रमज़ान क्या है ? रोज़े क्यों रखते हैं मुस्लिम, इस्लामिक कैलंडर किसे कहते हैं ? Ramzan kya hai | Roze kyon rakhte hain

इस्लाम धर्म में रमज़ान का महीना बेहद ही पाक और पवित्र महीना माना जाता है। प्रत्येक मुसलमान के लिये यह महीना खुदा की बंदिगी और इस्लाम के अनुसार बताये गये नेक कामों को करने का महीना है। बेहद शिद्दत से रमज़ान के पाक महीने को फर्द होने वाले हर बालिग बाशिंदे के द्वारा अदा किया ... Read more

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Reported by Rohit Kumar

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इस्लाम धर्म में रमज़ान का महीना बेहद ही पाक और पवित्र महीना माना जाता है। प्रत्येक मुसलमान के लिये यह महीना खुदा की बंदिगी और इस्लाम के अनुसार बताये गये नेक कामों को करने का महीना है। बेहद शिद्दत से रमज़ान के पाक महीने को फर्द होने वाले हर बालिग बाशिंदे के द्वारा अदा किया जाता है। यदि आप भी रमज़ान के बारे में उत्सुक रहते हैं तो आज हम आपको रमज़ान और उससे जुडे तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं। जैसे कि रमज़ान क्या होता है, (Ramzan kya hai), मुस्लिमों के द्वारा रोजा क्यों रखा जाता है, इस्लामिक कैलेंडर क्या होता है आदि प्रश्नों के जवाब हम इस लेख में दे रहे हैं। सम्पूर्ण जानकारी के लिये इस लेख को पूरा अवश्य पढें।

रमज़ान क्या है ? रोज़े क्यों रखते हैं मुस्लिम, इस्लामिक कैलंडर किसे कहते हैं ? Ramzan kya hai | Roze kyon rakhte hain
रमज़ान क्या है ? रोज़े क्यों रखते हैं मुस्लिम, इस्लामिक कैलंडर किसे कहते हैं ?

रमज़ान क्या है (Ramzan kya hai)

इस्लामिक मान्यता में रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार इसके नौंवें महीने में आता है। इस्लामिक कैंलेडर में हर साल नौंवां महीना रमज़ान का महीना होता है। इस महीने में मुसलमानों के द्वारा रोजे रखे जाते हैं। वे इसे खुदा या अल्लाह का पवित्र महीना मानते हैं। इस पूरे महीने में हर दिन उपवास रखा जाता है। इस महीने में मुसलमान दान करते हैं और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। इसे खुदा के प्रति अपनी वफादारी प्रकट करने के रूप में रखा जाता है। रमज़ान के महीने को अल्लाह की इबादत का महीना कहा जाता है। मुसलमान इस महीने हर प्रकार के गलत काम और आचरण से बचते हैं। अपने आपको पाक साफ रखकर ही रोजा अथवा उपवास रखा जाता है।

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क्यों मनाते हैं रमज़ान

मुस्लिम धर्म की प्रचलित मान्यताओं के आधार पर ही रमज़ान का महीना संयम और खुद पर काबू करते हुये खुदा की बंदिगी और उसकी इबादत में गुजार दिया जाता है। इस्लामी धर्म पुस्तकों के अनुसार एक मुसलमान व्यक्ति को इस्लाम के पांच नियमों का अपने जीवन में पालन करना होता है। इसे ही इस्लाम के पांच आधार स्तंम्भ कहा जाता है। ये पांच स्तंम्भ हैं- कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज। इस प्रकार से रोजा इस्लाम के मूल आधार का हिस्सा है। और रोजा रमज़ान की मुख्य मान्यता है। इसके साथ ही कहा जाता है कि पैगंबर मुहम्मद को इसी महीने में कुरान का ज्ञान हुआ था। इसलिये भी इस महीने को पाक और पवित्र समझा जाता है।

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कैसे मनाया जाता है रमज़ान

रमज़ान के महीने में मुस्लिमों के द्वारा रोजा रखा जाता है। रोजे के दौरान रोजेदार को कुछ भी खाने और पीने की मनाही होती है। यहां तक कि रोजेदार के पानी पीने पर भी सख्त रोक होती है। रमज़ान के महीने में रोजा रखने से पहले रोजेदारों के द्वारा भोजन किया जाता है। यह भोजन सूर्य के उदय होने से पहले एक रोजेदार को करना होता है। सूरज उगने से पहले किये जाने वाले इस भोजन को सहरी या सेहरी कहा जाता है। इसके बाद पूरे दिन भर रोजेदार के खाने पीने, जलपान पर प्रतिबंध होता है।
इसके बाद दिन भर रोजा रखा जाता है। सूर्य के अस्त हो जाने के बाद रोजा खोला जाता है। रोजा खोलते समय खाये जाने वाले भोजन को इफ्तार कहा जाता है। यही प्रक्रिया पूरे महीने भर चलती है। इसमें रोज सहरी के बाद रोजा रखा जाता है और रात को इफ्तार के समय खोला जाता है। इस दौरान मुस्लिम समुदाय लगातार अल्लाह को याद करता है और उसकी इबादत में नमाज इत्यादि पढी जाती है। रमज़ान के दौरान बुरी आदतों जैसे शराब आदि पर प्रतिबंध रहता है। बुरे व्यवहार और आचरण से बचा जाता है।

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रोजे क्यों रखे जाते हैं (Roze kyon rakhte hain)

इस्लामी धार्मिक पुस्तकों के अनुसार रोजे रखना अल्लाह के द्वारा दिया गया हुक्म है जिसे कि हम मुसलमान को पूरा करना अनिवार्य है। साथ ही यह आत्म नियंत्रण, संयम और नेकदिली पैदा करने के लिये रखा जाता है। खुदा का कहना है कि इस महीने की गर्मी में रोजा रखने वाले रोजेदार के पाप और बुरे कर्म धूप में जल जाते हैं। अल्लाह की नेहमत से रोजा रखने वाला रोजेदार दिल से पाक साफ और खुदा की रहमत का पात्र बन जाता है। एक स्वस्थ और अच्छा आचरण रमज़ान के पूरे महीने में किया जाता है। जिसका प्रभाव निश्चित रूप से रोजेदार के आचरण और जीवन पर पडता है। इसलिये सभी मुसलमानों को रोजे रखने का आदेश धर्म ग्रंथों के द्वारा दिया गया है।

रोजे कौन रख सकता है ?

कुरान और हदीस कहती है कि हर मर्द और औरत पर रमज़ान का रोजा फर्ज है। अर्थात हर पुरूष और महिला को रोजा रखना अनिवार्य या उसका फर्ज है। साथ ही कुछ लोगों को इसमें छूट भी दी गयी है। जैसे कि गर्भवती महिलायें, अधिक बूढे व्यक्ति, छोटे बच्चे, जिनके शरीर में रोजा रखने की ताकत नहीं है या फिर जो लोग मानसिक विकृति या मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं है। उन्हें रोजा रखने से छूट दी गयी है। यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो उसे भी रोजेदार बनने से मना किया गया है। साथ ही कहा गया है कि बीमार व्यक्ति ठीक होते ही सबसे पहले रोजा रखेगा।

इस्लामिक कैलेंडर क्या होता है (Hijri Calendar)

आमतौर पर इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर कहा जाता है। इस्लाम धर्म के मानने वाले इस कैलेंडर को अपनाते हैं। इसके पीछे तथ्य यह है कि वर्ष 622 ईं में खुदा के द्वारा भेजे गये पैंगबर हजरत मुहम्मद साहब मक्का में कुछ वर्ष गुजारने के बाद मदीना चले गये और वहीं जाकर बस गये। मक्का के निवासियों के द्वारा इसे हिजरत कहा गया। हिज्र का अर्थ उर्दू में बिछडना होता है। जिस दिन मोहम्मद हजरत साहब मक्का छोडकर गये, उसी दिन से हिजरी कैलेंडर की शुरूआत मानी जाती है।

इस्लामिक कैलेंडर- हिजरी कैलेंडर
Islamic Calendar

हिजरी कैलेंडर में भी ग्रेगेरियन कैलेंडर की भांति 12 महीने होते हैं। लेकिन इस्लामिक कैलेंडर में दिनों को चांद की घटती, बढती कलाओं और चाल के आधार पर गिना जाता है। इसलिये हर साल यह कैलेंडर लगभग 10 दिन पीछे खिसक जाता है। हिजरी कैलेंडर में 354-355 दिन होते हैं। मातम के महीने मोहर्रम से इस्लामी कैलेंडर शुरू होता है और जिलहिज्ज के महीने में वर्ष समाप्त हो जाता है।

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इस्लामिक कैलेंडर- हिजरी महीनों के नाम

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इस्लामिक कैलेंडर में भी 12 महीने होते हैं। इन महीनों को अलग अलग नाम दिये गये हैं। इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर भी कहा जाता है। हिजरी कैलेंडर के 12 महीने इस प्रकार हैं-

  1. मुहर्रम उल हराम
  2. सफर उल मुजफ्फर
  3. रबी अल अव्वल/मीलाद उन नबी/ईद ए मीलाद
  4. रबी अल थानी/रबी अल आखिर
  5. जमाद अल अव्वल/जुमादा
  6. जमाद अल थानी/जुमादा अल आखिर
  7. रज्जब अल मुरज्जब
  8. शआबान अल मुआजम अथवा शाबान
  9. रमजान या रमदान अथवा रमदान अल मुबारक
  10. शव्वाल उल मुकर्रम
  11. जु अल कादा या जुल कादा
  12. जु अल हज्जा

रमजान से जुडे तथ्य

  • अल्लाह के भेजे गये दूत पैगम्बर के अनुसार रमजान के पाक महीने के पहले के 10 दिन (पहला अशरा) रहमत के होते हैं
  • रमजान के महीने के दूसरे दस दिन (दूसरा अशरा) मगफिरत यानी अल्लाह से माफी मांगने के होते हैं।
  • रमजान के पाक महीने के अंतिम दस दिन (तीसरा अशरा) दोजख यानी नर्क से आजादी पाने के लिये होते हैं। इन दिनों में दोजख से आजादी के लिये दुआ मांगी जाती है और नमाज पढी जाती है।
  • रमजान के महीने में जकात की प्रथा मुस्लिम समुदाय में है। जकात का अर्थ है खुदा के नाम पर अपनी सम्पत्ति का कुछ हिस्सा गरीबों और असहाय लोगों की मदद के लिये मस्जिद में दान करना।
  • रमजान के महीने में ही शब ऐ कद्र भी मनाई जाती है। इसमें पूरी रात अल्लाह की इबादत में गुजार दी जाती है।
  • मुस्लिम धर्म के अनुसार रमजान के महीने में खुदा जन्नत के सभी दरवाजे खोल देता है और दोजख के दरवाजे बंद कर देता है।
  • जो लोग रमजान के महीने में रोजे रखते हैं उन्हें सीधे जन्नत नसीब होती है।
  • रोजा खोलने के लिये खजूर का इस्तेमाल किया जाता है। इफ्तार के समय दुआ मांगते हुये खजूर खाकर रोजा तोडा जाता है।
  • रमजान के महीने के अंत में ईद मनाई जाती है। इसे ईद उल फितर कहा जाता है। इस दिन लोग मस्जिदों में जाकर नमाज अदा करते हैं और एक दूसरे की सलामती की दुआ मांगते हुये गले मिलते हैं।

रमज़ान और रोजा से सम्बन्धित प्रश्न FAQ

रमज़ान क्या है?

रमजान इस्लामिक अथवा हिजरी कैलेंडर का नौंवा महीना होता है। रमजान का महीना बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के द्वारा रोजे रखे जाते हैं।

रोजा कैसे रखा जाता है?

मुस्लिमों के द्वारा हिजरी कैलेंडर के नौंवे महीने में रमजान मनाया जाता है। रमजान में रोजे रखे जाते हैं। रोजा रखने से पहले सूर्य उदय होने से पूर्व सहरी का खाना खाया जाता है। इसके बाद पूरे दिन कुछ भी खाने पीने की मनाही है। सूर्य अस्त होने के बाद इफ्तार की दुआ के साथ रोजा खोला जाता है।

इस्लाम के पांच स्तंभ कौन से हैं?

मुस्लिम धर्म में इस्लाम के पांच स्तम्भ माने गये हैं। ये स्तंम्भ हैं- कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज।

रमज़ान में सहरी और इफ्तार क्या है?

मुस्लिम धर्म में रमजान के महीने में रोजा रखा जाता है। रोजा रखने से पहले भोजन किया जाता है और शाम को भोजन करके ही रोजा खोला जाता है। रोजे के समय सूर्य उदय होने से पहले किया गया भोजन सहरी, जबकि शाम के वक्त सूर्य अस्त हो जाने के बाद रोजा खोलने के लिये किया जाने वाला भोजन इफ्तार कहलाता है।

इस्लामिक कैलेंडर में कितने दिन होते हैं?

सामान्य कैलेंडर की तुलना में इस्लामी कैलेंडर में 10 दिन घट जाते हैं। इस प्रकार से हिजरी कैलेंडर में 355 दिन होते हैं।

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