जातिवाद पर निबंध, अर्थ और इतिहास | Casteism Meaning, Definition and history Essay in Hindi

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Reported by Dhruv Gotra

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आज हम आपसे भारत के समाज में जहर की तरह फैले हुए जातिवाद (Casteism) के बारे में बात करने जा रहे हैं। आज भी आप देखें तो समाज में जाति और धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाई जाती है झगड़े किये जाते हैं जिसका फायदा इन झगड़ों को करवाने वाले और कुछ राजनीतिक नेता उठाते हैं। आपने देखा होगा चुनाव के समय पर अधिकतर नेता लोगों से किसी विशेष जाति या धर्म के नाम पर वोट मांगते हैं। जाति के नाम खेला जाने वाला यह राजनीतिक खेल बहुत पुराना है। आज भी हमारे कई राजनीतिक दल (Party) और नेताओं के द्वारा जातिवाद का यह नकारात्मक खेल खेला जाता है।

यदि हम बात करें तो भारत के दूर दराज के ग्रामीण इलाकों की तो आज भी कई गांव ऐसे हैं जहाँ जातिवाद अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। आज के समय जाति के नाम पर लोगों से भेदभाव कर उनके संविधानिक मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा जाता है। जब तक यह जातिवाद पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता तब तक किसी देश के विकास की कल्पना करना थोड़ा मुश्किल है। एक सर्वे के अनुसार भारत में आज भी 94% लोग सजातीय (endogamous) विवाह करना पसंद करते हैं ठीक उसी तरह हम नौकरी की बात करें तो 90% छोटी नौकरियाँ वंचित समुदाय के जाति के लोगों के द्वारा की जाती हैं। यहाँ हम आपको को जातिवाद पर निबंध के माध्यम से इसके उत्त्पति, अर्थ, इतिहास, संवैधानिक कानूनी महत्व आदि के बारे में बताने जा रहे हैं। जानने के लिए आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।

जातिवाद (Casteism) क्या है ?

जातिवाद पर निबंध, अर्थ और इतिहास | Casteism Meaning, Definition and history Essay in Hindi
जातिवाद पर निबंध, अर्थ और इतिहास

आप जानते हैं की हमारे देश भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले अलग-अलग धर्म एवं जाति समुदाय के लोग रहते हैं जिसमें से हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सिख आदि प्रमुख हैं क्योंकि इन धर्मों को मानने वाले लोगों की संख्या और धर्मों को मानने वाले लोगों से अधिक है। जातिवाद को एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था माना गया है जिसमें समाज में रहने वाले लोगों का विभाजन उनके वर्ण, कार्य और जाति के अनुसार किया गया है। दोस्तों यदि हम बात करें जातिवाद के परिभाषा के बारे में तो इसके संबंध में अनेक लेखक और विचारकों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। उन्हीं में से एक लेखक हैं चंदन सिंह विराट जिनके अनुसार जातिवाद की परिभाषा निम्नवत है –

“जातिवाद एक गंभीर प्रकृति की मानसिक भ्रष्टता है जो किसी व्यक्ति की सोच, महसूस करने की क्षमता या दूसरे जाति / समुदाय के प्रति उसके व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।”

:चंदन सिंह विराट

इसी तरह अन्य विचारकों ने अपने शब्दों में जातिवाद को परिभाषित किया है जिनके बारे में हमने आपको आर्टिकल में आगे बताया है –

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“जातिवाद एक अबाधित अंध और सर्वोच्च समूह भक्ति है जो कि न्याय, ओचित्य, समानता और विश्व बंधुत्व की उपेक्षा करता है।”

:काका कालेलकर के अनुसार

“राजनीति की भाषा मे उपजाति के प्रति निष्ठा का भाव ही जातिवाद है। अर्थात् जातिवाद के कारण व्यक्तियों मे उपजातियों के प्रति निष्ठा की भावना होती है। हर उपजाति अपनी ही उपजाति को लाभ पहुंचाना चाहती है चाहे इससे किसी अन्य उपजाति को कितनी ही हानि हो।”

:के. एम. पणिक्कर के अनुसार

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जातिवाद का क्या है अर्थ जानें ?

वैसे हमने आपको विभिन्न विचारकों की परिभाषाओं को संदर्भित करके यह बताने का प्रयास किया है की जातिवाद ने सिर्फ समाज में नफरत बोने, समाज को विभाजित करने और समाज एवं देश के विकास में बाधा उत्पन्न करने का कार्य किया है। एक तरह से यदि हम कहें की लोगों में बांटने की भावना उत्पन्न होना यही जातिवाद को बढ़ावा देने का सबसे बड़ा कारण है।

जातिवाद की उत्त्पत्ति कैसे हुई ? क्या है इसका इतिहास जानें ?

इतिहास में यह बता पाना की जातिवाद की शुरुआत कब और कहाँ कैसे हुई ये थोड़ा मुश्किल है क्योंकि कई इतिहासकार और विद्वान मानते हैं की जातिवाद की धारणा मनुष्यों में 19वीं शताब्दी में प्राप्त हुई एक प्राचीन विवादित किताब मनुस्मृति से आई है। माना जाता है यह किताब ऋग्वेद काल के समय में राजा मनु के द्वारा लिखी गयी थी। मनुस्मृति में समाज में रहने वाले सभी लोगों को भगवान ब्रह्मा के शरीर के भागों को दर्शाते हुए चार वर्णों में बांटा गया है। आप नीचे दिए गए चित्र में देख सकते हैं। यह चार वर्ण इस प्रकार से हैं –

  • ब्राह्मण (Brahmins)
  • क्षत्रिय (Kshtriyas)
  • वैश्य (vaishyas)
  • शूद्र (Shudras,Dalits,outcastes)
Casteism-Origin-of-Hindus-from-Brahma
जातिवाद पर निबंध

उपरोक्त चित्र में आप देख सकते हैं की ब्रह्मा जी के मुख को ब्राह्मण जाति के समुदाय के लोगों से जोड़ा गया है। वहीं आप देखेंगे की ब्रह्मा जी की भुजाओं को क्षत्रिय जाति के लोगों के लिए दर्शाया गया है। इसी तरह वैश्य समाज के लोगों के लिए ब्रह्मा जी की जांघों को प्रदर्शित किया गया है। इसी तरह ब्रह्मा जी के चरणों को शूद्र और दलित समाज एवं निचली जाति के रूप में दिखाया गया है। दोस्तों उपरोक्त जो चार वर्ण हमने आपको बताये हैं उन्हीं में कर्मों और कार्यों के आधार पर लोगों को विभिन्न जातियों में विभाजित किया गया है।

जातिवाद के कुछ प्रमुख कारण:

देश में जातिवाद को बढ़ावा देने और जातिवाद पर लोगों की भावनाओं को आहत करने हेतु बहुत से कारण रहे हैं यहाँ हम कुछ मुख्य कारणों के बारे में बताने जा रहे हैं –

  • अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ समझना: अगर कोई व्यक्ति पैदा होता है तो उसके परिवार, कुल, धर्म और जाति का निर्धारण पहले ही तय हो जाता है। यदि व्यक्ति किसी ऊँचे कुल या जाति में पैदा होता है तो हो सकता है उसका जीवन थोड़ा आसान रहे। वहीं व्यक्ति ने किसी नीचे कुल या जाति में जन्म लिया है तो यह समाज के लोगों द्वारा किये जाने वाले भेदभाव और मानसिक प्रताड़ना का कारण बनता है। जिस कारण नीची जाति में पैदा होने वाले व्यक्ति को कई बार अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ता है। इस तरह की सामाजिक कुरीतियों के कारण व्यक्ति का जीवन एक कठिन और संघर्ष के पथ पर चलने वाले की तरह हो जाता है।
  • अंतरजातीय विवाह: समाज में आज भी आपने देखा होगा की लोग अपनी ही जाति में विवाह या शादी करना पसंद करते हैं। जातिवाद ने समाज की सोच को संकुचित एवं संकीर्ण बनाया है। यदि कोई व्यक्ति अंतरजातीय विवाह के विपरीत जाकर किसी दूसरे धर्म या जाति में विवाह करता है तो उसे समाज से काफी विरोध सहना पड़ता है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत कोई भी व्यक्ति बालिग़ होने के बाद शादी हेतु अपने साथी को चुनने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र है।
  • शहरीकरण: दोस्तों आपने देखा होगा की जिस तरह से हमारे गाँवों का शहरीकरण और Modernization होता जा रहा है। जिस कारण लोगों काम एवं रोजगार के लिए एक शहर से दूसरे शहर पलायन करना पड़ता है। ऐसे में हम देखते हैं काम के अवसरों में भी जातिय व्यवस्था को लागू कर दिया जाता है। यदि आप एक ही गाँव या जाति से हैं तो आपको काम आसानी से मिल जायेगा यह सब सिफारिशों से चलने वाला काम होता है। ठीक वहीं हम देखें यदि आप कहीं दूसरे गाँव या जाति के हैं तो आपको काम मिलने में परेशानी आती है।
  • शिक्षा का आभाव एवं अवसरों की कमीं: पुरातन काल से ऐसा ही होता आ रहा है की सिर्फ अगड़ी और ऊँची जाति के लोगों को शिक्षा का अधिकार होगा। पुराने समय में जाति भेदभाव इतना था की सिर्फ क्षत्रिय और ब्राह्मणों को शस्त्र कला, शास्त्र ज्ञान दिया जाता था और क्षुद्र एवं नीची जात वाले लोगों को सिर्फ दास और गुलाम बना के रखा जाता था। परन्तु जब देश आज़ाद हुआ और संविधान में आरक्षण व्यवस्था को रखा गया जिससे वंचित और नीची जात के समाज के लोगों को वह सब अधिकार मिले जो अगड़ी और ऊँची जाति के लोगों को मिले हुए थे। परन्तु जातिय भेदभाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। संविधान के निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर को भी अपने समय में काफी जातिवाद भेदभाव झेलना पड़ा था। इसलिए उन्होंने दलित समाज एवं नीची जात से संबंधित लोगों के उत्थान हेतु एक नारा भी दिया था-

आप शिक्षित बनों , संगठित रहो , और समाज में आगे बढ़ो।

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: डॉ भीमराव अम्बेडकर

जानें जातिवाद से संबंधित संवैधानिक कानूनी महत्व के बारे में ?

दोस्तों जब से हमारा देश आज़ाद हुआ है और भारत में अपना संविधान लागू हुआ है तो संविधान में सामाजिक समरूपता और जातिवाद सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के बहुत से कानून बने हैं। यदि कोई भी नागरिक इन कानून का उल्लंघन करता है तो वह भारतीय दंड संहिता के तहत सजा का पात्र होगा। आइये जानते हैं ऐसे क़ानून एवं नियमों के बारे में।

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (क) के अनुसार:
    • यदि कोई नागरिक अपने द्वारा बोले गए शब्दों, संकेतों, विभिन्न धार्मिक मूल्यों, जन्मस्थान, भाषा, जाति एवं समुदाय के आधार पर किसी भी तरह के परिवर्तन या संप्रवर्तित करने का प्रयास करता है तो वह दंड संहिता के तहत अपराध माना जाएगा और संबंधित व्यक्ति के प्रति कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।

Conclusion (निष्कर्ष):

दोस्तों उपरोक्त लेख को पढ़ के आप समझ गए होंगे की जातिवाद हमारे समाज के लिए किसी बाहरी वायरस से भी ज्यादा घातक एवं खतरनाक है। यदि हमें जातिवाद को खत्म करना है तो सबसे पहले लोगों को शिक्षित करना होगा ताकि अपने अधिकारों के बारे में जान सकें।

जातिवाद पर निबंध से संबंधित प्रश्न

मनुस्मृति जातिवाद के सन्दर्भ में संविधान के किस आर्टिकल का विरोध करती है ?

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विद्वानों एवं संविधान के जानकारों के अनुसार मनुस्मृति हमारे भारतीय संविधान के आर्टिकल 17,18, 19 आदि का विरोध करती है जिसमें सभी नागरिकों के लिए समानता की बात कही गयी है।

मनुस्मृति के रचयिता कौन हैं ?

पुरानी मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है की भगवान ब्रह्मा के सबसे बड़े पुत्र राजा मनु से मनुस्मृति की रचना की थी।

हिन्दू समाज में लोगों को कितने वर्ण में बांटा गया है ?

हिन्दू समाज में लोगों को मुख्यतः चार वर्णों में बांटा गया है जो इस प्रकार से हैं –
ब्राह्मण (Brahmins)
क्षत्रिय (Kshtriyas)
वैश्य (vaishyas)
शूद्र (Shudras,Dalits,outcastes)

समाज में जातिवाद को बढ़ावा देने के क्या कारण हैं ?

समाज में जातिवाद को बढ़ावा देने के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार से हैं –
रूढ़िवादी सोच का होना
लोगों में शिक्षा का आभाव होना
पुरातन धकियानूसी धार्मिक मान्यताओं को मानना
समाज में लोगों के बीच मतभेदों की दूरी

भारत में पहली बार जाति आधारित जनगणना कब हुई ?

भारत में पहली बार जाति आधारित जनगणना वर्ष 2011 में करवाई गयी थी।

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