प्रेरणार्थक क्रिया वे क्रियाएं होती हैं जो किसी अन्य व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं। दूसरे शब्दों में, ये क्रियाएं बताती हैं कि किसी ने किसी अन्य व्यक्ति को क्या करने के लिए कहा या प्रेरित किया। जैसे:
- मोहन ने राम से घास कटवाया।
- टीचर बच्चों से पुस्तक पढ़वाती है।
- कल माँ ने बहिन से खाना बनवाया।
- मालिक ने आज सुबह गीता से जूस बनवाना।
उपयुक्त उदाहरण में मोहन, टीचर, माँ और मालिक स्वयं कुछ नहीं कर रहे अर्थात दूसरों को प्रेरणा देने वाले कर्ता हैं और राम, बच्चे, बहिन, गीता कर्त्ता से प्रेरित होकर कार्य कर रहे है। इस क्रिया के अंतर्गत कर्ता स्वयं क्रिया न करके दूसरे को क्रिया करने के लिए प्रेरित करते है। क्रिया का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए सकर्मक क्रिया की परिभाषा, प्रकार की जानकारी होनी भी आवश्यक है।
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Prernarthak Kriya के दो कर्ता होते है –
- प्रेरक कर्ता – प्रेरणा देने वाला व्यक्ति
- प्रेरित कर्ता – प्रेरित होकर कार्य करने वाला व्यक्ति
प्रेरणार्थक क्रिया के प्रकार
Prernarthak Kriya दो प्रकार की होती है।
- प्रत्यक्ष या प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
- अप्रत्यक्ष या द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
1) प्रत्यक्ष या प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
जब कोई कर्ता कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है, तो उसे प्रथम Prernarthak Kriya कहते हैं। इस क्रिया में कर्ता स्वयं भी कार्य में शामिल होकर कार्य करता है। उदाहरण –
- राम सबको गाना सुनाता है।
- बहिन अपने भाई को खाना खिलाती है।
- मै विद्यालय में भाषण देता हू।
- माँ परिवार के लिए भोजन बनाती है।
- नौकरानी बच्चे को झूला झुलाती है।
- माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती है।
2) अप्रत्यक्ष या द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
इस क्रिया में कर्ता खुद कार्य न करके दूसरे को काम करने की प्रेरणा देता है, तो उसे द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया कहते है। उदाहरण –
- माँ पुत्री से भोजन बनवाती है।
- माँ ने आज पापा से खाना बनवाया।
- टीचर ने आज स्कूल का काम बच्चों से करवाया।
- सर्कस में जोकर अपने हाथी से करतब करवाता है।
Prernarthak Kriya बनाने के नियम
- ऐसे शब्द जिनके अंत में ‘आना’ जुड़ जाता है तो वह प्रथम Prernarthak Kriya एवं जिस शब्द के अंत में ‘वाना’ जुड़ जाता है तो वह द्वितीय Prernarthak Kriya बन जाती है। जैसे –
मूल धातु | प्रथम प्रेरणार्थक रूप | द्वितीय प्रेरणार्थक रूप |
---|---|---|
उठ | उठाना | उठवाना |
गिर | गिराना | गिरवाना |
कट | काटना | कटवाना |
पढ़ | पढ़ाना | पढ़वाना |
सुन | सुनाना | सुनवाना |
चल | चलाना | चलवाना |
2. यदि दो अक्षर वाले मूल धातु में ऐ‘ तथा ‘औ‘ जोड़ दिया जाएं तो वह दीर्घ को हस्व स्वर बना दिया जाता है।
मूल धातु | प्रथम प्रेरणार्थक रूप | द्वितीय प्रेरणार्थक रूप |
---|---|---|
ओढ़णा | उढ़ाणा | उढ़वाणा |
जागना | जगाना | जगवाना |
जीतना | जिताना | जितवाना |
3. जब एक अक्षर वाले मूल धातु के अंत में ‘ला‘ तथा ‘लवा‘ जोड़ दिया जाएं तो दीर्घ स्वर मात्रा को लघु मात्रा कर दिया जाता है।
मूल धातु | प्रथम प्रेरणार्थक रूप | द्वितीय प्रेरणार्थक रूप |
---|---|---|
खाना | खिलाना | खिलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
पीना | पिलाना | पिलवाना |
Prernarthak Kriya से संबंधित सवालों के जवाब
Prernarthak Kriya किसे कहते है ?
वे सभी क्रियाएं जो कर्ता स्वयं न करके किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, तो उसे Prernarthak Kriya कहते है।
Prernarthak Kriya के कितने भेद होते हैं ?
इस क्रिया के दो भेद होते है – प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया एवं द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया।
प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया किसे कहते हैं और इसकी पहचान कैसे की जाती है ?
इस क्रिया के अंतर्गत कर्ता स्वयं भी कार्य में शामिल होकर कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है, ऐसी क्रिया को प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया कहते है। जब किसी मूल धातु के अंत में ‘आना‘ जुड़ता है, तो समझ लीजिए वह प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया है। जैसे – चलाना, सुनाना, काटना ,गिराना आदि।