मन्या सुर्वे जीवनी – Biography of Manya Surve Jivani in Hindi

अंडरवर्ल्ड, यह नाम सुनते ही हमारे दिमाग में अपराध और चमक धमक से भरी एक रहस्यमयी दुनिया का खयाल आता है। और जब बात अंडरवर्ल्ड की हो तो माया नगरी कहे जाने वाले शहर मुंबई का नाम आना स्वाभाविक ही है। मन्या सुर्वे भी अपराध की इसी दुनिया का एक हिस्सा रहा है। आज के ... Read more

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Reported by Rohit Kumar

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अंडरवर्ल्ड, यह नाम सुनते ही हमारे दिमाग में अपराध और चमक धमक से भरी एक रहस्यमयी दुनिया का खयाल आता है। और जब बात अंडरवर्ल्ड की हो तो माया नगरी कहे जाने वाले शहर मुंबई का नाम आना स्वाभाविक ही है। मन्या सुर्वे भी अपराध की इसी दुनिया का एक हिस्सा रहा है। आज के दौर में हम दाउद इब्राहिम और हाजी मस्तान जैसे नामों से मुंबई अंडरवर्ल्ड को पहचानते हैं। लेकिन मुंबई अंडरवर्ल्ड के इतिहास में एक दौर ऐसा भी था जब कि उस समय के बंबई अंडरवर्ल्ड में दाउद इब्राहिम नहीं बल्कि मनोहर अर्जुन सुर्वे नाम के शख्स का दबदबा हुआ करता था। हम बात कर रहे हैं अंडरवर्ल्ड डॉन और कुख्यात गैंगास्टर मन्या सुर्वे की। जिसे कि तत्कालीन बंबई का पहला पढा लिखा डॉन माना जाता था। जिसने अपराध की दुनिया में कदम रखते ही बंबई में अपना दबदबा रखने वाले करीम लाला के पठान गैंग से हाथ मिलाया और दाउद इब्राहिम के भाई शाबिर इब्राहिम कासकर की हत्या में भी शामिल रहा।

मन्या सुर्वे जीवनी - Biography of Manya Surve in Hindi Jivani
मन्या सुर्वे जीवनी – Biography of Manya Surve in Hindi Jivani

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मुंबई अंडरवर्ल्ड

1950 का दौर था। भारत को नई नई आजादी मिली थी। आज का मुंबई शहर तब बंबई के नाम से जाना जाता था। बंबई देश की आर्थिक राजधानी की शक्ल तो ले ही चुका था, साथ ही बॉलीवुड के उदय नें मुंबई को मायानगरी का नाम भी दे दिया था। नव निर्वाचित हुयी सरकारें देश को आगे बढाने के लिये हर तरह का प्रयत्न कर रही थीं। इन्हीं प्रयत्नों में से एक था टैक्स। नये आजाद हुये देश को चलाने के लिये बहुत सारे संसाधनों की आवश्यकता थी। इसलिये सरकार ने विदेश से आयात होने वाले सामान पर टैक्स को बढाने का निर्णय लिया।

टैक्स में की गयी इस बढोतरी की वजह से विदेश से आयातित सामान लोगों की पंहुच से दूर हो रहा था। किसी इंपोर्टेट सामान को भारत में खरीदना होता था तो उस पर भारी मात्रा में टैक्स चुकाना पडता था। इसी कारण स्मगलिंग के धंधे की शुरूआत हुयी। विदेशों से पानी के जहाजों में सामान गैर कानूनी तरीके से यानी बिना टैक्स चुकाये मुंबई में लाया जाता था। धीरे धीरे स्मगलिंग की दुनिया में तीन लोगो का वर्चस्व होने लगा। ये लोग थे- हाजी मस्तान, करीम लाला, और वरदराजन।

अंडरवर्ल्ड की नींव

हाजी मस्तान सोने की स्मगलिंग किया करता था। करीम लाला और वरदराजन इंपोर्टेट शराब की स्मगलिंग और गैर कानूनी हथियारों का धंधा किया करते थे। शुरूआती दौर में तीनों के बीच दुश्मनी रहा करती थी। लेकिन बाद में तीनो नें एक दूसरे से हाथ मिलाकर अपना अपना धंधा जारी रखा। इन तीनों ने ही मुंबई अंडरवर्ल्ड की नींव रखी। अब ये तीनों गैंगस्टर पूरे मुंबई में अपनी छाप छोड चुके थे। 50 के दौर में शुरू हुआ अंडरवर्ल्ड अगले लगभग बीस दशकों तक खामोश ही रहा और हाजी मस्तान, करीम लाला, और वरदराजन का दबदबा अंडरवर्ल्ड पर कायम रहा। करीम लाला पठान गैंग का मुखिया हुआ करता था और आये दिन लूटपाट, फिरौती की घटनायें ये गैंग किया करता था।

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डी कंपनी

लेकिन साल 1980 के आते आते एक नया गैंग मुंबई में आया जिसने अंडरवर्ल्ड की सूरत बदल कर रख दी और आने वाले समय में पूरे अंडरवर्ल्ड पर राज किया। ये गैंग था डी कंपनी। डी कंपनी को दाउद इब्राहिम और उसका भाई शाबिर इब्राहिम चलाया करते थे। उस वक्त तक करीम लाला के पठान गैंग का पूरे इलाके में दबदबा हुआ करता था। लेकिन डी कंपनी के आते ही दोनों गैंगों में टकराव होने लगा और पठान गैंग और डी कंपनी में दुश्मनी हो गयी। आये दिन मुंबई में हत्या और मारपीट की घटनायें बढने लगी।

बात जब हद से ज्यादा बढ गयी तो पठान गैंग ने दाउद के भाई शाबिर की हत्या करने की योजना बनाई। इस योजना को अंजाम देने के लिये करीम लाला को एक शातिर और तेज तर्रार आदमी की तलाश थी। करीम लाला की तलाश मन्या सुर्वे नाम के आदमी पर खत्म हो गयी। तब तक मन्या सुर्वे भी अपराध की दुनिया में अपना काफी नाम कर चुका था। करीम लाला ने दाउद के भाई शाबिर की हत्या का काम मन्या सुर्वे को सौंप दिया। 12 फरवरी 1981 को मन्या सुर्वे ने अपनी गैंग के दो और साथियों के साथ मिलकर शाबिर इब्राहिम की हत्या कर दी। इस घटना के बाद तो मुंबई अंडरवर्ल्ड में अफरा तफरी मच गयी। चारों तरफ गैंगवार होने लगे। खून का बदला खून से लिया जाने लगा और सडक से लेकर आम चौराहे तक गोलियां चलने लगी।

मन्या सुर्वे

महाराष्ट्र के रत्नागिरि इलाके के रनूपुर गांव में 1944 में मनोहर अर्जुन सुर्वे का जन्म हुआ। बचपन में शांत स्वभाव रखने वाले मनोहर की पढने लिखने में बहुत रूचि थी। गांव से अपनी शुरूआती पढाई करने के बाद मन्या मुंबई शहर आ गया। यहां के कीर्ति कालेज से उसने केमिस्ट्री में अपना ग्रेजुऐशन पूरा किया। मन्या एक मेधावी छात्र था। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने अपना ग्रेजुऐशन 78 प्रतिशत नम्बरों से पास किया था। लेकिन समय ने करवट ली और नौकरी के सपने देखने वाला मनोहर अर्जुन सुर्वे मुंबई का पहला पढा लिखा और ग्रेजुऐट डॉन मन्या सुर्वे बन गया।

जुर्म की दुनिया में मन्या सुर्वे

1969 में मन्या सुर्वे और उसके दो और साथियों पर हत्या का पहला मुकदमा चला और मन्या को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी। लेकिन मन्या ने जेल में हिंसक बर्ताव करना शुरू कर दिया जिस वजह से जेल के कुछ कैदी भी उसकी गैंग में शामिल हो गये। जेल में उसके खूंखार बर्ताव को देखते हुये उसे पुणे की यरवडा जेल से रत्नगिरी की जेल में शिफ्ट कर दिया गया। उसने इसका विरोध किया और भूख हडताल पर बैठ गया।

तकरीबन 20 दिनों तक भूख हडताल करने के बाद मन्या की तबीयत बिगडने लगी। जेल प्रशासन ने मन्या को अस्पताल में भर्ती कराया। मन्या पुलिस को चकमा देकर मौका मिलते ही अस्पताल से फरार हो गया। फरार होने के बाद उसने नये सिरो से अपनी गैंग बनायी। मन्या का गैंग शुरूआती दौर में केवल चोरी किया करता था। धीरे धीरे फिरौती और लूटपाट को भी मन्या का गैंग अंजाम देने लगा।

मन्या ने अपराध की दुनिया में बहुत जल्दी तरक्की की और उसके नाम की गूंज अंडरवर्ल्ड तक भी सुनाई देने लगी। अपने विरोधी गैंग को कुचलने में मन्या सुर्वे को महारत हासिल थी। साथ ही मुंबई के दादर इलाके में मन्या सुर्वे का नाम बडी इज्जत के साथ लिया जाता था।

शाबिर की हत्या

मन्या के अपराध जीवन में नया मोड तब आया जब करीम लाला ने उसे शाबिर इब्राहिम जो कि दाउद इब्राहिम का बडा भाई था और करीम लाला के विरोधी गैंग डी कंपनी का मुखिया था, की हत्या करने का काम सौंपा। मन्या के लिये यह बहुत बडी बात थी। क्योंकि तब तक करीम लाला का अंडरवर्ल्ड पर वर्चस्व था। मन्या सुर्वे ने शाबिर पर नजर रखनी शुरू कर दी। कुछ दिन शाबिर पर नजर रखने के बाद मन्या ने अपनी गैंग के दो और साथियों के साथ मिलकर 12 फरवरी 1981 को हाजी अली के पास एक पेट्रोल पंप पर शाबिर की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी।

मन्या सुर्वे का उदय

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शाबिर की हत्या करने के बाद मन्या का नाम मुंबई के घर-घर तक पंहुच चुका था। उसने अपनी धाक अंडरवर्ल्ड में जमा ली थी साथ ही डी कंपनी गैंग और दाउद इब्राहिम भी उससे खौफ खाने लगे थे। इसी तरह अंडरवर्ल्ड में मन्या सुर्वे और उसके गैंग की तूती बोलने लगी।

दूसरी तरफ अंडरवर्ल्ड के नाम पर पुलिस की पहले ही काफी किरकिरी हो रही थी। शाबिर की हत्या ने आग में घी डालने का काम किया और अंडरवर्ल्ड के साथ पुलिस के रिश्ते और पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे। इस सबके बीच पुलिस भी सक्रिय हो गयी। उसने मन्या के गैंग को निशाना बनाना शुरू कर दिया। कुछ महीनों में ही गैंग के कई सदस्यों को पुलिस ने पकड लिया पर मन्या पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ रहा था। मन्या को पकडने के लिये मुंबई पुलिस ने एक स्पेशल टीम बनाई। तीन लोगों की इस टीम में सीनियर इंस्पेक्टर वाई डी भिडे, इंस्पेक्टर इसाक बागवान और इंस्पेक्टर राजा तांबट शामिल थे।

मुंबई का पहला एनकाउंटर

पुलिस विभाग को खूफिया जानकारी मिली कि 11 जनवरी 1982 को मन्या वडाला में आने वाला है और वह आंबेडकर जंक्शन में कुछ देर रूकने वाला है। इस सूचना के मिलने के बाद पुलिस ने दबिश देना शुरू कर दिया। 11 जनवरी के दिन मुंबई पुलिस की क्राईम ब्रांच मौके पर पंहुच जाती है और मन्या का इंतजार करने लगती है।

मन्या अपनी गाडी से उतरता है तो उसे कुछ गडबडी होने का शक हो जाता है। जैसे ही वह अपनी पिस्टल निकालता है, तो इंस्पेक्टर इसाक और राजा तांबट मन्या पर गोलियों की बौछार कर देते हैं। इनमें से पांच गोलियां मन्या को लगती हैं और मन्या वहीं पर बेहोश हो जाता है। पुलिस उसे तुरंत अस्पताल ले जाती है लेकिन अस्पताल पंहुचने से पहले ही उसकी मौत हो जाती है। मुंबई के इतिहास में इसे अंडरवर्ल्ड का पहला एनकाउंटर कहा जाता है।

कुछ लोगों का कहना है कि दुश्मनी के कारण दाउद ने ही मन्या के बारे में पुलिस को टिप दी थी। वहीं कुछ का मानना है कि मन्या की प्रेमिका ने ही मन्या की पूरी जानकारी पुलिस को मुहैया करायी थी।

मन्या सुर्वे के जीवन से सम्बंधित प्रश्न

मन्या सुर्वे कौन था?

मन्या सुर्वे मुंबई अंडरवर्ल्ड का एक कुख्यात अपराधी था। मन्या सुर्वे पर लूटपाट, फिरौती और हत्या के कई मामले दर्ज थे।

मन्या सुर्वे का एनकाउंटर कब हुआ?

11 जनवरी 1982 को मन्या सुर्वे को मुंबई पुलिस की क्राईम ब्रांच ने एक एनकाउंटर में मन्या सुर्वे को गोली मार दी गयी और अस्पताल ले जाते हुये उसकी मौत हो गयी।

मन्या सुर्वे को किसने मारा?

इंस्पेक्टर इसाक बागवान और इंस्पेक्टर राजा तांबट ने मन्या सुर्वे पर कई राउंड फायर किये जिसमें से पांच गोलियां मन्या सुर्वे को लगी थी।

1992 में हुये बम ब्लास्ट में किसका हाथ था?

1992 में मुंबई शहर में हुये सीरियल ब्लास्ट का मुख्य साजिशकर्ता अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम को माना जाता है।

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