तुलसीदास जी ने अपनी रचना गीतवाली में रामायण के प्रसिद्ध प्रसंग भरत और राम के मिलन को गीत के रूप में प्रदर्शित किया है। यह काव्य रामचरितमानस का ही एक भाग है। गीत में आपको रामायण के उत्तरकाण्ड कथा की झलक देखने को मिलती है।
    इसके अलावा आपको गीतावली में सीता मां के वाल्मीकि आश्रम में आने का प्रसंग भी देखने को मिलता है। हमने यहां गीतावली काव्य के कुछ दोहों और पंक्तियों को आपके सामने रखा है। जो इस प्रकार से हैं –

कैकेयी जौ लौं जियत रही।
तौ लौं बात मातु सों मुह भरि भरत न भूलि कही।।
मानी राम अधिक जननी ते जननिहु गँसन गही।
सीय लखन रिपुदवन राम-रुख लखि सबकी निबही।।
लोक-बेद-मरजाद दोष गुन गति चित चखन चही।
तुलसी भरत समुझि सुनि राखी राम सनेह सही।।
भोग पुनि पितु-आयु को, सोउ किए बनै बनाउ।
परिहरे बिनु जानकी नहीं और अनघ उपाउ।।
पालिबे असिधार-ब्रत प्रिय प्रेम-पाल सुभाउ।
होइ हित केहि भांति, नित सुविचारु नहिं चित चाउ।।

गीतवाली, तुलसीदास
  • दोहावली: दोहावली काव्य रचना में तुलसीदास ने भगवान राम के चरित्र का वर्णन किया है। चरित्र वर्णन के साथ तुलसीदास जी ने इस काव्य में भगवान राम के मनमोहक शांत स्वरुप को प्रदर्शित किया है।

दिएँ पीठि पाछें लगै सनमुख होत पराइ।
तुलसी संपति छाँह ज्यों लखि दिन बैठि गँवाइ।।

दोहे का अर्थ: उपरोक्त दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं की मनुष्य के द्वारा कर्म करके कमाई गयी संपत्ति मानव शरीर की छाया के समान है। जो की शरीर की पीठ के पीछे-पीछे चलता है। यदि जब छाया सामने आती है तो वह दूर चली जाती है। इसका सरल वाक्यों में अर्थ यह है की जो धन से अपने मोह भंग कर लेता है तो धन उस व्यक्ति के पीछे-पीछे चलता है। और जो व्यक्ति सदा ही धन का लालच करता है। उसे धन की सुख प्राप्ति कभी नहीं होती।

सोई सेंवर तेइ सुवा सेवत सदा बसंत।
तुलसी महिमा मोह की सुनत सराहत संत ।।

दोहे का अर्थ: वसंत ऋतू आने पर जैसे सेमलता के पेड़ों पर फूल आ जाते हैं और उन फूलों के रस का स्वाद लेने तोते अक्सर फूलों पर मंडराते रहते हैं। तो यह ऐसा है की जैसे कोई मोह की महिमा का बखान कर रहा हो।

  • रामललानहछू: तुलसीदास द्वारा रचित रामललानहछू: एक संस्कार गीत बद्ध काव्य है। जिसमें तुलसीदास जी ने अपनी गीतों के माध्यम से राम-सीता के विवाह का वर्णन किया है।

गोद लिहैं कौशल्या बैठि रामहिं वर हो।
सोभित दूलह राम सीस, पर आंचर हो।।

रामललानहछू:, दोहावली , तुलसीदास
  • जानकी मंगल: तुलसीदास जी के द्वारा लिखी गई जानकी मंगल को विद्वानों के द्वारा एक प्रामाणिक रचना के रूप में जाना जाता है। इस रचना में गोस्वामी तुलसीदास जी ने माता सीता के बारे में बताया है। नीचे आप जानकी मंगल के कुछ अंश देख सकते हैं

पंथ मिले भृगुनाथ हाथ फरसा लिए।
डाँटहि आँखि देखाइ कोप दारुन किए।।
राम कीन्ह परितोष रोस रिस परिहरि।
चले सौंपि सारंग सुफल लोचन करि।।
रघुबर भुजबल देख उछाह बरातिन्ह।
मुदित राउ लखि सन्मुख विधि सब भाँतिन्ह।।

जानकी मंगल:, तुलसीदास
तुलसीदास जी से संबंधित विवाद:
  • तुलसीदास जी के संबंध में एक विवाद बहुत प्रसिद्ध है की उन्होंने अपनी रचनाओं में समकालीन मुग़ल शासक (अकबर ,जहांगीर) की प्रसंशा की है। लेकिन यह कितना सच और सही है यह विवाद का विषय है। कुछ इतिहासकार इसे नहीं मानते। क्योंकि इसके संबंध में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य प्रमाण नहीं मिलते।

तुलसीदास जी की मृत्यु (Death)

इतिहासकार मानते हैं की तुलसीदास जी जीवन के अंतिम समय में वाराणसी में ही रह रहे थे। जीवन के अंतिम क्षणों में भी तुलसीदास जी की दिनचर्या पूरी तरह से रामभक्ति में ही लीन रहती थी। वाराणसी में 112 साल की उम्र में 1623 ईस्वी में तुलसीदास जी ने समाधि लेकर अपने शरीर को त्याग दिया।

वहीं कुछ विद्वानों का मानना है की तुलसीदास जी की मृत्यु 1680 ईस्वी में श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार को राम नाम का जाप करते हुए हो गई थी। अपने अंतिम समय में तुलसीदास जी ने विनय-पत्रिका नामक पुस्तक लिखी थी जिस पर भगवान श्री राम ने स्वयं हस्ताक्षर किये थे।

तुलसीदास जी का जीवन के संबंध में प्रश्न एवं उत्तर (FAQs)

तुलसीदास का जन्म कब हुआ था ?

तुलसीदास जी का जन्म 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) कासगंज, उत्तर प्रदेश (भारत) में हुआ था।

व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp

तुलसीदास जी के बचपन का क्या नाम था ?

तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला था।

तुलसीदास जी की प्रसिद्ध रचनाएं कौन – कौन सी हैं

रामचरितमानस, कवितावली, संकट मोचन और वैराग्य संदीपनी आदि तुलसीदास की कुछ प्रमुख प्रसिद्ध रचनायें हैं।

तुलसीदास जी की पत्नी का क्या नाम था ?

आपकी जानकारी के लिए बता दें की तुलसीदास की धर्मपत्नी का नाम रत्नावली था।

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना कब की ?

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना 1631 में चैत्र मास की रामनवमी से लेकर 1633 में मार्गशीर्ष के बीच की थी।

हनुमान चालीसा का वर्णन हमें किस पुरातन ग्रथ में मिलता है ?

हनुमान चालीसा का जिक्र गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस में मिलता है।

रामचरितमानस में वाराणसी (काशी) से संबंधित श्लोक क्या है

आनन्दकानने ह्यास्मिंजंगमस्तुलसीतरुः।
कवितामंजरी भाति रामभ्रमरभूषिता॥
श्लोक का अर्थ: भगवान शिव नगरी काशी में तुलसी का पौधा है जो की बड़ा ही मनोहर रूपी है। इस पौधे पर भगवान श्री राम रूपी भँवरा सदा मँडराता रहता है।”

तुलसीदास का जन्म और मृत्यु कब हुयी ?

तुलसीदास का जन्म 1511 ई० में और मृत्यु 1623 ई० (संवत 1680 वि०) में हुयी थी।

यह भी जानें:

Photo of author

Leave a Comment