दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में आपको समास की परिभाषा, भेद और उदाहरण सहित पूरी जानकारी बताने जा रहे हैं। क्योंकि विद्यार्थी जीवन में हर विद्यार्थी के द्वारा हिन्दी व्याकरण में प्रयुक्त होने वाले शब्द समास के बारे में अवश्य ही सुना होगा और पढा भी होगा। इसके साथ-साथ कंपीटीशन की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिये भी समास के बारे में जान लेना बहुत जरूरी है।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में व्याकरण से सम्बन्धित अनेक प्रश्न पूछे जाते हैं और जानकारी न होने के कारण अभ्यर्थी इनका सही जवाब नहीं दे पाने के कारण अच्छा परिणाम प्राप्त करने से चूक जाते हैं। तो इसके लिये आज हम आपको समास के बारे में इस आर्टिकल में बतायेंगे। जैसे कि समास किसे कहते हैं, समास की परिभाषा क्या है, समास का प्रयोग कहां किया जाता है, समास के कितने भेद और प्रकार होते हैं आदि सारी जानकारी हम आपको बताने जा रहे हैं। इसलिये इस लेख को अन्त तक ध्यानपूर्वक अवश्य पढें।
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समास की परिभाषा (Samas Definition in Hindi)
समास की परिभाषा- जब हमे किन्हीं दो शब्दों को मिलाने पर एक नया और अर्थपूर्ण शब्द प्राप्त होता है तो से समास कहा जाता है। समास की परिभाषा इस प्रकार से है- दो या दो से अधिक सार्थक शब्दों के परस्पर मेल को ही समास कहते हैं। उदाहरण के तौर पर-
इन्द्रजीत – इन्द्रियों को जीतने वाला
श्यामवर्ण – श्याम है जो रंग।
नीलकंठ – नीला है जो कंठ।
किसी समास में रचना के दो पद होते हैं पहले पद को पूर्वपद कहा जाता है और दूसरे पद को उत्तरपद कहा जाता है। और दोनों को मिलाकर बनने वाला पद समस्त पद कहा जाता है। जैसे कि नीलकंठ में नील पूर्वपद है और कंठ उत्तर पद है तथा नीलकंठ समस्त पद है।
समास विग्रह
दो या दो से अधिक अर्थपूर्ण शब्दों के मेल से बने नये शब्द समास के शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करना ही समास विग्रह कहलाता है। समास विग्रह करने के पश्चात शब्दों के बीच के सामासिक शब्दों का लोप हो जाया करता है। उदाहरण के तौर पर –
पर्वतराज – पर्वतों का राजा
दैत्यराज – दैत्यों का राजा
तीर्थराज – तीर्थों का राजा
घुडदौड – घोडों की दौड
देशवासी – देश के वासी
अणुशक्ति – अणु की शक्ति
समास के भेद अथवा प्रकार
समास के कुल 6 भेद होते हैं। समास के 6 भेद/प्रकार निम्नलिखित हैं-
- तत्पुरूष समास
- अव्ययीभाव समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- द्वंद समास
- बहुव्रीहि समास
तत्पुरूष समास
जैसा कि हमने बताया कि सामासिक शब्द दो शब्दों से मिलकर बना होता है। तत्पुरूष समास में बाद का पद अर्थात उत्तर पद प्रधान होता है। इस प्रकार जिस समास में उत्तर पद प्रधान होता है और पूर्वपद गौण होता है वह समास तत्पुरूष समास कहलाता है। उदाहरण के तौर पर –
- धर्म का ग्रन्थ – धर्मग्रन्थ
- राजा का कुमार – राजकुमार
- मूर्ति को बनाने वाला – मूर्तिकार
- काल को जीतने वाला – कालजयी
- देश के लिये भक्ति – देशभक्ति
विस्तार में बात करें तो तत्पुरूष समास के भी 6 भेद होते हैं। यह भेद हैं- कर्म तत्पुरूष, करण तत्पुरूष, सम्प्रदान तत्पुरूष, अपादान तत्पुरूष, सम्बन्ध तत्पुरूष और अधिकरण तत्पुरूष। इनकी विस्तृत जानकारी आगे प्रदान की गयी है।
तत्पुरूष समास के भेद
- कर्म तत्पुरुष समास – को चिन्ह का लोप हो जाने से यह समास बनता है। कर्म तत्पुरूष समास के उदाहरण हैं-
- माखनचोर – माखन को चुराने वाला
- संस्थागत – संस्था को जाने वाला
- मूर्तिकार – मूर्ति को बनाने वाला
- सम्मानप्राप्त – सम्मान को प्राप्त करने वाला
- करण तत्पुरूष समास – से और के द्वारा शब्दों का लोप हो जाने के कारण करण तत्पुरूष समास बनता है। करण तत्पुरूष समास के उदाहरण हैं-
- तुलसीदासकृत – तुलसीदास के द्वारा रचित
- करूणापूर्ण – करूणा से पूर्ण
- शोकाकुल – शोक से आकुल
- अकालपीडित – अकाल से पीडित
- सम्प्रदान तत्पुरूष समास– इस समास में मुख्य रूप से के लिये परसर्ग का लोप हो जाता है। सम्प्रदान तत्पुरूष समास के उदाहरण हैं-
- हथकडी – हाथ के लिये कडी
- हवनसामग्री – हवन के लिये सामग्री
- रसोईघर – रसोई के लिये घर
- देशभक्ति – देश के लिये भक्ति
- देवालय – देव के लिये आलय
- विद्यालय – विद्या के लिये आलय
- अपादान तत्पुरूष समास – इस समास में अलग होने के भाव के लिये प्रयुक्त चिन्ह से (अलग होने का भाव) का लोप होता है। अपादान तत्पुरूष समास के उदाहरण हैं-
- पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट है जो
- जन्मान्ध – जन्म से अन्धा
- भयभीत – भय से भीत
- कामचोर – काम से जी चुराता है जो
- रोगमुक्त – रोग से मुक्त
- सम्बन्ध तत्पुरूष समास – इस समास में का, की और के परसर्गों का लोप हो जाता है। सम्बन्ध तत्पुरूष समास के उदाहरण हैं-
- पूंजीपति – पूंजी का पति
- गृहस्वामी – गृह का स्वामी
- देवगुरू – देवों का गुरू
- पशुपति – पशुओं का पति
- प्रजापति – प्रजा का पति
- देशवासी – देश का वासी
- सेनाध्यक्ष – सेना का अध्यक्ष
- अधिकरण तत्पुरूष समास – इस समास में कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है। मुख्य रूप से में तथा पर का लोप अधिकरण तत्पुरूष समास में पाया जाता है। उदाहरण के तौर पर –
- शरणागत – शरण में आगत
- आत्मविश्वास – आत्मा पर विश्वास
- राजाश्रित – राजा पर आश्रित
- नीतिनिपुण – नीति में निपुण
- ध्यानमग्न – ध्यान में मग्न
- शोकाकुल – शोक में आकुल
अव्ययीभाव समास
इसमें समास का पूर्व पद अव्यय होता है अर्थात पूर्व पद मुख्य होता है। अव्ययीभाव समास में अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक में नहीं बदलता है। दूसरे शब्दों में जहां एक शब्द की पुनरावृत्ति होती हो और दोनों शब्द मिलकर अव्वय की भांति प्रयोग हो रहे हों वहां अव्ययीभाव समास का प्रभाव होता है। अव्ययीभाव समास के उदाहरण हैं-
- यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
- आमरण – मृत्यु तक
- प्रतिवर्ष – हर वर्ष
- आजन्म – जन्म से लेकर
- रातों रात – रात ही रात में
- प्रतिदिन – हर दिन
- घर घर – प्रत्येक घर
कर्मधारय समास
इसमें समास का उत्तर पद प्रधान होता है। कर्मधारय समास में विशेषण, विशेष्य और उपमान का मेल होता है। इन विशेषताओं वाले समास को कर्मधारय समास कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर-
- चरणकमल – कमल के समान चरण
- नीलगगन – नीला है जो गगन
- महादेव – महान है जो देव
- नवयुवती – नव है जो युवती
- देहलता – देह रूपी लता
- परमात्मा – परम है जो आत्मा
- पीताम्बर – पीत है जो अम्बर
कर्मधारय समास के भेद
समास के भी चार भेद होते हैं। इनमें विशेषणों की प्रकृति के आधार पर विभाजन किया जाता है। यह चार भेद हैं-
- विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास – इस समास में पूर्वपद प्रधान होता है। विशेषणपूर्वपद समास के उदाहरण हैं-
- नीली गाय – नीलगाय
- पीत अम्बर – पीताम्बर
- प्रिय मित्र – प्रियमित्र
- विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास – जैसा कि नाम से स्पष्ट है। इस समास में पहला पद विशेष्य होता है। उदाहरण के लिये –
- सत्पुरूष – सच्चा है जो पुरूष
- कृष्णसर्प – काला है जो सर्प
- मुनिवर – मुनियों में श्रेष्ठ है जो
- विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास – इस समास में पूर्व पद और उत्तर पद दोनों ही विशेषण होते हैं। विशेषणोंभयपद समास के उदाहरण हैं-
- नील-पीत
- सुनी-अनसुनी
- कहनी-अनकहनी
- श्याम-श्वेत
- भूत-प्रेत
- विशेष्योभय पद कर्मधारय समास – जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें पूर्व पद तथा उत्तर पद दोनों ही विशेष्य होते हैं। जैसे – आमगाछ, वायस-दम्पत्ति आदि
कर्मधारय समास के उदाहरण
समस्त पद | समास विग्रह |
श्वेतकमल | श्वेत है जो कमल |
सत्पुरुष | सच्चा है जो पुरुष |
महाराज | महान् है जो राजा |
मुनिवर | मुनियों में है जो श्रेष्ठ |
नीलगाय | नीली है जो गाय |
कुबुद्धि | बुरी है जो बुद्धि |
नीलाम्बर | नीला अम्ब अथवा नीला है जो अम्बर |
सधर्म | सद् है जो धर्म |
कालीमिर्च | काली है जो मिर्च |
गुरु- भाई | गुरु से सम्बन्धित है जो भाई |
नराधम | अधम जो नर |
दहीबड़ा | दही में डूबा हुआ है जो बड़ा |
कापुरुष | कायर है जो पुरुष |
कृष्णसर्प | काला है जो सर्प |
प्रधानाध्यापक | प्रधान है जो अध्यापक |
वन-मानुष | वन में निवास करता है जो मनुष्य |
मुनिवर | मुनियों में श्रेष्ठ है जो |
पीताम्बर | पीला है जो अम्बर (वस्त्र) |
महादेव | महान है जो देव |
द्विगु समास
- द्विगु समास में पूर्वपद मुख्य रूप से संख्या वाचक होता है। पूर्वपद संख्या का बोध कराता है। हालांकि कभी कभी उत्तर पद में भी संख्या का बोध पाया जाता है। यह कोई एक संख्या या संख्या के समूह का बोध कराने वाला पद होता है। उदाहरण के तौर पर –
द्विगु समास के उदाहरण
समस्त पद | समास विग्रह |
पंचतंत्र | पाँच तंत्रों का समाहार |
पंचवटी | पाँच वटों (वृक्षों) का समाहार |
शताब्दी | शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समाहार |
अष्टसिद्धि | आठ सिद्धियों का समाहार |
नवरात्र | नौ रात्रियों का समूह |
पंचतत्व | पाँच तत्वों का समूह |
अष्टाध्यायी | आठ अध्यायों का समाहार |
त्रिभुवन | तीन भुवनों (लोकों) का समूह |
सतसई | सात सौ (दोहों) का समाहार |
चतुर्मुख | चार मुखों का समूह |
पंजाब | पाँच आबों (नदियों) का समूह |
नवनिधि | नौ निधियों का समाहार |
चारपाई | चार पैरों का समाहार |
दोपहर | दो पहर का समाहार |
त्रिवेणी | तीन वेणियों का समाहार |
त्रिमूर्ति | तीन मूर्तियों का समूह |
तिराहा | तीन राहों का संगम |
त्रिकोण | तीन कोण का समाहार |
त्रिपाद | तीन पैरों का समाहार |
सप्तऋषि | सात ऋषिओं का समूह |
शताब्दी | सौ वर्षों का समूह |
नवग्रह | नौ ग्रहों का समूह |
अठन्नी | आठ आनो का समूह |
द्विगु | दो गायों का समाहार |
त्रिलोक | तीन लोकों का समाहार |
नवरत्न | नव रत्नों का समाहार |
सप्ताह | सात दिनों का समूह |
चौमासा | चार मासों का समूह |
एकांकी | एक अंक का नाटक |
इकतारा | एक तारा |
दुअन्नी | दो आना का समाहार |
द्विवेदी | दो वेदों को जानने वाला |
चवन्नी | चार आनों का समाहार |
चौकड़ी | चार कड़ियों वाली |
चतुर्वेद | चार वेद |
प्रचपात्र | पाँच पात्र |
प्रट्कोण | षट् (छह) कोणों का समाहार |
नौलखा | नौ लाख के मूल्य का समाहार |
द्वंद्व समास
जहां समास में दोनों ही पद प्रधान होते हैं और पदों को मिलाते समय उनके बीच योजक का कार्य करने वाले शब्द जैसे कि और, अथवा, या आदि लुप्त हो जाते हैं तो वह समास द्वंद्व समास कहलाता है। द्वंद्व समास के उदाहरण हैं –
- लोक-परलोक – लोक और परलोक
- अन्न-जल : अन्न और जल
- अपना-पराया : अपना और पराया
- राजा-रंक : राजा और रंक
- देश-विदेश : देश और विदेश आदि।
- रुपया-पैसा : रुपया और पैसा
- माता-पिता : माता और पिता
- दूध-दही : दूध और दही
बहुव्रीहि समास
जब किसी समास में पूर्व पद और उत्तर पद दोनों ही प्रधान नहीं होते हैं और दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं तो वहां बहुव्रीहि समास का बोध होता है। बहुव्रीहि समास के उदाहरण हैं-
समास विग्रह | समस्त पद |
कलह है प्रिय जिसको वह | कलहप्रिय |
जीती गई हैं इन्द्रियाँ जिससे वह | जितेन्द्रिय |
दिया गया है धन जिसके लिए वह | दत्तधन |
पीत है अम्बर जिसका वह | पीताम्बर |
चार हैं लड़िया जिसमें वह | चौलड़ी |
गज से आनन वाला | गजानन (गणेश) |
चार हैं भुजाएं जिसकी | चतुर्भुज (विष्णु) |
तीन आँखों वाला | त्रिलोचन (शिव) |
दस हैं आनन जिसके | दशानन (रावण) |
मुरली धारण करने वाला | मुरलीधर (श्री कृष्ण) |
निशा अर्थात रात में विचरण करने वाला | निशाचर (राक्षस) |
चार हैं मुख जिसके | चतुर्मुख (ब्रह्म) |
लंबा है उदर जिसका | लम्बोदर |
अन्य में है मन जिसका वह | अन्यमनस्क |
साथ है पत्नी जिसके वह | सपत्नीक |
वह जो नाक (स्वर्ग) का पति है | नाकपति (इन्द्र) |
विष को धारण करने वाला | विषधर सांप |
चक्र धारण करने वाला | चक्रधर (श्री कृष्ण) |
पशुओं का पति | पशुपति (शिव) |
महान है जो ईश्वर | महेश्वर (शिव) |
वह जो वाक् (भाषा) की देवी है | वाग्देवी (सरस्वती) |
दिशाएँ ही हैं वस्त्र जिसके | दिगम्बर (शिव) |
वह जो सूर्य का पुत्र है | सूर्यपुत्र (कर्ण) |
वह जिनके सिंह का वाहन है | सिंहवाहिनी (दुर्गा) |
वह जो शैल (हिमालय) की नंदिनी (पुत्री) हैं | शैलनंदिनी (पार्वती) |
वह जो दशरथ के नंदन है | दशरथनंदन (राम) |
नीला है कण्ठ जिनका | नीलकण्ठ (शिव) |
वह जो वारि से जन्मता है | वारिज (कमल) |
हल को धारण करने वाला | हलधर (बलराम) |