आज हम आपको हिंदी साहित्य के महान कवि सूरदास जी के बारे में बताने जा रहे हैं। भक्तिकाल के कवि सूरदास ने अपनी अधिकतर रचनायें ब्रजभाषा में की हैं। अंधे होने बावजूद सूरदास जी के द्वारा रचित रचनायें एवं काव्य (साहित्य लहरी, सुरसागर, सूरसारावली आदि) सभी विश्वप्रसिद्ध हैं अपनी रचनाओं में सूरदास जी ने कृष्ण भक्ति का वर्णन किया है। कुछ विद्वानों के अनुसार सूरदास जी को वात्सल्य रस के सम्राट की नाम की उपाधि से वर्णित किया गया है। दोस्तों आप हमारे इस आर्टिकल में सूरदास जी के जीवन परिचय, सूरदास जी की रचनाएं आदि के बारे में जानकारी प्राप्त कर पाएंगे। यदि आप सूरदास जी के बारे में जानना चाहते हैं तो आप हमारा यह आर्टिकल अंत तक पूरा जरूर पढ़ें।
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हिंदी साहित्य की कालावधि
आपकी जानकारी के लिये बता दें की हिंदी साहित्य को चार प्रमुख कालों में विभाजित किया गया है। इन कालों में सूरदास जी को भक्तिकाल के समय का कवि माना जाता है। हिंदी के विद्वानों के अनुसार भक्तिकाल का समय 1343 ईस्वी से 1643 ईस्वी के बीच माना गया है।
क्रमांक | काल | कालावधि |
1 | आदिकाल | 743 ईस्वी से 1343 ईस्वी तक |
2 | भक्तिकाल | 1343 ईस्वी से 1643 ईसवी तक |
3 | रीतिकाल | 1643 ईसवी से 1843 ईस्वी तक |
4 | आधुनिक काल | 1843 ईस्वी से अब तक |
सूरदास जी का जीवन परिचय
हिंदी साहित्य के महान कवि सूरदास जी के जन्म के बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। लेकिन इतिहास में मौजूद जिस सूचना के बारे में अधिकतर विद्वानों की सहमति है। हम आपको उसके बारे में बताने जा रहे हैं। हिंदी के इतिहासकार और साहित्य के प्रकाण्ड विद्वानों के अनुसार सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा और आगरा के रास्ते के बीच पड़ने वाले रुनकता नामक स्थान के किरोली गांव में हुआ था।
- लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार सूरदास द्वारा रचित “साहित्य लहरी” में सूरदास जी का जन्म 1607 ईस्वी में माना गया है। साहित्य लहरी में सूरदास जी के जन्म के संबंध में एक दोहे के पद में बताया गया है।
मुनि पुनि के रस लेख।
दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख॥
- साहित्य लहरी में सुरदास जी के गुरु आचार्य बल्लभाचार्य के बारे में वर्णन और प्रमाण मिलता है।
- इसी प्रकार वल्लभ सम्प्रदाय में सूरदास जी के जन्म को 1540 ईस्वी के लगभग बताया गया है। वल्लभ सम्प्रदाय में यह भी बताया गया है की सूरदास जी ने साहित्य लहरी की रचना 1607 ईस्वी में की थी। वल्लभ संप्रदाय के अनुसार सूरदास के जन्म की तिथि वैशाख शुक्ला पंचमी, 1535 विक्रम संवत बताई गयी है।
- सूरदास जी पर लिखी गयी हिंदी साहित्य की एक किताब “भावप्रकाश” में सूरदास जी का जन्म सिहि नामक गाँव में हुआ बताया गया है।
हिंदी कवि सूरदास जी के पिता का नाम पंडित रामदास बैरागी था। जो उस समय के प्रसिद्ध कवि और गायक थे। साहित्य-लहरी की मानें तो सूरदास जी का बचपन रुनकता के गऊघाट में बीता क्योंकि बचपन में सूरदास जी का परिवार रुनकता के किलोरी गाँव में वास करता था। बाद में सूरदास अपनी शिक्षा के संबंध में मथुरा आ गए।
यहाँ आपको बता दें की सूरदास जी के जन्म से अंध होने के संबंध में भी लोगों के बीच अनको तरह की भ्रांतियां फ़ैली हुई हैं। कुछ लोग मानते हैं की सूरदास जी बचपन से ही अंधे थे तो कुछ का मानना है की नहीं सूरदास जी किसी दुर्घटना वश बाद में अंधे हुए होंगे क्योंकि सूरदास की कुछ रचनाओं में जिस तरह की कल्पना शक्ति मिलती है वह कोई जन्म से अंधा व्यक्ति कर ही नहीं सकता।
सूरदास जी के अंधे होने के विषय में कुछ प्रसिद्ध कवियों ने अपने विचार लिखें हैं। जिनके बारे में हम आपको आगे आर्टिकल में बताने जा रहे हैं -प्रसिद्ध कवि श्यामसुंदर दास जी ने लिखा है – “सूर वास्तव में जन्मांध नहीं थे, क्योंकि शृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।”
डॉक्टर हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है – “सूरसागर के कुछ पदों से यह ध्वनि अवश्य निकलती है कि सूरदास अपने को जन्म का अंधा और कर्म का अभागा कहते हैं, पर सब समय इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।”
सूरदास जी की शिक्षा
सूरदास अपनी शिक्षा के संबंध में मथुरा आने के बाद सूरदास जी की मुलाक़ात अपने गुरु आचार्य वल्ल्भाचार्य से हुई जिनके पास रहकर सूरदास जी ने कृष्ण भक्ति, साहित्य, वेद आदि की शिक्षाएं लीं। अपनी शिक्षा समाप्त होने के बाद सूरदास जी पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में लींन रहने लगे थे। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की सूरदास के गुरु वल्ल्भाचार्य और सूरदास की आयु के बीच सिर्फ 10 दिन का अंतर था। सूरदास जी ने अपनी कृष्ण भक्ति में लींन रहते हुए बहुत सी रचनायें की जिनमें से सूरसागर, साहित्य-लहरी विश्वप्रसिद्ध हैं। यह सभी रचनायें सूरदास जी ने मथुरा की ब्रज भाषा में की थी।
सूरदास द्वार रचित ग्रन्थ एवं रचनाएं
- सुरसागर (Sursagar) :- आपको बता दें की सुर सागर को महान कवि सूरदास की सबसे प्रचलित रचना माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार सूरसागर में लगभग 1 लाख से अधिक पद एवं छंद संग्रहित थे। परन्तु अब इस सूरसागर रचना के केवल सात से आठ हजार पद ही सुरक्षित बचे हैं। सूरसागर में कुल 12 अध्याय मिलते हैं। सूरसागर का 10वां अध्याय बहुत विस्तारित और बड़ा है। सूरसागर को सूरदास जी ने ब्रजभाषा में लिखा है। इस ग्रन्थ की प्रतिलिपियाँ राजस्थान के नाथद्वारा के सरस्वती भण्डार में सुरक्षित रखी गयी हैं।
- सूरसारावली (Sursarawali) :- सूरदास जी का यह ग्रन्थ मथुरा में खेली जाने वाली विश्व प्रसिद्ध लठ मार होली के गीतों का संग्रह रूप है। सूरसारावली ग्रथ में वृहद् होली देखने को मिलते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें की सूरसारावली में कुल 1107 छंद है। ऐसा माना जाता है की सूरदास जी ने सूरसारावली (Sursarawali) की रचना 67 वर्ष की उम्र में की थी।
- साहित्य-लहरी (Sahitya-Lahri) :- साहित्य-लहरी हिंदी साहित्य के श्रृंगार रस पर आधारित ग्रंथ है। आपको साहित्य-लहरी में कुल 118 लघु रचना सहित पद मिल जाएंगे। जिसमें सूरदास जी ने अपने गुरु वल्ल्भाचर्य और कृष्ण भक्ति का वर्णन किया है। साहित्य लहरी में सूरदास जी द्वारा रचित दोहों में दृष्टिकूट पदों का निरूपण मिलता है।
- नल-दमयन्ती (Nal-Damyanti) :- सूरदास जी इस रचना में महाभारत के नल और दमयंती की कहानी के बारे में बताया है। सूरदास जी अपनी इस रचना में श्री कृष्ण और युधिष्ठिर के उस वार्तालाप का वर्णन किया है। जब युधिष्ठिर अपनी पत्नी समेत, राज पाठ और सब कुछ जुएं में हार जाते हैं।
सूरदास जी के काव्यरचनाओं की विशेषताएं
- सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में भक्ति रस के साथ श्रृंगार रस का भी उपयोग किया है। इन दोनों में वर्णित छंद और पद अत्यंत ही दुर्लभ हैं।
- सूरदास की रचनाओं में जगह -जगह कूट छंद पदों का उपयोग हुआ है।
- सूरदास के द्वारा रचित विनय पद तुलसीदास जी के द्वारा प्रेरित लगते हैं। सूरदास के विनय पद का उदाहरण इस प्रकार से है।
हमारे प्रभु औगुन चित न धरौ।
समदरसी है मान तुम्हारौ, सोई पार करौ।
- सरदास जी ने अपनी रचनाओं में भावानुकूल शब्द-चयन, सार्थक अलंकार, भाषा की सजीवता आदि को बहुत ही अच्छे ढंग से निरूपित किया है।
- सरदार ने अपने कविताओं और दोहों में श्री कृष्ण भगवान जी माता यशोदा मां के शील, शीतल गुणों को बहुत अच्छी तरह से चित्रित किया है।
- सूरदास जी ने अपनी अधिकतर रचनाओं में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया है। बाल लीला के पद का उदाहरण निम्नलिखित पद है –
मैया कबहिं बढैगी चौटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
- सूरदास जी ने अपनी काव्यरचनाओं में भाव-पक्ष और कला-पक्ष को बहुत ही स्वाभाविक और सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। प्रसिद्ध हिंदी साहित्य के कवि आचार्य हजारी प्रसाद दिवेदी इसके बारे में कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं
सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार-शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे-पीछे दौड़ा करता है। उपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रूपकों की वर्षा होने लगती है।
- सूरदास की रचनाओं और कविताओं में प्राचीन आख्यानों और कथनों का उल्लेख मिलता है।
- सूरदास जी के काव्यों में प्रकृति – सौंदर्य और सूक्ष्म, सजीव का विहंगम वर्णन मिलता है।
- सूर के गेय पदों में ह्रृदयस्थ भावों की बड़ी सुंदर व्यजना हुई है।
सूरदास से जुड़े संबंधित प्रश्न
साहित्य – लहरी किसके द्वारा रचित ग्रन्थ है ?
साहित्य – लहरी हिंदी साहित्य के महान कवि सूरदास जी के द्वारा रचित ग्रथ है।
सूरदास के अंधे होने की कहानी हमें किस हिंदी साहित्य में मिलती है ?
सूरदास जी के अंधे होने की घटना को अलग – अलग हिंदी कवियों ने अपनी रचनाओं में बताया है यह रचनायें इस प्रकार से हैं
श्री नाथ भट्ट द्वारा रचित :- संस्कृत वार्ता मणिपाला
श्री हरिराय द्वारा रचित :- भाव प्रकाश
श्री गोकुलनाथ द्वारा रचित :- निजवार्ता
सूरदास जी की मृत्यु कब हुई ?
सूरदास जी की मृत्यु के बारे में विद्वानों के अनेक मत हैं। लेकिन जिस मत में अधिकतर विद्वानों की सहमति है वह यह की सूरदास जी की मृत्यु 1642 विक्रमी (1580 ईस्वी) में गोवर्धन स्थान के पास पारसौली ग्राम में हुई थी। सूरदास जी जिस स्थान पर अपना देहवसान किया था वहां लोगों के द्वारा सूरश्याम मंदिर (सूर कुटी) की स्थापना की गई।
ब्याहलो क्या है ?
ब्यालहो सूरदास जी के द्वारा लिखी गयी रचना है।