रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय,इतिहास । Rani Laxmi Bai History

Photo of author

Reported by Rohit Kumar

Published on

रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय:- रानी लक्ष्मी बाई का नाम हमारे देश में बहुत ही सम्मान और गौरव से लिए जाता है। हमारे देश की आज़ादी के लिए रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध किया। यही नहीं उन्होंने अपनी अलग सेना बनाई जिसमें महिलाये शामिल थी। आज के समय में हर बच्चे बच्चे को रानी लक्ष्मीबाई, Rani Laxmi Bai के बारे में पता होगा। बचपन से ही उन्हें हमारे देश के वीर सपूतों और वीरांगनाओं के बारे में बताया जाता है। जिन्होंने अपनी आखिरी दम तक देश की आज़ादी के लिए अपना योगदान दिया।

रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय,इतिहास । Rani Laxmi Bai History
रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय, इतिहास

लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी। आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आप को रानी लक्ष्मीबाई से जुडी विभिन्न जानकारियां देंगे। इस लेख में आप रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय, इतिहास। Rani Laxmi Bai History व अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां पढ़ सकेंगे। जानने के लिए आप इस लेख को पूरा अवश्य पढ़ें।

Rani Laxmi Bai History . प्रारम्भिक जीवन

रानी लक्ष्मी बाई हमारे देश की एक अभूतपूर्व वीरांगनाओं में से एक थी। इनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था। प्यार से सभी इन्हे मनु कह कर पुकारा करते थे। रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनकी माता का नाम भागीरथी बाई था जो बेहद कर्तव्यपरायण, धर्मनिष्ठ और सुसंस्कृत थी और पिता का नाम मोरोपत ताम्बे था। वे एक मराठी ब्राह्मण परिवार से आते थे। मोरोपंत ताम्बे मराठा बाजीराव की सेवा में थे। बताते हैं कि रानी लक्ष्मी बाई की माता की मृत्यु बचपन में ही हो गयी थी, जब मनु की आयु 4 या 5 वर्ष की थी।

जिसके बाद उनका ध्यान रखने के लिए कोई नहीं था। ऐसे में मनु के पिता उन्हें बिठूर ले आये। और आपने साथ ही पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। मनु की सुंदरता और बाल सुलभ चंचलता ने सबका मन मोह लिया। यही नहीं पेशवा बाजीराव ने मनु को नया नाम दिया – छबीली।

व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp

रानी लक्ष्मी बाई की शिक्षा

बिठूर आने के बाद उन्होंने महल में ही बहुत सी विद्याएं सीखी – जैसे कि मल्लविद्या, घुड़सवारी और शस्त्रविद्याएँ आदि। दरअसल पेशवा बाजीराव के बच्चों के साथ ही मनु भी शिक्षा प्राप्त करने लगी। मनु बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि की थी और अपनी इसी सामर्थ्य के साथ सात साल की उम्र में ही घुड़सवारी सीख ली। इसके साथ ही मनु तलवार चलाने से लेकर धनुर्विद्या आदि चलाने में भी निपुण हो गयी थी। कहा जाता है कि मनु अपने सहपाठियों से भी अधिक बेहतर प्रदर्शन करती थी। उनके जीवन पर बचपन में सुनी गयी पौराणिक वीरगाथाओं की छाप दिखती है। वीरता, दृढ़ संकल्प, निडरता और अन्य सभी योद्धाओं के गुण उनमे थे। ये सभी गुण उनमे कम उम्र में ही विद्यमान थे। सभी अस्त्र शास्त्रों के ज्ञान से लेकर सभी प्रकार के अन्य महत्वपूर्ण विद्याओं में वो निपुण हो चुकी थी।

Rani Laxmi Bai / मनु का वैवाहिक जीवन

समय के साथ साथ मनु की उम्र भी बढ़ी और इसके साथ ही मनु का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ संपन्न करा दिया गया था। वर्ष 1842 में विवाह के पश्चात झांसी की रानी बन गयी और उनका नाम मनु से बदलकर रानी लक्ष्मी बाई रख दिया गया। इसके बाद सन 1851 में रानी लक्ष्मी बाई के पुत्र का जन्म हुआ, जो सिर्फ चार महीने के लिए ही रानी के गोद में रहा। गंभीर रूप से बीमार होने पर उसकी चार महीने बाद ही मृत्यु हो गयी। जिसके बाद पूरी झांसी शोक में डूब गयी।

राजकुमार की मृत्यु के दो वर्ष बाद यानी 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ चूका था। जिस वजह से दरबारियों ने उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी । उन्होंने सलाह पर कार्य करते हुए अपने परिवार के 5 वर्षीय बालक को पुत्र रूप में गोद लिया और अपने दत्तक पुत्र का नाम उन्होंने दामोदर राव रखा। इसके पश्चात् 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव मृत्यु को प्राप्त हो गए।

रानी लक्ष्मी बाई का शासन

राजा गंगाधर की मृत्यु के बाद रानी अपने दत्तक पुत्र को लेकर राज काज को सम्हालने लगी। हालाँकि राजा की मृत्यु उपरान्त अंग्रेजों की नज़र झाँसी पर पड़ चुकी थी। कंपनी शासन हर संभव प्रयास करने लग गए जिससे वो झाँसी को अपने शासन के अंतरगत ला सकें। इनके सभी प्रकार के प्रलोभन, प्रस्ताव और अन्य तरीको से निपटते हुए रानी ने अंत तक अपने राज्य झाँसी को बचाकर रखा। यही नहीं उन्होंने अपने जीवनपर्यन्त प्रजा की भलाई काम किया। कुछ एक रानी की तरह परदे में रहकर और कुछ एक योद्धा के तौर पर अपने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था कायम रखी।

रानी लक्ष्मीबाई खुले विचारों वाली महिला थी। उन्हें अपने राज्य की भलाई के लिए समय पड़ने पर किसी भी हद तक जाकर उस कार्य को पूरा करने वालों में से थी। इसलिए वो बहुत समय तक अपने इस गुण को नहीं दबा सकी। इसके लिए उन्होंने अपने किले के अंदर ही एक व्यायामशाला का निर्माण करवाया। साथ ही अस्त्र शस्त्र चलाने और घुड़सवारी हेतु भी कुछ महत्वपूर्ण प्रबंध करवाए। इतना ही नहीं उन्होंने महिलाओं की भी एक सेना तैयार की, जिसे उन्होंने अच्छी तरह से प्रशिक्षण दिया।

ब्रिटिश शासन के खिलाफ शासन

जैसे की राजा की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों की नज़र राज्य पर पड़ चुकी थी। उन्होंने राजा के दत्तक पुत्र को अगला वारिस मानने से इंकार कर दिया था। अंग्रेज़ों द्वारा चलायी गयी राज्य हड़प नीति के तहत यदि किसी भी राजा की मृत्यु उपरान्त सिर्फ उन्ही पुत्रों को उत्तराद्धिकारी माना जाएगा जो राजा की अपनी संतान होंगे। यदि किसी राजा के कोई संतान नहीं होती है तो ऐसे में उन राज्यों को अंग्रेजी शासन के तहत लाया जाएगा। इसी प्रकार राजा द्वारा दामोदर राव को अपने दत्तक पुत्र को लेने का बाद भी उसे अंग्रेज़ों ने असली वारिस मानने से मना कर दिया।

ब्रिटिश सरकार ने अपनी नीति के अंतर्गत झाँसी के भावी राजा बालक दामोदर राव के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर कर दिया था। बावजूद इसके काफी बहस के बाद ये मुकदमा खारिज कर दिया गया। हालाँकि ब्रिटिश अधिकारीयों ने राज्य का खज़ाना जब्त कर लिया और साथ ही राजा गंगाधर राव द्वारा लिए गए कर्ज को रानी लक्ष्मी बाई के सालाना खर्च में से काटने का आदेश भी दे दिया गया। इस का परिणाम ये हुआ की रानी लक्ष्मी बाई झाँसी के किले को छोड़कर रानीमहल में चली गयी। इतना सब झेलते हुए भी रानी ने अपनी हिम्मत नहीं हारी और झाँसी को अंग्रेज़ों से बचाने का संकल्प किया।

झांसी का युद्ध

1857 में हुए झांसी का युद्ध स्वतंत्र संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन चूका था जहाँ सिर्फ एक झाँसी ही नहीं पूरे भारतवर्ष को आजाद करने की मांग ने जोड़ पकड़ा था। इधर लक्ष्मी बाई अपनी झांसी की सुरक्षा के लिए लगातार अपनी नयी सेना तैयार कर रही थी। उनकी सेना में सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी थी। इस स्वयंसेवक सेना के गठन के साथ साथ उन्हें जोरो शोरो से युद्ध प्रशिक्षण शुरू कर दी गयी थी। इस संग्राम में साधारण जनता ने भी अपने अपने स्तर पर सहयोग किया। इस सेना में झलकारी बाई के नाम की एक स्त्री भी थी जिसे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल कहा जाता था। उसे भी सेना प्रमुख स्थान प्रदान किया गया था।

यह भी देखेंप्रभास का जीवन परिचय | Prabhas Biography in Hindi

प्रभास का जीवन परिचय | Prabhas Biography in Hindi

जैसे की आप ने जाना कि राजा के मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने समय समय पर झाँसी को पाने के लिए निरंतर प्रयास किया। मुक़दमे के खारिज होने के बाद भी अंग्रेजों ने बहुत से युद्ध के जरिये झाँसी को पूरी तरह से अपने कब्ज़े में लेने का प्रयास किया। जिसके फलस्वरूप रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी झाँसी को बचाने के लिए सेना तैयार की। और अपने राज्य की आखिरी साँस तक रक्षा की। इसके अलावा झाँसी पर 1857 में सितम्बर अक्टूबर में पड़ोसी राज्यों द्वारा भी हमला किया गया। इन राज्यों में ओरछा तथा दतिया शामिल थ। रानी ने इनका जमकर सामना किया और अपने और अपनी सेना के युद्ध कौशल से दुश्मनों को धुल चटा दी।

इसके बाद सन 1858 के शुरुआती माह में ब्रटिश सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू किया और मार्च के माह में पूरे शहर को घेर लिया। इसके बाद दो हफ़्तों के लिए युद्ध चला जिसके बाद सेन ने पूरे शहर पर आना कब्ज़ा कर लिया था। इस युद्ध में रानी लक्ष्मी बाई अपने पुत्र को वहां से सुरक्षित निकाल लायी थी। इसके बाद उन्होंने कालपी में जाकर शरण ली और तात्या टोपे से मिली।

अब रानी ने तात्या टोपे के साथ मिलकर अपनी संयुक्त सेना के साथ ग्वालियर के विद्रोही सेना की सहायता लेकर ग्वालियर के एक किले पर अपना कब्ज़ा कर लिया। बताते हैं कि बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वितीय को राखी भेजी थी। इसलिए उन्होंने भी इस युद्ध में रानी लक्ष्मी बाई का साथ दिया।

ग्वालियर के पास कोटा की सराय में 18 जून 1858 को ब्रिटिश सेना से लड़ते लड़ते रानी लक्ष्मी बाई आखिरी दम तक अंग्रेज़ों को छकाती रही। अंत में उन्होंने अपनी भूमि के लिए युद्ध में घायलवस्था में भी लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिए और वीरगति को प्राप्त हुई। जिसके लिए आज भी इस वीरांगना को कोटि कोटि नमन है जिसने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अपनी प्रजा और देश के लिए अपना सबकुछ होम कर दिया।

रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय से समबन्धित प्रश्न उत्तर

रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम क्या था ?

Rani Laxmi Bai के घोड़े का नाम चेतक था।

Rani Laxmi Bai की मृत्यु कब हुई थी ?

रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु 18 जून 1858 में हुई थी।

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म कहाँ हुआ था ?

Rani Laxmi Bai का जन्म वाराणसी में हुआ था।

झांसी की रानी का असली नाम क्या था?

Rani Laxmi Bai का बचपन में नाम मणिकर्णिका था।

क्या झांसी की रानी एक सच्ची कहानी है?

झाँसी की योद्धा रानी लक्ष्मीबाई, झाँसी की ऐतिहासिक रानी की सच्ची कहानी बताती है, जिन्होंने 1857 के कुख्यात विद्रोह में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ अपनी सेना का जमकर नेतृत्व किया ।

आज इस लेख में Rani Laxmi Bai के बारे में जानकारियां पढ़ी। उम्मीद है आप को ये जानकारी पसंद आयी होगी। यदि आप ऐसे ही अन्य लेखों को पढ़ना चाहते है तो हमारी वेबसाइट Hindi NVSHQ से जुड़ सकते हैं।

यह भी देखेंयशस्वी जायसवाल जीवन परिचय | Yashasvi jaiswal biography in hindi (Indian Cricketer), Age, Girlfriend

यशस्वी जायसवाल जीवन परिचय | Yashasvi jaiswal biography in hindi (Indian Cricketer), Age, Girlfriend

Photo of author

Leave a Comment

हमारे Whatsaap ग्रुप से जुड़ें